विश्व शतरंज: आनंद की विरासत और भारतीय युवा सितारों का अभूतपूर्व उदय

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शतरंज की बिसात पर एक नया अध्याय लिखा जा रहा है, और इस कहानी के नायक भारत के युवा खिलाड़ी हैं। यह वह दौर है जिसे महान गैरी कास्पारोव ने `विशी के बच्चों का युग` कहा है। उनकी यह टिप्पणी दो ऐतिहासिक क्षणों के बाद आई: पहला, जब 2024 में गुकेश डोम्माराजू ने कैंडिडेट्स टूर्नामेंट जीता, और दूसरा, जब उन्होंने डिंग लीरेन को हराकर विश्व चैंपियन का ताज अपने नाम किया। कास्पारोव सही थे; आज वैश्विक शतरंज में हर जगह भारतीय युवाओं का दबदबा दिख रहा है, और उनके पीछे प्रेरणा के स्रोत कोई और नहीं, बल्कि स्वयं विश्वनाथन आनंद हैं।

एक नई पीढ़ी का जन्म: गुकेश का विश्व चैंपियन बनना

गुकेश डोम्माराजू का विश्व चैंपियन बनना महज एक जीत नहीं, बल्कि एक घोषणा थी – कि भारत आ गया है, और वह रुकने वाला नहीं। कैंडिडेट्स टूर्नामेंट में सबसे युवा खिलाड़ी होने के बावजूद, उन्होंने अनुभवी दिग्गजों जैसे फैबियानो कारुआना, हिकारू नाकामुरा और इयान नेपोमनियाची को पछाड़ा। उनकी सबसे बड़ी खूबी उनकी अदम्य इच्छाशक्ति है। जब खेल ड्रॉ की ओर बढ़ रहा था, तब भी उन्होंने हार नहीं मानी, लगातार दबाव बनाए रखा और आखिर में विश्व खिताब अपने नाम कर लिया। यह उस दृढ़ संकल्प का प्रतीक है जो `विशी के बच्चों` की पहचान बन चुका है।

दिव्या देशमुख: महिला शतरंज में भारत का नया सितारा

हाल ही में, जॉर्जिया के बटुमी में फिडे महिला विश्व कप में दिव्या देशमुख ने इतिहास रचा। एक सर्व-भारतीय फाइनल में उन्होंने कोनेरू हम्पी को हराकर अपने करियर का सबसे बड़ा खिताब जीता और इसी के साथ ग्रैंडमास्टर का पद भी हासिल किया। यह जीत इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि महिला शतरंज में पिछले तीन दशकों से चीन का दबदबा रहा है। 1991 के बाद से, चीन ने छह अलग-अलग महिला विश्व चैंपियन दिए हैं, और इन 34 वर्षों में से 25 वर्षों तक चीनी खिलाड़ी ही चैंपियन रहे हैं। लेकिन दिव्या ने न तो इतिहास की परवाह की और न ही प्रतिद्वंद्वी की प्रतिष्ठा की। अपनी शुरुआती मुश्किलों के बावजूद, उन्होंने अंत तक संघर्ष किया और जीत हासिल की। यह दर्शाता है कि भारतीय युवा किसी भी चुनौती से घबराने वाले नहीं हैं।

भारतीय शतरंज की अविश्वसनीय गहराई

आज भारतीय शतरंज के पास प्रतिभाओं की एक लंबी कतार है। ओपन फिडे स्टैंडर्ड रेटिंग में शीर्ष 6 में तीन भारतीय खिलाड़ी शामिल हैं: गुकेश, आर प्रज्ञानानंद और अर्जुन एरिगैसी। महिला वर्ग में भी, शीर्ष 20 में चार भारतीय खिलाड़ी हैं। विदित गुजराती और अरविंद चिदंबरम भी शीर्ष 20 में जगह बनाने की कगार पर हैं। यह महज एक संयोग नहीं, बल्कि एक सुनियोजित विकास का परिणाम है जिसके मूल में विश्वनाथन आनंद का मार्गदर्शन और प्रेरणा है।

विभिन्न प्रारूपों में चमकते सितारे

यह पीढ़ी अलग-अलग खूबियों के साथ वैश्विक मंच पर चमक रही है। जहां गुकेश और प्रज्ञानानंद ने शास्त्रीय शतरंज में अपनी धाक जमाई है, वहीं अर्जुन एरिगैसी ने तेज समय नियंत्रण वाले प्रारूपों में अपना लोहा मनवाया है, जैसा कि उन्होंने पिछले साल विश्व रैपिड चैंपियनशिप और हाल ही में रियाद में संपन्न हुए ई-स्पोर्ट्स विश्व कप में दिखाया। निहाल सरीन, अपनी तेज चालों और ऑनलाइन शतरंज में महारत के लिए जाने जाते हैं, अब ओवर-द-बोर्ड प्रदर्शन में भी अपनी छाप छोड़ना चाहते हैं। यह विविधता ही भारतीय वर्चस्व के सपने को एक मजबूत आधार देती है।

किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी कि कुछ साल पहले `भारत बनाम भारत` विश्व चैंपियनशिप मैच संभव होगा, लेकिन अब ऐसा होना कोई दूर का सपना नहीं है।

आनंद की विरासत: संरक्षक और प्रेरणास्रोत

विश्वनाथन आनंद ने भले ही अब प्रतिस्पर्धी शतरंज से खुद को दूर कर लिया हो, लेकिन वे एक संरक्षक और प्रेरणास्रोत के रूप में इस पीढ़ी के साथ मजबूती से खड़े हैं। उनकी सलाह, अनुभव और शांत स्वभाव ने इन युवा खिलाड़ियों को चुनौतियों का सामना करने और अपनी पूरी क्षमता तक पहुंचने में मदद की है। जब आनंद अपने शिखर पर थे, तब शायद उन्होंने भी यह नहीं सोचा होगा कि एक दिन वे `विशी के बच्चों` के बीच `भारत बनाम भारत` विश्व चैंपियनशिप मैच देखेंगे। 2026 में ऐसा हो या न हो, लेकिन इस संभावना को खारिज करना अब समझदारी नहीं होगी।

निष्कर्ष: शतरंज `घर` आ रहा है

भारतीय शतरंज अब एक नई पहचान गढ़ रहा है। यह सिर्फ व्यक्तिगत खिलाड़ियों की जीत नहीं, बल्कि एक राष्ट्र के रूप में शतरंज में हमारी वापसी है। एक लोकप्रिय अंग्रेजी पंक्ति को थोड़ा बदल कर कहें तो, “शतरंज घर आ रहा है।” यह भारत का स्वर्णिम युग है, एक ऐसा युग जहां युवा दिमाग, अटूट दृढ़ संकल्प और एक महान संरक्षक की विरासत के दम पर वैश्विक शतरंज पर राज करने के लिए तैयार हैं।