जीवन की पिच पर, कभी-कभी सबसे अप्रत्याशित खिलाड़ी ही सबसे कठिन चुनौतियों का सामना करते हैं। इटली के पूर्व फुटबॉलर विलियम पियानू की कहानी ऐसे ही दृढ़ संकल्प, गरिमा और अटूट साहस का प्रमाण है। जुवेंटस के युवा दिनों से लेकर गंभीर बीमारी और करियर-दागदार आरोपों तक, पियानू ने हर बाधा का सामना एक सच्चे खिलाड़ी की भावना से किया है। यह कहानी सिर्फ फुटबॉल की नहीं, बल्कि उससे कहीं अधिक है – यह मानव आत्मा की लचीलापन और जीवन के अनमोल क्षणों को संजोने की है।
जीवन की सबसे बड़ी जंग: कैंसर से मुकाबला
अप्रैल का महीना था जब विलियम पियानू के जीवन ने एक अप्रत्याशित मोड़ लिया। उन्हें लिम्फेटिक सिस्टम के ट्यूमर का पता चला, एक ऐसी खबर जिसने किसी भी व्यक्ति को तोड़ कर रख दिया होता। 46 दिनों तक उन्होंने गहन चिकित्सा इकाई (ICU) में बिताए, जहाँ वे कोमा में भी रहे। उस दौरान, मृत्यु उनके करीब खड़ी थी, और उन्हें अपनी पत्नी वेरोनिका का हाथ थामकर अपनी छोटी बेटी का ख्याल रखने का वादा लेना पड़ा। यह क्षण किसी भी फुटबॉल मैच से अधिक गंभीर और महत्वपूर्ण था।
केमोथेरेपी के कठोर चक्रों ने उनके शरीर को प्रभावित किया, जिससे उनका वजन 30 किलो कम हो गया। लेकिन पियानू ने हार नहीं मानी। उन्होंने इसे “अपने जीवन का सबसे महत्वपूर्ण मैच” बताया। उनका दृढ़ संकल्प और परिवार का अटूट समर्थन उनकी सबसे बड़ी ताकत थी। यह सुनकर आश्चर्य नहीं होता कि फुटबॉल जगत में उनके साथी, जैसे कि बारी के हीरो इगोर प्रोटी भी ऐसी ही बीमारी से जूझ रहे हैं, जो एक बार फिर इस खेल के खिलाड़ियों की साझा भावना को दर्शाता है। आज भी, वे पूरी तरह ठीक नहीं हुए हैं, लेकिन बीमारी घट रही है, और उनका संघर्ष जारी है।
जब करियर पर लगा दाग: कैल्सियोस्केमेसे का आरोप
फुटबॉल करियर के बाद की उनकी यात्रा केवल शारीरिक चुनौतियों तक ही सीमित नहीं थी। 2011 में, उनके नाम को `बारी-बीआईएस` मैच फिक्सिंग जांच में शामिल किया गया, जिसने उनके करियर पर एक गहरा दाग लगा दिया। दो पूर्व साथियों ने उन पर मिलीभगत का आरोप लगाया, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें शुरू में सात महीने की जेल और तीन साल का प्रतिबंध मिला।
किसी ऐसे व्यक्ति के लिए, जिसने हमेशा गौरव और ईमानदारी से खेला हो, यह आरोप एक भयानक झटका था। हालांकि, पाँच साल के कानूनी संघर्ष के बाद, 2015 में बारी की अपील अदालत ने उन्हें “कोई अपराध न करने” के लिए बरी कर दिया। पियानू निर्दोष थे, लेकिन इस घटना ने उनके फुटबॉल करियर की विरासत पर एक अमिट छाप छोड़ दी, जिसे मिटाना आसान नहीं था। यह एक कड़वी विडंबना है कि जिस खेल को उन्होंने अपना जीवन दिया, उसी ने उन्हें इस तरह के निराधार आरोपों से गुजरने पर मजबूर किया।
फुटबॉल के मैदान से जीवन के संघर्ष तक: एक नई पहचान
मैच फिक्सिंग के आरोप और फुटबॉल से दूरी के बाद, विलियम पियानू को एक नई शुरुआत करनी पड़ी। जहाँ कई पूर्व पेशेवर खिलाड़ी कोचिंग या कमेंट्री में शामिल हो जाते हैं, वहीं पियानू ने एक अलग रास्ता चुना। उन्हें पेशेवर स्तर पर कोचिंग के अवसर नहीं मिले, इसलिए उन्होंने जीवन चलाने के लिए कई तरह के काम किए।
यह सुनकर शायद कुछ लोग आश्चर्यचकित हों, लेकिन वह एक कॉफी शॉप में बरिस्ता, कपड़ों की दुकान में सेल्समैन और यहाँ तक कि एक वेयरहाउस में मज़दूर के रूप में भी काम किया। जुवेंटस के युवा टीम में डेल पिएरो के साथ खेलने वाले और बैजियो जैसे दिग्गजों को मार्क करने वाले खिलाड़ी के लिए यह एक विनम्र परिवर्तन था। लेकिन पियानू ने इसे हमेशा अपनी “गर्व और गरिमा” के साथ स्वीकार किया। यह उनके चरित्र की एक और मिसाल है कि उन्होंने किसी भी काम को छोटा नहीं समझा और हर चुनौती का डटकर सामना किया।
फुटबॉल के दिनों की यादें: दिग्गजों के बीच
अपने करियर के दौरान, पियानू ने कुछ अविस्मरणीय पल जिए। 1993 में जुवेंटस की युवा टीम में रहते हुए, उन्होंने डेल पिएरो के साथ प्रशिक्षण लिया और स्कुडेटो और वायारेगियो टूर्नामेंट जीता। दिग्गज रोबर्टो बैजियो को मार्क करने का उनका अनुभव “असंभव” था, क्योंकि बैजियो हर मोड़ पर उन्हें छका देते थे। यह वह समय था जब उन्होंने बोनिपर्टी और एग्नेली जैसे दिग्गजों से हाथ मिलाया।
सेरी बी और सी में उन्होंने बारी, ट्रेविसो और ट्राईस्टीना जैसी टीमों के लिए लगभग 300 मैच खेले। ट्रेविसो में रहते हुए, उन्होंने एक बार ओमोलडे नामक खिलाड़ी के समर्थन में नस्लवाद के खिलाफ एकजुटता दिखाते हुए अपने चेहरे काले रंग से पेंट किए थे, जो उनके मानवीय मूल्यों को दर्शाता है। 2006 में बारी के लिए खेलते हुए, उन्हें जुवेंटस के खिलाफ खेलने का मौका मिला, जहाँ उन्होंने नेडवेड को मार्क किया। वह पल उनके लिए आँखें खोलने वाला था, जब उन्होंने महसूस किया कि कैसे ये “चैंपियन” उनसे अलग स्तर पर थे। उस मैच के बाद उन्होंने युवा मार्चिसियो के साथ जर्सी बदली।
जीवन के लिए एक नया दृष्टिकोण
आज, विलियम पियानू अपनी उपचार प्रक्रिया जारी रखे हुए हैं। वे अभी भी फुटबॉल देखते हैं और कोचिंग में वापस आने की इच्छा रखते हैं। हालांकि, उनका जीवन के प्रति दृष्टिकोण बदल गया है। उन्हें कोई पछतावा नहीं है, और बीमारी के बावजूद वे खुश हैं।
“मुझे केवल एक इच्छा है,” पियानू कहते हैं, “50 साल की उम्र में मैं अपनी पत्नी और बेटी के साथ हर पल का आनंद लेना चाहता हूँ। मैं अब लंबी अवधि के बारे में नहीं सोच सकता। जीवन वापस नहीं आता।”
विलियम पियानू की कहानी हमें सिखाती है कि जीवन में कितनी भी मुश्किलें क्यों न आएं, हमें कभी हार नहीं माननी चाहिए। उनका संघर्ष, उनका दृढ़ संकल्प और अपने परिवार के प्रति उनका प्यार एक शक्तिशाली संदेश देता है कि असली जीत सिर्फ मैदान पर नहीं, बल्कि जीवन की हर चुनौती का सामना करने में है। यह कहानी न केवल खेल प्रेमियों के लिए बल्कि हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणा है जो जीवन के उतार-चढ़ाव में हिम्मत बनाए रखना चाहता है।