टेस्ट क्रिकेट ही असली ‘किंग’: शुभमन गिल और रॉस्टन चेज़ की नज़र में खेल का भविष्य

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दिल्ली की सरजमीं पर भारत और वेस्टइंडीज के बीच चल रहे दूसरे टेस्ट मैच में, जब दर्शक चौकों-छक्कों की उम्मीद लगाए बैठे थे, तब क्रिकेट जगत में एक अलग ही बहस छिड़ गई। यह बहस न पिच के मिजाज को लेकर थी, न खिलाड़ियों के प्रदर्शन पर, बल्कि सीधे खेल की `आत्मा` को लेकर थी। सवाल यह उठ खड़ा हुआ है कि क्या टी20 लीग्स की चकाचौंध में, क्रिकेट का मूल स्वरूप, यानी टेस्ट क्रिकेट, अपनी चमक खो रहा है? इस गंभीर चिंतन में भारत के युवा कप्तान शुभमन गिल और वेस्टइंडीज के टेस्ट कप्तान रॉस्टन चेज़ ने कुछ ऐसे विचार रखे हैं, जो क्रिकेट प्रेमियों को सोचने पर मजबूर कर देंगे।

टेस्ट क्रिकेट: हर क्रिकेटिंग राष्ट्र की बुनियाद

भारत के उभरते सितारे और कप्तान शुभमन गिल, जो अपने दूसरे टेस्ट कप्तानी सीरीज में ही हैं, का संदेश बिल्कुल स्पष्ट था: लाल गेंद क्रिकेट ही किसी भी क्रिकेटिंग राष्ट्र की सफलता का आधार, उसकी धड़कन है। उनके अनुसार, यदि किसी देश का रेड-बॉल बेस मजबूत है, तो वह अपने आप ही वनडे और टी20 फॉर्मेट में बेहतर प्रदर्शन करेगा।

“मुझे लगता है कि एक क्रिकेटिंग राष्ट्र के रूप में, जो भी क्रिकेट खेलता है, अगर उसका रेड-बॉल बेस बहुत मजबूत है, तो आप स्वाभाविक रूप से वनडे और टी20 में अच्छा प्रदर्शन करते हैं,” गिल ने कहा। “आप किसी भी टीम को देखें – इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया – उनकी टेस्ट टीमें बहुत अच्छी हैं। यह स्वाभाविक है कि आपकी वनडे और टी20 टीम अच्छा करेगी। शायद उनके खिलाड़ियों का ध्यान टी20 और लीग्स पर अधिक है… जब आपका ध्यान केवल उसी पर होता है, और आप उस आधार को भूल जाते हैं जहां से खेल शुरू हुआ था, तो संघर्ष शुरू हो जाता है।”

गिल के ये शब्द भारतीय क्रिकेट की दशकों पुरानी फिलॉसफी को दर्शाते हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि इंडियन प्रीमियर लीग (IPL) का वित्तीय आकर्षण जबरदस्त है, लेकिन भारत का घरेलू रेड-बॉल सिस्टम, विशेष रूप से रणजी ट्रॉफी, लगातार ऐसे टेस्ट-तैयार क्रिकेटर दे रहा है जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ी है। शुभमन गिल खुद से लेकर श्रेयस अय्यर और मोहम्मद सिराज तक, सभी इसी मार्ग से आए हैं। यही कारण है कि टी20 क्रिकेट के बढ़ते वर्चस्व के बावजूद, भारत एक दशक से भी अधिक समय से शीर्ष टेस्ट राष्ट्रों में से एक बना हुआ है।

वेस्टइंडीज की कसक: खोए हुए गौरव की तलाश

वहीं, वेस्टइंडीज के टेस्ट कप्तान रॉस्टन चेज़ की भावनाएं भी गिल से मिलती-जुलती थीं, लेकिन उनमें एक गहरी कसक भी थी – उस गौरव को खोने की कसक जो कभी कैरेबियाई क्रिकेट की पहचान थी।

“रेड-बॉल ही नींव है,” चेज़ ने कहा। “अगर आप रेड-बॉल क्रिकेट खेल सकते हैं, तो आप किसी भी अन्य फॉर्मेट में ढल सकते हैं। लेकिन दूसरे तरीके से – व्हाइट-बॉल से रेड-बॉल में – वह मुश्किल है। क्रिकेट के सभी दिग्गज रेड-बॉल क्रिकेट से ही बने हैं। यह किसी भी क्रिकेटर के लिए अंतिम परीक्षा और अंतिम चुनौती है।”

चेज़ के ये शब्द वेस्टइंडीज क्रिकेट की वर्तमान स्थिति की एक दुखद तस्वीर पेश करते हैं। एक समय था जब वेस्टइंडीज के नाम से ही विरोधी टीमों के माथे पर चिंता की लकीरें उभर आती थीं। विवियन रिचर्ड्स, क्लाइव लॉयड और कर्टली एम्ब्रोस जैसे खिलाड़ियों ने टेस्ट क्रिकेट को एक नई पहचान दी थी। लेकिन आज, टी20 लीग्स की चकाचौंध और तात्कालिक वित्तीय लाभ की दौड़ में, वेस्टइंडीज का `रेड-बॉल` ढांचा मानो रेत की दीवार बन गया है, जो धीरे-धीरे ढह रहा है। सीमित फंडिंग, पुरानी बुनियादी ढांचा और खिलाड़ियों का वैश्विक टी20 लीग्स में स्थायी करियर की तलाश करना – ये सभी कारक कैरेबियाई टेस्ट क्रिकेट के पतन का कारण बने हैं।

वेस्टइंडीज के महान बल्लेबाज ब्रायन लारा का यह कहना कि कुछ खिलाड़ियों में अब टेस्ट क्रिकेट के लिए पहले जैसी भूख नहीं है, उनकी पुरानी यादों से नहीं, बल्कि एक दिल टूटने की भावना से आता है। जिस राष्ट्र ने कभी क्रिकेट के दिग्गजों को जन्म दिया, वह अब लंबी अवधि के प्रारूप में अपनी सबसे प्रतिभाशाली प्रतिभाओं को बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रहा है। यह एक कड़वा सच है कि आधुनिक क्रिकेट में पैसे की चमक अक्सर खेल के मूल सिद्धांतों पर भारी पड़ जाती है।

दो अलग दुनिया, एक शाश्वत सत्य

भारत और वेस्टइंडीज के कप्तानों की वास्तविकताएं भले ही जमीन-आसमान का फर्क रखती हों। जहां भारत की रेड-बॉल संरचना एक निरंतर उत्पादन इकाई है, वहीं वेस्टइंडीज की एक कमजोर और खंडित व्यवस्था है। फिर भी, दार्शनिक रूप से, गिल और चेज़ दोनों एक शाश्वत सत्य पर सहमत होते हैं – टेस्ट क्रिकेट आज भी कौशल, स्वभाव और दिल की सर्वोच्च परीक्षा है। यह वह मैदान है जहां चरित्र की असली परख होती है, जहां धैर्य और दृढ़ संकल्प की कहानियां लिखी जाती हैं।

टी20 की धूम-धड़ाके वाली दुनिया में, टेस्ट क्रिकेट एक शांत, गंभीर और गहरा अनुभव प्रदान करता है। यह वह फॉर्मेट है जो खिलाड़ियों को अपनी सीमाओं को तोड़ने और हर सेशन में, हर दिन, हर गेंद पर खुद को साबित करने के लिए मजबूर करता है। शायद यही कारण है कि क्रिकेट के असली पारखी आज भी इसे `किंग` मानते हैं।

तो भले ही दिल्ली के मैदान पर स्कोरबोर्ड एक बार फिर भारत के पक्ष में झुक जाए, लेकिन इस मैच की कहानी सिर्फ आंकड़ों की नहीं, बल्कि दो अलग-अलग दुनिया के कप्तानों की है, जो एक शाश्वत सत्य पर सहमत हैं – टेस्ट क्रिकेट खेल की आत्मा है, भले ही दुनिया के एक हिस्से में यह अपनी अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा हो। यह एक ऐसी चुनौती है जिसे हर पीढ़ी के क्रिकेटरों को स्वीकार करना होगा, यदि वे खेल की विरासत को बरकरार रखना चाहते हैं।