वर्तमान में टेनिस की दुनिया में युवा प्रतिभाओं, खासकर जान्निक सिन्नर और कार्लोस अल्कराज़ का बोलबाला है। उनकी तेज़ गति और बहुमुखी खेल शैली ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर रखा है। लेकिन, इस चकाचौंध के बीच, खेल के एक अनुभवी खिलाड़ी ने एक ऐसा सवाल उठा दिया है, जिसने टेनिस जगत में एक नई बहस छेड़ दी है: क्या आज के टेनिस कोर्ट की सतहें इतनी एक जैसी हो गई हैं कि यह खेल की विविधता को ही ख़त्म कर रही हैं?
अलेक्जेंडर ज्वेरेव का तीखा बयान: क्या है `खट्टे अंगूर` की कहानी?
यह सवाल उठाया है विश्व के तीसरे नंबर के खिलाड़ी अलेक्जेंडर ज्वेरेव ने। शंघाई मास्टर्स 1000 में अपने शुरुआती मैच के बाद, ज्वेरेव ने सीधा हमला करते हुए कहा, “मुझे नफरत है जब कोर्ट की गति हर जगह एक जैसी होती है। मैं जानता हूँ कि टूर्नामेंट के निदेशक जानबूझकर इस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं, क्योंकि वे चाहते हैं कि सिन्नर और अल्कराज़ हर टूर्नामेंट जीतें।” उनकी यह टिप्पणी कोई नई नहीं है; कुछ दिन पहले ही महान रोजर फेडरर ने भी एंडी रॉडिक के पॉडकास्ट पर इसी तरह की चिंता व्यक्त की थी। हालांकि, ज्वेरेव का 2025 का प्रदर्शन देखते हुए, जिसमें वे शीर्ष खिलाड़ियों से काफी पीछे रहे हैं, कई लोग इसे `खट्टे अंगूर` वाली कहानी के रूप में देख रहे हैं – यानी जब आप खुद नहीं जीत पाते, तो नियमों पर सवाल उठाते हैं। यह एक दिलचस्प विरोधाभास है कि जब खिलाड़ी जीत रहा होता है, तब उसे सतहों में कोई कमी नहीं दिखती।
ऐतिहासिक संदर्भ: जब कोर्ट की सतहें सच में `अलग` होती थीं
ज्वेरेव की शिकायत में एक ऐतिहासिक सच्चाई भी छिपी है। एक समय था जब घास (ग्रास), क्ले (मिट्टी) और हार्ड कोर्ट की सतहें अपनी-अपनी विशिष्टता रखती थीं। घास पर खेल बेहद तेज़ होता था, क्ले पर धीमा और रणनीतिक, जबकि हार्ड कोर्ट बीच का मार्ग प्रदान करते थे। खिलाड़ी को प्रत्येक सतह के अनुकूल अपना खेल ढालना पड़ता था, जिससे अलग-अलग कौशल वाले विशेषज्ञों का उदय होता था। ग्रास-कोर्ट विशेषज्ञ जैसे पीट सम्प्रास या क्ले-कोर्ट किंग राफेल नडाल (हालांकि आधुनिक युग में) अपनी विशेष सतह पर लगभग अपराजेय होते थे।
लेकिन आज? ज्वेरेव का दावा है कि आप “लगभग हर सतह पर एक ही तरह से खेल सकते हैं”। इसका मतलब है कि खेल की गति में एकरूपता आ गई है, जिससे `सर्व एंड वॉली` जैसे खेल शैलियाँ लगभग विलुप्त हो गई हैं। क्या यह केवल प्रौद्योगिकी (तेज़ रैकेट, धीमी गेंदें) का परिणाम है, या यह टूर्नामेंट आयोजकों का जानबूझकर लिया गया निर्णय है जो दर्शकों की पसंद के अनुसार लंबे और रोमांचक रैलियों को बढ़ावा देना चाहते हैं?
जोकोविच और सिन्नर की प्रतिक्रिया: सबकी अपनी राय
इस बहस में सिर्फ कोर्ट की सतहें ही नहीं, बल्कि व्यस्त टेनिस कैलेंडर भी शामिल है। नोवाक जोकोविच ने भी शंघाई में कहा था कि कई खिलाड़ी शिकायत करते हैं, लेकिन जब कुछ करने की बात आती है, तो कोई आगे नहीं आता। यह शायद कोर्ट की सतहों के मुद्दे पर भी लागू होता है – समस्या असली है, लेकिन समाधान की दिशा में ठोस कदम कम ही दिखते हैं। पुरानी कहावत है, “बातें तो बहुत होती हैं, पर काम नहीं होता।”
वहीं, जान्निक सिन्नर ने इस पर अपनी सीधी और स्पष्ट प्रतिक्रिया दी: “कोर्ट हम या कार्लोस नहीं बनाते। यह हमारा फैसला नहीं है। हम हर स्थिति में अनुकूलन करने की कोशिश करते हैं। मुझे लगता है कि हर हफ्ते सतह थोड़ी अलग होती है। मैंने तब भी शानदार टेनिस खेला था जब कोर्ट तेज़ थे। लेकिन मैं कोर्ट नहीं बनाता, मैं सिर्फ अपना सर्वश्रेष्ठ टेनिस खेलने की कोशिश करता हूँ।” सिन्नर का यह बयान न केवल उनकी परिपक्वता को दर्शाता है, बल्कि इस बात पर भी ज़ोर देता है कि शीर्ष खिलाड़ी परिस्थितियों के अनुकूल ढलने में माहिर होते हैं।
निष्कर्ष: क्या टेनिस अपनी पहचान खो रहा है?
तो, क्या ज्वेरेव की शिकायतें सिर्फ हार का बहाना हैं, या इसमें कुछ सच्चाई भी है? शायद दोनों। इसमें कोई शक नहीं कि सिन्नर और अल्कराज़ वर्तमान में असाधारण फॉर्म में हैं और वे किसी भी सतह पर अच्छा खेलने में सक्षम हैं। लेकिन यह भी एक सत्य है कि कोर्ट की सतहों में पहले जैसी विविधता अब नहीं दिखती। यह आधुनिक टेनिस को अधिक सुसंगत बना सकता है, जिससे हर मैच में एक निश्चित स्तर का रोमांच बना रहे, लेकिन क्या यह खेल के चरित्र को कमज़ोर कर रहा है, जिससे भविष्य में `सरफेस स्पेशलिस्ट्स` (सतह विशेषज्ञ) का युग समाप्त हो जाएगा?
या शायद, यह सिर्फ इस बात का प्रमाण है कि सबसे महान खिलाड़ी किसी भी परिस्थिति में अपना रास्ता खोज लेते हैं, और बाकियों को बस उनसे आगे निकलने का कोई दूसरा तरीका खोजना होगा – बजाय इसके कि वे कोर्ट की गति पर आरोप लगाएँ। टेनिस जगत को इस `सत्य` पर विचार करना होगा, क्योंकि आखिरकार, खेल का सार उसकी अप्रत्याशितता और विविध चुनौतियों में ही छिपा है। अगर हर मैदान एक जैसा हो जाए, तो फिर हर खिलाड़ी एक जैसा क्यों नहीं हो सकता? या शायद, यह सिर्फ कुछ खिलाड़ियों के लिए एक सुविधाजनक तर्क है, जबकि असली चुनौती तो खुद को लगातार बेहतर बनाने में है।