हाल ही में, लोकप्रिय लाइव-स्ट्रीमर जूलिया `NamiNetsu` ज़ारिना ने अपनी भावनाओं को साझा किया, जो ऑनलाइन उत्पीड़न के बढ़ते दायरे पर एक गंभीर बहस छेड़ता है। ट्विच पर अपनी स्ट्रीम के दौरान दर्शकों द्वारा लगातार मिलने वाली गालियां और बुलीइंग (धमकाना) उनकी पीड़ा का सबब बनीं। NamiNetsu का यह बयान केवल उनकी व्यक्तिगत व्यथा नहीं है, बल्कि एक व्यापक सामाजिक समस्या का दर्पण है, जहाँ इंटरनेट की गुमनामी में मानवीय मूल्यों का क्षरण होता दिख रहा है।
ऑनलाइन उत्पीड़न का मनोविज्ञान: `प्रतिक्रिया` की तलाश
यह कोई नई बात नहीं है कि इंटरनेट पर लोग अपने असली व्यक्तित्व से परे जाकर व्यवहार करते हैं। गुमनामी का पर्दा उन्हें एक अजीबोगरीब `साहस` देता है, जिसके पीछे वे अक्सर ऐसे शब्द और कृत्य छिपाते हैं, जिनकी सार्वजनिक जीवन में वे कल्पना भी नहीं कर सकते। NamiNetsu के अनुभव में, सबसे चौंकाने वाला पहलू यह था कि एक दर्शक ने स्वीकार किया कि वह यह सब केवल `प्रतिक्रिया देखने` के लिए कर रहा था। मानो किसी व्यक्ति की भावनात्मक प्रतिक्रिया देखना एक नया डिजिटल `खेल` बन गया हो, जिसमें दूसरों की पीड़ा ही मनोरंजन का स्रोत बन जाती है।
क्या यह अमानवीय नहीं है? क्या हम उस मोड़ पर आ गए हैं, जहाँ दूसरे के दर्द से आनंद लेना सामान्य हो गया है? NamiNetsu के शब्दों में, “मुझे यह जानकर डर लगता है कि क्रूर होना दो उंगलियां पेशाब करने जितना आसान है। और दूसरे का दुख सिर्फ एक मनोरंजन है।” यह एक गंभीर सवाल है जो हमारी सामूहिक चेतना पर प्रश्नचिह्न लगाता है। हम कब स्क्रीन के उस पार बैठे व्यक्ति को एक इंसान मानना बंद कर देते हैं और उसे महज एक `खिलौना` समझने लगते हैं?
स्ट्रीमर्स भी इंसान हैं: यह `पेशे का हिस्सा` नहीं
जब NamiNetsu ने अपनी पीड़ा व्यक्त की, तो उन्हें अक्सर सुनने को मिलता था: “आप स्ट्रीमर बनना चाहती थीं, यह पेशे का हिस्सा है।” लेकिन क्या वाकई ऐसा है? क्या किसी पेशे का हिस्सा दूसरों से मौखिक दुर्व्यवहार, बुलीइंग और अपमान सहन करना हो सकता है?
NamiNetsu स्पष्ट रूप से कहती हैं: “नहीं। पेशे का हिस्सा है सामग्री बनाना, साझा करना, संवाद करना, जुड़े रहना। न कि उन लोगों से हिंसा, बुलीइंग और मौखिक अपमान सहना जो सिर्फ बोर हो रहे हैं।”
यह एक महत्वपूर्ण अंतर है। स्ट्रीमर्स भी इंसान हैं। उनके भी परिवार, दोस्त, शौक और भावनाएं होती हैं। वे लोहे के नहीं बने होते। हर दिन इस तरह की नकारात्मकता को झेलना किसी भी व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर असर डाल सकता है, जिससे अवसाद, चिंता और आत्म-सम्मान में कमी जैसी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। यह `सामग्री` नहीं, बल्कि मनोवैज्ञानिक शोषण है, जिसे हमें सामान्य नहीं मानना चाहिए।
ऑनलाइन व्यवहार की गिरावट: समाज पर असर
यह समस्या केवल स्ट्रीमर्स तक ही सीमित नहीं है। टिप्पणी अनुभागों से लेकर सोशल मीडिया फीड तक, हर जगह ऐसे व्यवहार के उदाहरण मिल जाते हैं। लोग अक्सर इसे “बेगुनाह मजाक” या “ऑनलाइन संस्कृति” का हिस्सा मानकर खारिज कर देते हैं। लेकिन जैसा कि NamiNetsu ने कहा, यह “अपमानजनक और अमानवीय” है। यदि यह आपके या आपके प्रियजनों के साथ होता, तो क्या यह तब भी उतना ही मज़ेदार लगता?
वास्तव में, जो व्यक्ति इंटरनेट पर बुरा है, वह वास्तविक जीवन में भी वैसा ही होता है, बस खुद को छिपाने की कोशिश करता है। ऑनलाइन दुनिया में हमारे व्यवहार का सीधा असर हमारे वास्तविक व्यक्तित्व पर पड़ता है। यदि हम डिजिटल स्पेस में क्रूरता को सामान्य कर देते हैं, तो यह वास्तविक दुनिया में भी हमारी संवेदनशीलता को कम करेगा।
एक मानवीय विकल्प की ओर
NamiNetsu सहानुभूति या दया की मांग नहीं कर रही थीं। वह बस एक क्षण के लिए जागरूकता की अपील कर रही थीं। यह समझने की अपील कि सबसे आत्मविश्वासी और मज़ेदार स्ट्रीमर के पीछे भी एक ऐसा व्यक्ति हो सकता है जिसका दिन मुश्किल रहा हो, जिसे दर्द होता हो, जो लोहे का न बना हो।
यदि आपने कभी मनोरंजन के लिए किसी को ऑनलाइन कुछ बुरा लिखा है, तो इस लेख को याद रखें। एक पल रुककर सोचें: क्या पर्दे के पीछे बैठा व्यक्ति सचमुच इतना `मनोरंजक` है कि उसके दर्द पर हंसा जाए? क्या उसके आँसू आपकी मुस्कान का कारण बनने चाहिए?
डिजिटल दुनिया में भी मानवीय गरिमा और सम्मान को सर्वोच्च रखना हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है। आइए, एक ऐसी ऑनलाइन दुनिया का निर्माण करें जहाँ दयालुता कमजोरी नहीं, बल्कि सबसे बड़ी शक्ति हो; जहाँ हर व्यक्ति को उसके मानवीय स्वरूप में देखा जाए, न कि केवल एक `प्रतिक्रिया` के स्रोत के रूप में। यह समय है कि हम एक अधिक मानवीय विकल्प चुनें, एक ऐसा विकल्प जो हमें एक बेहतर समाज की ओर ले जाए।