भारतीय शतरंज की दुनिया में एक नाम, आर वैशाली, ने एक बार फिर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है। उज्बेकिस्तान के समरकंद में आयोजित फिडे ग्रैंड स्विस टूर्नामेंट में उन्होंने न केवल अपने खिताब का सफलतापूर्वक बचाव किया, बल्कि 2026 के प्रतिष्ठित महिला कैंडिडेट्स टूर्नामेंट में अपनी जगह भी पक्की कर ली। यह उपलब्धि उन्हें इस टूर्नामेंट के लिए क्वालीफाई करने वाली तीसरी भारतीय महिला खिलाड़ी बनाती है, जो भारतीय शतरंज के लिए एक ऐतिहासिक क्षण है।
संघर्षपूर्ण वर्ष का अंत: जब आत्मविश्वास डगमगाया
लेकिन यह जीत केवल एक ट्रॉफी और एक स्थान से कहीं बढ़कर है। यह एक ऐसी कहानी है जो दृढ़ संकल्प, वापसी और मानसिक शक्ति का प्रमाण है। वैशाली के लिए, 2025 का यह साल उतार-चढ़ाव भरा रहा था। ग्रैंड स्विस से ठीक पहले, उन्होंने चेन्नई ग्रैंड मास्टर्स के चैलेंजर्स सेक्शन में निराशाजनक प्रदर्शन किया, जहाँ 9 राउंड में सिर्फ 1.5 अंक हासिल किए। इससे पहले भी, महिला विश्व कप के क्वार्टर फाइनल में हार, नॉर्वे शतरंज महिला टूर्नामेंट में पांचवां स्थान, ऑस्ट्रिया ग्रां प्री में चौथा स्थान, पुणे ग्रां प्री में छठा और टाटा स्टील महिला चैलेंजर्स में नौवां स्थान – यह सब उनके आत्मविश्वास को डगमगा चुका था। उन्होंने खुद माना कि क्लासिकल शतरंज में उनका आत्मविश्वास लगभग खत्म हो गया था। ऐसे में, शतरंज के प्यादे भी कभी-कभी खिलाड़ी के आत्मविश्वास से आँख-मिचौली खेलने लगते हैं, और वैशाली के लिए यह साल ऐसा ही रहा था।
मुश्किल फैसले और मजबूत समर्थन
चेन्नई की हार इतनी गहरी थी कि वैशाली ने ग्रैंड स्विस में हिस्सा न लेने का मन बना लिया था। उनके माता-पिता के लिए भी यह एक कठिन समय था, क्योंकि उनकी बेटी निराशा के भंवर में फंसती जा रही थी और जवाब ढूंढ रही थी। यहाँ पर उनके भाई आर प्रगनानंद और ग्रैंडमास्टर कार्तिकेयन मुरली देवदूत बनकर सामने आए। विशेष रूप से कार्तिकेयन ने, जो वैशाली की तरह कोच आर बी रमेश के छात्र हैं, उन्हें ग्रैंड स्विस में खेलने के लिए राजी किया। यह केवल खेलने के लिए मनाना नहीं था, बल्कि उन्हें अपनी खोई हुई पहचान और आत्मविश्वास वापस दिलाने की एक कोशिश थी।
कड़ी मेहनत और शानदार वापसी
इस प्रोत्साहन के बाद, वैशाली ने अगले दो सप्ताह पूरी लगन से टूर्नामेंट की तैयारी में बिताए। उन्होंने अपनी खेल में आई कमियों, विशेषकर मिडिलगेम और एंडगेम में होने वाली लगातार गलतियों को दूर करने पर ध्यान केंद्रित किया। सात लगातार हार का सिलसिला, जैसा कि उन्होंने खुद कहा, उनकी मानसिक स्थिति के लिए “बहुत बुरा” था, लेकिन इस बार उन्होंने इसे अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया। यह दर्शाता है कि एक खिलाड़ी की ताकत केवल उसके खेल में नहीं, बल्कि उसकी मानसिक दृढ़ता में भी होती है।
ग्रैंड स्विस में उनकी शुरुआत धमाकेदार रही। गुलरुखबेगिम तोखिरजोनावा, एलीन रोएबर्स और ओल्गा बडेलका के खिलाफ लगातार तीन सीधी जीत ने उनके आत्मविश्वास को पंख दिए। इसके बाद, इम्स उलविया फतालिएवा और गुओ क्यूई के खिलाफ दो महत्वपूर्ण जीत ने उन्हें और मजबूती दी। लेकिन आठवें राउंड में बिबिसारा असाउबायेवा के खिलाफ मिली हार एक बड़ा झटका हो सकती थी, खासकर उनकी हालिया फॉर्म को देखते हुए। टूर्नामेंट के इतने करीब मिली यह हार किसी को भी तोड़ सकती थी, लेकिन वैशाली ने शानदार वापसी की। उन्होंने युक्सिन सोंग और टैन झोंग्यी के खिलाफ ड्रॉ खेला और मारिया मुजिचुक के खिलाफ एक शानदार जीत दर्ज की, जिसने अंतिम राउंड से पहले उन पर से दबाव कम कर दिया।
भारतीय शतरंज के लिए प्रेरणा और भविष्य की उड़ान
इस जीत के साथ, वैशाली ने न केवल अपने खिताब का बचाव किया, बल्कि यह भी साबित कर दिया कि असली चैंपियन वही है जो हार के बाद उठ खड़ा होता है। एक साल का संघर्ष अचानक विजय के वर्ष में बदल गया, मानो बिसात ने ही उसकी लगन को पुरस्कृत करने का फैसला कर लिया हो। अब उनके पास कैंडिडेट्स टूर्नामेंट की तैयारी के लिए कुछ शांत महीनों का समय है, और उन्हें पहले भी इस मंच पर खेलने का अनुभव है, जो निश्चित रूप से मददगार होगा।
आर वैशाली की यह कहानी सिर्फ शतरंज के खिलाड़ियों के लिए नहीं, बल्कि हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणा है जो जीवन के खेल में कभी-कभी हार का सामना करता है। यह हमें सिखाती है कि दृढ़ संकल्प और सही समर्थन से किसी भी बाधा को पार किया जा सकता है। विश्व चैंपियनशिप का उनका सपना अब पहले से कहीं अधिक जीवंत है, और पूरा भारत उनकी इस यात्रा पर गर्व महसूस कर रहा है।