सारा कर्टिस, विश्व तैराकी चैंपियनशिप के दौरान।
सिंगापुर में विश्व तैराकी चैंपियनशिप 2025 के 100 मीटर फ्रीस्टाइल फाइनल में सारा कर्टिस के आठवें स्थान पर रहने के बाद, जहाँ एक एथलीट की उपलब्धि का जश्न मनाया जाना चाहिए था, वहाँ उन्हें ऑनलाइन नफरत का सामना करना पड़ा। यह एक ऐसी कहानी है जो खेल में प्रतिभा और राष्ट्रीय पहचान के बीच की जटिलताओं को उजागर करती है, विशेषकर जब ऑनलाइन गुमनामी की आड़ में संकीर्ण मानसिकता सामने आती है।
ऑनलाइन नफरत की लहर
फाइनल में सारा का प्रदर्शन भले ही उनके व्यक्तिगत सर्वश्रेष्ठ (53.02) से थोड़ा कम (53.41) रहा हो, लेकिन इसने उन्हें कुछ तत्वों के लिए निशाना बनाने का मौका दिया। सोशल मीडिया पर कुछ टिप्पणियों में दावा किया गया कि उनके इतालवी रिकॉर्ड “असल में नाइजीरियाई” हैं। ये वाक्यांश सारा के मिश्रित विरासत से जुड़े हैं – उनके पिता इतालवी हैं और उनकी माँ का जन्म नाइजीरिया में हुआ था।
“ये वाक्यांश मुझे घृणित लगते हैं। इन सज्जनों को संविधान पढ़ना चाहिए, यह जानने के लिए कि नागरिकता प्राप्त करने की शर्तों में से एक यह है कि आपके कम से कम एक माता-पिता इतालवी हों।”
— सारा कर्टिस
शायद उनके लिए संविधान का एक पन्ना पलटना भी ओलंपिक स्वर्ण पदक जीतने जितना कठिन कार्य है। यह विडंबना ही है कि जिन्हें अपनी `राष्ट्रीय पहचान` की इतनी चिंता है, वे अपने देश के मूलभूत कानून से ही अनभिज्ञ हैं।
पहचान और गौरव की यात्रा
सारा कर्टिस, जिन्होंने कभी नाइजीरिया का दौरा नहीं किया, लेकिन भविष्य में वहाँ जाने की इच्छा रखती हैं, अपनी दोहरी विरासत को अपनी ताकत मानती हैं। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा है, “दो अलग-अलग संस्कृतियों से जन्म लेना मेरा सबसे बड़ा संवर्धन है।” यह बयान उनकी दृढ़ता और आत्म-स्वीकृति को दर्शाता है, जो उन लोगों के लिए एक करारा जवाब है जो उनकी राष्ट्रीयता पर सवाल उठाते हैं।
एक युवा एथलीट के रूप में, सारा को खेल के मैदान पर और उसके बाहर भी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। फाइनल में अपनी घबराहट के बावजूद, उन्होंने इसे “सर्वश्रेष्ठ तरीके से जीने” की कोशिश की। यह मानसिकता ही उन्हें आगे बढ़ा रही है।
भविष्य की ओर एक कदम
सारा कर्टिस का ध्यान अब अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने पर है। उन्होंने कहा है, “मैं अपने मन में जो कुछ भी है उसे प्राप्त करना चाहती हूं, प्रतिबद्धता और प्रशिक्षण से मैं इसे हासिल कर लूंगी।” यह सिर्फ कहने भर की बात नहीं है; सारा सितंबर से वर्जीनिया विश्वविद्यालय में प्रशिक्षण के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका जा रही हैं। यह कदम उनके करियर में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित होगा, जहाँ वे अपनी तैराकी कौशल को और निखारेंगी।
सारा कर्टिस की कहानी सिर्फ एक तैराक की नहीं, बल्कि एक ऐसे समाज की कहानी है जहाँ प्रतिभा को उसकी पहचान से ऊपर रखना चाहिए। यह हमें याद दिलाता है कि ऑनलाइन टिप्पणियों की बाढ़ में, कुछ आवाजें सिर्फ अपनी अज्ञानता का प्रदर्शन करती हैं। सारा जैसी युवा एथलीटों का समर्थन करके ही हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि खेल सिर्फ प्रतिस्पर्धा का मैदान न बने, बल्कि सम्मान और समावेश का भी प्रतीक बने।