क्रिकेट की दुनिया में, कुछ फैसले मैदान पर होने वाले खेल से कहीं ज़्यादा चर्चा बटोरते हैं। हाल ही में एशिया कप 2025 के सुपर फोर मुकाबले में बांग्लादेश के खिलाफ भारतीय टीम का बल्लेबाजी क्रम ऐसा ही एक `विवादित` निर्णय बन गया। जहाँ एक तरफ टीम इंडिया ने शानदार जीत दर्ज की, वहीं दूसरी ओर विकेटकीपर-बल्लेबाज संजू सैमसन को आठवें नंबर पर बल्लेबाजी के लिए भेजने का फैसला कई दिग्गजों और प्रशंसकों के लिए `अस्वीकार्य` रहा। आइए, इस रणनीति की गहराई में उतरते हैं और समझने की कोशिश करते हैं कि क्या यह एक मास्टरस्ट्रोक था या फिर प्रबंधन की एक चूक?
पूर्व क्रिकेटरों की तीखी प्रतिक्रिया
भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व तेज गेंदबाज डोड्डा गणेश ने सोशल मीडिया पर अपनी नाराजगी खुलकर व्यक्त की। उनके लिए संजू सैमसन जैसे प्रतिभाशाली बल्लेबाज को आठवें नंबर पर भेजना किसी भी क्रिकेटिंग तर्क के खिलाफ था। उन्होंने इसे `सरासर अस्वीकार्य` करार दिया। यह बात कुछ हद तक समझ में आती है, क्योंकि सैमसन आमतौर पर मध्यक्रम में खेलते हैं और जरूरत पड़ने पर पारी को संभालने या तेजी से रन बनाने की क्षमता रखते हैं। ऐसे में शिवम दुबे, सूर्यकुमार यादव, हार्दिक पांड्या और तिलक वर्मा के बाद अक्षर पटेल को भी उनसे ऊपर भेजने का निर्णय कई लोगों की समझ से परे था। दुख की बात यह रही कि बल्लेबाजी क्रम में इस फेरबदल के कारण संजू सैमसन को बल्लेबाजी का मौका ही नहीं मिल पाया।
“संजू सैमसन का आठवें नंबर पर बल्लेबाजी करना किसी भी क्रिकेटिंग तर्क के विपरीत है। यह सरासर अस्वीकार्य है।” – डोड्डा गणेश (एक्स पर)
कप्तान सूर्यकुमार यादव का स्पष्टीकरण: रणनीति बनाम आलोचना
मैच के बाद, टीम के कप्तान सूर्यकुमार यादव ने इस फैसले पर अपनी बात रखी। उन्होंने बताया कि बांग्लादेश के गेंदबाजी आक्रमण, जिसमें एक बाएं हाथ का स्पिनर और एक लेग स्पिनर शामिल था, को देखते हुए शिवम दुबे को तीसरे नंबर पर भेजना एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा था। कप्तान ने यह भी कहा कि वे सुपर फोर में पहले बल्लेबाजी करना चाहते थे ताकि परिस्थितियों का आकलन कर सकें।
सूर्यकुमार का तर्क यह था कि दुबे को 7-15 ओवरों के बीच खेलने के लिए “परफेक्ट” माना गया था। हालाँकि, उन्होंने स्वीकार किया कि “यह काम नहीं आया”। यह एक ऐसी स्थिति है जहाँ परिणाम ही अक्सर रणनीति की वैधता तय करता है। जब टीम जीत जाती है, तो ऐसे फैसले `मास्टरस्ट्रोक` लग सकते हैं; लेकिन अगर हार मिलती, तो यही फैसला `आत्मघाती` करार दिया जाता। क्रिकेट में, हर कोई अपने घर के सोफे पर बैठकर राष्ट्रीय टीम का `मुख्य चयनकर्ता` और `रणनीतिकार` बन जाता है, लेकिन मैदान पर दबाव में फैसले लेना एक अलग ही चुनौती है।
सैमसन का अनिश्चित भविष्य और टीम का संतुलन
संजू सैमसन के साथ यह कोई पहली बार नहीं हुआ है। भारतीय टीम में उनका स्थान हमेशा बहस का विषय रहा है। उनकी प्रतिभा पर कोई सवाल नहीं है, लेकिन उन्हें लगातार मौके न मिलना और अक्सर निचले क्रम में भेज दिया जाना उनके और उनके प्रशंसकों के लिए निराशाजनक रहा है। यह स्थिति टीम प्रबंधन के लिए भी एक चुनौती पेश करती है:
- प्रतिभा का सदुपयोग: एक विश्व स्तरीय बल्लेबाज को लगातार अनदेखा करना या निचले क्रम में भेजना क्या टीम के लिए अच्छा है?
- मनोबल: ऐसे फैसलों से खिलाड़ी के मनोबल पर क्या असर पड़ता है?
- भविष्य की योजना: क्या सैमसन भारतीय टीम की लंबी अवधि की योजनाओं का हिस्सा हैं, या वह केवल एक `बैकअप` खिलाड़ी बनकर रह गए हैं?
टीम प्रबंधन को अक्सर कई कारकों का संतुलन बनाना पड़ता है, जैसे कि विरोधियों की ताकत, पिच की स्थिति, टीम का समग्र संतुलन और आगामी मैचों की रणनीति। लेकिन कभी-कभी, इन जटिल गणनाओं में, एक खिलाड़ी का आत्मविश्वास और उसकी भूमिका गौण हो जाती है।
मैच का परिणाम और आगे की राह
सभी रणनीतिक बहस के बावजूद, भारत ने यह मैच 41 रनों से जीत लिया। अभिषेक शर्मा के शानदार अर्धशतक और कुलदीप यादव (3/18), अक्षर पटेल (1/37) और वरुण चक्रवर्ती (2/29) की बेहतरीन गेंदबाजी ने टीम को जीत दिलाई। बांग्लादेश 127 रनों पर ढेर हो गया था। इस जीत ने भारतीय टीम के लिए सुपर फोर में अपनी स्थिति मजबूत की, जबकि श्रीलंका दौड़ से बाहर हो गया और पाकिस्तान बनाम बांग्लादेश का मैच अब वर्चुअल नॉकआउट बन गया है।
यह घटना हमें याद दिलाती है कि क्रिकेट सिर्फ रनों और विकेटों का खेल नहीं है, बल्कि यह रणनीतियों, फैसलों और उनके आसपास होने वाली बहसों का भी खेल है। संजू सैमसन के मामले में, यह देखना दिलचस्प होगा कि भविष्य में टीम प्रबंधन उनके बल्लेबाजी क्रम और भूमिका को लेकर क्या फैसला लेता है। क्या उन्हें मध्यक्रम में मौका मिलेगा, जहाँ वे अपनी क्षमता का पूरा प्रदर्शन कर सकें, या वे हमेशा टीम की `लचीली रणनीति` का हिस्सा बने रहेंगे? यह सवाल अभी भी अनुत्तरित है और क्रिकेट प्रेमियों के बीच चर्चा का विषय बना रहेगा।