पेरिस ओलंपिक में अल्जीरिया की मुक्केबाज इमान खेलिफ ने स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रच दिया। यह सिर्फ एक खेल उपलब्धि नहीं, बल्कि वर्षों के अथक संघर्ष, दृढ़ संकल्प और लिंग पहचान से जुड़े विवादों के बीच अपनी सच्चाई पर अडिग रहने की एक मार्मिक कहानी है। इमान ने केवल रिंग में विरोधियों का सामना नहीं किया, बल्कि समाज के पूर्वाग्रहों और खेल जगत के जटिल नियमों से भी लोहा लिया, और हर बार विजयी होकर उभरीं।
एक लड़की का मुक्केबाजी का सपना
जहाँ से अधिकांश कहानियाँ शुरू होती हैं, वहीं से इमान की कहानी भी निकली: एक छोटी सी अल्जीरियाई बस्ती, जहाँ एक लड़की के लिए मुक्केबाजी जैसे खेल का सपना देखना भी असामान्य था। जब इमान १५ साल की थीं, तब उन्हें पहली बार इस खेल से प्यार हुआ। इससे पहले उन्हें फुटबॉल पसंद था, लेकिन मुक्केबाजी के दस्तानों को पहली बार छूने का अहसास कुछ ऐसा था, जिसने उनके जीवन को एक नई दिशा दी।
शुरुआत में, उनके माता-पिता, विशेषकर उनके पिता, इस विचार के खिलाफ थे। एक छोटे शहर की लड़की के लिए यह रास्ता मुश्किलों से भरा था। लेकिन उनकी माँ ने उनका साथ दिया, और धीरे-धीरे, इमान की प्रगति और दृढ़ संकल्प को देखकर उनके पिता भी उनके समर्थक बन गए। यह यात्रा आर्थिक रूप से भी चुनौतीपूर्ण थी। हर दिन दस किलोमीटर पैदल चलकर प्रशिक्षण के लिए जाना, और अपने जुनून को जिंदा रखने के लिए सड़क पर ब्रेड, एल्यूमीनियम और लोहा बेचकर पैसे जुटाना – यह सब इमान के शुरुआती संघर्ष का हिस्सा था। उच्च स्तर पर खेल खेलने के लिए केवल शारीरिक नहीं, बल्कि मानसिक दृढ़ता भी चाहिए, और इमान ने इसे बखूबी निभाया।
पेरिस का स्वर्णिम पल और विवादों का साया
पेरिस ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतना, उनके अथक परिश्रम और अटूट भावना का प्रमाण था। यह एक ऐसा क्षण था जिसका हर एथलीट सपना देखता है, और इमान के लिए यह उनके बचपन के सपनों की पराकाष्ठा थी। लेकिन इस स्वर्णिम क्षण के साथ, उनके जीवन का एक और अध्याय भी खुला – विवादों और सवालों का अध्याय।
इमान खेलिफ पिछले कई समय से अपनी लिंग पहचान को लेकर चल रहे विवादों के केंद्र में रही हैं। उन पर लगातार यह सवाल उठते रहे कि क्या वह महिला वर्ग में प्रतिस्पर्धा के लिए योग्य हैं। इंटरनेशनल बॉक्सिंग एसोसिएशन (IBA) ने “उच्च टेस्टोस्टेरोन स्तर” के कारण उन्हें कुछ प्रतियोगिताओं से बाहर कर दिया था, लेकिन ओलंपिक समिति के नियमों के तहत, उन्हें पेरिस में भाग लेने की अनुमति मिली।
इन विवादों और “बदमाशी” के बावजूद, इमान ने खुद को विचलित नहीं होने दिया। उन्होंने अपनी सारी ऊर्जा खेल पर केंद्रित की, और इसका परिणाम था ओलंपिक स्वर्ण।
महिलाओं के लिए एक आवाज़
पदक जीतने के बाद, इमान ने स्पष्ट किया कि उनका मुक्केबाजी छोड़ने का कोई इरादा नहीं है। उनका संकल्प पहले से कहीं अधिक मजबूत है।
“मैं मुक्केबाजी नहीं छोड़ रही हूँ। पेरिस ओलंपिक में स्वर्ण पदक की जीत ने मुझे और भी ऊर्जा दी है। मैंने इस सफलता तक पहुँचने के लिए बहुत सी चुनौतियों का सामना किया है, जिसमें बदमाशी भी शामिल है। मैं उन सभी को चुप कराना चाहती हूँ जो मुझ पर संदेह करते हैं। मैं सभी महिलाओं के लिए और न्याय के लिए लड़ती हूँ।”
इमान का मानना है कि उनकी यह लड़ाई केवल उनके लिए नहीं, बल्कि खेल में भाग लेने वाली हर महिला के लिए है। उनका मानना है कि बाहरी दबाव और अस्पष्ट नियम अक्सर अनुचित निर्णयों की ओर ले जाते हैं, जो न केवल एथलीटों को नुकसान पहुँचाते हैं, बल्कि खेल की पारदर्शिता और आपसी सम्मान की भावना को भी ठेस पहुँचाते हैं।
एक विडंबनापूर्ण सार्वजनिक बहस
इमान का मामला खेल जगत में लिंग पहचान और योग्यता के इर्द-गिर्द चल रही वैश्विक बहस को उजागर करता है। यह देखना दिलचस्प है कि कैसे खेल के मैदान से शुरू हुई ये बहसें अक्सर समाज के गहरे और जटिल सवालों तक पहुँच जाती हैं, जहाँ तर्क और वैज्ञानिक तथ्य कभी-कभी भावनाओं और राजनीतिक विचारधाराओं की धुंध में खो जाते हैं। यह एक अजीब विडंबना है कि एक एथलीट का व्यक्तिगत संघर्ष कब `जनता की अदालत` में एक वैश्विक बहस का अखाड़ा बन जाता है, जहाँ हर कोई अपने `तर्कों` के साथ मैदान में उतर आता है, भले ही वे खेल या जीव विज्ञान से कितने भी दूर क्यों न हों।
भविष्य और उम्मीद की किरण
इमान को उम्मीद है कि उनके संघर्ष ने खेल में महिलाओं के सामने आने वाली चुनौतियों और भेदभाव पर प्रकाश डाला है। उनका मानना है कि दृढ़ता और सच्चाई पर टिके रहना अंततः सफलता दिला सकता है।
“मेरा अनुभव दर्शाता है कि कोई भी एथलीट इसका शिकार हो सकता है। यह बहुत हानिकारक था, लेकिन मैं आसपास के शोर से प्रभावित हुए बिना केंद्रित रहने में कामयाब रही। मुझे लगता है कि इसने उन चुनौतियों पर प्रकाश डाला है जिनका सामना महिलाएँ खेल में करती हैं।”
वह भविष्य के ओलंपिक के लिए आशावादी हैं, उनका मानना है कि पेरिस में शुरू हुई चर्चा लोगों को अधिक जागरूक बनाएगी और एक अधिक न्यायसंगत खेल वातावरण का निर्माण करेगी। इमान खेलिफ सिर्फ एक स्वर्ण पदक विजेता नहीं हैं; वह उन सभी महिलाओं के लिए एक मशाल हैं, जो अपनी पहचान और अपने सपनों के लिए लड़ रही हैं, और यह साबित कर रही हैं कि दृढ़ संकल्प और अथक प्रयास अंततः हर बाधा को पार कर सकते हैं।