इस्लामाबाद: पाकिस्तान अल्पसंख्यक हिंदुओं के लिए नरक बनता जा रहा है। ताजा घटना में एक विधवा हिंदू महिला के साथ क्रूरता की सारी हदें पार कर दी गईं। इस महिला के साथ हैवानों ने पहले रेप किया गया और फिर उसकी पीट-पीटकर हत्या कर दी। यही नहीं हिंदू महिला के सिर तक को काट दिया गया। यह घटना सिंध प्रांत की है जहां अधिकांश पाकिस्तानी हिंदू रहते हैं। इस पूरे मामले को लेकर जमकर विरोध किय गया, फिर 3 दिन के बाद सिंध पुलिस ने मामला दर्ज किया गया।
सिंध वही प्रांत है जहां पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो जरदारी की पार्टी पीपीपी सत्ता में है। यह वही बिलावल भुट्टो हैं जिन्होंने गुजरात दंगों को लेकर पिछले दिनों पीएम मोदी पर जहरीला हमला बोला था। पाकिस्तानी हिंदू सांसद कृष्णा कुमारी ने बताया कि यह हिंदू महिला भील समुदाय की थी। उनके शव को बहुत ही खराब हालत में पाया गया है। महिला का सिर कटा हुआ था। यही नहीं महिला के कटे हुए सिर से पूरा मांस तक निकाल लिया गया था। Pakistan On India: भारत में बन रहे थे IIT, तब हम बदल रहे थे 7 प्रधानमंत्री… पाकिस्तान के पूर्व वित्त मंत्री का छलका दर्द
पाकिस्तान में 35 लाख हिंदू, ज्यादातर सिंध में
इस हैवानियत के बाद पाकिस्तानी पुलिस ने 3 दिन तक मामला नहीं दर्ज कर यह साबित कर दिया कि पाकिस्तान में हिंदुओं की हालत क्या है। कृष्णा कुमारी ने बताया कि उन्होंने हिंदू महिला के गांव का दौरा किया। अल्पसंख्यक समूहों के भारी दबाव के बाद पाकिस्तानी पुलिस पहुंची और मामला दर्ज किया गया। पाकिस्तान की पत्रकार वीनगास ने बताया कि इस पूरे मामले को मीडिया ने हाइलाइट तक नहीं किया। यही नहीं इस क्रूर हत्याकांड के बाद न तो शहबाज सरकार और न ही बिलावल भुट्टो की सिंध सरकार ने कोई बयान जारी किया है।
वीनगास ने सवाल किया कि क्या सिंध पुलिस दोषियों को अरेस्ट करेगी। क्या कभी अपनी मातृभूमि सिंध में हिंदुओं के साथ समान व्यवहार किया जाएगा। पाकिस्तान की कुल 22 करोड़ की जनसंख्या में केवल 4 प्रतिशत जनता ही अल्पसंख्यक है। यही नहीं पाकिस्तान की साल 2017 की जनगणना के मुताबिक देश में 35 लाख हिंदू और 25 लाख ईसाई रहते हैं। पाकिस्तान में हिंदुओं के साथ अक्सर मारपीट और मंदिरों को तोड़ने की खबरें आती रहती हैं। यही नहीं उन्हें इस्लामाबाद में मंदिर तक नहीं बनाने दिया जा रहा है। हिंदू लड़कियों का जबरन अपहरण करके उनके साथ निकाह और धर्म परिवर्तन कराया जा रहा है।
Turkey Earthquake Prediction: तुर्की में आए भूकंप ने इसकी भविष्यवाणियों की सटीकता पर बहस छेड़ दी है। ऐसा इसलिए क्योंकि फ्रैंक नाम के एक शोधकर्ता ने तीन दिन पहले इसकी भविष्यवाणी कर दी थी। हालांकि कई लोग कह रहे हैं कि यह एक तुक्का है, क्योंकि उनकी ही कई भविष्यवाणियां अभी तक गलत साबित हो चुकी हैं।
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फ्लाइट ATR-72 क्रैश में मारे गए थे 72 लोग
Nepal Plane Crash: नेपाल में हुए प्लेन क्रैश की वजह सामने आ गई है। प्लेन क्रैश की इनवेस्टिगेशन कर रही जांच समिति ने बताया कि यति एयरलाइंस (Yeti Airlines) के ATR-72 विमान का फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर और कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डर से प्लेन के क्रैश होने के कारणों का पता लगा है। जांच समिति ने बताया कि 15 जनवरी को पोखरा में विमान के दुर्घटनाग्रस्त होने के पीछे इंजन में खराबी के संकेत मिले हैं।
फ्लाइट ATR-72 क्रैश में मारे गए थे 72 लोग
गौरतलब है कि यति एयरलाइन की फ्लाइट नंबर- 691 त्रिभुवन अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से 15 जनवरी को उड़ान भरने के बाद पोखरा में उतरने से कुछ मिनट पहले ही नए और पुराने हवाई अड्डे के बीच बहने वाली सेती नदी में दुघर्टनाग्रस्त हो गई थी। इस क्रैश में एटीआर-72 मॉडल के विमान में सवार सभी 72 लोगों की मौत हो गई थी। मारे गए यात्रियों में 55 नेपाली और पांच भारतीय सहित 15 विदेशी नागरिक और चालक दल के चार सदस्य थे।
क्रैश में 6 यात्रियों की नहीं हो पाई पहचान, डीएनए जांच शुरू बता दें कि नेपाल के अधिकारियों ने जनवरी में हुई विमान दुर्घटना में जान गंवाने वाले उन छह यात्रियों की डीएनए जांच शुरू की जिनके अवशेषों की अबतक पहचान नहीं हो पाई थी। त्रिभुवन विश्वविद्यालय शिक्षण अस्पताल के फॉरेंसिक चिकित्सा विभाग के प्रमुख डॉ.गोपाल कुमार चौधरी ने बताया, ‘‘पोखरा विमान दुर्घटना में मारे लोगों में से छह की पहचान करने के लिए डीएनए जांच की जरूरत थी क्योंकि उनके शव बुरी तरह जल गए हैं।’’ अधिकारियों ने बताया कि जांच की प्रक्रिया केंद्रीय पुलिस फारेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला में शुरू हुई है। सूत्रों ने बताया कि परिवार के नमूने और शवों की हड्डियों और दांतों से डीएनए नमूने लेकर जांच के लिए भेजे गए हैं। उन्होंने बताया कि जांच की प्रक्रिया पूरी होने में दो सप्ताह का समय लगेगा।
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नई दिल्ली। चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआइ) परियोजना ने दुनिया के अधिकांश निम्न-मध्यम वर्ग वाले देशों को कंगाल बना दिया है। जबकि चीन ने 150 देशों के साथ अपने वित्तीय और राजनीतिक दबदबे का लाभ उठाने की पहल में इस पर लगभग 1 ट्रिलियन डॉलर का निवेश किया है। इस योजना पर हामी भरने के बाद कम आय वाले देशों की आर्थिक स्थिति गंभीर और बदतर हो गई है। दुनिया के 150 देशों और 32 अंतरराष्ट्रीय संगठनों के विपरीत अकेले भारत चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की महत्वाकांक्षी बीआरआइ परियजोना से बाहर रहा। इस पर हस्ताक्षर करने का मतलब भारत के लिए साफ था कि विशेषकर पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) में चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीईसी) की परियोजनाओं को स्वीकार करना। जो कि क्षेत्रीय अखंडता का स्पष्ट उल्लंघन था।
दरअसल चीन के बीआरआइ प्रोजेक्ट पर जिन देशों ने हस्ताक्षर किया, उन सबको इस प्रोजेक्ट के लिए शी जिनपिंग ने महंगी ब्याज दरों पर कर्ज दिया। साथ ही कई ऐसी शर्तें थोप दीं, जिससे निम्न मध्यम वर्ग वाले देशों की आर्थिक हालत खस्ता होने लगी और महंगाई ने उनकी कमर तोड़ दी। श्रीलंका,बांग्लादेश और पाकिस्तान जैसे देश तो पूरी तरह कंगाल हो गए। इससे कई देशों में अब चीन के इस परियोजना के खिलाफ आवाज उठने लगी है। बांग्लादेश ने तो साफ चीन के बीआरआइ को निम्न-मध्यम आय वर्ग वाले देशों की आर्थिक स्थिति के लिए बड़ा खतरा बताया है। भारत शुरू से ही बीआरआइ से दुनिया को को आर्थिक के साथ ही साथ सुरक्षा और संप्रभुता के नुकसान का भी खतरा जताता रहा है। आज भारत की भविष्यवाणी सच साबित होती दिख रही है। इससे चीन का यह प्रोजेक्ट भी खतरे में पड़ने लगा है।
भारत ने 2016 में ही बीआरआइ का किया था कड़ा विरोध
नरेंद्र मोदी की सरकार ने 13 मई, 2017 को BRI पर एक औपचारिक बयान जारी किया था, लेकिन इससे एक साल पहले ही मार्च 2016 में तत्कालीन विदेश सचिव सुब्रह्मण्यम जयशंकर ने कहा था कि नई दिल्ली बीजिंग को बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के नाम पर अपने रणनीतिक विकल्पों को सख्त करने की अनुमति नहीं देगी। राष्ट्रपति शी द्वारा बीआरआई परियोजना शुरू करने के एक दशक बाद अपने मूल हितों की रक्षा करने और अकेले खड़े होने का साहस रखने का भारत का निर्णय मोदी सरकार के नेतृत्व में पश्चिम सहित अन्य देशों के साथ सही साबित हुआ है।
चीन ने कम आय वाले देशों पर लादा है बड़ा कर्ज
कम आय वाले देशों पर 2022 में चीन का 37% कर्ज बकाया है। यह दुनिया के बाकी हिस्सों में द्विपक्षीय कर्ज का 24% है। यानि तथ्य यह है कि 42 देश वास्तव में प्रमुख बैंकों और राज्य के स्वामित्व वाले उद्यमों द्वारा अपारदर्शी संचालन के माध्यम से चीन के प्रति अधिक ऋणी हो गए हैं। भारतीय रणनीतिक योजनाकारों के अनुसार ऋण समझौतों को जानबूझकर सार्वजनिक दायरे से बाहर रखा गया है। सड़क-रेल-बंदरगाह-भूमि बुनियादी ढाँचे के वित्तपोषण के लिए चीनी वैश्विक परियोजनाएं इसमें भाग लेने वाले देशों के लिए ऋण का एक प्रमुख स्रोत रही हैं। इसमें पाकिस्तान 77.3 बिलियन डॉलर के ऋण के साथ, अंगोला ($ 36.3 बिलियन), इथियोपिया ($ 7.9 बिलियन) का ऋण है। ), केन्या (7.4 अरब डॉलर) और श्रीलंका 7 अरब डॉलर का ऋणी है। उक्त आंकड़ा बीआरआइ डेटा के अनुसार और चीन पर नजर रखने वालों द्वारा संकलित है।
मालदीव और बांग्लादेश भी बुरे फंसे
चीना का मालदीव पर ऋण उस देश के वित्त मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार 2022 की पहली तिमाही के अंत तक बढ़कर 6.39 बिलियन डॉलर हो गया। यह मालदीव के सकल घरेलू उत्पाद का 113% है, जिसमें चीन सिनामाले पुल और एक नए हवाई अड्डे जैसी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को वित्तपोषित करता है। बांग्लादेश पर बीजिंग के कुल विदेशी ऋण का 6% है। लगभग 4 बिलियन डॉलर बकाया है। ढाका अब आइएमएफ से 4.5 अरब डॉलर का पैकेज मांग रहा है। इसी तरह चीन के कर्ज में फंसने के बाद जिबूती ने चीन को एक नौसैनिक अड्डा दे दिया। अंगोला के पास सबसे बड़ा पुनर्भुगतान बोझ है, क्योंकि ऋण सकल राष्ट्रीय आय (GNI) के 40% से अधिक है।
लाओस और मालदीव दोनों पर भी चीन के जीएनआई का 30% का कर्ज है और लाओस में नई चीनी निर्मित रेलवे लाइन पहले से ही वियनतियाने में आर्थिक गड़बड़ी पैदा कर रही है। श्रीलंका पहले से ही संप्रभु ऋण पर चूक कर चुका है, जीएनआई का 9% चीन पर बकाया है, और अफ्रीका पर बीजिंग का 150 बिलियन डॉलर से अधिक का बकाया है, साथ ही जाम्बिया भी ऋण पर चूक कर रहा है, देश पर चीनी बैंकों का लगभग 6 बिलियन डॉलर का बकाया है।
बीआरआइ वाले देशों में ऋण संकट
भले ही राष्ट्रपति शी बीआरआइ के माध्यम से 150 से अधिक देशों को नियंत्रित करने के लिए खुश हो सकते हैं,लेकिन उसके प्राप्तकर्ता देशों में ऋण संकट चीन के अपने वित्त को प्रभावित कर सकता है। क्योंकि इसे चूक करने वाले देशों से ऋण चुकौती में गंभीर कटौती करनी होगी। पिछले साल चीन में अचल संपत्ति बाजार के पतन ने पहले ही बैंकिंग प्रणाली में तनाव पैदा कर दिया है। यह दोनों का परिणाम है कि चीन ने 2022 में बीआरआई देशों में अपने गैर-वित्तीय प्रत्यक्ष निवेश को धीमा कर दिया है, जो जनवरी से नवंबर तक 19.16 अरब डॉलर था। 2015 से चीन ने $1 ट्रिलियन की कुल लागत पर 50,527 अनुबंधों पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसमें प्रति वर्ष औसत अनुबंध मूल्य $127.16 बिलियन है। हालांकि बीजिंग ने 150 देशों में निवेश किया है, सिंगापुर, इंडोनेशिया, मलेशिया, वियतनाम, संयुक्त अरब अमीरात, पाकिस्तान, सर्बिया, थाईलैंड, बांग्लादेश, लाओस और कंबोडिया लगातार प्राप्तकर्ता रहे हैं।