फुटबॉल के वित्तीय दांवपेच में उलझे नेपोली के अध्यक्ष ऑरेलियो डी लॉरेन्टिस।
फुटबॉल की दुनिया, जितना खेल के मैदान पर रोमांचक है, उतनी ही पर्दे के पीछे वित्तीय दांवपेच और कानूनी उलझनों से भरी है। हाल ही में इतालवी फुटबॉल में एक बार फिर “कैपिटल गेन्स” (Plusvalenze) का मुद्दा गरमाया हुआ है, और इस बार सुर्खियों में है सेरी ए चैंपियन नेपोली और उसके करिश्माई, लेकिन अक्सर विवादित अध्यक्ष ऑरेलियो डी लॉरेन्टिस। उन पर वित्तीय खातों में हेरफेर का आरोप है, विशेषकर मानेलास और ओसिम्हेन जैसे खिलाड़ियों के हस्तांतरण के संबंध में। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह मामला जुवेंटस के कुख्यात `प्रिज्मा` मामले की तरह गंभीर होगा, या डी लॉरेन्टिस इस बार भी अपनी चतुराई से निकल जाएंगे?
कैपिटल गेन्स क्या हैं और क्यों हैं ये विवादित?
फुटबॉल की दुनिया में, जब कोई क्लब किसी खिलाड़ी को उसकी मूल खरीद मूल्य से अधिक कीमत पर बेचता है, तो उसे कैपिटल गेन (Plusvalenza) या पूंजीगत लाभ होता है। यह एक वैध वित्तीय प्रक्रिया है, लेकिन समस्या तब आती है जब क्लब जानबूझकर खिलाड़ियों के मूल्य को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाते हैं, खासकर उन खिलाड़ियों के जिनके बाजार में कोई खास कीमत नहीं होती। ऐसा करने से क्लब के खाते (बैलेंस शीट) में लाभ अधिक दिखता है, जिससे उनकी वित्तीय स्थिति मजबूत प्रतीत होती है। यह `बैलेंस शीट में धोखाधड़ी` (falso in bilancio) कहलाता है, और यह एक गंभीर अपराध है।
नेपोली के मामले में, अभियोजन पक्ष का आरोप है कि 2019 और 2021 के बीच, डी लॉरेन्टिस ने मानोलस और विक्टर ओसिम्हेन के सौदों में खिलाड़ियों के मूल्य को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया, ताकि नेपोली के पूंजीगत लाभ को अधिक दिखाया जा सके।
ओसिम्हेन डील का अंदरूनी खेल: “निशान मत छोड़ो!”
`ला रिपब्लिका` अखबार द्वारा प्रकाशित दस्तावेजों से ओसिम्हेन के लिली से नेपोली आने के सौदे की अस्पष्टता सामने आती है। इनमें कुछ चौंकाने वाले संचार शामिल हैं:
- नेपोली के तत्कालीन उप-खेल निदेशक, ज्यूसेप पोम्पिलियो ने खेल निदेशक क्रिस्टियानो गिंटोली को एक एसएमएस भेजा था जिसमें लिखा था: “तुम्हें कुछ नहीं लिखना चाहिए। ईमेल में कोई निशान मत छोड़ो। मौखिक रूप से जो चाहो कहो।” यह वाक्य अपने आप में बहुत कुछ कहता है, जैसे किसी गुप्त ऑपरेशन की तैयारी हो!
- लिली के अध्यक्ष लोपेज़ का एक ईमेल भी है जिसमें एक खिलाड़ी के “नाममात्र मूल्य” की बात की गई है, ताकि “कम कीमत चुकाई जा सके”।
- गिंटोली और नेपोली के सीईओ एंड्रिया चियावेली के बीच एक बातचीत में यह बात भी सामने आई कि ओनास का “वास्तविक बाजार मूल्य लियांद्रिन्हो और लोरेन्टे से अधिक है…” ये वे खिलाड़ी थे जिन्हें कथित तौर पर ओसिम्हेन के सौदे के हिस्से के रूप में लिली को भेजा गया था, लेकिन उनकी बाजार में शायद ही कोई कीमत थी।
यह सब एक संगठित प्रयास की ओर इशारा करता है जहां कागजी कार्यवाही को साफ रखा जा रहा था, जबकि वास्तविक सौदे के पीछे कुछ और ही चल रहा था।
जुवेंटस के `प्रिज्मा` मामले से क्या है अंतर?
यही वह बिंदु है जहां नेपोली का मामला जुवेंटस के `प्रिज्मा` मामले से अलग हो जाता है, जिसने इतालवी फुटबॉल में भूचाल ला दिया था और जुवेंटस पर 10 अंकों का जुर्माना लगा था।
फेडरल प्रॉसिक्यूटर (FIGC) ने नेपोली के दस्तावेजों का गहन विश्लेषण किया है और उनका मानना है कि जुवेंटस के मामले की तरह, नेपोली के खिलाफ कोई नया खेल अदालती मुकदमा चलाने की स्थितियां नहीं हैं।
जुवेंटस बनाम नेपोली: सबूतों का गणित
जुवेंटस के `प्रिज्मा` मामले में, प्रॉसिक्यूटर के पास टेलीफोन पर हुई बातचीत (इंटरसेप्शन) और “कार्टा पैरातिची” जैसे स्पष्ट दस्तावेजी सबूत थे। ये दस्तावेज़ सीधे तौर पर खिलाड़ियों के “संशोधित, जाली, या हटाए गए” मूल्यों को दिखाते थे, जिनमें कई बार खिलाड़ियों का नाम भी `X` से दर्शाया गया था। ये ऐसे “कबूलनामा-प्रकृति” के सबूत थे जो किसी भी संदेह की गुंजाइश नहीं छोड़ते थे कि क्लब जानबूझकर हेरफेर कर रहा था।
नेपोली के मामले में, जबकि एसएमएस और ईमेल “संदिग्ध” लग सकते हैं, फेडरल प्रॉसिक्यूटर ज्यूसेप चिन के अनुसार, इनमें जुवेंटस के मामले जैसे “स्पष्ट, जबरदस्त” सबूतों की कमी है जो यह साबित कर सकें कि क्लब का इरादा जानबूझकर वित्तीय मूल्यों को फुलाने का था। खेल न्याय ने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि एक खिलाड़ी का मूल्य “सापेक्ष” होता है, और धोखाधड़ी साबित करने के लिए मूल्यों को फुलाने के “इरादे” का निश्चित प्रमाण चाहिए। चिन का मानना है कि डी लॉरेन्टिस के खिलाफ एकत्र किए गए सबूत यह “इरादा” स्पष्ट रूप से साबित नहीं करते।
दूसरे शब्दों में, भले ही नेपोली ने वित्तीय खातों में कुछ “चतुर” चालें चली हों, लेकिन उन्होंने जुवेंटस की तरह “निशान” नहीं छोड़े, और यही उनकी बचत का कारण बन सकता है। फुटबॉल की दुनिया में, कभी-कभी सबसे बड़ी जीत खेल के मैदान पर नहीं, बल्कि अदालत के गलियारों में मिलती है, और यह पूरी तरह से इस बात पर निर्भर करता है कि आपने अपने “रहस्य” को कितना सुरक्षित रखा है।
आगे क्या?
नागरिक अदालत में डी लॉरेन्टिस के खिलाफ `झूठे खाते` के लिए मुकदमा जारी रहेगा, लेकिन खेल अदालती दृष्टिकोण से, नेपोली को इस बार राहत मिलती दिख रही है। यह मामला एक बार फिर फुटबॉल की वित्तीय जटिलताओं और पारदर्शिता की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है। साथ ही, यह भी दिखाता है कि `निशान न छोड़ने` की सलाह कितनी काम आ सकती है!
भारतीय फुटबॉल प्रशंसकों के लिए, यह इतालवी लीग की वित्तीय पृष्ठभूमि को समझने का एक दिलचस्प मौका है, जहां सिर्फ मैदान पर ही नहीं, बल्कि बोर्डरूम में भी बड़े खेल खेले जाते हैं।