मिलान शहर, जिसे फुटबॉल के दीवानों के लिए किसी मंदिर से कम नहीं समझा जाता, आजकल एक अजीब विरोधाभास का गवाह बन रहा है। सैन सिरो (San Siro) स्टेडियम, जो अक्सर अपनी गूंजती आवाजों और उत्साही फुटबॉल प्रशंसकों से गुलजार रहता है, अब भरा होने के बावजूद खामोश सा है। इंटर मिलान (Inter Milan) और एसी मिलान (AC Milan) के घरेलू सेरी ए मैचों में भी वो जोश, वो जुनून कहीं गायब है। ऐसा क्यों? जवाब है `अल्ट्रास` (Ultras) – फुटबॉल के उन समर्पित लेकिन कभी-कभी हिंसक प्रशंसक समूहों की गैरमौजूदगी।
जोश की कमी: `बारहवें खिलाड़ी` का मैदान से गायब होना
हाल ही में, मिलान के फुटबॉल क्लबों ने अपने कुछ ऐतिहासिक अल्ट्रास समूहों के नेताओं को मिली सजा और लगभग सौ अल्ट्रास प्रशंसकों के सीज़न टिकटों के नवीनीकरण से इनकार करने के बाद एक बड़ा बदलाव देखा है। पुलिस और अभियोजकों के साथ मिलकर लिए गए इन फैसलों का उद्देश्य स्टेडियमों को सुरक्षित बनाना है, लेकिन इसका एक अनपेक्षित परिणाम भी हुआ है: वो `बारहवाँ खिलाड़ी` – यानि वो जुनूनी प्रशंसक जो पूरे स्टेडियम में ऊर्जा भर देते थे – अब मैदान से गायब है। स्टेडियम में लोग तो आ रहे हैं, लेकिन माहौल किसी भव्य बैठक का सा हो गया है, जहाँ शोर-शराबा कम और शिष्टाचार ज़्यादा है। एक प्रशंसक ने तो मज़ाक में कहा, “यह सैन सिरो नहीं, बल्कि एक लिविंग रूम स्टेडियम बन गया है, जहाँ आप सोफ़े पर बैठकर चाय पी रहे हों!”
इंटर मिलान, जिसने हाल ही में एक बड़े खिलाड़ी को बेचने की मजबूरी के बिना सीज़न की शुरुआत की, को भी इस बदलाव का खामियाजा भुगतना पड़ा है। टोरिनो के खिलाफ हुए पहले मैच में जीत के बावजूद, उडीनीज़ के खिलाफ हार ने साफ दिखा दिया कि स्टेडियम का माहौल कितना महत्वपूर्ण है। तीन घरेलू मैचों में दो हार, क्या यह सिर्फ संयोग है या प्रशंसकों के समर्थन की कमी?
`तीसरे रास्ते` की तलाश: हिंसा और खामोशी के बीच संतुलन
मिलान में पसरे इस सन्नाटे ने इतालवी फुटबॉल में एक अहम बहस छेड़ दी है: क्या हिंसक और बेलगाम प्रशंसक संस्कृति ही एकमात्र तरीका है, या फिर पूरी तरह से खामोश, नीरस स्टेडियम? इन दोनों के बीच क्या कोई `तीसरा रास्ता` हो सकता है, जहाँ जुनून बरकरार रहे, लेकिन आपराधिक तत्व बाहर रहें?
“सवाल सिर्फ स्टेडियम की सुरक्षा का नहीं है, बल्कि फुटबॉल की आत्मा को बचाने का है। क्या हम सिर्फ वीआईपी बॉक्स और पर्यटन से भरे स्टेडियम चाहते हैं, या हम उस कच्चे, अथाह जुनून को भी बरकरार रख सकते हैं जिसने इस खेल को इतना महान बनाया है?”
यूरोपीय फुटबॉल में अलग-अलग प्रयोग: एक वैश्विक चुनौती
यह समस्या केवल इटली की नहीं है; यूरोपीय फुटबॉल के कई अन्य बड़े लीग भी इस चुनौती का सामना कर रहे हैं, और उन्होंने अपने-अपने तरीके खोजे हैं:
स्पेन: `एनीमेशन` की तलाश
रियाल मैड्रिड (Real Madrid) और बार्सिलोना (Barcelona) जैसे क्लबों ने बहुत पहले ही अपने अल्ट्रास समूहों को हटा दिया था। अब उनके स्टेडियमों में `ग्राडा दे एनिमेशन` (Grada de Animacion) नामक टीमें हैं, जिनमें 300-400 लोग शामिल होते हैं जो व्यवस्थित रूप से नारे लगाते और गाने गाते हैं। स्टेडियम भरे रहते हैं, लेकिन माहौल में `लिविंग रूम` वाली शांति साफ महसूस होती है। वहीं, एटलेटिको मैड्रिड (Atletico Madrid) या सेविला (Sevilla) जैसे क्लबों में अभी भी संगठित प्रशंसक समूह हैं, लेकिन हिंसा पर सख्ती से लगाम लगाई गई है। टिकटों के बढ़ते दाम और विदेशी पर्यटकों की बढ़ती संख्या भी इस बदलाव में योगदान दे रही है।
इंग्लैंड: हुलिगनिज़्म से मुक्ति
इंग्लिश प्रीमियर लीग (Premier League) ने हुलिगनिज़्म को जड़ से खत्म करने में जबरदस्त सफलता हासिल की है। हर स्टेडियम में कैमरे लगे हैं और नियमों का उल्लंघन करने वालों को तुरंत और निश्चित दंड मिलता है। यहाँ स्टेडियमों में बैनर या आतिशबाजी नहीं होती, फिर भी लोगों का जुनून बरकरार है। यहाँ कोई बड़ा संगठित समूह नहीं है जो फैन कल्चर को नियंत्रित करे। इंग्लैंड के आधुनिक स्टेडियम, जैसे टोटेनहम हॉटस्पर स्टेडियम (Tottenham Hotspur Stadium), सिर्फ फुटबॉल के लिए नहीं, बल्कि संगीत समारोहों और अन्य कार्यक्रमों के लिए भी उपयोग किए जाते हैं, जहाँ पुराने और नए दौर के प्रशंसकों के लिए अलग-अलग अनुभव हैं। वे एक स्टेडियम को केवल खेल का मैदान नहीं, बल्कि एक बहुक्रियाशील मनोरंजन केंद्र बनाते हैं।
फ्रांस: PSG का नया प्रयोग
फ्रांस में, पेरिस सेंट-जर्मेन (PSG) एक अनोखी कहानी है। 2010 में हुई कुछ हिंसक घटनाओं के बाद, अल्ट्रास समूहों को भंग कर दिया गया था। क्लब पर नए कतरी मालिकों के आने के बाद, धीरे-धीरे संगठित प्रशंसकों की वापसी हुई है, लेकिन अब वे क्लब के नियंत्रण में हैं। PSG आज यूरोप के सबसे अधिक राजस्व कमाने वाले स्टेडियमों में से एक है, जहाँ वीआईपी अनुभव और पारिवारिक खंडों पर विशेष ध्यान दिया जाता है। यहाँ भी प्रान्त अधिकारी प्रतिद्वंद्विता और पिछले रिकॉर्ड के आधार पर प्रशंसकों की यात्रा पर प्रतिबंध लगाने में सख्त हैं।
जर्मनी: सम्मान और संवाद
जर्मनी में `अल्ट्रास` और `हुलिगन्स` के बीच एक स्पष्ट अंतर किया जाता है। अल्ट्रास समूहों को मान्यता प्राप्त है, उनका सम्मान किया जाता है, और कई मामलों में वे क्लब के प्रशासनिक बोर्ड का भी हिस्सा होते हैं। वे प्रशंसकों की चिंताओं को क्लब तक पहुंचाते हैं और उनकी बात सुनी जाती है। कोई विशेष सुविधाएं नहीं मिलतीं, लेकिन संवाद खुला रहता है। यहाँ कैमरे और `सेल्फ-रिपोर्टिंग` (प्रशंसकों द्वारा ही गलत काम करने वालों की सूचना देना) जैसी व्यवस्थाएँ हैं। जर्मन अल्ट्रास अक्सर पारंपरिक फुटबॉल का समर्थन करते हैं और भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाते हैं, जिससे वे समाज के एक सकारात्मक हिस्से के रूप में देखे जाते हैं।
भारत और फुटबॉल का बढ़ता जुनून: हमें क्या सीखना चाहिए?
मिलान में पसरी यह शांति इटालवी फुटबॉल के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ हो सकती है। क्या हम हिंसा से मुक्त, लेकिन खामोश, `संभ्रांत` स्टेडियम की ओर बढ़ रहे हैं? या फिर एक ऐसा संतुलन संभव है जहाँ जुनून बरकरार रहे, लेकिन आपराधिक तत्व बाहर रहें? क्लब, खिलाड़ी और खुद प्रशंसक भी इस `तीसरे रास्ते` की तलाश में हैं। क्या अमेरिकन मालिकों के अधीन इंटर और मिलान, स्पेन या जर्मनी मॉडल को अपनाएँगे? या अपने ही तरीके से कुछ नया गढ़ेंगे?
भारत में भी फुटबॉल की लोकप्रियता तेजी से बढ़ रही है। इंडियन सुपर लीग (ISL) जैसे टूर्नामेंटों में स्टेडियम अक्सर भरे रहते हैं, और प्रशंसक अपना पूरा जोश दिखाते हैं। ऐसे में यूरोपीय फुटबॉल से हमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है। हमें फुटबॉल संस्कृति को सुरक्षित, समावेशी और साथ ही ऊर्जावान बनाए रखने के लिए नए तरीकों पर विचार करना होगा। यह सुनिश्चित करना होगा कि दर्शक अनुभव सिर्फ खेल देखने तक सीमित न रहे, बल्कि एक सुरक्षित और यादगार पारिवारिक अनुभव भी हो, बिना किसी डर या अशांति के।
निष्कर्ष: एक नई सुबह की उम्मीद
अंततः, फुटबॉल सिर्फ एक खेल नहीं, बल्कि एक भावना है, एक संस्कृति है। सैन सिरो में पसरी यह खामोशी एक अनुस्मारक है कि इस भावना को सुरक्षित रखना उतना ही ज़रूरी है जितना इसे जीवंत रखना। यह देखना दिलचस्प होगा कि मिलान और बाकी यूरोप कैसे इस नाजुक संतुलन को हासिल करते हैं, ताकि स्टेडियम एक बार फिर से `खामोश रहने` के बजाय अपनी पूरी ऊर्जा और जुनून के साथ गूंज उठें – और यह उम्मीद भी है कि भारत में फुटबॉल की बढ़ती लोकप्रियता एक ऐसी प्रशंसक संस्कृति को जन्म देगी जो जुनून और जिम्मेदारी के बीच एक सुंदर संतुलन बनाएगी।