यह कोई मामूली उपलब्धि नहीं है। विश्व की दो सबसे प्रतिष्ठित महिला शतरंज खिलाड़ियों, दोनों भारतीयों, का फाइनल में आमने-सामने होना, भारतीय खेल इतिहास में एक स्वर्णिम अध्याय जोड़ता है। यह दर्शाता है कि शतरंज की दुनिया में शक्ति का केंद्र अब भारत की ओर बढ़ रहा है, और यह बदलाव अचानक नहीं आया है, बल्कि दशकों की कड़ी मेहनत, प्रतिभा और समर्पण का परिणाम है।
सेमीफाइनल की रोमांचक गाथा: चीनी दीवार को ध्वस्त करना
फाइनल तक का सफर किसी चुनौती से कम नहीं था। कोनेरू हम्पी और दिव्या देशमुख, दोनों ने अपने-अपने सेमीफाइनल में चीन की दिग्गज खिलाड़ियों को मात दी। एक समय था जब चीनी महिला खिलाड़ी विश्व शतरंज पर हावी हुआ करती थीं, लेकिन अब भारतीय खिलाड़ियों ने इस `चीनी दीवार` को सफलतापूर्वक ध्वस्त कर दिया है।
- **कोनेरू हम्पी:** अनुभवी हम्पी ने अपने शांत स्वभाव और सटीक चालों से विरोधी को पराजित किया। हालांकि टाई-ब्रेक में उन्हें कड़े मुकाबले का सामना करना पड़ा, जहां उन्होंने दबाव में शानदार वापसी करते हुए मैच जीता। उनके लिए यह `करो या मरो` की स्थिति थी, लेकिन हम्पी ने कोई गलती नहीं की और अपनी योग्यता साबित की।
- **दिव्या देशमुख:** 19 वर्षीय दिव्या ने अपनी युवा ऊर्जा और आत्मविश्वास से सबको चौंका दिया। उन्होंने टूर्नामेंट की शीर्ष वरीयता प्राप्त खिलाड़ियों को हराकर फाइनल में जगह बनाई। उनकी यात्रा किसी प्रेरणा से कम नहीं है, जिसने साबित किया कि उम्र केवल एक संख्या है और प्रतिभा की कोई सीमा नहीं होती।
भारतीय शतरंज का अभूतपूर्व दबदबा
पिछले कुछ वर्षों में भारतीय शतरंज ने जिस तरह से वैश्विक मंच पर अपना परचम लहराया है, वह किसी अजूबे से कम नहीं। यह केवल एक विश्व कप फाइनल की बात नहीं है, बल्कि एक व्यापक पैटर्न का हिस्सा है।
- पिछले साल ओलंपियाड में टीम गोल्ड मेडल।
- गुकेश डोम्माराजू का विश्व चैंपियन बनना।
- कोनेरू हम्पी का विश्व रैपिड चैंपियन बनना।
- और अब, दो भारतीय महिलाओं का विश्व कप फाइनल में भिड़ना।
शायद ही भारत के इतिहास में किसी खेल ने इतने कम समय में वैश्विक स्तर पर ऐसी निरंतर और व्यापक श्रेष्ठता हासिल की हो। एक समय था जब महिला विश्व चैंपियनों में चीन का दबदबा था, लेकिन अब यह कहानी बदल चुकी है। यह भारतीय शतरंज के सुनहरे दौर का स्पष्ट संकेत है।
पीढ़ियों का टकराव: अनुभव बनाम युवा जोश
कोनेरू हम्पी और दिव्या देशमुख के बीच का फाइनल सिर्फ दो खिलाड़ियों का मुकाबला नहीं, बल्कि **पीढ़ियों का टकराव** भी है।
- **कोनेरू हम्पी:** 38 वर्षीय हम्पी अनुभव, दृढ़ता और विश्व स्तरीय खेल का प्रतीक हैं। उन्होंने वर्षों से भारतीय शतरंज की मशाल थामी हुई है।
- **दिव्या देशमुख:** 19 वर्षीय दिव्या युवा जोश, अदम्य साहस और भविष्य की उम्मीद हैं। उन्होंने अपनी बेखौफ खेल शैली से कई दिग्गजों को चौंकाया है।
इस टूर्नामेंट की शुरुआत में, हम्पी दिव्या से 80 एलो रेटिंग अंक आगे थीं और विश्व रैंकिंग में भी काफी ऊपर थीं। लेकिन दिव्या ने अपने असाधारण प्रदर्शन से यह साबित कर दिया है कि वह हम्पी की बराबरी पर खड़ी हैं, कम से कम मौजूदा फॉर्म के मामले में। हम्पी ने अपनी सेमीफाइनल जीत के बाद कहा था, “यह हमारे शतरंज प्रशंसकों के लिए सबसे खुशी के पलों में से एक है, क्योंकि खिताब भारत का निश्चित है।” यह सिर्फ एक बयान नहीं, बल्कि एक अटल सत्य है।
फाइनल से परे: कैंडिडेट्स टूर्नामेंट और भविष्य
इस ऐतिहासिक फाइनल का परिणाम कुछ भी हो, कुछ बातें निश्चित हैं। पहली और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि नई महिला विश्व कप चैंपियन भारतीय होगी। दूसरी बात, दिव्या और हम्पी दोनों ने अगले साल के कैंडिडेट्स टूर्नामेंट में अपनी जगह पक्की कर ली है। र वैशाली और हरिका द्रोणावल्ली जैसी अन्य भारतीय खिलाड़ियों की भी वहां पहुंचने की संभावना है। यह भारतीय शतरंज के बदलते परिदृश्य का प्रमाण है, जहां कैंडिडेट्स टूर्नामेंट में चार भारतीयों की संभावित उपस्थिति अब कोई आश्चर्य की बात नहीं लगती, बल्कि एक सामान्य घटना मानी जाती है। यह अपने आप में एक उपलब्धि है, जिसमें थोड़ी सी `इरोनी` भी है कि अब भारतीय श्रेष्ठता इतनी आम हो गई है कि लोग बस कंधे उचका देते हैं।