महान शतरंज खिलाड़ी बोरिस स्पैस्की: एक युग का दुखद अंत

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विश्व शतरंज जगत ने हाल ही में एक महान हस्ती को खो दिया। सोवियत काल के विश्व शतरंज चैंपियन बोरिस स्पैस्की का 88 वर्ष की आयु में मॉस्को में निधन हो गया। अंतर्राष्ट्रीय शतरंज महासंघ (फिडे) ने उनके निधन की पुष्टि की है और उन्हें खेल के इतिहास के महानतम खिलाड़ियों में से एक बताया है, जिन्होंने शतरंज पर अमिट छाप छोड़ी। उनके निधन का कारण फिलहाल नहीं बताया गया है।

स्पैस्की का नाम शायद हमेशा 1972 में रिक्जाविक, आइसलैंड में अमेरिकी खिलाड़ी बॉबी फिशर के खिलाफ हुए उस ऐतिहासिक मुकाबले से जुड़ा रहेगा। शीत युद्ध के चरम पर खेला गया यह मैच सिर्फ एक खेल प्रतियोगिता नहीं थी, बल्कि दो महाशक्तियों के बीच वैचारिक टकराव का प्रतीक बन गया था। इसे `शताब्दी का मैच` (Match of the Century) कहा गया और इसने दुनिया भर में लाखों लोगों का ध्यान आकर्षित किया। इस मुकाबले में स्पैस्की ने अपना खिताब 29 वर्षीय फिशर के हाथों गंवा दिया, जिन्होंने अमेरिका को उसका पहला और एकमात्र विश्व शतरंज खिताब दिलाया। यह हार स्पैस्की के लिए व्यक्तिगत निराशा थी, लेकिन इस मैच ने उन्हें वैश्विक पहचान दी।

खेल के जानकारों के अनुसार, स्पैस्की की सबसे बड़ी ताकत विरोधी की शैली के अनुसार खुद को ढालने की उनकी अद्वितीय क्षमता थी। वे एक बहुमुखी और प्रतिभाशाली खिलाड़ी थे। वे सोवियत शतरंज `मशीन` के एक उत्पाद थे, लेकिन उनमें एक स्वतंत्र भावना भी थी जो उन्हें अलग करती थी। गैरी कास्पारोव जैसे बाद की पीढ़ी के महान खिलाड़ियों ने भी स्वीकार किया कि स्पैस्की ने उन्हें मार्गदर्शन दिया, खासकर उन लोगों को जो स्थापित सोवियत खेल ढांचे में पूरी तरह से सहज नहीं थे। यह उनकी मानवीय और उदार प्रकृति को दर्शाता है।

1976 में बोरिस स्पैस्की फ्रांस चले गए, जहां उन्होंने अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा बिताया। हालांकि 1972 का मैच उनका सबसे यादगार और नाटकीय मुकाबला रहा, स्पैस्की ने अपने पूरे करियर में खेल में महत्वपूर्ण योगदान दिया और लाखों महत्वाकांक्षी खिलाड़ियों को प्रेरित किया। उनका निधन शतरंज जगत में एक खालीपन छोड़ गया है, लेकिन उनकी विरासत उनके शानदार गेम्स और `शताब्दी के मैच` की यादों में जीवित रहेगी।