क्रिकेट, भारत और पाकिस्तान के लिए सिर्फ एक खेल नहीं, बल्कि एक भावना है, एक जुनून है। जब ये दो चिर-प्रतिद्वंद्वी टीमें आमने-सामने होती हैं, तो स्टेडियम का माहौल electrifying हो जाता है और करोड़ों आंखें टीवी स्क्रीन पर जम जाती हैं। लेकिन हाल ही में संपन्न हुए एशिया कप 2025 में, इस जुनून पर राजनीति के काले बादल कुछ ऐसे छाए कि खेल भावना तार-तार होती नजर आई। मैदान पर जो कुछ हुआ, उसने कई अनुभवी खिलाड़ियों और खेल प्रेमियों को सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या क्रिकेट अब सिर्फ एक खेल रहा है, या वह राजनीतिक अखाड़े का नया मैदान बन गया है?
एशिया कप 2025: जब क्रिकेट के कैनवास पर खिंची कड़वाहट की लकीरें
एशिया कप 2025 के दौरान भारत और पाकिस्तान के बीच मुकाबला सिर्फ स्कोरबोर्ड पर नहीं, बल्कि मैदान के बाहर भी लड़ा गया। इस टूर्नामेंट ने कई ऐसी घटनाएं देखीं, जिन्होंने खेल के मूल सिद्धांतों पर सवाल खड़े कर दिए:
- हाथ मिलाने से इनकार: भारतीय खिलाड़ियों ने अपने पाकिस्तानी प्रतिद्वंद्वियों से हाथ मिलाने से इनकार कर दिया। इस कदम को पहलगाम आतंकी हमले से जोड़कर देखा गया, जिसमें 26 नागरिकों की जान गई थी। ऐसे समय में, जब खिलाड़ी एक-दूसरे के साथ सम्मान और भाईचारे का प्रदर्शन करते हैं, यह घटना कई लोगों के लिए निराशाजनक रही।
- उत्तेजक हावभाव: सिर्फ भारतीय पक्ष ही नहीं, पाकिस्तानी खिलाड़ी, जिनमें हारिस रऊफ और शाहिबजादा फरहान जैसे नाम शामिल थे, भी मैदान पर कुछ ऐसे हावभाव दिखाते नज़र आए, जिन्हें उत्तेजक और खेल भावना के विपरीत माना गया।
- ट्रॉफी का बहिष्कार: विवाद तब और गहरा गया जब भारतीय टीम ने एशियाई क्रिकेट परिषद (ACC) के प्रमुख मोहसिन नकवी से विजेता ट्रॉफी और मेडल लेने से इनकार कर दिया। गौरतलब है कि नकवी पाकिस्तान के गृह मंत्री और पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड (PCB) के अध्यक्ष भी हैं। इस अस्वीकृति के परिणामस्वरूप, ACC ने भारत को ट्रॉफी और मेडल प्रदान ही नहीं किए, जिससे एक बड़ा विवाद खड़ा हो गया।
सैयद किरमानी की नसीहत: “राजनीति को खेल में आने मत दो!”
इन तमाम घटनाओं के बीच, 1983 विश्व कप विजेता भारतीय टीम के सदस्य और पूर्व विकेटकीपर-बल्लेबाज सैयद किरमानी ने अपनी गंभीर चिंता व्यक्त की है। किरमानी, जो अपने समय के एक सच्चे `जेंटलमैन` क्रिकेटर माने जाते हैं, मौजूदा स्थिति पर बेहद निराश दिखे। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा:
“जिस तरह से आजकल क्रिकेट खेला जा रहा है, उसमें खेल भावना (जेंटलमैन-नेस) कहीं नज़र नहीं आती। मैदान पर बहुत अशिष्ट और घमंडी हावभाव देखने को मिले हैं… मुझे चारों ओर से संदेश मिल रहे हैं… भारतीय टीम ने यह क्या किया? मैदान पर यह कैसी राजनीति चल रही है?”
“मैं इन टिप्पणियों को सुनकर शर्मिंदा हूँ। `आज के क्रिकेटरों को क्या हो गया है? एशिया कप में जो हुआ वह घृणित है` – ये वे शब्द हैं जो मेरे पास संदेशों में आए हैं… खेल के मैदान पर, खासकर क्रिकेट में जिस तरह से चीजें हो रही हैं, वह मेरे लिए बहुत निराशाजनक है… यह सही नहीं है। सामान्य तौर पर, राजनीति को खेल में प्रवेश नहीं करना चाहिए। राजनीति को पीछे छोड़ दो। खेल के मैदान से दूर जो कुछ भी हुआ है, उसे वहीं छोड़ दो। इसे अपनी जीत की राशि या इस महान क्रिकेट के खेल से आप जो कुछ भी कमा रहे हैं, उससे मत जोड़ो।”
किरमानी का यह बयान सिर्फ एक टिप्पणी नहीं, बल्कि एक अनुभवी खिलाड़ी का गहरा दर्द है, जो खेल को उसकी पवित्रता में देखना चाहते हैं। उन्होंने भाईचारे और दोस्ती के पुराने दिनों को याद किया, जब पाकिस्तानी खिलाड़ी भारत आते थे और भारतीय खिलाड़ी पाकिस्तान जाते थे, और उन्हें अद्भुत आतिथ्य और स्नेह मिलता था। आज, वह एक क्रिकेटर के रूप में अपना सिर झुकाने पर मजबूर महसूस करते हैं।
सूर्यकुमार यादव का दान और किरमानी की सूक्ष्म टिप्पणी
टूर्नामेंट के अंत में, भारतीय टी20आई कप्तान सूर्यकुमार यादव ने एशिया कप 2025 से अपनी मैच फीस भारतीय सेना और पहलगाम आतंकी हमले के पीड़ितों के परिवारों को दान करने की घोषणा की। यह एक नेक पहल थी, जिस पर कोई सवाल नहीं उठा सकता। हालांकि, किरमानी ने इस पर भी एक सूक्ष्म लेकिन महत्वपूर्ण टिप्पणी की:
“इसे नेक कामों के लिए समर्पित मत करो… कोई भी नेक काम, पूरी तरह से समझ में आता है, लेकिन इसे राजनीति से मत जोड़ो…”
किरमानी का तात्पर्य यह नहीं था कि दान गलत है, बल्कि यह था कि अगर ऐसे नेक कार्यों को राजनीतिक बयानों या राष्ट्रों के बीच तनाव के प्रत्यक्ष परिणाम के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, तो यह अनजाने में भी खेल को राजनीतिक रंग में रंगने का काम करता है। खेल के माध्यम से समाज सेवा करना एक बात है, लेकिन इसे किसी राजनीतिक घटना के जवाब के रूप में पेश करना दूसरी बात है, जो खेल के मंच को एक राजनीतिक मंच में बदल सकता है।
क्या खेल सचमुच राजनीति से अलग रह सकता है?
यह सवाल सदियों से पूछा जा रहा है, और शायद ही कभी इसका सीधा जवाब मिला हो। क्रिकेट जैसे खेल, जो दो देशों के लोगों को करीब ला सकते हैं, अक्सर राजनीतिक तनाव के पहले शिकार बन जाते हैं। भारत-पाकिस्तान क्रिकेट श्रृंखला इसका एक ज्वलंत उदाहरण है। जब सीमा पर तनाव बढ़ता है, तो क्रिकेट के रिश्ते सबसे पहले प्रभावित होते हैं।
लेकिन क्या यह सही है? किरमानी जैसे दिग्गजों का मानना है कि खेल को एक पुल बनना चाहिए, दीवार नहीं। यह वह मंच होना चाहिए जहां प्रतिद्वंद्विता केवल मैदान पर सीमित हो, और सम्मान और भाईचारा सीमाएं लांघ जाए। खिलाड़ियों पर अपने देश की भावनाओं का दबाव होना स्वाभाविक है, लेकिन इस दबाव के बावजूद, खेल के मूल सिद्धांतों – सम्मान, निष्पक्षता और खेल भावना – को नहीं भूलना चाहिए।
अफ़सोस की बात है, कि `जेंटलमैन गेम` कहे जाने वाले इस खेल में, कभी-कभी `जेंटलमैन` शब्द की परिभाषा भी धूमिल होती दिखती है। मैदान पर होने वाली यह कड़वाहट, अंततः, खेल के असली उद्देश्य को ही नुकसान पहुंचाती है – लोगों को एक साथ लाना, साझा जुनून का जश्न मनाना, और स्वस्थ प्रतिस्पर्धा के माध्यम से उत्कृष्टता का प्रदर्शन करना।
आगे का रास्ता: एक सीख और एक उम्मीद
एशिया कप 2025 में जो हुआ, वह केवल एक टूर्नामेंट का विवाद नहीं, बल्कि खेल की दुनिया के लिए एक चेतावनी है। सैयद किरमानी जैसे अनुभवी खिलाड़ी, जिन्होंने क्रिकेट को उसके सुनहरे दौर में देखा है, उनकी बातें हमें सोचने पर मजबूर करती हैं। उनकी नसीहत केवल खिलाड़ियों के लिए नहीं, बल्कि प्रशासकों, प्रशंसकों और सरकारों के लिए भी है।
क्रिकेट को राजनीति के संकीर्ण दायरे से ऊपर उठकर अपनी गरिमा बनाए रखनी चाहिए। मैदान पर प्रतिस्पर्धा होनी चाहिए, लेकिन दिल में सम्मान और खेल भावना जीवित रहनी चाहिए। शायद तभी क्रिकेट, और अन्य खेल, वास्तव में वह भूमिका निभा पाएंगे जिसके लिए वे बने हैं – दुनिया को एकजुट करने की। उम्मीद है कि भविष्य में, भारत-पाकिस्तान के मैचों में हमें फिर से वही जुनून, वही कौशल और वही खेल भावना देखने को मिलेगी, जो हमेशा से इन मुकाबलों की पहचान रही है, और राजनीति केवल दर्शक दीर्घा में बैठकर खेल का आनंद लेगी, मैदान पर नहीं।