क्रिकेट के मैदान से बाहर की ‘पिच’: आलोचना और व्यक्तिगत हमलों की मर्यादा पर अश्विन का मुखर संदेश

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भारतीय क्रिकेट में खिलाड़ी चयन हमेशा से एक संवेदनशील विषय रहा है। हाल ही में, एक युवा खिलाड़ी हर्षित राणा के चयन को लेकर उपजा विवाद, दिग्गज स्पिनर रविचंद्रन अश्विन के एक सशक्त संदेश के साथ, खेल में आलोचना की नैतिकता और व्यक्तिगत हमलों की सीमा पर एक नई बहस छेड़ गया है।

जब आलोचना की लकीर व्यक्तिगत हमलों में बदल जाती है

बात शुरू हुई तेज गेंदबाज हर्षित राणा के ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ वनडे सीरीज के लिए भारतीय टीम में चयन को लेकर। इस चयन पर पूर्व क्रिकेटर कृष्णमाचारी श्रीकांत ने गौतम गंभीर पर निशाना साधते हुए हर्षित को गंभीर का `हाँ में हाँ मिलाने वाला` (yes man) करार दिया। स्वाभाविक रूप से, टीम के मुख्य कोच गौतम गंभीर ने इस टिप्पणी पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की। यह यहीं तक सीमित नहीं रहा, बल्कि भारतीय टीम के अनुभवी स्पिनर रविचंद्रन अश्विन, जिन्होंने खुद पहले हर्षित के चयन पर सवाल उठाए थे, अब गौतम गंभीर के समर्थन में खुलकर सामने आए हैं। अश्विन का कहना है कि आलोचना होनी चाहिए, लेकिन यह कभी भी व्यक्तिगत या `कमर के नीचे` (below the belt) नहीं जानी चाहिए।

अश्विन का `संजय मांजरेकर` सिद्धांत: खेल या खिलाड़ी को निशाना बनाएं, व्यक्ति को नहीं

अश्विन ने अपनी बात को समझाते हुए एक दिलचस्प उदाहरण दिया। उन्होंने कहा कि उनके पूरे करियर में संजय मांजरेकर ने उनकी आलोचना की है, लेकिन उन्होंने कभी इस बात का बुरा नहीं माना। क्यों? क्योंकि वह आलोचना सिर्फ उनके खेल पर थी, उनके व्यक्तिगत जीवन या चरित्र पर नहीं। अश्विन का यह तर्क खेल जगत में एक महत्वपूर्ण सिद्धांत स्थापित करता है: “जो वे कहते हैं, वह सही या गलत हो सकता है, जब तक आलोचना व्यक्तिगत नहीं होती, मुझे कोई दिक्कत नहीं।” यह खेल की भावना को बनाए रखने और खिलाड़ियों के सम्मान को अक्षुण्ण रखने का एक स्पष्ट आह्वान है।

सोशल मीडिया की दुधारी तलवार और खिलाड़ियों का मानसिक स्वास्थ्य

आज के डिजिटल युग में, सोशल मीडिया की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। अश्विन ने इस पर भी गहरी चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि अगर हर्षित राणा को खुद पर हो रही तीव्र आलोचना वाले वीडियो या मीम्स देखने को मिलें, तो भारत के लिए मैच खेलने से पहले उनका मानसिक मनोबल कितना गिर जाएगा? और उनके परिवार पर इसका क्या असर होगा? यह सवाल हमें सोचने पर मजबूर करता है कि क्या एक क्लिक से की गई टिप्पणी किसी खिलाड़ी के करियर या मानसिक शांति को कितनी गहराई तक प्रभावित कर सकती है।

“हम निश्चित रूप से उनके कौशल, उनके क्रिकेट की शैली की आलोचना कर सकते हैं। लेकिन यह व्यक्तिगत नहीं होनी चाहिए। एक या दो बार यह मजेदार लग सकती है, लेकिन यह एक स्थायी विषय नहीं बनना चाहिए।” – रविचंद्रन अश्विन

अश्विन का यह कथन सोशल मीडिया के “नकारात्मकता के बाजार” पर भी एक तीखा व्यंग्य है, जहां “नकारात्मकता बिकती है” और दर्शक होने के कारण ऐसी सामग्री को बढ़ावा मिलता है। उन्होंने ऐसे कंटेंट का उपभोग न करने का आग्रह किया है।

आज के आलोचक, कल के प्रशंसक: पाखंड का चक्र

इस पूरी बहस में अश्विन ने एक और महत्वपूर्ण पहलू पर प्रकाश डाला है – पाखंड। उन्होंने पूछा कि जो लोग आज हर्षित राणा को “लेफ्ट, राइट और सेंटर” निशाना बना रहे हैं, क्या वही लोग अगर अगले साल हर्षित अच्छा प्रदर्शन करते हैं तो उसे सिर आँखों पर नहीं बिठाएंगे? यह सवाल समाज में उस प्रवृत्ति पर एक कटाक्ष है, जहां सफल व्यक्ति को पल भर में नायक और असफल को खलनायक बना दिया जाता है। खेल प्रेमियों और विशेषज्ञों को इस दोहरे मापदंड पर विचार करना चाहिए।

खेल भावना का सम्मान: एक सामूहिक जिम्मेदारी

क्रिकेट सिर्फ बल्ले और गेंद का खेल नहीं है; यह जुनून, कौशल, रणनीति और भावना का मिश्रण है। खिलाड़ियों का चयन, उनका प्रदर्शन और उस पर होने वाली प्रतिक्रियाएं, सभी इस बड़े खेल का हिस्सा हैं। लेकिन एक स्वस्थ क्रिकेटिंग माहौल के लिए यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि आलोचना की एक मर्यादा हो। पूर्व खिलाड़ी, कमेंटेटर, पत्रकार और प्रशंसक – सभी की यह जिम्मेदारी है कि वे आलोचना करते समय व्यक्तिगत हमलों से बचें। क्योंकि मैदान पर दिख रहे खिलाड़ी भी इंसान होते हैं, जो दबाव में होते हैं और जिन्हें समर्थन व सम्मान की आवश्यकता होती है, न कि अपमानजनक टिप्पणियों की।

अश्विन का यह संदेश केवल हर्षित राणा या गौतम गंभीर के विवाद तक सीमित नहीं है, बल्कि यह खेल और समाज दोनों के लिए एक व्यापक आह्वान है कि हम अपनी आलोचनाओं में अधिक संवेदनशील और जिम्मेदार बनें। आखिर, खेल हमें जोड़ते हैं, तोड़ने के लिए नहीं।


यह लेख खेल में आलोचना की नैतिकता और खिलाड़ियों के मानसिक स्वास्थ्य के महत्व पर आधारित है।