कोनेरू हम्पी: जब मातृत्व और महारत ने शतरंज की बिसात पर रचा इतिहास

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शतरंज की दुनिया में कुछ नाम ऐसे होते हैं जो सिर्फ खेल के आंकड़ों से कहीं ऊपर उठकर प्रेरणा का प्रतीक बन जाते हैं। भारत की ग्रैंडमास्टर कोनेरू हम्पी ऐसा ही एक नाम हैं। वह सिर्फ एक खिलाड़ी नहीं, बल्कि एक माँ, एक चैंपियन और एक ऐसी महिला हैं जिन्होंने साबित किया है कि समर्पण और दृढ़ता के साथ कोई भी चुनौती असंभव नहीं।

एक चैंपियन की अदम्य भावना

कोनेरू हम्पी का हालिया प्रदर्शन, दिसंबर 2024 में उनका दूसरा विश्व रैपिड शतरंज चैंपियनशिप खिताब जीतना, उनकी अद्वितीय दृढ़ता का प्रमाण है। यह जीत 2019 में उनके पहले खिताब के पांच साल बाद आई, जो स्वयं उनकी बेटी अहाना के जन्म के केवल दो साल बाद जीता गया था। 15 साल की उम्र में सबसे कम उम्र की महिला ग्रैंडमास्टर बनने से लेकर, मातृत्व के बाद शीर्ष पर लौटने तक, हम्पी ने हमेशा सीमाओं को धकेला है।

हम्पी अक्सर कहती हैं, “कभी-कभी टूर्नामेंट के दौरान मैं अपनी बेटी के बारे में सोचती हूँ, लेकिन ध्यान केंद्रित रखना बहुत ज़रूरी है। कभी-कभी मैं उससे बात भी नहीं करती ताकि मैं भावनात्मक रूप से कमज़ोर न पड़ूँ। यह मुश्किल है, लेकिन अगर आप विश्व चैंपियन बनना चाहते हैं और खुद को साबित करना चाहते हैं, तो आपको ऐसा करना होगा।”

यह कथन केवल शब्दों का एक समूह नहीं, बल्कि एक ऐसी खिलाड़ी की जीवनशैली का सार है जो जानती है कि सफलता के लिए क्या कीमत चुकानी पड़ती है, और वह इसे बार-बार चुकाने को तैयार रहती है।

बहु-कार्यदक्षता की मिसाल: `महिलाएं योद्धा होती हैं`

हम्पी मानती हैं कि “लड़कियां योद्धा होती हैं” और “महिलाएं मल्टीटास्किंग में बहुत अच्छी होती हैं,” एक ऐसा कौशल जिसे वह पुरुषों का विशेष गुण नहीं मानतीं। वह यह बात हल्के-फुल्के अंदाज में कहती हैं, लेकिन इसमें एक गहरा सच छिपा है। बच्चों की परवरिश और पेशेवर करियर को एक साथ साधना, खासकर जब आप विश्व चैंपियन बनने की आकांक्षा रखते हों, असाधारण मल्टीटास्किंग और अदम्य लड़ाकू भावना की मांग करता है।

कल्पना कीजिए, न्यूयॉर्क में उनका विश्व खिताब जीतना। पहले गेम में हारने के बाद भी उनके मन में निराशा के लिए कोई जगह नहीं थी। “जब मैं टूर्नामेंट के लिए गई, तो मेरा लक्ष्य शीर्ष तीन में रहना था,” वह बताती हैं। “जब मैं पहला गेम हारी, तो मैं परेशान थी, लेकिन अगले मैच से पहले उस बारे में सोचने का समय भी नहीं था। मैं ठीक से सो नहीं पाई। लेकिन मैंने अच्छा करने का दृढ़ संकल्प कर लिया था… मैं बस अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करना चाहती थी, अपनी तरफ से सबसे कठिन चुनौती देना चाहती थी। मुझे लगता है कि उस रवैये ने मुझे जीतने में मदद की।” यह सिर्फ एक खेल नहीं, जीवन का सबक है।

कोनेरू हम्पी अपनी बेटी अहाना के साथ

कोनेरू हम्पी ने अपना दूसरा महिला विश्व रैपिड खिताब जीता।

मातृत्व का मोल: `मॉम गिल्ट` और प्राथमिकताएं

एक चैंपियन होने के साथ-साथ, हम्पी एक माँ भी हैं, और इस भूमिका के अपने अनूठे भावनात्मक संघर्ष हैं। वह एक ऐसी घटना साझा करती हैं जब टूर्नामेंट के बाद फ्लाइट रद्द होने के कारण वह अपनी बेटी का जन्मदिन चूक गईं। “मैं आधी रात को ही पहुँच पाई, इसलिए उसे आज भी याद है कि मैं वहाँ नहीं थी… अब मैं हमेशा यह सुनिश्चित करती हूँ कि मैं उसके जन्मदिन पर घर पर रहूँ।” यह `मॉम गिल्ट` (माँ होने का अपराधबोध) हर कामकाजी माँ महसूस करती है, लेकिन एक विश्व-स्तरीय एथलीट के लिए इसका सामना करना और भी कठिन होता है।

37 वर्ष की उम्र में भी, हम्पी हर दिन नई चुनौतियों का सामना कर रही हैं – खेल और समाज के मानकों से लेकर, अपने शरीर में होने वाले परिवर्तनों, भावनात्मक उथल-पुथल और मातृत्व के आंतरिक दबाव तक।

कोनेरू हम्पी अपनी बेटी अहाना के साथ

फाइल फोटो: कोनेरू हम्पी अपनी बेटी अहाना के साथ।

पारिवारिक सहयोग: अनदेखी शक्ति

हम्पी की सफलता में एक और महत्वपूर्ण कारक उनका पारिवारिक सहयोग है। वह मानती हैं कि इसके बिना महिलाओं के लिए कुछ भी हासिल करना असंभव है। “मैं अपने पति से कहती रहती हूँ, अगर मुझे अपनी बेटी को एक नानी के पास छोड़ना पड़ता, तो मैंने अपना करियर जारी नहीं रखा होता। जब आपका बच्चा दादा-दादी के साथ होता है तो आप सहज और आत्मविश्वास महसूस करते हैं।”

उनके पिता आज भी उनके प्रशिक्षक हैं, जो “एक पेशेवर की तरह अभ्यास करते हैं, भले ही मैं छुट्टी पर क्यों न रहूँ।” यह समर्पण, यह अटूट समर्थन, ही हम्पी को लगातार आगे बढ़ने की शक्ति देता है। उनके माता-पिता ने उन्हें बचपन से ही सिखाया कि शारीरिक परिवर्तन कमजोरी नहीं हैं, बल्कि जीवन का एक सामान्य हिस्सा हैं, जिसने उन्हें मानसिक रूप से हर चुनौती के लिए तैयार किया।

समय और शरीर के साथ युद्ध

जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, खेल में चुनौतियां भी बदल जाती हैं। हम्पी स्वीकार करती हैं, “जब आप 30 की उम्र में होते हैं तो आप अपनी तेज़ी (sharpness) खो देते हैं। एक किशोरी के रूप में, आप कुछ स्थितियों पर बहुत तेज़ी से, बहुत रणनीतिक रूप से प्रतिक्रिया करती हैं। लेकिन 30 के बाद, सटीक गणना करने में आलस्य आता है। मुझे लगता है कि यहीं पर कभी-कभी मैं भी कुछ बिंदुओं पर विफल हो जाती हूँ। शायद यही वह क्षेत्र है जिस पर बहुत सावधानी से काम करने की आवश्यकता है।”

यह केवल मानसिक खेल की बात नहीं है, शारीरिक स्वास्थ्य भी उतना ही महत्वपूर्ण है। “निश्चित रूप से, शारीरिक रूप से भी आपको फिट रहने की ज़रूरत है, आपको अपने स्वास्थ्य की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। और यह सबसे महत्वपूर्ण है क्योंकि एक महिला होने के नाते, बच्चे के जन्म के बाद आपको कुछ स्वास्थ्य समस्याएं होंगी। आप कुछ चीज़ों से गुज़रेंगी, लेकिन आपको स्वास्थ्य को भी प्राथमिकता देनी होगी।”

कोनेरू हम्पी SOG ग्रैंडमास्टर्स सीरीज की ब्रांड एंबेसडर के रूप में

हम्पी SOG ग्रैंडमास्टर्स सीरीज की ब्रांड एंबेसडर हैं और मुंबई में वेस्ट जोन फाइनल के लिए मौजूद थीं।

एक अगोचर चोटी पर चढ़ना: खेल में महिलाओं की चुनौतियां

कोनेरू हम्पी की कहानी एक बड़ा प्रश्न भी उठाती है – वह अगोचर चोटी जिस पर हर महान महिला खिलाड़ी को चढ़ना पड़ता है। कल्पना कीजिए, क्या कोई विश्वनाथन आनंद से यह पूछता है कि जब वह किसी टूर्नामेंट में विदेश होते हैं तो उनके बच्चे की देखभाल कौन कर रहा है? या उनसे इस बारे में सवाल किया जाता है?

यह छोटी-छोटी बातें ही हैं जो वास्तव में इस बात पर प्रकाश डालती हैं कि एक महिला खिलाड़ी की उपलब्धि एक ऊंची, भले ही अगोचर चोटी (intangible peak) पर चढ़ने के बाद आती है। उनका खेल कौशल जितना भी असाधारण हो, उन्हें अक्सर मातृत्व और घर-परिवार की जिम्मेदारियों के साथ उसे संतुलित करना पड़ता है, जो पुरुष खिलाड़ियों को शायद ही कभी झेलना पड़ता है।

निष्कर्ष: एक अमर प्रेरणा

भारत की महानतम खेल हस्तियों में से एक, कोनेरू हम्पी का अभी रुकने का कोई इरादा नहीं है। उनकी कहानी में, उस लगभग अदृश्य संतुलन की महत्ता निहित है जिसे सभी महान महिला खिलाड़ियों को साधना पड़ता है। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस (2025 का संदर्भ मूल लेख से) जैसे अवसरों पर, उनकी इन बाधाओं को पार करने की यात्रा और उनकी असाधारण चैम्पियनशिप भावना का जश्न मनाना आवश्यक है। कोनेरू हम्पी सिर्फ शतरंज की बिसात पर रानी नहीं, बल्कि जीवन की बिसात पर भी एक सच्ची महारानी हैं, जो अनगिनत लोगों को प्रेरित करती रहेंगी।