फुटबॉल ट्रांसफर का काला अध्याय: नेपोली और ओसिम्हेन के सौदे पर सवालिया निशान

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फुटबॉल की चमक-धमक और करोड़ों के सौदों के पीछे कई बार ऐसे `खेल` होते हैं, जो प्रशंसकों के लिए किसी झटके से कम नहीं होते। इटली के प्रसिद्ध फुटबॉल क्लब नेपोली और नाइजीरियाई स्ट्राइकर विक्टर ओसिम्हेन के बीच 2020 में हुए हाई-प्रोफाइल ट्रांसफर डील पर अब एक बार फिर सवाल उठ रहे हैं। इस मामले में वित्तीय अनियमितताओं के आरोप लगे हैं और हाल ही में सामने आई इंटरसेप्टेड चैट्स ने नेपोली के शीर्ष अधिकारियों को मुश्किल में डाल दिया है। यह सिर्फ एक ट्रांसफर नहीं, बल्कि फुटबॉल की वित्तीय नैतिकता पर एक बड़ा सवाल है।

70 मिलियन यूरो का सौदा और `फर्जी` खिलाड़ियों का रहस्य

2020 में, नेपोली ने फ्रांसीसी क्लब लिल से विक्टर ओसिम्हेन को कथित तौर पर 70 मिलियन यूरो में खरीदा था। यह एक बड़ा सौदा था, लेकिन अब पता चल रहा है कि इस रकम का एक बड़ा हिस्सा `कागजी खिलाड़ियों` के नाम पर था। जांचकर्ताओं का आरोप है कि इस डील को `फुलाने` (inflating the figures) के लिए नेपोली के चार युवा और कम प्रसिद्ध खिलाड़ियों – गोलकीपर कार्नेजिस, लुइगी लिगुओरी, क्लाउडियो मांज़ी और सिरो पाल्मीएरी – को लिल को 20 मिलियन यूरो की भारी-भरकम कीमत पर बेचा गया। विडंबना यह है कि इनमें से कोई भी खिलाड़ी कभी वास्तव में फ्रांस नहीं गया, और उन्हें तुरंत ही इटली की निचली डिवीजनों में ऋण पर भेज दिया गया।

सवाल उठता है कि ऐसे `अदृश्य` खिलाड़ियों को इतनी कीमत पर क्यों बेचा गया? वित्तीय पुलिस (Guardia di Finanza) और सरकारी अभियोजकों का मानना है कि यह सब नेपोली के बही-खाते में कृत्रिम पूंजीगत लाभ (artificial capital gains) दिखाने और अपनी वित्तीय स्थिति को बेहतर दर्शाने के लिए किया गया था। इसे `झूठा लेखा-जोखा` (falso in bilancio) माना जा रहा है।

खुलासे वाली चैट्स: जब अधिकारी भी थे हैरान

इस पूरे मामले को और भी दिलचस्प बनाती हैं वे इंटरसेप्टेड चैट्स, जो नेपोली के तत्कालीन खेल निदेशक क्रिस्टियानो गिउंटोली, उनके डिप्टी ज्युसेप्पे पोम्पिलियो और सीईओ एंड्रिया चियावेली के बीच हुई थीं। ये बातचीत दिखाती हैं कि अधिकारियों को भी इस सौदे की संदिग्ध प्रकृति का अंदाजा था।

जुलाई 2020 की एक चैट में, सीईओ चियावेली ने टिप्पणी की: “उम्मीद है कि वे मना कर देंगे… नहीं तो हमें डकैती करनी पड़ेगी।”

कुछ ही मिनटों बाद, गिउंटोली अपने डिप्टी पोम्पिलियो से बात करते हैं और लिखते हैं:

गिउंटोली: “मैं रुका हुआ हूँ… दरअसल, उसने मुझे इसे भेजने के लिए कहा था, यह उम्मीद करते हुए कि वे स्वीकार नहीं करेंगे। मुझे ऑरेलियो (क्लब अध्यक्ष डी लॉरेंटिस) से बात करनी होगी। क्या आतंकवादी है।”

पोम्पिलियो: “यह मनोवैज्ञानिक आतंकवाद है।”

गिउंटोली: “आतंकवादी। लिखो कि हम भाग्यशाली थे कि अम्राबात और कुम्बुल्ला नहीं आए… नहीं तो हमें पेटैगना के साथ लीग खेलनी पड़ती।” (संकेत कि बजट सीमित था)

पोम्पिलियो: “आपको कुछ नहीं लिखना चाहिए… ईमेल में कोई निशान मत छोड़ो। मौखिक रूप से जो चाहो वो कहो।”

इन चैट्स से स्पष्ट होता है कि अधिकारी न केवल इस सौदे की असामान्य प्रकृति से अवगत थे, बल्कि वे इसकी जानकारी को लिखित रूप में न छोड़ने के प्रति भी सचेत थे। यह टिप्पणी, “ईमेल में कोई निशान मत छोड़ो,” शायद सबसे अधिक खुलासा करने वाली है।

लिल की आंतरिक चिंताएं और नेपोली का बचाव

यह विवाद केवल नेपोली तक ही सीमित नहीं था। लिल के प्रशासनिक और कानूनी निदेशक जूलियन मोरडाक ने भी तत्कालीन सीईओ मार्क इंग्ला को इस सौदे से जुड़े जोखिमों के बारे में चेतावनी दी थी। मोरडाक ने स्पष्ट रूप से कहा था कि “इस मामले से जुड़े जोखिमों के बारे में आपको फिर से चेतावनी देना मेरा कर्तव्य है… हर `अजीब` समझी जाने वाली बात इन सभी ऑपरेशनों पर सवाल उठा सकती है।” इससे पता चलता है कि लिल के भीतर भी कुछ लोगों को इस `रचनात्मक` मूल्यांकन पर संदेह था।

वहीं, नेपोली की कानूनी टीम ने इन आरोपों का खंडन किया है। उनके वकीलों का कहना है कि “यह कोई गैरकानूनी योजना नहीं है, बल्कि खिलाड़ियों की खरीद-बिक्री से जुड़ी एक सामान्य बातचीत की गतिशीलता है, जो इस क्षेत्र में स्वाभाविक है और जिसमें कोई आपराधिक रूप से प्रासंगिक प्रोफ़ाइल नहीं है।” उन्होंने यह भी तर्क दिया है कि ये चैट संदेश “एक बहुत बड़े द्वंद्वात्मक संदर्भ से निकाले गए वाक्यांश हैं।” वकीलों ने जांच से संबंधित दस्तावेजों के मीडिया में लीक होने पर भी `हैरानी` और `निजी गोपनीयता का उल्लंघन` बताया है।

आगे क्या? प्रारंभिक सुनवाई और फुटबॉल की साख

इटली के फुटबॉल महासंघ (Federcalcio) ने 2022 में इस मामले को खेल के दृष्टिकोण से बंद कर दिया था, यानी उन्हें कोई खेल संबंधी गड़बड़ी नहीं मिली थी। लेकिन अब आपराधिक अभियोजक इस मामले में आगे बढ़ रहे हैं। नेपोली के अध्यक्ष ऑरेलियो डी लॉरेंटिस और सीईओ एंड्रिया चियावेली के खिलाफ झूठे लेखा-जोखा के आरोप में अभियोग दायर किया गया है, और उनकी प्रारंभिक सुनवाई 6 नवंबर को होनी है।

यह मामला एक बार फिर फुटबॉल में वित्तीय पारदर्शिता और क्लबों द्वारा अपने बही-खाते को `स्वच्छ` दिखाने के लिए अपनाई जाने वाली संदिग्ध युक्तियों पर प्रकाश डालता है। अतीत में भी इटली के अन्य बड़े क्लबों को इसी तरह की वित्तीय अनियमितताओं के लिए भारी दंड का सामना करना पड़ा है। ओसिम्हेन मामले का परिणाम क्या होगा, यह तो समय ही बताएगा, लेकिन यह निश्चित रूप से फुटबॉल जगत में वित्तीय नियमों के पालन पर एक महत्वपूर्ण बहस को जन्म देगा। प्रशंसकों को उम्मीद है कि खेल की पवित्रता और वित्तीय अखंडता को हमेशा बरकरार रखा जाएगा, भले ही इसके लिए कितनी भी गहरी जांच क्यों न करनी पड़े।