फुटबॉल के इतिहास में ऐसे कई नाम हैं जिन्होंने अपने खेल या कोचिंग से छाप छोड़ी। लेकिन कुछ ऐसे भी रहे हैं, जिन्होंने अपने व्यक्तित्व, जुनून और जीवन के अनूठे दृष्टिकोण से मैदान के बाहर भी एक अलग पहचान बनाई। इटालियन फुटबॉल के ऐसे ही एक असाधारण व्यक्तित्व थे **फ्रेंको स्कोग्लियो**, जिन्हें प्यार से `प्रोफेसर` कहा जाता था। आज, उनकी मृत्यु की 20वीं बरसी पर, हम एक ऐसे आदमी की कहानी पर प्रकाश डाल रहे हैं, जिसने सिर्फ फुटबॉल को कोचिंग नहीं दी, बल्कि उसे जिया, और अंततः, उसकी बात करते-करते ही इस दुनिया को अलविदा कहा।
`मैं कविता नहीं लिखता, मैं वर्टिकल फुटबॉल खेलता हूँ`: `प्रोफेसर` का अनूठा दर्शन
फ्रेंको स्कोग्लियो कोई साधारण कोच नहीं थे। वह एक विचारक थे, एक दार्शनिक थे, लेकिन साथ ही एक ऐसे सीधे-सादे व्यक्ति भी थे जो अपनी बात कहने से कभी नहीं झिझकते थे। उनके जुबानी तीर अक्सर चर्चा का विषय बनते थे। उनका सबसे प्रसिद्ध कथन शायद यह था: “मैं कविता नहीं लिखता, मैं वर्टिकल फुटबॉल खेलता हूँ।” यह सिर्फ एक जुमला नहीं था, बल्कि उनके खेल दर्शन का सार था – सीधे, प्रभावी और परिणाम-उन्मुख फुटबॉल। उनके अन्य कथन भी उनके चरित्र को दर्शाते थे: “मैं सैम्पडोरिया से नफरत करता हूँ”, जो शहर के दो प्रतिद्वंद्वी क्लबों जेनोआ और सैम्पडोरिया के बीच गहरे टकराव को दर्शाता था। वह अपने प्रशंसकों से सीधे संवाद करते थे, कभी कठोर तो कभी मजाकिया, लेकिन हमेशा वास्तविक। उन्होंने फुटबॉल की शब्दावली को नया आकार दिया, उसे एक नया मुहावरा दिया, जो आज भी याद किया जाता है।
जेनोआ के लिए अटूट प्रेम: एक कोच का बलिदान
स्कोग्लियो की कहानियों में सबसे प्रमुख उनका क्लब जेनोआ के प्रति उनका गहरा, लगभग अंधाधुंध प्रेम था। उनके बेटे टोबियास, जो अपने चार भाई-बहनों में सबसे ज्यादा फुटबॉल प्रेमी थे, बताते हैं कि जब उनके पिता को जेनोआ की कोचिंग का प्रस्ताव मिलता था, तो वह उन्हें कहते थे, “कस कर पकड़ लो, मैं तुम्हें एक सरप्राइज देने वाला हूँ…” और वह सरप्राइज हमेशा जेनोआ की बेंच होती थी। यह एक ऐसा प्यार था जिसने स्कोग्लियो को व्यक्तिगत लाभ से ऊपर रखा। 2001 में, जब वह क्लब छोड़ रहे थे, उन्होंने अपने वेतन का एक बड़ा हिस्सा क्लब के लिए त्याग दिया। “वह पैसे के लिए काम नहीं करते थे, बल्कि जुनून के लिए,” टोबियास बताते हैं।
शायद उनके समर्पण का सबसे शानदार उदाहरण 2002 में आया, जब उन्होंने ट्यूनीशिया की राष्ट्रीय टीम के कोच के रूप में फीफा विश्व कप में हिस्सा लेने का अवसर ठुकरा दिया। क्यों? क्योंकि उन्हें जेनोआ को बचाने के लिए बुलाया गया था, जो सीरी बी (इटली की दूसरी लीग) में संघर्ष कर रहा था। यह एक असाधारण निर्णय था। वह क्लब को बचाना चाहते थे और उनका मानना था कि वह ऐसा कर सकते हैं, फिर विश्व कप के लिए जापान और कोरिया जा सकते हैं। लेकिन ट्यूनीशियाई अधिकारियों ने दोहरी भूमिका स्वीकार नहीं की, और स्कोग्लियो ने अपनी प्राथमिकता स्पष्ट कर दी। उन्होंने जेनोआ को सफलतापूर्वक बचाया, और एक डर्बी भी जीता। यह उस आदमी का जुनून था जिसने एक विश्व कप के सपने को अपने प्रिय क्लब के संकट के सामने फीका कर दिया।
टोबियास बताते हैं, “मुझे 2001 में एक डर्बी से पहले की रात याद है। मैं रात 4 बजे पानी पीने के लिए उठा और मैंने पापा को बिस्तर पर लगभग बीस कागज़ों और बोर्डों के साथ देखा, वह टीम की रणनीति पर अध्ययन कर रहे थे। उन्होंने मुझे देखा भी नहीं, बस कहा, `रुको, चुप रहो, मुझे नहीं पता कि जियाचेटा या मालागो को आगे बढ़ाना है। या शायद रुओटोलो…`” यह उनकी उस गहन निष्ठा को दर्शाता है।
एक भविष्यवाणी जो सच हुई: टीवी पर अंतिम विदाई
फ्रेंको स्कोग्लियो की कहानी में एक दुखद और नाटकीय मोड़ उनकी मृत्यु है। उन्होंने वर्षों पहले एक भविष्यवाणी की थी: **”मैं जेनोआ की बात करते-करते मरूँगा।”** और ठीक वैसा ही हुआ। 3 अक्टूबर 2005 को, 64 वर्ष की आयु में, वह एक टेलीविजन कार्यक्रम में जेनोआ के तत्कालीन अध्यक्ष एनरिको प्रेजियोसी के साथ बहस कर रहे थे। बहस गर्म हो रही थी, लेकिन फिर स्कोग्लियो ने अपने हाथ से एक इशारा किया और उनका सिर असामान्य रूप से पीछे की ओर गिर गया। स्टूडियो में मौजूद सभी लोग स्तब्ध रह गए। एक हृदयगति रुकने से उनकी तत्काल मृत्यु हो गई। ठीक उसी तरह, जेनोआ के बारे में बात करते हुए। यह एक ऐसा अंत था जो उनके जीवन की तरह ही नाटकीय और यादगार था।
एक बेटे का दर्द और विरासत
अपने पिता की मृत्यु के उन दृश्यों को बार-बार देखना टोबियास के लिए कितना दर्दनाक रहा होगा, इसकी कल्पना करना मुश्किल है। “मैंने इसे बहुत बार देखा है, और शुरुआत में बहुत दर्द होता था,” वह बताते हैं। “पहले 2-3 साल यह एक हॉरर फिल्म जैसा लगता था, फिर समय के साथ मैं इसे स्वीकार कर पाया।” उन्होंने इंटरनेट से उन छवियों को हटाने की कोशिश भी की, लेकिन उन्हें बताया गया कि यह एक व्यर्थ की लड़ाई होगी। टोबियास ने अपने बेटे का नाम अपने पिता के नाम पर `फ्रांसेस्को स्कोग्लियो जूनियर` रखा है, ताकि उनके दादा की विरासत आगे बढ़े, खासकर जब उनका बेटा भी फुटबॉलर बनना चाहता है।
अनदेखे अवसर और वर्तमान में `प्रोफेसर` की प्रासंगिकता
स्कोग्लियो को अपने करियर में युवेंटस और नेपोली जैसे बड़े क्लबों से भी प्रस्ताव मिले थे, लेकिन वे कभी हकीकत नहीं बन पाए। “सिर्फ युवेंटस ही नहीं, डिएगो माराडोना के नेपोली ने भी मेरे पिता को चाहा था,” टोबियास कहते हैं। लेकिन नियति कुछ और ही थी। युवेंटस में बोनीपर्ती की जगह मोंटेज़ेमोलो ने माइफ्रेडी को चुना, जबकि नेपोली में मोगी ने बिगन को बनाए रखने का फैसला किया। स्कोग्लियो ने खुद भी एक बार जेनोआ में रहने का अवसर ठुकराकर एक बड़ी गलती की थी, जिसे वह सार्वजनिक रूप से कभी नहीं मानते थे, लेकिन घर पर स्वीकार करते थे।
आज, जब जेनोआ कभी संघर्ष करता है, तो यह सवाल उठना स्वाभाविक है: क्या आज के जेनोआ को एक फ्रेंको स्कोग्लियो की जरूरत है? टोबियास का मानना है कि हां, उनके पिता आज भी जेनोआ को आसानी से बचा लेते। “मेरे पिता अपने क्षमताओं के प्रति आश्वस्त एक आदमी थे।” यह एक ऐसे कोच का आत्मविश्वास था जिसने खेल को एक जुनून, एक कला और एक जीवन शैली के रूप में देखा।
निष्कर्ष: एक अमर जुनून की गाथा
फ्रेंको स्कोग्लियो सिर्फ एक फुटबॉल कोच नहीं थे; वह एक घटना थे, एक असाधारण व्यक्तित्व थे जिन्होंने अपनी शर्तों पर जीवन जिया और फुटबॉल को कोचिंग दी। उनकी यादें, उनके कथन और जेनोआ के प्रति उनका अटूट प्रेम आज भी इटालियन फुटबॉल प्रशंसकों के दिलों में जीवित है। `प्रोफेसर` ने हमें सिखाया कि फुटबॉल सिर्फ एक खेल नहीं है, यह एक जुनून है, एक भावना है, और कभी-कभी, यह किसी के जीवन का पूरा सार हो सकता है। उनकी कहानी हमें याद दिलाती है कि खेल के मैदान पर असली नायक सिर्फ खिलाड़ी नहीं होते, बल्कि वे भी होते हैं जो अपने जुनून और दृढ़ संकल्प से पूरे खेल को एक नई दिशा देते हैं।