भारतीय क्रिकेट टीम ने दुबई में पाकिस्तान को हराकर एशिया कप का खिताब तो जीत लिया, लेकिन मैदान पर ट्रॉफी उठाने का जश्न अधूरा रह गया। जीत के बाद जो लम्हा टीम इंडिया के खिलाड़ियों के लिए गौरव का पल होना चाहिए था, वह प्रशासकीय खींचतान और राजनीतिक तल्खी की भेंट चढ़ गया। विजेता होने के बावजूद, भारतीय टीम को अपनी ट्रॉफी नहीं मिली, और यह अजीबोगरीब स्थिति अब क्रिकेट के गलियारों से निकलकर बोर्डरूम की गंभीर बहस का हिस्सा बन चुकी है। जीत का स्वाद तो मिला, लेकिन जश्न का प्रतीक गायब था।
विवाद की जड़: ट्रॉफी पर खींचतान
पूरा विवाद एशिया क्रिकेट काउंसिल (ACC) के अध्यक्ष और पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड (PCB) के प्रमुख मोहसिन नकवी द्वारा ट्रॉफी देने के उनके कथित `विशेषाधिकार` से जुड़ा है। भारतीय टीम ने साफ तौर पर उनसे ट्रॉफी लेने से इनकार कर दिया। बीसीसीआई (BCCI) ने इस मामले में तुरंत कड़ा रुख अपनाया। बीसीसीआई के सचिव देवजीत सैकिया ने एक न्यूज़ एजेंसी को बताया, “हमने ACC अध्यक्ष, जो पाकिस्तान के मुख्य नेताओं में से एक हैं, उनसे ट्रॉफी न लेने का फैसला किया है। इसलिए हम उनसे इसे स्वीकार नहीं करेंगे।” यह सिर्फ ट्रॉफी का मामला नहीं रहा, बल्कि दोनों क्रिकेट बोर्डों के बीच पहले से चल रही तनातनी का एक नया अध्याय खुल गया।
आईसीसी और राजनीतिक तकरार की ओर
भारत ने इस मामले को अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (ICC) तक ले जाने का भी मन बना लिया है। बीसीसीआई अधिकारियों का कहना है कि वे इस `अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण और खेल भावना के विपरीत` कार्य के खिलाफ आईसीसी की नवंबर में होने वाली बैठक में `बहुत गंभीर और मजबूत विरोध` दर्ज कराएंगे।
इस विवाद में सियासी रंग तब और गहरा गया, जब मोहसिन नकवी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भारतीय टीम को बधाई संदेश पर तीखी प्रतिक्रिया दी। मोदी जी ने #OperationSindoor हैशटैग के साथ लिखा था, “खेल के मैदान पर नतीजा वही – भारत जीता! हमारे क्रिकेटरों को बधाई।” नकवी ने इस पर युद्ध, खेल और राजनीति को एक साथ मिलाकर एक ऐसा जवाब दिया, जिसकी भाषा खेल भावना के विपरीत मानी गई। उन्होंने कहा कि “कोई भी क्रिकेट मैच उस सच को दोबारा नहीं लिख सकता। खेल में युद्ध को घसीटना केवल हताशा को उजागर करता है और खेल की भावना का अनादर करता है।” यह बयान दर्शाता है कि यह विवाद अब केवल क्रिकेट तक सीमित नहीं रहा है।
नाटक का अगला अंक: बैठकों का दौर
यह तनातनी, असल में, एशिया कप की पहली गेंद फेंके जाने से पहले ही शुरू हो गई थी। पाकिस्तान टॉस के दौरान अपने प्रतिनिधि की उपस्थिति पर अड़ा हुआ था, जबकि आयोजक रवि शास्त्री जैसे अनुभवी और लोकप्रिय चेहरे को चाहते थे। अंततः, सलमान अली आगा का इंटरव्यू करने के लिए वकार यूनिस को भी शामिल किया गया ताकि पाकिस्तान की मांग पूरी हो सके।
अब सबकी निगाहें दुबई में होने वाली ACC की बैठक पर टिकी हैं, जहां इस `अनसुलझे विवाद` पर चर्चा होने की उम्मीद है। इसी के साथ आईसीसी की नवंबर की बैठक भी बीसीसीआई के लिए अपनी बात रखने का मंच बनेगी। यह स्पष्ट है कि यह विवाद इतनी जल्दी शांत होने वाला नहीं है।
पुरस्कार समारोह की विडंबना
पुरस्कार समारोह में 45 मिनट से अधिक की देरी हुई, क्योंकि ACC और एमिरेट्स क्रिकेट बोर्ड (ECB) ने सुलह की कोशिश की, लेकिन नकवी अपनी बात पर अड़े रहे। एक प्रस्ताव था कि ECB अध्यक्ष खालिद अल ज़ारूनी और BCB अध्यक्ष अमीनुल इस्लाम विजेताओं को ताज पहनाएंगे और नकवी पाकिस्तानी टीम को सम्मानित करेंगे। लेकिन नकवी ने जोर देकर कहा कि ACC प्रमुख के रूप में यह उनका विशेषाधिकार है।
यह बात दुबई इंटरनेशनल स्टेडियम में पहले से ही ज्ञात थी कि भारतीय टीम एक पाकिस्तानी अधिकारी से ट्रॉफी स्वीकार नहीं करेगी, फिर भी अंतिम मैच समाप्त होने तक किसी ने इस मुद्दे को संबोधित नहीं किया। भारतीय टीम स्वयं मैच जीतने से पहले इसे नहीं उठा सकती थी। मैच के बाद, भारतीय टीम प्रबंधन ने अपना रुख स्पष्ट किया। बीसीसीआई अधिकारियों से परामर्श के बाद भारतीय खेमे ने दोहराया कि टीम ट्रॉफी लेगी, लेकिन नकवी से नहीं।
अंततः, भारतीय टीम ने केवल प्रायोजकों द्वारा दिए गए व्यक्तिगत पुरस्कार ही स्वीकार किए। कार्यक्रम के मेजबान साइमन डूल ने स्पष्ट शब्दों में कहा, “देवियों और सज्जनों, मुझे ACC द्वारा सूचित किया गया है कि भारतीय क्रिकेट टीम आज रात अपने पुरस्कार (ट्रॉफी) एकत्र नहीं करेगी। इसी के साथ पोस्ट-मैच प्रेजेंटेशन समाप्त होता है।” यह क्रिकेट के इतिहास में एक अभूतपूर्व और अजीबोगरीब क्षण था।
आगे क्या? अनसुलझा विवाद
तो अब आगे क्या? कहानी यहीं पर उलझ जाती है। नकवी ने आयोजकों से कहा है कि भारतीय टीम अपने पदक प्राप्त करेगी – और वह खुद उन्हें पेश करेंगे, बशर्ते एक औपचारिक समारोह आयोजित किया जाए। हालांकि, ऐसा समारोह आयोजित होने की संभावना कम ही दिख रही है। यह गतिरोध अभी भी जारी है, और एशिया कप की जीत के बावजूद, भारतीय टीम को अपनी गौरवपूर्ण ट्रॉफी के लिए अभी और इंतजार करना पड़ सकता है। यह सिर्फ एक ट्रॉफी का मामला नहीं, बल्कि क्रिकेट की कूटनीति और प्रशासकीय अधिकारों की जंग है, जिसका पटाक्षेप कब होगा, यह कहना मुश्किल है।