क्रिकेट के मैदान पर भारतीय टीम का प्रदर्शन अक्सर उम्मीदों से परे होता है। हाल ही में हुए एशिया कप में भी कुछ ऐसा ही देखने को मिला, जब भारत ने अपने चिर-प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान को धूल चटाकर शानदार जीत दर्ज की। टीम की इस ऐतिहासिक जीत का जश्न पूरा देश मना रहा था, लेकिन जीत के तुरंत बाद जो घटनाक्रम सामने आया, उसने खेल जगत को सकते में डाल दिया। यह घटना किसी मैच फिक्सिंग या डोपिंग से जुड़ी नहीं थी, बल्कि एक ऐसी अजीबोगरीब स्थिति थी, जिसमें जीत की ट्रॉफी ही `लापता` हो गई!
विजयी पल में कड़वाहट का घोल: ट्रॉफी प्रस्तुति समारोह का अजीब ड्रामा
एशिया कप का फाइनल मुकाबला भारत के लिए गौरव का क्षण था। मैदान पर जीत का शंखनाद हुआ, खिलाड़ियों ने एक-दूसरे को गले लगाकर अपनी खुशी जाहिर की और देश भर में पटाखों की गूंज सुनाई दी। अब बारी थी उस पल की, जब विजेता टीम अपने हाथों में चमकती हुई ट्रॉफी उठाती है – एक ऐसा क्षण, जिसके लिए हर खिलाड़ी अपना खून-पसीना एक करता है। लेकिन इस बार यह पल अपेक्षा से अधिक देर से आया और जब आया तो अपने साथ एक अनचाहा विवाद भी ले आया।
समारोह में डेढ़ घंटे से अधिक की देरी हुई, और जब भारतीय टीम मंच पर आई, तो पता चला कि एशियाई क्रिकेट परिषद (ACC) के प्रमुख और पाकिस्तान के आंतरिक मंत्री मोहसिन नकवी वहां ट्रॉफी देने के लिए मौजूद थे। यहीं से कहानी में असली मोड़ आया।
बीसीसीआई का कड़ा रुख और `अनैतिक` व्यवहार का आरोप
भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) के सचिव देवाजीत सैकिया ने एक विशेष बातचीत में NDTV को बताया कि भारतीय टीम ने मोहसिन नकवी से ट्रॉफी लेने से साफ इनकार कर दिया था। वजह स्पष्ट थी: नकवी के `भारत-विरोधी रुख` के चलते भारतीय खिलाड़ियों और अधिकारियों ने उनके हाथों से सम्मान स्वीकार करने से मना कर दिया। सैकिया के अनुसार, “ACC प्रमुख ट्रॉफी बांटना चाहते थे, लेकिन हमने यह स्पष्ट कर दिया कि हम उनसे खिताब स्वीकार नहीं करेंगे।”
यहां तक तो बात समझ में आती है। किसी से सम्मान लेना या न लेना, यह विजेता टीम का अधिकार है। लेकिन इसके बाद जो हुआ, वह क्रिकेट इतिहास में शायद ही कभी देखा गया हो। सैकिया ने आरोप लगाया कि मोहसिन नकवी ने ट्रॉफी और विजेता पदक अपने साथ ले लिए।
“हमें आश्चर्य है कि ACC अध्यक्ष ने, एक बहुत ही गलत तरीके से, ट्रॉफी और पदक अपने साथ ले लिए। यह अप्रत्याशित था क्योंकि वे कानूनी और नैतिक रूप से भारत से संबंधित थे। हम केवल उम्मीद कर सकते हैं कि वह ट्रॉफी और पदक भारतीय टीम को लौटा देंगे।”
– देवाजीत सैकिया, बीसीसीआई सचिव
यह बात किसी भी खेल प्रेमी के लिए हजम कर पाना मुश्किल है। एक आधिकारिक समारोह में, विजेता टीम के इनकार के बाद, ट्रॉफी और पदक का इस तरह से `गायब` हो जाना न केवल प्रोटोकॉल का उल्लंघन है, बल्कि खेल की मूल भावना का भी अपमान है। क्या यह स्वीकार्य है कि कोई अधिकारी, चाहे वह कितना भी प्रभावशाली क्यों न हो, एक प्रतिष्ठित ट्रॉफी को इस तरह अपने साथ ले जाए? यह तो ऐसा ही है, जैसे बच्चे के जन्मदिन पर केक काटकर तोहफे छिपा लिए जाएं!
सूर्यकुमार यादव की मायूसी और `असली ट्रॉफी` का दर्शन
भारतीय टीम के कप्तान सूर्यकुमार यादव ने भी इस घटना पर गहरी निराशा व्यक्त की। उन्होंने मैच के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि अपने करियर में उन्होंने ऐसा कभी नहीं देखा, जब एक चैंपियन टीम को उसकी कड़ी मेहनत से जीती हुई ट्रॉफी से वंचित किया गया हो। “मुझे लगता है कि हम इसके हकदार थे। और मैं इससे ज्यादा कुछ नहीं कह सकता।”
यादव ने आगे जो कहा, वह खेल भावना और टीम के असली मूल्य को दर्शाता है: “अगर आप मुझे ट्रॉफी के बारे में बताते हैं, तो मेरी ट्रॉफी ड्रेसिंग रूम में बैठी हैं, मेरे साथ सभी 14 खिलाड़ी, सहयोगी स्टाफ – एशिया कप की इस यात्रा के दौरान वे ही असली ट्रॉफी हैं।” यह बयान न केवल उनके बड़प्पन को दर्शाता है, बल्कि यह भी बताता है कि असली जीत का अनुभव भौतिक ट्रॉफी से कहीं बढ़कर होता है। फिर भी, एक खिलाड़ी के लिए, जीत के प्रतीक को अपने हाथों में उठाने का क्षण अमूल्य होता है।
खेल और राजनीति का दु:खद मिश्रण
यह घटना एक बार फिर खेल में राजनीति के अनावश्यक हस्तक्षेप को उजागर करती है। भारत और पाकिस्तान के बीच क्रिकेट संबंध हमेशा से संवेदनशील रहे हैं, और ऐसे विवाद इन संबंधों को और भी जटिल बना देते हैं। ACC, जो एशियाई क्रिकेट को बढ़ावा देने के लिए जिम्मेदार है, के प्रमुख द्वारा ऐसा व्यवहार करना उसकी विश्वसनीयता पर भी सवाल उठाता है। क्या खेल की गरिमा बनाए रखने की जिम्मेदारी किसी एक पक्ष की नहीं है?
बीसीसीआई सचिव देवाजीत सैकिया ने भी इस बात पर जोर दिया कि उनका मुख्य सरोकार क्रिकेट का खेल है, और ऐसे बयानों से बचना चाहिए जो सीधे क्रिकेट से संबंधित न हों। यह एक आदर्श स्थिति है, लेकिन जब अधिकारी ही ऐसे कृत्यों में लिप्त हों, तो खेल को राजनीति से अलग कैसे रखा जा सकता है?
आगे क्या?
फिलहाल, भारतीय टीम के लिए यह गौरव की बात है कि वे एशिया और विश्व दोनों के चैंपियन हैं। लेकिन ट्रॉफी और पदकों का क्या होगा? बीसीसीआई को उम्मीद है कि उन्हें जल्द ही भारतीय टीम को लौटा दिया जाएगा और वे सुरक्षित रहेंगे। यह घटना क्रिकेट के इतिहास में एक अजीबोगरीब फुटनोट बन गई है, जो खेल की शुद्धता पर एक कड़वा निशान छोड़ गई है।
यह देखना दिलचस्प होगा कि इस `लापता` ट्रॉफी का रहस्य कब और कैसे सुलझता है। तब तक, भारतीय टीम अपनी जीत का जश्न भले ही बिना भौतिक प्रतीक के मना रही हो, लेकिन खेल प्रेमियों के दिलों में उनकी असली ट्रॉफी हमेशा चमकती रहेगी। खेल भावना की जीत हमेशा किसी धातु के टुकड़े से बड़ी होती है, भले ही वह कितना भी चमकीला क्यों न हो।