फ़ुटबॉल की हरी-भरी पिच से दूर, जीवन के मैदान में, विश्व चैंपियन मार्को माटेराज़ी के भाई मातेओ माटेराज़ी एक ऐसे प्रतिद्वंद्वी से जूझ रहे हैं जिसके खिलाफ जीत की गारंटी नहीं है: एमियोट्रोफ़िक लेटरल स्क्लेरोसिस (एएलएस)। यह सिर्फ एक खिलाड़ी के भाई की कहानी नहीं, बल्कि एक परिवार के दृढ़ संकल्प, चिकित्सा विज्ञान की चुनौतियों और मानव भावना की लचीलेपन की गाथा है।
एक असाध्य बीमारी का क्रूर हमला
49 वर्षीय फ़ुटबॉल एजेंट मातेओ माटेराज़ी के लिए सितंबर का महीना एक काली छाया लेकर आया। उन्हें एएलएस का एक बेहद आक्रामक रूप बताया गया, जो एक न्यूरोडीजेनेरेटिव बीमारी है जो मांसपेशियों को नियंत्रित करने वाली तंत्रिका कोशिकाओं को नष्ट कर देती है। उनकी पत्नी माउरा के शब्दों में, `उनके बिना जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकती।` यह बीमारी उनके जीवन के ताने-बाने को तेजी से बिखेर रही है।
शुरुआत में, लक्षण सूक्ष्म थे। एक गहरी निराशा, जिसने मातेओ को सामाजिक रूप से अलग-थलग कर दिया। चिकित्सकों ने बाद में इसे बीमारी की प्रस्तावना बताया। धीरे-धीरे, लंगड़ाना, रोबोटिक चाल और अत्यधिक थकान ने उन्हें घेरना शुरू कर दिया। वे अक्सर गिर जाते थे, लेकिन जांच करवाने से कतराते थे। फिर एक दिन, उनके बेटे जियानफ़िलिपो के लाज़ियो यूथ टीम के मैच के दौरान, वह स्टैंड्स में गिर पड़े। यहीं पर एक अप्रत्याशित देवदूत सामने आया: जुवेंटस के पूर्व स्टार क्लाउडियो मार्चिसियो। उन्होंने मातेओ से बात की, उनकी बात सुनी, और संदेह बोया: `क्या आपने किसी को दिखाया है?` मार्चिसियो के इस सवाल ने एक महत्वपूर्ण मोड़ दिया, जिसने मातेओ को रोम के नीमो सेंटर के प्रोफेसर साबाटेली से जोड़ा, जिन्होंने बिना विस्तृत जांच के ही निदान कर दिया।
जीवन की लड़ाई: चिकित्सा अनुसंधान में उम्मीद
एएलएस की पहचान के बाद, माउरा और मातेओ ने एक सप्ताह तक दिन-रात आँसू बहाए। फिर उन्होंने अपनी हिम्मत बांधी। माउरा व्यावहारिक हैं, और मातेओ स्वाभाविक रूप से आशावादी। लेकिन बीमारी की गति चौंकाने वाली थी। कुछ ही महीनों में, मातेओ ने अपने पैरों का उपयोग खो दिया और व्हीलचेयर पर आ गए। अब उनके हाथ भी मुश्किल से हिलते हैं, केवल उंगलियों में थोड़ी हलचल है। यह बीमारी तेजी से बढ़ रही है, और मातेओ यथार्थवादी हैं; 50% एएलएस रोगी तीन साल के भीतर दम तोड़ देते हैं। वे अपने बच्चों को बड़ा होते देखना चाहते हैं, लेकिन इस पर विश्वास नहीं कर पाते।
इस अंधेरे में, आशा की एक छोटी सी किरण व्यक्तिगत एएसओ थेरेपी के रूप में उभरी है। यह थेरेपी एक दुर्लभ उत्परिवर्तन को लक्षित करने के लिए डिज़ाइन की गई है जो मातेओ को प्रभावित कर रहा है। चुनौती यह है कि जिस प्रोटीन के जमा होने से न्यूरोनल कोशिकाएं विषाक्त होती हैं, वह स्वयं कोशिका के लिए भी कार्यात्मक है, जिससे उपचार खोजना और भी मुश्किल हो जाता है। माउरा कोलंबिया विश्वविद्यालय और डॉ. श्नाइडर, जो इस क्षेत्र में एक अग्रणी हैं, के संपर्क में हैं। इस उपचार के लिए 1.5 मिलियन डॉलर की आवश्यकता है, और समय भी—शायद एक साल, लेकिन निश्चितता कुछ भी नहीं है।
परिवार का अटूट समर्थन और एक अनकही कहानी
इस दुखद यात्रा में, मातेओ का परिवार उनके साथ चट्टान की तरह खड़ा है। उनकी पत्नी माउरा ने एक चंदा अभियान शुरू किया है, जिसने कुछ ही समय में 200,000 यूरो जुटा लिए हैं, जिसमें फ़ुटबॉल जगत के एक “विशेष व्यक्ति” ने अकेले 50,000 यूरो का योगदान दिया है। इस अभियान का उद्देश्य सिर्फ मातेओ का जीवन बचाना नहीं है, बल्कि भविष्य में इसी बीमारी का सामना करने वालों की मदद करना भी है। माउरा बताती हैं कि उनके बेटों, 18 वर्षीय जेरेमिया और 16 वर्षीय जियानफ़िलिपो में, यही उत्परिवर्तन विकसित होने की 15 से 20% संभावना है।
इस संकट ने मातेओ और उनके प्रसिद्ध भाई मार्को माटेराज़ी के बीच लंबे समय से चले आ रहे जटिल रिश्ते को भी ठीक कर दिया है। माउरा बताती हैं, `सालों तक उनके रिश्ते जटिल रहे, लेकिन बीमारी की शुरुआत के बाद से वे हर दिन बात करते हैं।` मार्को अपनी क्षमता के अनुसार मदद कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें भी अपने परिवार का ध्यान रखना है। `लेकिन वह उनके साथ हैं, जैसे हम सब हैं। और मातेओ इससे बेहद खुश हैं।` समय ने कड़वाहट को धो दिया है, और इस कठिन समय में भाईचारा एक बार फिर मजबूत हो गया है।
जब प्रसिद्धि और दुख का मिलन होता है: एक विडंबना
यह सच है कि माटेराज़ी परिवार का नाम फ़ुटबॉल की दुनिया में जाना-पहचाना है। मार्को माटेराज़ी ने अपने करियर में करोड़ों कमाए हैं, और उनके भाई मातेओ भी फ़ुटबॉल एजेंट के रूप में अच्छी आय अर्जित करते रहे हैं। ऐसे में, आम जनता से चंदा मांगने पर अक्सर सवाल उठते हैं। कई लोगों का तर्क है कि ऐसे धनी परिवार को सार्वजनिक मदद की आवश्यकता क्यों है, जबकि दुनिया में अनगिनत लोग हैं जो बुनियादी चिकित्सा देखभाल का खर्च भी वहन नहीं कर सकते।
लेकिन, बीमारी की क्रूरता अमीरी-गरीबी का भेद नहीं करती। एएलएस जैसे रोग किसी के बैंक खाते में जमा राशि या प्रसिद्धि को नहीं देखते। शायद यह नियति की विडंबना ही है कि जिन्हें दुनिया अक्सर हर तरह से `संपन्न` मानती है, उन्हें भी सबसे मूलभूत आवश्यकता – जीवन के लिए – दूसरों के समर्थन की आवश्यकता पड़ सकती है। यह दिखाता है कि मानवता की सबसे बुनियादी कमजोरियां सार्वभौमिक हैं, और जब जीवन दांव पर हो, तो हर हाथ मायने रखता है।
इस अभियान का एक बड़ा उद्देश्य केवल मातेओ का इलाज नहीं, बल्कि इस दुर्लभ उत्परिवर्तन पर शोध को बढ़ावा देना भी है, जो भविष्य में उनके बेटों और अन्य प्रभावित लोगों के लिए भी आशा की किरण बन सकता है। ऐसे समय में, मानवीय करुणा और वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए सहयोग, किसी भी व्यक्तिगत स्थिति से परे, अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है।
अटूट भावना और वैश्विक अनुसंधान की आवश्यकता
मातेओ माटेराज़ी का संघर्ष एएलएस के साथ जी रहे लाखों लोगों के लिए एक मार्मिक अनुस्मारक है। यह एक ऐसी लड़ाई है जिसमें प्रत्येक दिन एक चुनौती है, और हर छोटी जीत एक चमत्कार। इस कहानी में, हम न केवल एक व्यक्ति और उसके परिवार के दुख को देखते हैं, बल्कि मानव भावना की अदम्य शक्ति और चिकित्सा विज्ञान के लगातार बढ़ते प्रयासों को भी समझते हैं। आशा है कि माउरा का अभियान और दुनिया भर में एएलएस अनुसंधान के लिए किए जा रहे प्रयास, इस विनाशकारी बीमारी के खिलाफ एक प्रभावी उपचार खोजने में सफल होंगे, ताकि मातेओ और उनके जैसे लाखों लोग एक उज्जवल भविष्य की ओर देख सकें।