दक्षिण अफ्रीकी क्रिकेट में ‘चयनकर्ता’ की वापसी: प्रगति या प्रतिगमन?

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खेल जगत में परिवर्तन एक सतत प्रक्रिया है, और क्रिकेट इसका अपवाद नहीं। जहाँ कुछ बदलाव खेल को निखारते हैं, वहीं कुछ ऐसे भी होते हैं जो हमें सोचने पर मजबूर कर देते हैं: क्या यह वाकई प्रगति है, या अतीत की ओर एक प्रतिगामी कदम? हाल ही में क्रिकेट दक्षिण अफ्रीका (CSA) ने एक ऐसा ही कदम उठाया है, जिसने कई भौंहें चढ़ा दी हैं – चयनकर्ता पैनल की वापसी, जिसे एक साल पहले ही खत्म किया गया था। इस निर्णय के केंद्र में हैं पैट्रिक मोरोनी, जिन्हें `प्रोटियाज पुरुषों की टीम के संयोजक चयनकर्ता` के रूप में नियुक्त किया गया है।

पैट्रिक मोरोनी

पैट्रिक मोरोनी, दक्षिण अफ्रीकी क्रिकेट के नए संयोजक चयनकर्ता।

सफलता का विरोधाभास: जब कोचों ने अकेले संभाली कमान

यह विडंबना ही है कि जब चीजें बेहतर हो रही थीं, तभी कुछ `पुराने ढर्रे` को फिर से अपनाने की बात उठी। पिछले डेढ़ साल में दक्षिण अफ्रीकी क्रिकेट ने अपनी पहचान पुनः स्थापित की है। क्या यह महज एक संयोग है कि जब टीमों का चयन पूरी तरह से मुख्य कोचों के हाथ में था, तभी प्रोटियाज टीम ने अपनी सबसे महत्वपूर्ण सफलताओं में से एक हासिल की?

  • 2024 टी20 विश्व कप फाइनल: बारबाडोस में भारत के खिलाफ मात्र 7 रनों से हारने के बावजूद, यह दक्षिण अफ्रीका का पहला सीनियर पुरुष विश्व कप फाइनल था। टीम का चयन तत्कालीन सफेद गेंद के मुख्य कोच रॉब वाल्टर ने अकेले किया था।
  • विश्व टेस्ट चैम्पियनशिप (WTC) अभियान: कोच शुक्रि कॉनराड के नेतृत्व में, प्रोटियाज ने अपनी शानदार WTC यात्रा का सुखद अंत ऑस्ट्रेलिया को लॉर्ड्स में पांच विकेट से हराकर किया। यहां भी चयन की बागडोर अकेले कॉनराड के हाथ में थी।

इन सफलताओं के बाद, किसी भी तर्कसंगत मन में यह सवाल उठना स्वाभाविक है: जब यह `कोच-चयन` मॉडल इतना प्रभावी साबित हो रहा था, तो फिर वापस पुरानी प्रणाली की ओर क्यों लौटना, जो अतीत में उतनी सफल नहीं रही थी? क्या सीएसए बोर्ड, विशेषकर प्रांतीय संबद्धों के अध्यक्ष, इन सफलताओं को देख नहीं पा रहे हैं, या शायद वे दक्षता और नियंत्रण के बीच संतुलन स्थापित करने में उलझ गए हैं?

पैट्रिक मोरोनी: एक सही व्यक्ति, एक संदिग्ध निर्णय में

इस पूरे घटनाक्रम में पैट्रिक मोरोनी की भूमिका एक ऐसे `पुल` की तरह है जो प्रशासकीय फैसलों और जमीनी हकीकत को जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। मोरोनी कोई `सूट` नहीं हैं, यानी वे केवल कागजी कार्रवाई और बैठकों तक सीमित नहीं रहने वाले हैं। उनका करियर क्रिकेट के मैदान से जुड़ा रहा है:

  • हाई स्कूल में खेल और विपणन निदेशक।
  • प्रतिभा पहचान कार्यक्रमों पर काम।
  • लायंस टीम के लिए चयनकर्ताओं के संयोजक।
  • सीएसए की अकादमी, उभरती और अंडर-19 टीमों के लिए संयोजक।

सीएसए के राष्ट्रीय टीमों और उच्च प्रदर्शन के निदेशक, एनोक नेकवे ने स्वयं कहा है कि मोरोनी की “खेल की गहरी समझ, दशकों का अनुभव और विभिन्न स्तरों पर प्रतिभा पहचान और चयन उन्हें इस काम के लिए आदर्श व्यक्ति बनाते हैं।” मोरोनी उस अंतिम राष्ट्रीय पुरुष चयन पैनल के सदस्य भी थे जिसे जनवरी 2023 में भंग कर दिया गया था।

यहां दिलचस्प बात यह है कि मोरोनी को एनोक नेकवे और मुख्य कोच शुक्रि कॉनराड के साथ मिलकर काम करना होगा। यह उन लोगों के लिए राहत की बात है जो नेकवे के सूक्ष्म कार्य और कॉनराड की निर्विवाद क्षमता पर भरोसा करते हैं। ऐसा लगता है कि मोरोनी, नेकवे और कॉनराड – ये तीनों दक्षिण अफ्रीकी क्रिकेट को उन `प्रांतीय अध्यक्षों` की लापरवाही और कुटिलता के बावजूद पैरों पर खड़े रखने में मदद करते हैं, जिनकी प्रशासनिक `दूरदर्शिता` अक्सर सवालों के घेरे में रहती है।

बोर्ड की `दूरदर्शिता` पर सवाल

कुछ लोग कह सकते हैं कि क्रिकेट दक्षिण अफ्रीका का बोर्ड, विशेषकर प्रांतीय संबद्धों के अध्यक्ष, शायद `सफलता` के इस अचानक झटके से घबरा गए हों। जब चीजें सहज और कुशल तरीके से चल रही थीं, तब शायद उन्हें लगा होगा कि `नियंत्रण` उनके हाथ से फिसल रहा है। यह शायद एक ऐसी मानसिकता है जो दक्षता से अधिक `आधिकारिक प्रक्रिया` को महत्व देती है। वर्षों से इस तरह की `घटिया, हानिकारक` सोच से जूझते हुए, हमें इस प्रश्न का केवल एक ही संभावित उत्तर मिलता है: शायद उन्हें दक्षता उतनी पसंद नहीं, जितनी `नियंत्रण`।

“भगवान का शुक्र है, यह तुम हो।” एक ऐसे व्यक्ति का संदेश था जिसने सीएसए बोर्ड की कई `गड़बड़ फिल्मों` में `गोली` खाई है। उसने नमस्ते नहीं कहा। उसने बधाई नहीं दी। उसने केवल इतना कहा, `भगवान का शुक्र है, यह तुम हो।` उसने नहीं कहा, क्योंकि उसे कहने की आवश्यकता नहीं थी, `और कोई मूर्ख सूट नहीं`।”

यह उद्धरण, जो मोरोनी की नियुक्ति की खबर फैलने के तुरंत बाद आया, उस गहरी निराशा को दर्शाता है जो दक्षिण अफ्रीकी क्रिकेट के भीतर प्रशासनिक हस्तक्षेप को लेकर है। यह इस बात का प्रमाण है कि मोरोनी को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में देखा जाता है जो इस `गड़बड़` व्यवस्था में भी कुछ हद तक समझदारी ला सकते हैं।

आगे की राह: आशा और आशंका

हालांकि, यह पूरी तरह से अच्छी खबर नहीं है। क्रिकबज ने पुष्टि की है कि मोरोनी और कॉनराड के साथ मिलकर एक तीन सदस्यीय पैनल बनाने के लिए एक स्वतंत्र चयनकर्ता भी नियुक्त किया जाएगा। अब सवाल यह है कि क्या बोर्ड इस `तीसरे` चयनकर्ता के चुनाव में भी सही निर्णय ले पाएगा? यह देखना दिलचस्प होगा, लेकिन कई लोग अपनी साँसें थामे हुए हैं।

अंततः, पैट्रिक मोरोनी की नियुक्ति दक्षिण अफ्रीकी क्रिकेट प्रशासन के भीतर चल रही खींचतान का एक प्रतीक है। यह दक्षता और प्रक्रियाओं के बीच, जमीनी हकीकत और दफ्तरी फैसलों के बीच की लड़ाई है। मोरोनी शायद उस `गलत` प्रणाली में एक `सही` व्यक्ति हैं। आशा है कि उनकी विशेषज्ञता और नेकवे व कॉनराड के साथ उनका तालमेल, दक्षिण अफ्रीकी क्रिकेट को आगे बढ़ने में मदद करेगा, भले ही प्रशासकीय `पुरातनपंथ` उन्हें पीछे खींचने की कोशिश करता रहे। भविष्य ही बताएगा कि क्या यह वापसी `प्रगति` का मार्ग प्रशस्त करती है, या केवल `प्रतिगमन` की पुष्टि करती है।