भारतीय शतरंज इस समय अपने स्वर्णिम युग में है। हर तरफ सफलता की चमक बिखरी हुई है – पुरुष और महिला ओलंपियाड में स्वर्ण पदक, विश्व रैपिड चैंपियन, विश्व चैंपियन… और अब, महिला विश्व कप विजेता का ताज भी भारत की झोली में आ गया है। यह कोई और नहीं, बल्कि युवा और प्रतिभाशाली दिव्या देशमुख हैं, जिन्होंने अपनी चालों से दुनिया को मंत्रमुग्ध कर दिया है।
एक अप्रत्याशित उड़ान
दिव्या की यह उड़ान इतनी अप्रत्याशित थी कि शायद खुद उन्हें भी इसका अंदाजा नहीं था। वर्ष 2025 की शुरुआत में, जब उनसे उनके लक्ष्यों के बारे में पूछा गया था, तो उनका सीधा-सा जवाब था, “मैं बहुत सारे टूर्नामेंट खेलना चाहती हूँ और अपनी रेटिंग सुधारना चाहती हूँ।” उस वक्त, भारतीय शतरंज पदानुक्रम में उनकी स्थिति को देखते हुए, यह एक सामान्य इच्छा लगती थी। कौन जानता था कि `रेटिंग सुधारने` की यह यात्रा सीधे विश्व कप के शिखर पर जाकर रुकेगी और उन्हें ग्रैंडमास्टर का खिताब दिलाएगी! यह किसी रोमांचक उपन्यास से कम नहीं, जहाँ नायक अपने छोटे से लक्ष्य की तलाश में निकलता है और अनजाने में एक बड़ी उपलब्धि हासिल कर लेता है।
उभरता सितारा और ओलंपियाड का अनुभव
हालांकि, दिव्या शतरंज की दुनिया के लिए कोई नया नाम नहीं थीं। वह महिला शतरंज में सबसे प्रतिभाशाली युवा संभावनाओं में से एक थीं और पहले ही दो ओलंपियाड टीमों का एक अभिन्न हिस्सा रह चुकी थीं। 2022 के चेन्नई ओलंपियाड में रिजर्व बोर्ड पर कांस्य पदक जीतने के बाद, 2024 के बुडापेस्ट ओलंपियाड में, जब हरिका द्रोणावल्ली और वैशाली रमेशबाबू अपनी पूरी लय में नहीं थीं, तब टीम को स्वर्ण पदक जीतने के लिए दिव्या के सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन की सख्त जरूरत थी। उन्होंने अपने बोर्ड पर 11 में से 9.5 अंक बटोरकर टीम को स्वर्ण दिलाया। दिव्या ने उस अनुभव को “अपने जीवन का सबसे अच्छा समय” बताया था। ये अनुभव उनके आत्मविश्वास की नींव बने, जिस पर उन्होंने विश्व कप की इमारत खड़ी की।
सबसे कठिन राह, शानदार जीत
विश्व कप से पहले, दिव्या को टूर्नामेंट की 15वीं वरीयता प्राप्त थी और उनका ड्रॉ किसी दुःस्वप्न से कम नहीं था। दूसरे वरीय झू जिनर, क्वार्टर फाइनल में हरिका, सेमीफाइनल में विश्व चैम्पियनशिप उपविजेता तान झोंगी, और फिर फाइनल में अनुभवी कोनेरू हम्पी – यह एक ऐसी बाधा दौड़ थी जिसे पार करने की उम्मीद बहुत कम लोगों ने की थी। लेकिन दिव्या ने एक-एक कर इन सभी दिग्गजों को धूल चटाई। झू जिनर को टाई-ब्रेक में हराया, हरिका के खिलाफ भी जीत हासिल की, और फिर तान झोंगी को तो उन्होंने क्लासिकल गेम में ही मात दे दी – यह जीत आत्मविश्वास के लिहाज से बहुत बड़ी थी, और एक तरह से उनके भाग्य की घोषणा भी थी।
ग्रैंड फिनाले और ग्रैंडमास्टर का ताज
फाइनल में कोनेरू हम्पी के खिलाफ, दिव्या ने कई मौकों को भुनाया। हालांकि, शास्त्रीय और रैपिड दोनों गेमों में कुछ मौके छूटे, अंततः हम्पी की एक आखिरी गलती दिव्या के पक्ष में गई, और उन्होंने विश्व कप का ताज अपने नाम कर लिया। यह भारतीय शतरंज के लिए एक ऐतिहासिक क्षण था।
इस जीत के साथ, दिव्या को एक और अप्रत्याशित उपहार मिला: ग्रैंडमास्टर का खिताब। “मैं टूर्नामेंट में आने से पहले एक भी नॉर्म नहीं रखती थी, और मैं बस यही सोच रही थी कि मुझे अपना नॉर्म कब मिलेगा, और अब मैं एक ग्रैंडमास्टर बन गई हूँ…” उनकी इस बात में उनके आश्चर्य और खुशी दोनों का मिश्रण था। तीन नॉर्म हासिल करने की लंबी प्रक्रिया से गुजरने के बजाय, दिव्या ने सीधे विश्व कप जीतकर यह मुश्किल पड़ाव पार कर लिया। वह भारत की 88वीं ग्रैंडमास्टर हैं, और इन 88 में से केवल चौथी महिला हैं। इस प्रक्रिया में, उन्होंने भारत की तीन अन्य महिला ग्रैंडमास्टरों में से दो (कोनेरू हम्पी और हरिका) को हराया, जो उनकी जीत के महत्व को और बढ़ा देता है।
भविष्य की संभावनाएं: यह तो बस शुरुआत है!
दिव्या अभी अपने सर्वश्रेष्ठ फॉर्म से काफी दूर हैं – उन्हें एंडगेम में और अधिक तेज होने और फायदे वाली स्थितियों को और अधिक बार भुनाने की जरूरत है – लेकिन वह इस बात को जानती हैं। अच्छी बात यह है कि उम्र उनके पक्ष में है, और अगले साल के कैंडिडेट्स टूर्नामेंट में वह शायद सबसे कम उम्र की खिलाड़ी होंगी।
“अभी मेरे लिए बोलना मुश्किल है। इसका बहुत मतलब है, लेकिन निश्चित रूप से बहुत कुछ हासिल करना बाकी है,” दिव्या ने जीत के बाद कहा। “मुझे उम्मीद है कि यह सिर्फ शुरुआत है।” और हाँ, खिलाड़ियों के लिए विश्व कप चैंपियन बनने से बेहतर शुरुआत भला क्या हो सकती है? यह भारतीय शतरंज के लिए एक उज्ज्वल भविष्य का संकेत है, जहाँ दिव्या जैसे सितारे देश का नाम रोशन करने के लिए तैयार हैं। उनकी यह जीत सिर्फ एक खिताब नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का एक नया अध्याय है।