शतरंज की बिसात पर एक नया सितारा जगमगा उठा है, जिसने न केवल 2025 फाइड महिला शतरंज विश्व कप का खिताब अपने नाम किया, बल्कि भारत की 88वीं ग्रैंडमास्टर बनने का गौरव भी हासिल किया। जी हाँ, हम बात कर रहे हैं दिव्या देशमुख की, जिन्होंने एक रोमांचक फाइनल मुकाबले में अपनी अनुभवी हमवतन कोनेरू हम्पी को टाई-ब्रेक में मात देकर यह ऐतिहासिक उपलब्धि दर्ज की। यह केवल एक जीत नहीं, बल्कि भारतीय शतरंज के भविष्य के लिए एक उज्ज्वल संकेत है, जो युवा प्रतिभा के अदम्य साहस और दृढ़ संकल्प को दर्शाता है।
एक पीढ़ीगत संघर्ष का महासंग्राम
फाइनल मुकाबला दो भारतीय शतरंज दिग्गजों के बीच का संघर्ष था – एक ओर कोनेरू हम्पी, दशकों के अनुभव और कई अंतरराष्ट्रीय खिताबों से सजी हुई; दूसरी ओर दिव्या देशमुख, जो अभी अपनी यात्रा की शुरुआत में हैं लेकिन हर चाल में एक जोशीला आत्मविश्वास झलकाती हैं। क्लासिकल खेलों में दो शांत ड्रा के बाद, निर्णायक घड़ी टाई-ब्रेक के रैपिड गेम्स में आ गई। दिव्या ने पहले रैपिड गेम में सफेद मोहरों के साथ शुरुआत की, लेकिन हम्पी की ठोस रक्षा ने उन्हें कोई स्पष्ट बढ़त नहीं लेने दी। 81 चालों के बाद, वह खेल भी ड्रॉ पर समाप्त हुआ, जिससे तनाव और बढ़ गया।
दूसरे रैपिड गेम में, दोनों खिलाड़ियों ने 40 चालों तक लगभग 99% की सटीकता बनाए रखी, जो उनकी असाधारण एकाग्रता और कौशल को दर्शाता है। लेकिन शतरंज की बिसात पर एक छोटी सी चूक भी खेल का रुख मोड़ सकती है, और ऐसा ही हुआ। अनुभवी हम्पी ने कुछ गलतियाँ कीं, खासकर एंडगेम में, जिससे दिव्या को फायदा उठाने का मौका मिल गया। 75वीं चाल पर, जब हम्पी एक प्यादा पीछे थीं और रूक एंडगेम दिव्या के पक्ष में झुका हुआ था, तो उन्होंने हार मान ली।
“यह निश्चित रूप से बहुत मायने रखता है। अभी और बहुत कुछ हासिल करना है। मुझे उम्मीद है कि यह तो बस शुरुआत है।”
– दिव्या देशमुख, फाइड के आधिकारिक प्रसारण पर
ग्रैंडमास्टर का ताज: एक अप्रत्याशित यात्रा
दिव्या के लिए यह जीत केवल विश्व कप खिताब तक ही सीमित नहीं थी, बल्कि इसने उन्हें भारत की 88वीं ग्रैंडमास्टर भी बना दिया। वह यह प्रतिष्ठित उपाधि हासिल करने वाली केवल चौथी भारतीय महिला हैं, जो भारतीय महिला शतरंज के इतिहास में एक मील का पत्थर है। यह उपलब्धि इस मायने में और भी remarkable है क्योंकि दिव्या ने स्वयं टूर्नामेंट से पहले कहा था कि उनके पास एक भी ग्रैंडमास्टर नॉर्म नहीं था। उनके शब्दों में, “इस टूर्नामेंट से पहले, मैं केवल यह देख रही थी कि मैं एक नॉर्म कहाँ हासिल कर सकती हूँ, और अब मैं ग्रैंडमास्टर हूँ।” नियति का यह खेल कभी-कभी वाकई हैरान कर देने वाला होता है!
दिलचस्प बात यह है कि दिव्या ने अपनी जीत के बाद एंडगेम की अपनी `कमी` पर मज़ाक करते हुए कहा, “मुझे निश्चित रूप से एंडगेम को बेहतर ढंग से सीखने की ज़रूरत है।” यह हास्यबोध उनके भीतर के चैंपियन की विनम्रता और आत्मविश्वास को दर्शाता है। यह जीत उनके करियर का अब तक का सबसे बड़ा दिन था, जिसकी खुशी उनके आँसुओं और अपनी माँ के साथ गर्मजोशी भरे आलिंगन में स्पष्ट रूप से देखी जा सकती थी।
भारतीय शतरंज का बढ़ता कद
दिव्या देशमुख की यह जीत भारतीय शतरंज के लिए एक ऐतिहासिक क्षण है। यह दर्शाता है कि भारत में युवा प्रतिभाओं की कोई कमी नहीं है, और वे उच्चतम स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम हैं। कोनेरू हम्पी जैसे अनुभवी खिलाड़ी, जिन्होंने वर्षों तक भारतीय शतरंज को गौरवान्वित किया है, और दिव्या देशमुख जैसी नई पीढ़ी के सितारे, दोनों ही वैश्विक मंच पर देश का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। इस विश्व कप में दोनों भारतीय खिलाड़ियों का फाइनल तक पहुंचना ही अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि थी, क्योंकि दोनों ने पहले ही अगले साल के महिला कैंडिडेट्स टूर्नामेंट में अपनी जगह पक्की कर ली थी।
यह जीत दिव्या को अलेक्जेंड्रा कोस्टेनियुक और अलेक्जेंड्रा गोर्याचकिना जैसे दिग्गजों की सूची में शामिल करती है, जिन्होंने पहले यह खिताब जीता था। यह उनकी क्षमता का प्रमाण है और उन्हें भविष्य में और भी बड़ी ऊँचाइयाँ छूने के लिए प्रेरित करेगा। भारतीय शतरंज के प्रशंसक अब इस युवा प्रतिभा से और अधिक उम्मीदें पाल रहे हैं, और निश्चित रूप से, दिव्या अपने खेल से उन्हें निराश नहीं करेंगी।
दिव्या देशमुख की यह शानदार उपलब्धि हमें याद दिलाती है कि दृढ़ संकल्प, कड़ी मेहनत और सही समय पर मिली थोड़ी सी किस्मत, किसी भी सपने को हकीकत में बदल सकती है। भारतीय शतरंज एक स्वर्णिम युग में प्रवेश कर रहा है, और दिव्या देशमुख इस यात्रा की एक महत्वपूर्ण मशालवाहक हैं।