ढाका में क्रिकेट का मैदान खाली: ‘अवैध’ चुनाव पर गरमाई सियासी पिच

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बांग्लादेश क्रिकेट में गहराया संकट: आयोजकों का पूर्ण बहिष्कार

क्रिकेट, बांग्लादेश की रग-रग में बसा एक जुनून है। सड़कों पर, गलियों में, मैदानों में, हर जगह इसकी गूँज सुनाई देती है। लेकिन इन दिनों ढाका के क्रिकेट मैदानों पर एक अजीब सी खामोशी छाई हुई है। यह खामोशी किसी बारिश या खराब पिच की वजह से नहीं, बल्कि क्रिकेट की प्रशासनिक गलियों से उठी एक सियासी आँधी का परिणाम है। ढाका क्लब क्रिकेट आयोजकों एसोसिएशन (DCCOA) ने बांग्लादेश क्रिकेट बोर्ड (BCB) के हालिया चुनावों को “अवैध” करार देते हुए सभी स्तर के क्रिकेट के बहिष्कार की घोषणा कर दी है। एक ऐसा कदम, जिसने पूरे देश के क्रिकेट प्रेमियों को असमंजस में डाल दिया है।

विवाद की जड़: एक चुनाव, अनेक सवाल

यह पूरा विवाद बांग्लादेश क्रिकेट बोर्ड के उस चुनाव से शुरू हुआ, जिसमें अमीनुल इस्लाम (जिन्हें `बुलबुल` के नाम से भी जाना जाता है) बोर्ड अध्यक्ष चुने गए। DCCOA से जुड़े कई प्रमुख क्लबों और जिलों के प्रतिनिधियों का आरोप है कि यह चुनाव पूरी तरह से अवैध था। उनकी मानें तो, इस चुनावी प्रक्रिया में सरकारी हस्तक्षेप साफ तौर पर देखा गया, जिसने लोकतांत्रिक मूल्यों की धज्जियाँ उड़ा दीं।

सबसे दिलचस्प बात यह है कि बांग्लादेश क्रिकेट के दिग्गज खिलाड़ी तमीम इकबाल ने, जो खुद चुनाव से हट गए थे, इस प्रक्रिया की वैधता पर गंभीर सवाल उठाए हैं। उन्होंने यह कहकर सबको चौंका दिया कि “यह हास्यास्पद था कि 42 क्लब वोटों में से 34 ई-वोटिंग के माध्यम से डाले गए, जबकि वे सभी मतदाता मतदान केंद्र पर शारीरिक रूप से मौजूद थे।” एक खिलाड़ी के तौर पर, तमीम को शायद लगा होगा कि खेल मैदान पर नियम सख्त होते हैं, पर प्रशासन की पिच पर अक्सर नियम बदल जाते हैं, और शायद डिजिटल सहूलियतें भी कभी-कभी अजीबोगरीब सवाल खड़े कर देती हैं।

डीसीसीओए का अटल रुख: कोई पहचान नहीं, कोई बात नहीं

मोहम्मडन स्पोर्टिंग क्लब के काउंसलर मसूदुज्जमां ने डीसीसीओए के रुख को स्पष्ट करते हुए कहा, “हम इस चुनाव को मान्यता नहीं देते। किसी भी चर्चा का कोई मतलब नहीं है।” उन्होंने बुलबुल को “अवैध अध्यक्ष” करार दिया और घोषणा की कि अब से वे किसी भी तरह की लीग या जिला क्रिकेट में भाग नहीं लेंगे। विरोध करने वाले आयोजकों का दावा है कि उनके साथ 38 क्लब हैं और यह संख्या दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। यह एक स्पष्ट संदेश है कि वे अपने रुख पर अटल हैं और किसी भी कीमत पर पीछे हटने को तैयार नहीं हैं।

मसूदुज्जमां के शब्दों में, “मान्यता के बाद ही चर्चा होती है। हम इस चुनाव या उसके परिणाम को नहीं पहचानते। इसलिए बातचीत का कोई अवसर ही नहीं है।”

यह स्थिति ऐसी बन गई है, जैसे दो टीमें मैदान पर खड़ी हों, लेकिन एक दूसरी टीम के कप्तान को ही न माने। ऐसे में खेल शुरू कैसे होगा, यह सवाल गहराता जा रहा है, और दर्शक दीर्घा में बैठे क्रिकेट प्रेमी बस इंतजार कर रहे हैं कि कब यह गतिरोध टूटेगा।

मैदान से दूर, भविष्य अधर में: खिलाड़ियों पर असर

इस बहिष्कार का सबसे सीधा और गंभीर असर उन खिलाड़ियों पर पड़ रहा है, जो अपने सपनों को पंख देने के लिए क्लब और जिला स्तर की लीगों पर निर्भर करते हैं। ढाका थर्ड डिवीजन क्रिकेट लीग, जो पहले ही BCB चुनाव के कारण पुनर्निर्धारित की गई थी, अब और भी अनिश्चितता के भंवर में फँस गई है। ये लीगें युवा प्रतिभाओं के लिए एक मंच होती हैं, जहाँ से वे राष्ट्रीय टीम तक का सफर तय कर सकते हैं। लेकिन जब मैदान ही बंद हो जाएँ, तो फिर प्रतिभाएँ कहाँ अपनी चमक बिखेरेंगी?

प्रशासकीय लड़ाई में खेल और खिलाड़ियों का भविष्य दांव पर लग गया है। यह विडंबना ही है कि क्रिकेट को आगे ले जाने का दावा करने वाले ही, अनजाने में, उसकी नींव को कमजोर कर रहे हैं। क्रिकेट कमेटी ऑफ ढाका मेट्रोपोलिस (CCDM) ने, जो ढाका में सभी क्लब-आधारित प्रतियोगिताओं का आयोजन करती है, अपनी प्रतिबद्धता दोहराई है कि वे 2025-26 के घरेलू कैलेंडर के अनुसार लीगों का आयोजन करेंगे। उन्होंने खिलाड़ियों के हितों और कल्याण को सर्वोच्च प्राथमिकता बताया है। यह बयान एक उम्मीद की किरण तो दिखाता है, लेकिन जब प्रमुख आयोजक ही बहिष्कार पर अड़े हों, तो सवाल यह उठता है कि ये लीगें किस तरह आयोजित होंगी और उनमें कौन भाग लेगा। यह बयान कुछ वैसा ही है, जैसे कोई खाली मैदान में ही फुटबॉल मैच करवाने का ऐलान कर दे!

क्रिकेट की पिच पर सियासी बाउंसर्स

यह सिर्फ एक बहिष्कार नहीं, बल्कि बांग्लादेश क्रिकेट प्रशासन में एक गहरी दरार का संकेत है। यह विवाद खेल के मैदान से निकलकर अब राजनीति की गलियों में पहुँच गया है, जहाँ हर कोई अपने `नैतिक` पक्ष को सही साबित करने में जुटा है। एक तरफ नव-निर्वाचित बोर्ड अपनी वैधता स्थापित करने की कोशिश कर रहा है, तो दूसरी तरफ अनुभवी आयोजक अपनी आवाज बुलंद कर रहे हैं।

इस पूरी स्थिति में सबसे बड़ी विडंबना यह है कि जब पूरी दुनिया में क्रिकेट की लोकप्रियता बढ़ रही है, बांग्लादेश जैसा क्रिकेट-प्रेमी देश अंदरूनी कलह से जूझ रहा है। क्या यह विवाद एक ऐसे समाधान की ओर बढ़ेगा, जो सभी हितधारकों को स्वीकार्य हो, या फिर यह बांग्लादेश क्रिकेट को और गहरे संकट में धकेल देगा? समय ही बताएगा। फिलहाल, ढाका के क्रिकेट मैदानों पर खामोशी कायम है, और यह खामोशी कई अनुत्तरित सवालों को जन्म दे रही है, जिनके जवाब शायद खेल के मैदान से नहीं, बल्कि किसी कॉन्फ्रेंस रूम से ही निकलेंगे।