उनसे पूछा गया कि एक पूर्व विदेश मंत्री के रूप में आप प्रधानमंत्री की भारत यात्रा को कैसे देखते हैं? उन्होंने कहा, ‘यह दौरा नेपाल के लिए फायदेमंद नहीं था। जिस तरह से समझौते हुए हैं, अगर ध्यान से देखें तो साफतौर पर इन फैसलों से भारतीय प्राथमिकताओं को ठोस रूप मिला है, जबकि नेपाल की प्राथमिकताओं पर चर्चा नहीं हुई। जब कुछ चर्चा हुई भी तो उसमें अस्पष्टता थी। इसलिए यह नेपाली पक्ष की अपेक्षाओं को पूरा करने में विफल रहा। प्रधानमंत्री के दावे के विपरीत कोई ‘ऐतिहासिक सफलता’ हासिल नहीं हुई है।’
‘नेपाल और भारत के बीच भरोसे की कमी’
उनसे पूछा गया, ‘आपके अनुसार द्विपक्षीय चर्चाओं का एजेंडा क्या होना चाहिए था?’ उन्होंने कहा, ‘मैं नेपाल और भारत के बीच भरोसे की कमी देखता हूं। नेपाल के प्रधानमंत्री को भारत जाने के लिए पांच महीने तक इंतजार करना पड़ा। ऐसा लग रहा था कि यह यात्रा हमारे आग्रह पर हो रही है। हमारे पास तैयारी के लिए पांच महीने थे, हम इसे ‘आधिकारिक यात्रा’ के बजाय ‘राजकीय यात्रा’ बना सकते थे। इससे पता चलता है कि कहीं न कहीं गैप है।’
कैसी होनी चाहिए थी यात्रा?
ग्यावली ने कहा, ‘इस यात्रा को भरोसे की कमी को पूरा करने और आपसी विश्वास का माहौल बनाने पर केंद्रित होना चाहिए था। नेपाल क्या चाहता है और भारत की चिंताएं क्या हैं इस पर खुली बातचीत होनी चाहिए थी। इसकी शुरुआत राजनीतिक एजेंडे से हो सकती थी।’ उन्होंने कहा कि कालापानी का मुद्दा अभी तक सुलझा नहीं है। नेपाल की सबसे बड़ी चिंता व्यापार घाटा है, जो गंभीर स्थिति में है। एक व्यापार संधि आवश्यक थी लेकिन इसे भी हासिल नहीं किया जा सका।