टोक्यो: चीन में कोरोना वायरस अपना कहर बरपा रहा है। लाशों का ढेर लगता जा रहा है, लेकिन चीन की जिनपिंग सरकार अपना गैर जिम्मेदाराना रवैया अपनाने से पीछे नहीं हट रही है। चीन मौतों का आंकड़ा दुनिया के सामने नहीं रख रहा है, जिससे सही स्थिति का पता नहीं चल पा रहा है। इस बीच उसने बॉर्डर भी पूरी दुनिया के लिए खोल दिए हैं और अपने नागरिकों को चीन से बाहर यात्रा की इजाजत दे दी है, जिससे लगातार बाकी देश चिंतित हैं। चीन भले ही कोरोना के मामलों को छिपाए लेकिन उसके परिणाम दिखने लगे हैं, जापान में एक दिन में 400 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई, जिससे माना जा रहा है कि दुनिया भर में एक बार फिर कोरोना बुरी तरह फैलने वाला है। जापान में बुधवार को कोरोना संक्रमित 415 मरीजों की मौतें दर्ज कीं, जो एक दिन में अब तक की सबसे बड़ी संख्या है। स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, देश में बुधवार को 216,219 नए कोविड मामले सामने आए, जो एक सप्ताह पहले की तुलना में 4 प्रतिशत अधिक है। लेटेस्ट कोविड टैली इस साल अगस्त में लगभग 260,000 प्रति दिन के रिकॉर्ड उच्च स्तर के करीब है। देशभर में 28 मिलियन से अधिक मामलों के साथ जापान में वायरस से मरने वालों की संख्या 55,000 से अधिक हो गई है।
जापान में एक बार फिर बढ़ रहा कोरोना
जापान टाइम्स ने बताया कि कोविड वायरस का एक बार फिर बढ़ना विदेश से व्यक्तिगत यात्रियों पर प्रतिबंध लगाने के बाद आया है। रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘इसने घरेलू पर्यटन को बढ़ावा देने में मदद के लिए निवासियों के लिए एक सब्सिडी कार्यक्रम भी शुरू किया।’’ जापान में टूरिस्ट आगमन नवंबर में लगभग 10 लाख तक पहुंच गया, देश के पहले पूरे महीने के बाद कोविड ने दो साल से अधिक समय तक पर्यटन को प्रभावी रूप से रोक दिया।
जापान में कोरोना की आठवीं लहर
कुछ अन्य देशों के विपरीत, सरकार ने जापान में मास्क पहनना कभी भी अनिवार्य नहीं किया गया है। 11 अक्टूबर को जापान ने दुनिया के कुछ सख्त सीमा नियंत्रणों को समाप्त कर दिया। प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा ने अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए पर्यटन पर भरोसा जताया। जापान इस समय हर दिन 2 लाख से अधिक नए कोविड मामलों की रिपोर्ट कर रहा है। देश महामारी की आठवीं लहर से गुजर रहा है।
Image Source : PTI
फ्लाइट ATR-72 क्रैश में मारे गए थे 72 लोग
Nepal Plane Crash: नेपाल में हुए प्लेन क्रैश की वजह सामने आ गई है। प्लेन क्रैश की इनवेस्टिगेशन कर रही जांच समिति ने बताया कि यति एयरलाइंस (Yeti Airlines) के ATR-72 विमान का फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर और कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डर से प्लेन के क्रैश होने के कारणों का पता लगा है। जांच समिति ने बताया कि 15 जनवरी को पोखरा में विमान के दुर्घटनाग्रस्त होने के पीछे इंजन में खराबी के संकेत मिले हैं।
फ्लाइट ATR-72 क्रैश में मारे गए थे 72 लोग
गौरतलब है कि यति एयरलाइन की फ्लाइट नंबर- 691 त्रिभुवन अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से 15 जनवरी को उड़ान भरने के बाद पोखरा में उतरने से कुछ मिनट पहले ही नए और पुराने हवाई अड्डे के बीच बहने वाली सेती नदी में दुघर्टनाग्रस्त हो गई थी। इस क्रैश में एटीआर-72 मॉडल के विमान में सवार सभी 72 लोगों की मौत हो गई थी। मारे गए यात्रियों में 55 नेपाली और पांच भारतीय सहित 15 विदेशी नागरिक और चालक दल के चार सदस्य थे।
क्रैश में 6 यात्रियों की नहीं हो पाई पहचान, डीएनए जांच शुरू बता दें कि नेपाल के अधिकारियों ने जनवरी में हुई विमान दुर्घटना में जान गंवाने वाले उन छह यात्रियों की डीएनए जांच शुरू की जिनके अवशेषों की अबतक पहचान नहीं हो पाई थी। त्रिभुवन विश्वविद्यालय शिक्षण अस्पताल के फॉरेंसिक चिकित्सा विभाग के प्रमुख डॉ.गोपाल कुमार चौधरी ने बताया, ‘‘पोखरा विमान दुर्घटना में मारे लोगों में से छह की पहचान करने के लिए डीएनए जांच की जरूरत थी क्योंकि उनके शव बुरी तरह जल गए हैं।’’ अधिकारियों ने बताया कि जांच की प्रक्रिया केंद्रीय पुलिस फारेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला में शुरू हुई है। सूत्रों ने बताया कि परिवार के नमूने और शवों की हड्डियों और दांतों से डीएनए नमूने लेकर जांच के लिए भेजे गए हैं। उन्होंने बताया कि जांच की प्रक्रिया पूरी होने में दो सप्ताह का समय लगेगा।
India TV पर हिंदी में ब्रेकिंग न्यूज़ Hindi News देश-विदेश की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट और स्पेशल स्टोरी पढ़ें और अपने आप को रखें अप-टू-डेट। Asia News in Hindi के लिए क्लिक करें विदेश सेक्शन
नई दिल्ली। चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआइ) परियोजना ने दुनिया के अधिकांश निम्न-मध्यम वर्ग वाले देशों को कंगाल बना दिया है। जबकि चीन ने 150 देशों के साथ अपने वित्तीय और राजनीतिक दबदबे का लाभ उठाने की पहल में इस पर लगभग 1 ट्रिलियन डॉलर का निवेश किया है। इस योजना पर हामी भरने के बाद कम आय वाले देशों की आर्थिक स्थिति गंभीर और बदतर हो गई है। दुनिया के 150 देशों और 32 अंतरराष्ट्रीय संगठनों के विपरीत अकेले भारत चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की महत्वाकांक्षी बीआरआइ परियजोना से बाहर रहा। इस पर हस्ताक्षर करने का मतलब भारत के लिए साफ था कि विशेषकर पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) में चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीईसी) की परियोजनाओं को स्वीकार करना। जो कि क्षेत्रीय अखंडता का स्पष्ट उल्लंघन था।
दरअसल चीन के बीआरआइ प्रोजेक्ट पर जिन देशों ने हस्ताक्षर किया, उन सबको इस प्रोजेक्ट के लिए शी जिनपिंग ने महंगी ब्याज दरों पर कर्ज दिया। साथ ही कई ऐसी शर्तें थोप दीं, जिससे निम्न मध्यम वर्ग वाले देशों की आर्थिक हालत खस्ता होने लगी और महंगाई ने उनकी कमर तोड़ दी। श्रीलंका,बांग्लादेश और पाकिस्तान जैसे देश तो पूरी तरह कंगाल हो गए। इससे कई देशों में अब चीन के इस परियोजना के खिलाफ आवाज उठने लगी है। बांग्लादेश ने तो साफ चीन के बीआरआइ को निम्न-मध्यम आय वर्ग वाले देशों की आर्थिक स्थिति के लिए बड़ा खतरा बताया है। भारत शुरू से ही बीआरआइ से दुनिया को को आर्थिक के साथ ही साथ सुरक्षा और संप्रभुता के नुकसान का भी खतरा जताता रहा है। आज भारत की भविष्यवाणी सच साबित होती दिख रही है। इससे चीन का यह प्रोजेक्ट भी खतरे में पड़ने लगा है।
भारत ने 2016 में ही बीआरआइ का किया था कड़ा विरोध
नरेंद्र मोदी की सरकार ने 13 मई, 2017 को BRI पर एक औपचारिक बयान जारी किया था, लेकिन इससे एक साल पहले ही मार्च 2016 में तत्कालीन विदेश सचिव सुब्रह्मण्यम जयशंकर ने कहा था कि नई दिल्ली बीजिंग को बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के नाम पर अपने रणनीतिक विकल्पों को सख्त करने की अनुमति नहीं देगी। राष्ट्रपति शी द्वारा बीआरआई परियोजना शुरू करने के एक दशक बाद अपने मूल हितों की रक्षा करने और अकेले खड़े होने का साहस रखने का भारत का निर्णय मोदी सरकार के नेतृत्व में पश्चिम सहित अन्य देशों के साथ सही साबित हुआ है।
चीन ने कम आय वाले देशों पर लादा है बड़ा कर्ज
कम आय वाले देशों पर 2022 में चीन का 37% कर्ज बकाया है। यह दुनिया के बाकी हिस्सों में द्विपक्षीय कर्ज का 24% है। यानि तथ्य यह है कि 42 देश वास्तव में प्रमुख बैंकों और राज्य के स्वामित्व वाले उद्यमों द्वारा अपारदर्शी संचालन के माध्यम से चीन के प्रति अधिक ऋणी हो गए हैं। भारतीय रणनीतिक योजनाकारों के अनुसार ऋण समझौतों को जानबूझकर सार्वजनिक दायरे से बाहर रखा गया है। सड़क-रेल-बंदरगाह-भूमि बुनियादी ढाँचे के वित्तपोषण के लिए चीनी वैश्विक परियोजनाएं इसमें भाग लेने वाले देशों के लिए ऋण का एक प्रमुख स्रोत रही हैं। इसमें पाकिस्तान 77.3 बिलियन डॉलर के ऋण के साथ, अंगोला ($ 36.3 बिलियन), इथियोपिया ($ 7.9 बिलियन) का ऋण है। ), केन्या (7.4 अरब डॉलर) और श्रीलंका 7 अरब डॉलर का ऋणी है। उक्त आंकड़ा बीआरआइ डेटा के अनुसार और चीन पर नजर रखने वालों द्वारा संकलित है।
मालदीव और बांग्लादेश भी बुरे फंसे
चीना का मालदीव पर ऋण उस देश के वित्त मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार 2022 की पहली तिमाही के अंत तक बढ़कर 6.39 बिलियन डॉलर हो गया। यह मालदीव के सकल घरेलू उत्पाद का 113% है, जिसमें चीन सिनामाले पुल और एक नए हवाई अड्डे जैसी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को वित्तपोषित करता है। बांग्लादेश पर बीजिंग के कुल विदेशी ऋण का 6% है। लगभग 4 बिलियन डॉलर बकाया है। ढाका अब आइएमएफ से 4.5 अरब डॉलर का पैकेज मांग रहा है। इसी तरह चीन के कर्ज में फंसने के बाद जिबूती ने चीन को एक नौसैनिक अड्डा दे दिया। अंगोला के पास सबसे बड़ा पुनर्भुगतान बोझ है, क्योंकि ऋण सकल राष्ट्रीय आय (GNI) के 40% से अधिक है।
लाओस और मालदीव दोनों पर भी चीन के जीएनआई का 30% का कर्ज है और लाओस में नई चीनी निर्मित रेलवे लाइन पहले से ही वियनतियाने में आर्थिक गड़बड़ी पैदा कर रही है। श्रीलंका पहले से ही संप्रभु ऋण पर चूक कर चुका है, जीएनआई का 9% चीन पर बकाया है, और अफ्रीका पर बीजिंग का 150 बिलियन डॉलर से अधिक का बकाया है, साथ ही जाम्बिया भी ऋण पर चूक कर रहा है, देश पर चीनी बैंकों का लगभग 6 बिलियन डॉलर का बकाया है।
बीआरआइ वाले देशों में ऋण संकट
भले ही राष्ट्रपति शी बीआरआइ के माध्यम से 150 से अधिक देशों को नियंत्रित करने के लिए खुश हो सकते हैं,लेकिन उसके प्राप्तकर्ता देशों में ऋण संकट चीन के अपने वित्त को प्रभावित कर सकता है। क्योंकि इसे चूक करने वाले देशों से ऋण चुकौती में गंभीर कटौती करनी होगी। पिछले साल चीन में अचल संपत्ति बाजार के पतन ने पहले ही बैंकिंग प्रणाली में तनाव पैदा कर दिया है। यह दोनों का परिणाम है कि चीन ने 2022 में बीआरआई देशों में अपने गैर-वित्तीय प्रत्यक्ष निवेश को धीमा कर दिया है, जो जनवरी से नवंबर तक 19.16 अरब डॉलर था। 2015 से चीन ने $1 ट्रिलियन की कुल लागत पर 50,527 अनुबंधों पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसमें प्रति वर्ष औसत अनुबंध मूल्य $127.16 बिलियन है। हालांकि बीजिंग ने 150 देशों में निवेश किया है, सिंगापुर, इंडोनेशिया, मलेशिया, वियतनाम, संयुक्त अरब अमीरात, पाकिस्तान, सर्बिया, थाईलैंड, बांग्लादेश, लाओस और कंबोडिया लगातार प्राप्तकर्ता रहे हैं।
इस्लामाबाद: भारत की IT इंडस्ट्री का लोहा पूरी दुनिया मानती है। भारत के दुश्मन भी यह मानते हैं कि दुनिया भर के कंप्यूटर बिना भारतीय इंजीनियरों के नहीं चल सकते। पाकिस्तानी अवाम पहले ही इस बात को बिना किसी संदेह मानती थी। लेकिन अब पाकिस्तान के पूर्व मंत्री भी भारत के IT सेक्टर की खुल कर तारीफ करने से खुद को रोक नहीं पा रहे हैं। पाकिस्तान के पूर्व वित्त मंत्री मिफ्ताह इस्माइल को पिछले साल सितंबर में हटा दिया गया था। उन्होंने कहा है कि भारत के पास IIT है, जिससे उसकी तरक्की हो रही है। दरअसल मिफ्ताह इस्माइल ने एक ट्वीट कर कहा था कि अर्थव्यवस्था को लेकर लोग उनसे कोई भी सवाल पूछ सकते हैं। वह उसका जवाब देंगे। इस पर उनसे एक यूजर ने कहा, ‘हमारी अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने का सबसे अच्छा तरीका आईटी सेक्टर है। 90 के दशक में भारत ने बड़े बदलाव किए और आईटी सेक्टर का दिग्गज बन गया। आईटी सेक्टर का भारत की अर्थव्यवस्था में 2025 तक 10 फीसदी योगदान का अनुमान है। हमारा आईटी सेक्टर सिर्फ 1 फीसदी का ही योगदान क्यों देता है?’ इस पर मिफ्ताह इस्माइल ने एक ऐसा जवाब दिया, जिसे सुन कर हर भारतीय को गर्व होगा।
क्या बोले मिफ्ताह इस्माइल
मिफ्ताह इस्माइल ने भारत के आईटी सेक्टर के आगे बढ़ने पर भारतीय शिक्षण संस्थानों की तारीफ की। उन्होंने कहा, ‘भारत का आईटी सेक्टर इसलिए आगे है, क्योंकि भारत के में IIT और कई महान विश्ववविद्यालय है और हमारे पास नहीं। खराब कानून व्यवस्था के कारण पाकिस्तान में विदेशी निवेश नहीं करते और न ही सर्विस से जुड़े ऑफिस खोलते हैं।’ भारत में आईटी उद्योग सबसे तेजी से बढ़ते क्षेत्रों में से एक है। इसमें सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट, इंजीनयरिंग सर्विस, डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन और क्लाउड कंप्यूटिंग समेत एक विविध श्रेणी शामिल है।
पाकिस्तान के बर्बाद होने की तारीख आई सामने
IIT का लोहा मानती है दुनिया
भारत के बेहतरीन और कुशल इंजीनियरों ने दुनिया के आईटी सेक्टर पर कब्जा जमा रखा है। भारत का अनुकूल कारोबारी माहौल इसके विकास की एक बड़ी वजह है। पाकिस्तान के कई यूट्यूब चैनल ने जब अपनी अवाम से पूछा कि आखिर भारत आगे क्यों है, तो उन्होंने साफ तौर पर इसके लिए भारत की आईटी इंडस्ट्री को वजह बताया। इसके बाद जब उनसे भारत की आईटी इंडस्ट्री के आगे होने का कारण पूछा गया तो उन्होंने कहा कि इसके पीछे IIT का हाथ है। IIT का लोहा पूरी दुनिया मानती है। इसीलिए कई देश चाहते हैं कि उनके यहां भी IIT अपनी शाखा खोले। संयुक्त अरब अमीरात में IIT का एक कैंपस खुलेगा।