गैरी कास्पारोव, शतरंज के महानतम खिलाड़ियों में से एक, ने कुछ महीने पहले जो कहा था, वह अब वैश्विक शतरंज की दुनिया में गूँज रहा है:
“विश्व शतरंज अब `विशी के बच्चों` के युग में है!”
कौन सोच सकता था कि एक दिन भारतीय शतरंज की बिसात पर ऐसा भी मंज़र देखने को मिलेगा? वह मंज़र, जहाँ हर तरफ युवा भारतीय प्रतिभाएँ शीर्ष सम्मानों के लिए प्रतिस्पर्धा करती दिख रही हैं, और सोशल मीडिया पर उनकी बचपन की तस्वीरें, विश्वनाथन आनंद से ट्रॉफी लेते हुए, वायरल हो रही हैं। यह सिर्फ एक संयोग नहीं, बल्कि दशकों की मेहनत, दूरदर्शिता और एक नई पीढ़ी के अदम्य साहस का परिणाम है।
गुकेश डी: सबसे कम उम्र के विश्व चैंपियन
हाल ही में, गुकेश डोम्मारजू ने यह साबित कर दिया कि उम्र और अनुभव सिर्फ आंकड़े होते हैं, जब हौसले बुलंद हों। 2024 कैंडिडेट्स टूर्नामेंट में वह सबसे कम उम्र के खिलाड़ी थे, जहाँ उनसे कहीं ज़्यादा अनुभवी और उच्च रेटेड खिलाड़ी मौजूद थे। लेकिन गुकेश ने न उम्र की परवाह की, ना रेटिंग की। उन्होंने फैबियानो कारुआना, हिकारू नाकामुरा और इयान नेपोम्नियाचची जैसे दिग्गजों को एक-एक कर परास्त किया। और फिर, मौजूदा विश्व चैंपियन डिंग लिरेन को हराकर, वह सबसे कम उम्र के विश्व चैंपियन बनने का गौरव हासिल करने वाले खिलाड़ी बन गए। यह सिर्फ एक जीत नहीं थी; यह बेबाक और दृढ़ निश्चय के साथ `आगे बढ़ने` की भारतीय मानसिकता का प्रतीक थी। उन्होंने ड्रॉ की ओर बढ़ते एक गेम को भी, अपनी ज़िद से जीत में बदल दिया। यही तो है विश्व चैंपियन की निशानी!
दिव्या देशमुख: महिला शतरंज में एक नया अध्याय
गुकेश की इस ऐतिहासिक जीत के कुछ ही हफ़्तों बाद, फिडे महिला वर्ल्ड कप में दिव्या देशमुख ने इतिहास रचा। जॉर्जिया के बातुमी में हुए इस टूर्नामेंट के फाइनल में उन्होंने दिग्गज कोनेरू हम्पी को हराकर न केवल अपने करियर का सबसे बड़ा खिताब जीता, बल्कि ग्रैंडमास्टर का खिताब भी हासिल किया। यह जीत भारतीय महिला शतरंज के लिए एक मील का पत्थर साबित हुई है, क्योंकि इसने महिला शतरंज में दशकों से चले आ रहे चीनी दबदबे को चुनौती दी है। पिछले 34 वर्षों में, चीन की छह महिला विश्व चैंपियन रही हैं और 25 वर्षों तक इस खिताब पर उनका कब्ज़ा रहा है। लेकिन युवा दिव्या ने न प्रतिष्ठा देखी, न इतिहास। उन्होंने बस अपनी प्रतिभा और दृढ़ता पर भरोसा किया, ठीक गुकेश की तरह।
एक `कन्वेयर बेल्ट` ऑफ टैलेंट
यह सिर्फ गुकेश और दिव्या तक ही सीमित नहीं है। भारतीय शतरंज अब एक अविश्वसनीय `कन्वेयर बेल्ट` बन गया है, जो लगातार प्रतिभाशाली खिलाड़ियों को तैयार कर रहा है। पुरुषों की फिडे स्टैंडर्ड रेटिंग में शीर्ष 6 में तीन भारतीय हैं, और शीर्ष 20 में विदित गुजराती और अरविंद चितंबरम जैसे खिलाड़ी भी जगह बनाने की कगार पर हैं। आर. प्रज्ञानंद और अर्जुन एरिगैसी भी शीर्ष छह में अपनी जगह बनाए हुए हैं। महिला रेटिंग में भी शीर्ष 20 में चार भारतीय खिलाड़ी शामिल हैं, जिनमें आर. वैशाली, कोनेरू हम्पी और हरिका द्रोणावल्ली शामिल हैं, जिन्होंने पिछले महिला कैंडिडेट्स टूर्नामेंट में भी हिस्सा लिया था। अब दिव्या और हम्पी की जगह पक्की हो गई है।
तेज़ समय नियंत्रण (रैपिड और ब्लिट्ज़) में भी भारतीय खिलाड़ी अपना लोहा मनवा रहे हैं। रियाद में हाल ही में संपन्न हुए ई-स्पोर्ट्स वर्ल्ड कप में अर्जुन एरिगैसी चौथे स्थान पर रहे, जहाँ उन्होंने मैग्नस कार्लसन जैसे दिग्गजों को कड़ी टक्कर दी। निहाल सरीन, जिनकी पहचान उनकी गति और ऑनलाइन शतरंज में महारत से है, भी अब ओवर-द-बोर्ड प्रदर्शन में अपनी छाप छोड़ रहे हैं।
आनंद की अमर विरासत
विश्वनाथन आनंद, जो कभी खुद इस खेल के शिखर पर थे, आज एक अभिभावक और गुरु के रूप में इन युवा प्रतिभाओं को तराश रहे हैं। वह सिर्फ एक प्रेरणास्रोत नहीं, बल्कि एक सक्रिय मार्गदर्शक हैं, जो इन `बच्चों` को विश्व पटल पर अपना वर्चस्व स्थापित करने में मदद कर रहे हैं। भारतीय शतरंज का यह वर्तमान दौर, एक तरह से आनंद की दूरदर्शिता और उनके द्वारा स्थापित की गई मजबूत नींव का ही परिणाम है।
क्या 2026 में हम एक `ऑल-इंडियन` विश्व चैंपियनशिप फाइनल देखेंगे? यह कल्पना अब असंभव नहीं लगती। भारतीय शतरंज का यह स्वर्ण युग है, जहाँ युवा प्रतिभा, आत्मविश्वास और अदम्य इच्छाशक्ति के साथ, खेल के हर प्रारूप में अपना प्रभुत्व स्थापित कर रही है। गैरी कास्पारोव की भविष्यवाणी सच हो रही है: शतरंज `घर` लौट रहा है – भारत!