अंतर्राष्ट्रीय महिला क्रिकेट के मंच पर, भारतीय टीम ने हमेशा अपनी प्रतिभा और जुझारूपन से छाप छोड़ी है। आने वाले विश्व कप में सुनहरे प्रदर्शन की उम्मीदें बंध चुकी हैं, लेकिन मैदान के अंदर एक उलझी हुई पहेली है – टीम की शीर्ष-3 बल्लेबाजी का स्ट्राइक रेट। यह एक ऐसी चुनौती है जिसे सुलझाए बिना विश्व कप के सपने को हकीकत में बदलना मुश्किल है। तो क्या है यह पहेली, और इसका समाधान क्या है? आइए, आंकड़ों की रोशनी में इस पर गहराई से नज़र डालते हैं।
सुनहरी शुरुआत, लेकिन कहाँ गई चमक?
कुछ समय पहले की बात है, जब विश्व कप से ठीक पहले, भारतीय टीम को सलामी बल्लेबाज स्मृति मंधाना का साथ देने के लिए प्रतिका रावल के रूप में एक नई प्रतिभा मिली। उनका आगमन ऐसा था मानो टीम ने सोने की खान ढूंढ ली हो। पहले महीने में ही प्रतिका ने अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में अपनी छाप छोड़ी। इसके ठीक बाद, ऑस्ट्रेलिया दौरे पर हरलीन देओल को नंबर 3 की महत्वपूर्ण भूमिका मिली। मिताली राज के संन्यास के बाद से यह स्थान लगातार बदलावों से जूझ रहा था, लेकिन हरलीन ने इसे स्थायित्व दिया। कप्तान हरमनप्रीत कौर नंबर 4 पर और जेमिमा रोड्रिग्स नंबर 5 पर, भारतीय टीम का शीर्ष-5 बल्लेबाजी क्रम कागज़ पर और शुरुआती मैचों में बेहद मजबूत दिखने लगा। वेस्टइंडीज और आयरलैंड जैसी अपेक्षाकृत कमजोर टीमों के खिलाफ, रावल और देओल ने शानदार प्रदर्शन किया, अपना पहला वनडे शतक भी जड़ा और लगातार रन बनाए। यह `हनीमून पीरियड` था, जहाँ सब कुछ ठीक लग रहा था।
जब बढ़ी चुनौतियाँ, दिखने लगीं दरारें
लेकिन क्रिकेट का मैदान सिर्फ कमजोर विरोधियों से नहीं पटा होता। असली परीक्षा तब शुरू हुई जब टीम का सामना इंग्लैंड और मौजूदा चैंपियन ऑस्ट्रेलिया जैसी मजबूत टीमों से हुआ। यहीं पर नवनिर्मित शीर्ष-क्रम की दरारें सामने आने लगीं, जिन्हें पहले रनों की चमक ने छिपा रखा था। स्मॄति मंधाना और प्रतिका रावल की सलामी जोड़ी ने 19 वनडे में 6.05 रन प्रति ओवर (RPO) की शानदार दर से रन बनाए हैं। वास्तव में, महिला वनडे में 1000 से अधिक रनों की साझेदारी करने वाली 56 जोड़ियों में, भारतीय जोड़ी एकमात्र ऐसी है जिसने एक गेंद पर एक रन से अधिक की दर से रन बनाए हैं। यह आंकड़ा अविश्वसनीय है, लेकिन इसकी एक शर्त है – जब तक मंधाना क्रीज़ पर हैं।
मंधाना पर अत्यधिक निर्भरता: एक महंगा बोझ
समस्या तब गहराती है जब स्मृति मंधाना पवेलियन लौट जाती हैं। रावल और देओल की साझेदारी में रन-रेट गिरकर मात्र 4.31 रह जाता है। कल्पना कीजिए, एक मजबूत शुरुआत के बाद पारी की गति धीमी पड़ जाती है, मानो किसी तेज़ दौड़ते घोड़े को अचानक लगाम खींच ली गई हो। इसका सीधा सा मतलब है कि टीम मंधाना पर अत्यधिक निर्भर है। यदि वह जल्दी आउट हो जाती हैं, तो रन-रेट नीचे आ जाता है, और मध्यक्रम पर दबाव बढ़ जाता है। ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ वनडे में 114 रनों की सलामी साझेदारी के बावजूद, रावल और देओल ने 53 गेंदों पर मात्र 28 रन जोड़े, जिससे टीम को वह गति नहीं मिल पाई जिसकी उसे ज़रूरत थी। इसका नतीजा? भारत ने 282 का लक्ष्य दिया जिसे ऑस्ट्रेलिया ने 35 गेंद शेष रहते 8 विकेट से आसानी से हासिल कर लिया।
हरलीन देओल: `सुरक्षित` शुरुआत जो बन जाती है `घातक`
नंबर 3 की बल्लेबाज के लिए धैर्य और दबाव को झेलने की क्षमता महत्वपूर्ण होती है, लेकिन हरलीन देओल का `सुरक्षा-प्रथम` दृष्टिकोण अक्सर उल्टा पड़ जाता है। उनकी धीमी शुरुआत अक्सर टीम के लिए `घातक` साबित होती है। वह शुरुआती गेंदों पर बहुत अधिक डॉट बॉल खेलती हैं, जिससे रन-रेट पर असर पड़ता है। जब तक वह अपनी पारी को गति देती हैं, तब तक अक्सर बहुत देर हो चुकी होती है।
- अपने कमबैक के बाद से 22 पारियों में से केवल 7 बार हरलीन 10 से अधिक ओवर तक क्रीज़ पर टिक पाई हैं।
- 15 बार, यानी हर तीन में से दो बार, वह गियर बदलने में असमर्थ रही हैं, जिससे टीम की गति बाधित हुई है।
- ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ दूसरे वनडे में, 70 रनों की ठोस शुरुआत के बाद, हरलीन ने पहली एक दर्जन गेंदों पर केवल 4 रन बनाए, जिससे टीम पर दबाव बढ़ गया और वह रन-आउट हो गईं।
यह एक ऐसा `ट्रैफिक जाम` बनाता है, जहाँ विस्फोटक मंधाना और सक्रिय रोड्रिग्स के बीच तीन धीमे-शुरुआत करने वाले बल्लेबाज होते हैं, और यदि शुरुआती डॉट गेंदों की भरपाई नहीं होती, तो रन-फ्लो में रुकावट आ जाती है।
प्रतिका रावल: स्पिन के जाल में उलझना
प्रतिका रावल ने अपने करियर की शानदार शुरुआत की, लेकिन बीच के ओवरों में गुणवत्तापूर्ण स्पिन के खिलाफ उनकी कमजोरी साफ दिखाई देती है। उनका सतर्क रवैया न केवल रन बनाने की गति को कम करता है, बल्कि स्ट्राइक रोटेशन में भी बाधा डालता है, जिससे विपक्षी टीमें भारत पर दबाव बना पाती हैं।
- स्पिन के खिलाफ उनका स्ट्राइक रेट 78.4 है, जबकि तेज़ गेंदबाजों के खिलाफ यह 87.86 है।
- स्पिन के खिलाफ उनकी डॉट बॉल प्रतिशत 52.8 है और बाउंड्री प्रतिशत केवल 8.6।
- विशेष रूप से लेफ्ट-आर्म स्पिन के खिलाफ, उनका बाउंड्री प्रतिशत गिरकर 5.76 हो जाता है और स्ट्राइक रेट 72.43 तक आ जाता है।
- 19 मैचों में 8 बार वह लेफ्ट-आर्म स्पिनरों का शिकार बनी हैं, जिसमें चल रहे विश्व कप के दोनों मैच शामिल हैं।
यह एक गंभीर चिंता का विषय है, क्योंकि टीमें इस कमजोरी का फायदा उठाना जानती हैं। श्रीलंका ने इनोका रणवीरा और सुगंधिका कुमारी का इस्तेमाल किया, जबकि पाकिस्तान ने सादिया इकबाल और नशरा संधू के ज़रिए भारत को फंसाया। दोनों ही मौकों पर, भारत 124/6 और 159/5 जैसी मुश्किल स्थिति में फंस गया, और निचले क्रम के खिलाड़ियों को टीम को मुश्किल से बाहर निकालना पड़ा।
निष्कर्ष: हनीमून खत्म, अब चाहिए जवाबदेही
प्रतिका रावल और हरलीन देओल के लिए `हनीमून पीरियड` अब समाप्त हो गया है। टीम विशाखापत्तनम में एक कठिन दौर में प्रवेश कर रही है, जहां उसे उन टीमों के खिलाफ चार लगातार मैच खेलने हैं जिन्होंने 2022 विश्व कप में उसकी उम्मीदों को तोड़ दिया था। अब समय आ गया है कि जवाबदेही तय की जाए और अपेक्षाओं को प्रदर्शन के साथ जोड़ा जाए। प्रबंधन ने शाफ़ाली वर्मा जैसे `एक्स-फैक्टर` खिलाड़ी पर इन दोनों को उनके लगातार प्रदर्शन के आधार पर चुना था। लेकिन `निरंतरता` और `इरादा` एक-दूसरे के विपरीत नहीं हो सकते। शीर्ष क्रम पर भारत को दोनों की ज़रूरत है। यदि टीम प्रबंधन अपने `स्थिर` शीर्ष-पांच पर कायम रहना चाहता है, तो उसे सामरिक और/या तकनीकी सुधार खोजने होंगे। विश्व कप में जीत का रास्ता इन `छोटी-छोटी` पहेलियों को सुलझाने से ही होकर गुज़रेगा।