भारतीय क्रिकेट में ‘युवा बनाम अनुभवी’: हर्षित राणा पर छिड़ी जंग और गंभीर की दहाड़

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भारतीय क्रिकेट, केवल एक खेल नहीं, बल्कि एक जुनून है, एक धर्म है। और जब बात जुनून की हो, तो हर निर्णय, हर चयन पर बारीकी से नज़र रखी जाती है, उस पर बहस छिड़ना स्वाभाविक है। हाल ही में, ऑस्ट्रेलिया दौरे के लिए घोषित वनडे टीम में युवा तेज़ गेंदबाज़ हर्षित राणा के नाम पर कुछ ऐसी ही बहस ने जन्म ले लिया है।

चयन की अग्नि परीक्षा: क्यों युवा राणा बने निशाने पर?

23 वर्षीय हर्षित राणा का चयन भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) द्वारा किए जाने के तुरंत बाद ही कुछ पूर्व क्रिकेटरों और क्रिकेट प्रेमियों ने इस पर सवाल उठाने शुरू कर दिए। कई लोगों का मानना था कि अनुभवी मोहम्मद शमी, जिन्होंने चैंपियंस ट्रॉफी में शानदार प्रदर्शन किया था, हर्षित से कहीं अधिक योग्य थे। इस बहस को और हवा तब मिली जब पूर्व कप्तान और चयनकर्ता कृष्णमाचारी श्रीकांत ने हर्षित को `टीम का स्थायी सदस्य` तक कह डाला। यह टिप्पणी एक युवा खिलाड़ी के लिए प्रशंसा से अधिक व्यंग्य के रूप में देखी गई, जो यह दर्शाती है कि भारतीय क्रिकेट में नया चेहरा होना कितना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।

गौतम गंभीर का करारा जवाब: `यूट्यूब चैनल चलाने वालों` को चेतावनी

लेकिन भारतीय क्रिकेट में जब कोई अपने `शिष्य` पर उंगली उठाए, तो `गुरु` का खड़ा होना स्वाभाविक है। और यहाँ `गुरु` कोई और नहीं, बल्कि अपने बेबाक अंदाज़ के लिए मशहूर गौतम गंभीर थे। वेस्टइंडीज़ के खिलाफ़ सीरीज़ जीतने के बाद की प्रेस कॉन्फ्रेंस में गंभीर ने हर्षित के आलोचकों पर शब्दों के तीखे बाण चलाए। उन्होंने इसे `शर्मनाक` करार दिया कि एक 23 वर्षीय युवा खिलाड़ी को व्यक्तिगत रूप से निशाना बनाया जा रहा है।

गंभीर ने बड़ी गंभीरता से कहा, “यह थोड़ा शर्मनाक है कि आप 23 साल के बच्चे को व्यक्तिगत रूप से निशाना बना रहे हैं। हर्षित के पिता कोई पूर्व अध्यक्ष नहीं हैं। यह उचित नहीं है कि आप किसी व्यक्ति को निशाना बनाएं। आप प्रदर्शन पर निशाना साध सकते हैं, और उसके लिए चयनकर्ता और कोच हैं। लेकिन अगर आप एक 23 साल के बच्चे से ऐसी बातें कहते हैं, और सोशल मीडिया इसे और बढ़ा देता है, तो उसकी मानसिकता की कल्पना कीजिए।”

उन्होंने आगे कहा, “आप जो कुछ कहते हैं वह केवल अपने यूट्यूब चैनल चलाने के लिए होता है। मुझे लगता है कि हम सभी की, केवल मेरी नहीं, आप सभी की, भारतीय क्रिकेट के प्रति नैतिक ज़िम्मेदारी है।”

गंभीर की बातों में एक स्पष्ट संदेश था: सस्ती लोकप्रियता बटोरने के लिए युवा प्रतिभाओं का मनोबल गिराना बंद करें। उन्होंने यह भी याद दिलाया कि भारतीय क्रिकेट किसी एक व्यक्ति का नहीं, बल्कि हर उस भारतीय का है जो इसे genuinely आगे बढ़ता देखना चाहता है।

BCCI का समर्थन: ज़िम्मेदारी की मांग

गौतम गंभीर अकेले नहीं थे। BCCI के उपाध्यक्ष राजीव शुक्ला ने भी गंभीर की बातों का समर्थन किया। उन्होंने भी आलोचना में ज़िम्मेदारी बरतने पर ज़ोर दिया, ताकि खिलाड़ी का मनोबल न गिरे। शुक्ला ने कहा कि खिलाड़ियों का चयन करना टीम का काम है, और इस पर टिप्पणी करने से पहले आलोचकों को अपनी ज़िम्मेदारी समझनी चाहिए। यह स्पष्ट संकेत था कि बोर्ड भी अपने युवा खिलाड़ियों के पक्ष में खड़ा है और अनुचित आलोचना को स्वीकार नहीं करेगा।

युवा प्रतिभा का बोझ: मानसिक दबाव का खेल

यह सारा विवाद हर्षित राणा जैसे युवा खिलाड़ी के कंधों पर कितना दबाव डालता होगा, यह सोचकर ही हैरानी होती है। एक तरफ देश के लिए खेलने का सपना, दूसरी तरफ चयन होते ही दिग्गजों और प्रशंसकों की कड़ी नज़रें। क्या यह उचित है कि एक उभरती हुई प्रतिभा को उसके पहले बड़े मंच पर आने से पहले ही इतनी अग्नि परीक्षा से गुज़रना पड़े? क्रिकेट केवल शारीरिक नहीं, बल्कि मानसिक शक्ति का भी खेल है, और ऐसे में बाहरी शोर-शराबा युवा दिमाग पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।

नैतिक ज़िम्मेदारी और भारतीय क्रिकेट का भविष्य

क्रिकेट में आलोचना ज़रूरी है, यह खेल को बेहतर बनाने में मदद करती है। लेकिन आलोचना और व्यक्तिगत निंदा के बीच एक महीन रेखा होती है, जिसे समझना बेहद आवश्यक है। भारतीय क्रिकेट को आगे ले जाने के लिए हमें केवल `नतीजे` नहीं, बल्कि `प्रक्रिया` पर भी ध्यान देना होगा – युवा खिलाड़ियों को समर्थन देना, उन्हें विकसित होने का अवसर देना और उनके मनोबल को बनाए रखना। गौतम गंभीर की `नैतिक ज़िम्मेदारी` वाली बात बिल्कुल सही है; यह सिर्फ उनके लिए नहीं, बल्कि हर उस व्यक्ति के लिए है जो भारतीय क्रिकेट को truly आगे बढ़ता देखना चाहता है।

अब गेंद हर्षित राणा के पाले में है। ऑस्ट्रेलिया दौरे पर उनका प्रदर्शन ही सभी सवालों का जवाब देगा। लेकिन इस पूरी बहस ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि भारतीय क्रिकेट केवल 22 गज की पट्टी पर खेला जाने वाला खेल नहीं, बल्कि भावनाओं, अपेक्षाओं और कभी-कभी तीखी आलोचनाओं का एक महासागर है, जहाँ युवा प्रतिभाओं को तैरना सीखना होता है, अक्सर लहरों के ख़िलाफ़।