भारत और पाकिस्तान के बीच क्रिकेट मुकाबला सिर्फ एक खेल नहीं, बल्कि भावनाओं का एक ऐसा तूफ़ान है जहाँ हर गेंद, हर विकेट, हर चौका और छक्का एक राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक बन जाता है। एशिया कप 2023 ने एक बार फिर इस चिर-प्रतिद्वंद्विता के गहरे रंग दिखाए हैं, लेकिन इस बार मैदान के भीतर और बाहर की गतिविधियाँ `खेल भावना` पर गंभीर सवाल खड़े कर रही हैं। क्या क्रिकेट वाकई राजनीति और सैन्य संघर्ष से अछूता रह सकता है, या यह केवल एक ऐसी आदर्शवादी कल्पना है जिसे आज की कड़वी सच्चाइयाँ निगल रही हैं?
जब शशि थरूर ने याद दिलाई `खेल भावना` की अहमियत
इस बढ़ती तनातनी के बीच, कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने एक समझदार आवाज उठाई है। उनका तर्क सीधा और स्पष्ट है: यदि हम पाकिस्तान से खेलने का निर्णय लेते हैं, तो हमें `खेल भावना` का सम्मान करना चाहिए। उन्होंने 1999 के कारगिल युद्ध का उदाहरण दिया, जब सीमा पर हमारे सैनिक देश के लिए सर्वोच्च बलिदान दे रहे थे, और हमारी क्रिकेट टीम इंग्लैंड में पाकिस्तान के खिलाफ खेल रही थी, खिलाड़ियों ने हाथ मिलाए थे। थरूर का कहना है कि खेल की भावना राष्ट्रों और सेनाओं के बीच होने वाले विवादों से भिन्न होती है। उनका यह बयान एक ऐसे समय में आया है जब भारतीय खिलाड़ियों द्वारा पाकिस्तानी समकक्षों से हाथ न मिलाने को लेकर विवाद गहरा गया था, मानो हाथ मिलाना किसी राजनैतिक हार की स्वीकृति हो!
मैदान पर `अशोभनीय` आचरण और शिकायतों का सिलसिला
दुर्भाग्यवश, खेल भावना की यह अपील दोनों ओर से नजरअंदाज होती दिखी। थरूर ने स्वयं स्वीकार किया कि यदि एक बार अपमानित होने के बाद पाकिस्तानी टीम ने भी पलटवार किया, तो यह दोनों पक्षों में खेल भावना की कमी दर्शाता है। और `पलटवार` वाकई जोरदार रहा!
भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) ने हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (ICC) और मैच रेफरी एंडी पाइक्रॉफ्ट से पाकिस्तान के खिलाड़ियों साहिबजादा फरहान और हारिस रऊफ के खिलाफ आधिकारिक शिकायत दर्ज कराई है। आरोप गंभीर हैं:
- साहिबजादा फरहान का `बंदूक` वाला इशारा: एशिया कप के सुपर फोर मुकाबले में अपने अर्धशतक का जश्न मनाते हुए फरहान ने अपने बल्ले को बंदूक की तरह पकड़ा। यह इशारा कई लोगों को असंवेदनशील और भड़काऊ लगा, खासकर जब बात भारत-पाकिस्तान जैसे संवेदनशील संबंधों की हो।
- हारिस रऊफ के `नखरे` और `0-6` का इशारा: संजू सैमसन को आउट करने के बाद हारिस रऊफ ने जिस आक्रामक तरीके से जश्न मनाया, वह भी चर्चा का विषय रहा। लेकिन असली विवाद तब पैदा हुआ जब बाउंड्री रोप के पास खड़े रऊफ ने भारतीय दर्शकों की हूटिंग के जवाब में अपनी उंगलियों से `0-6` का इशारा किया। यह `इशारा` पाकिस्तान के उस बेबुनियाद दावे की याद दिलाता है कि उन्होंने मई में `ऑपरेशन सिंदूर` के बाद भारतीय वायु सेना के छह लड़ाकू विमानों को मार गिराया था। यह एक ऐसा दावा है जिस पर भारतीय प्रशंसक स्वाभाविक रूप से भड़क उठे। सोशल मीडिया पर रऊफ के इस `हावभाव` के वीडियो आग की तरह फैल गए, और उन्हें ट्रोल किया जाने लगा। भारतीय प्रशंसकों ने उन्हें `विराट कोहली` के नाम से चिढ़ाना शुरू किया – यह उस ऐतिहासिक T20 विश्व कप 2022 के मैच की याद दिला रहा था जब कोहली ने रऊफ को दो लगातार छक्के जड़े थे, जिनमें से एक को ICC ने `सदी का शॉट` बताया था। शायद रऊफ को इस `0-6` के बजाय `2-6` (कोहली के छक्कों के लिए) का इशारा करना चाहिए था।
यहाँ एक दिलचस्प मोड़ भी है: पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड (PCB) ने भी पहले ICC के पास भारतीय कप्तान सूर्यकुमार यादव के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी। PCB का आरोप था कि 14 सितंबर को पाहलगाम घटना पर यादव की टिप्पणी राजनीतिक थी। यह `आरोप-प्रत्यारोप` का सिलसिला दिखाता है कि कैसे खेल का मैदान अब सिर्फ क्रिकेट का नहीं, बल्कि राष्ट्रीय गौरव और राजनीतिक बयानों का अखाड़ा बन गया है, जहाँ हर गेंद के साथ एक नई `शिकायत` तैयार होती है!
क्या खेल और राजनीति सचमुच अलग हो सकते हैं?
भारत ने एशिया कप के अपने दोनों मुकाबलों में पाकिस्तान को `धूल चटाई` है और फाइनल में प्रवेश किया है, जहाँ एक बार फिर इन दोनों टीमों का आमना-सामना होने की संभावना है। लेकिन इन मैचों के परिणाम से परे, बड़ा सवाल यह है कि क्या क्रिकेट जैसे खेल को कभी भी देशों के बीच चल रही राजनीतिक और सैन्य प्रतिद्वंद्विता से पूरी तरह अलग रखा जा सकता है? शशि थरूर जैसे दिग्गजों की अपील एक आदर्श स्थिति का चित्रण करती है, जहाँ खिलाड़ी हाथ मिलाकर खेल के सच्चे दूत बनते हैं। परंतु मैदान पर दिख रही आक्रामकता, उकसावे भरे इशारे और फिर आधिकारिक शिकायतें—यह सब एक ऐसे परिदृश्य की ओर इशारा करता है जहाँ क्रिकेट अब सिर्फ एक खेल नहीं, बल्कि एक और युद्ध का मैदान बन गया है, जहाँ हर विजय राष्ट्रीय सम्मान से जुड़ी है और हर हार एक अपमान। शायद `खेल भावना` अब केवल किताबों की बातें हैं, और असली खेल तो उन अदृश्य रेखाओं पर खेला जाता है जहाँ राजनीति और राष्ट्रवाद एक होकर `खेल` के नाम पर नाचते हैं, और दर्शक तालियाँ नहीं, बल्कि शिकायतें बजाते हैं।