हॉलीवुड में भूमिकाओं के लिए कलाकारों के चुनाव पर दशकों से बहस चलती रही है, लेकिन जब यह बहस नस्लवाद का रूप ले ले, तो चुप्पी तोड़ना आवश्यक हो जाता है। अभिनेता जेफरी राइट ने `द बैटमैन` में कमिशनर गॉर्डन के अपने चित्रण पर सवाल उठाने वालों को मुंहतोड़ जवाब दिया है, और उनके शब्दों में एक गहरी सच्चाई छिपी है – सिनेमा समाज का दर्पण है, और दर्पण को अपडेट रहना चाहिए।
जेफरी राइट का बेबाक बयान
हाल ही में, अनुभवी अभिनेता जेफरी राइट, जिन्हें `वेस्टवर्ल्ड` और `द लास्ट ऑफ अस` जैसी हिट सीरीज में उनके प्रभावशाली अभिनय के लिए जाना जाता है, ने कॉमिक बुक प्रशंसकों के एक वर्ग द्वारा की गई टिप्पणियों पर अपनी निराशा व्यक्त की। ये टिप्पणियाँ `द बैटमैन` में कमिशनर जेम्स गॉर्डन के रूप में उनकी कास्टिंग से जुड़ी थीं। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि इस तरह की आलोचनाएँ “पूरी तरह से नस्लीय और बेवकूफी भरी” हैं।
“यह देखना बेहद दिलचस्प है कि लोग इन दिनों अश्वेत अभिनेताओं को कुछ खास भूमिकाओं में देखकर कितनी बातें करते हैं। यह सरासर नस्लीय और मूर्खतापूर्ण है। यह इतनी अंधाधुंध बात है कि मुझे यह स्थिति ही एक संकेत लगती है – यह न पहचानना कि फिल्मों का विकास समाज के विकास को दर्शाता है। वे इसे फ्रेंचाइजी का अपमान मानते हैं कि यह 1939 की सांस्कृतिक वास्तविकता से बंधी नहीं रहती, जब कॉमिक्स पहली बार प्रकाशित हुए थे। यह सरासर बकवास है। इसमें कोई तर्क नहीं है।”
राइट का यह बयान केवल एक व्यक्तिगत प्रतिक्रिया नहीं है, बल्कि यह हॉलीवुड में चल रही एक व्यापक बहस का प्रतिबिंब है: क्या क्लासिक किरदारों को उनकी मूल चित्रण से हटकर कास्ट किया जाना चाहिए, या समय के साथ सिनेमा को भी बदलना चाहिए?
कॉमिक्स की दुनिया और बदलते आयाम
कॉमिक्स, अपनी प्रकृति से, लगातार विकसित होते रहे हैं। जो किरदार 1930 या 40 के दशक में कागज़ पर उतरे थे, वे आज की दुनिया में नए अर्थ और पहचान पाते हैं। `बैटमैन` जैसी फ्रेंचाइजी, जिसकी नींव लगभग एक सदी पहले रखी गई थी, को जीवित रहने और प्रासंगिक बने रहने के लिए खुद को ढालना पड़ा है। अगर पात्रों और उनकी कहानियों को हमेशा “मूल” सांस्कृतिक संदर्भ में ही रखा जाए, तो सिनेमा केवल एक ऐतिहासिक दस्तावेज बन जाएगा, न कि समकालीन कला का माध्यम।
यह विचार कि एक किरदार का रंग, लिंग या पृष्ठभूमि हमेशा उसके पहले चित्रण के अनुरूप होनी चाहिए, एक जटिल बहस को जन्म देता है। क्या शेक्सपियर के नाटकों को हमेशा केवल अंग्रेज अभिनेताओं द्वारा ही प्रस्तुत किया जाना चाहिए? क्या ऐतिहासिक पात्रों को हमेशा उनके सटीक वंश से ही चुना जाना चाहिए, भले ही अभिनय कौशल कम हो? जाहिर तौर पर नहीं। सिनेमा एक कला है, और कला की शक्ति रूपांतरण और नई व्याख्याओं में निहित है।
मैट रीव्स की `द बैटमैन`: एक सफल प्रयोग
मैट रीव्स द्वारा निर्देशित और रॉबर्ट पैटिनसन अभिनीत `द बैटमैन` (2022) ने बॉक्स ऑफिस पर 770 मिलियन डॉलर से अधिक की कमाई की और आलोचकों व दर्शकों दोनों से सकारात्मक समीक्षाएँ प्राप्त कीं। यह फिल्म अपनी गहरी और गंभीर कहानी, शानदार सिनेमैटोग्राफी और उत्कृष्ट अभिनय के लिए सराही गई। जेफरी राइट के कमिशनर गॉर्डन ने इस डार्क और ग्रिटी दुनिया में अपनी जगह बखूबी बनाई, और उनकी कास्टिंग पर उठे सवाल फिल्म की सफलता के सामने फीके पड़ गए।
यह दिखाता है कि दर्शकों की प्राथमिकताएँ अभिनय कौशल, कहानी की गुणवत्ता और फिल्म के समग्र अनुभव पर आधारित होती हैं, न कि किसी किरदार के पारंपरिक रंग-रूप पर।
प्रतिनिधित्व का महत्व: सिर्फ कॉमिक्स नहीं, समाज का प्रतिबिंब
हॉलीवुड सहित वैश्विक फिल्म उद्योग, धीरे-धीरे यह स्वीकार कर रहा है कि पर्दे पर विविध प्रतिनिधित्व आवश्यक है। आज की दुनिया में, जहाँ विभिन्न संस्कृतियों और जातियों के लोग एक साथ रहते हैं, अगर सिनेमा केवल एक ही वर्ग का प्रतिनिधित्व करता रहेगा, तो वह अपनी प्रासंगिकता खो देगा। जब कोई बच्चा बड़े पर्दे पर अपने रंग या पृष्ठभूमि के किसी व्यक्ति को एक सशक्त भूमिका में देखता है, तो यह उसके लिए प्रेरणा का स्रोत बनता है। यह केवल “पॉलिटिकल करेक्टनेस” का मामला नहीं है, बल्कि यह एक समृद्ध और समावेशी कहानी कहने का माध्यम है।
जेफरी राइट का यह बयान उन लोगों के लिए एक सीधा संदेश है जो परिवर्तन का विरोध करते हैं। सिनेमा न केवल हमें कहानियाँ सुनाता है, बल्कि यह समाज को भी आकार देता है और उसके बदलावों को दर्शाता है। 1939 की सांस्कृतिक रूढ़ियों में फंसे रहना, आज के सिनेमा के लिए घातक होगा।
आगे क्या? `द बैटमैन` सीक्वल और जारी बहस
`द बैटमैन` का सीक्वल 2026 की वसंत ऋतु में फिल्माया जाना है, और उम्मीद है कि जेफरी राइट कमिशनर गॉर्डन के रूप में अपनी भूमिका में लौटेंगे। इस बीच, हॉलीवुड में प्रतिनिधित्व और कास्टिंग को लेकर यह बहस जारी रहेगी। लेकिन एक बात स्पष्ट है: परिवर्तन अपरिहार्य है, और कला को भी इसके साथ विकसित होना चाहिए।
जेफरी राइट ने जिस निडरता से अपनी बात रखी है, वह न केवल उनके व्यक्तिगत चरित्र को दर्शाता है, बल्कि यह एक महत्वपूर्ण संदेश भी देता है: कहानी कहने की कला को पुरानी सीमाओं से मुक्त होना चाहिए, ताकि वह आज और कल की दुनिया को अधिक ईमानदारी और समावेशिता से दर्शा सके। अगर 1939 के दर्शक आज की फिल्में देखते, तो शायद वे भी कह उठते, “वाह! कितना कुछ बदल गया है!” और यही तो कला की सुंदरता है, नहीं?