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सुरजीत दास गुप्ता / नई दिल्ली June 29, 2022 |
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दूरसंचार कंपनियां आगामी स्पेक्ट्रम नीलामी में प्रत्येक स्थानीय सेवा क्षेत्र में दमदार बोली के साथ शीर्ष रैंक वाले बोलीदाता का दर्जा हासिल करने तैयारी कर रही हैं ताकि 3.5 गीगाहर्ट्ज 5जी बैंड में उसे बेहतरीन भार रहित स्पेक्ट्रम हासिल हो सके। इससे बाजार में उन्हें अपने प्रतिस्पर्धियों के मुकाबले बेहतर स्थिति हासिल करने में मदद मिलेगी।
शीर्ष रैंक एक जटिल प्रक्रिया द्वारा तय की जाती है जो अनिवार्य रूप से प्रत्येक बोली दौर में बोली मूल्य को बढ़ाने वाली दूरसंचार कंपनियों की भूमिका पर आधारित होती है। इसलिए आसान शब्दों में कहें तो यदि कोई दूरसंचार कंपनी बोली मूल्य को बढ़ाती है तो उसे शीर्ष रैंक दिया जाता है। उदाहरण के लिए, यदि कोई दूरसंचार कंपनी शुरुआती दौर में बोली को 250 से बढ़ाकर 270 रुपये कर देती है जबकि अन्य कंपनियां ऐसा नहीं करती हैं तो उसे शीर्ष रैंकिंग दी जाती है। यदि दो कंपनियों के बीच टाई हो जाता है तो शीर्ष रैंकिंग इस आधार पर निर्धारित होती है कि कितने क्लॉक राउंड में कौन आगे रहा था।
आवेदन आमंत्रित करने वाले नोटिस (एनआईए) के अनुसार, यदि 3,300 से 3,630 आवृत्ति बैंड में केवल 300 मेगाहर्ट्ज या उससे कम की बिक्री होती है तो सफल बोलीदाताओं को स्पेक्ट्रम 3,600 से आवंटन शुरू होगा। साथ ही यह पहले रैंक वाले बोलीदाता से शुरू होकर 3,300 तक पीछे की ओर जाएगा। मान लेते हैं कि तीनों दूरसंचार कंपनियों में से प्रत्येक ने 100 मेगाहर्ट्ज स्पेक्ट्रम के लिए बोली लगाई है तो पहले रैंक वाले बोलीदाता को 3,500 से 3,600 मेगाहर्ट्ज के बीच स्पेक्ट्रम आवंटित किया जाएगा।
इस बैंड के पास कोई अन्य उपयोगकर्ता नहीं है जो इसके उपयोग को बाधित करेगा। साथ ही इस बैंड में वैश्विक स्तर पर काफी उपकरणों और रेडियो उपलब्ध हैं।
दूसरे रैंक वाले बोलीदाता के लिए एक समस्या है जिसका उल्लेख भारती एयरटेल ने दूरसंचार नियामक को लिखे अपने पत्र में कर चुकी है। 3.4 गीगाहर्ट्ज से 25 मेगाहर्ट्ज के बीच स्पेक्ट्रम का उपयोग एनएवीआईसी प्रणाली के लिए किया जाता है। इसरो द्वारा संचालित 8 उपग्रहों के जरिये नेविगेशन एवं समय संबंधी सेवाएं प्रदान की जाती हैं। अंतरिक्ष विभाग ने संकेत दिया है कि इस प्रणाली के आसपास 350 से 1,400 किलोमीटर के दायरे में एक बफर जोन होना चाहिए।
भारती एयरटेल ने 130 किलोमीटर बफर जोन रखने की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए कहा है कि ऐसे में इस बैंड का उपयोग करने वाले ऑपरेटर इसके दायरे में आने वाले 600 शहरों और 60,000 से अधिक गांवों में रहने वाले देश की 7 करोड़ से अधिक आबादी को सेवाएं प्रदान नहीं कर पाएंगे। इससे उन्हें बोली बढ़ाकर रैंक हासिल करने के मुकाबले कहीं अधिक नुकसान उठाना पड़ सकता है। तीसरे रैंक वाले बोलीदाता के लिए चुनौती कहीं अधिक गंभीर है। सेना और नौसेना तटीय क्षेत्रों में 3,300 से 3,400 आवृत्ति बैंड का उपयोग करते हैं। भारत की विशाल तटवर्ती क्षेत्र को देखते हुए दूरसंचार कंपनियां 100 मेगाहर्ट्ज स्पेक्ट्रम का उपयोग पूरी तरह नहीं कर पाएंगी क्योंकि उसे बिना हस्तक्षेप वाले 100 किलोमीटर का बफर जोन बनाना होगा।
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