भारतीय शतरंज के लिए यह एक सुनहरा पल है। मात्र 19 वर्ष की दिव्या देशमुख ने FIDE महिला शतरंज विश्व कप 2025 के फाइनल में पहुंचकर इतिहास रच दिया है। अपनी पहली ही विश्व कप उपस्थिति में, इस युवा खिलाड़ी ने न केवल बड़े नामों को पटखनी दी, बल्कि अपनी दृढ़ता और प्रतिभा से सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया। बटुमी में चल रहे इस टूर्नामेंट में, दिव्या ने दुनिया को दिखा दिया कि उम्र सिर्फ एक संख्या है, जब बात मानसिक दृढ़ता और शतरंज की बिसात पर रणनीति बनाने की आती है।
सेमीफाइनल की महागाथा: एक रोलरकोस्टर मुकाबला
सेमीफाइनल में दिव्या का मुकाबला चीन की तीसरी वरीयता प्राप्त और पूर्व विश्व चैंपियन तान झोंगी से था। यह एक ऐसा मैच था जो किसी रोलरकोस्टर से कम नहीं था। पहले गेम में दिव्या (काले मोहरों से) ने एक त्वरित ड्रॉ खेला, जो उनके लिए एक सम्मानजनक शुरुआत थी। लेकिन दूसरा गेम, ओह! वह तो सचमुच एक परीक्षा थी। बीच खेल में दिव्या टाइम ट्रबल में थीं, और कंप्यूटर इंजन भी तान झोंगी को बढ़त दिखा रहा था। मानो भाग्य ने भी एक बार के लिए अनुभवी खिलाड़ी का साथ देने का मन बना लिया हो।
लेकिन, शतरंज की बिसात पर अनुभव कभी-कभी एक अतिरिक्त दबाव भी बन जाता है। तान झोंगी ने 32 से 35 चालों के बीच कुछ गलतियां कीं, और फिर 57 से 61 चालों के बीच दोनों खिलाड़ियों ने कुछ गलतियां बदलीं। हालांकि, इस `गड़बड़ी` से युवा दिव्या ही मजबूत स्थिति में निकलीं। एक बार तो ऐसा लगा कि दिव्या ने 79वीं चाल पर एक चूक कर अपनी बड़ी बढ़त गंवा दी थी, और मैच लगभग बराबर हो गया था। यह वह क्षण था जब कई खिलाड़ी हार मान लेते, खासकर इतनी अनुभवी प्रतिद्वंद्वी के सामने और घड़ी के कम होते समय के दबाव में।
अदम्य भावना और निर्णायक जीत
लेकिन, यह दिव्या देशमुख थी। भारतीय शतरंज की नई पीढ़ी, जिसे हार मानना आता ही नहीं है। उन्होंने दबाव बनाए रखा, और 90वीं चाल पर तान झोंगी से एक और निर्णायक गलती हो गई। बस, फिर क्या था! दिव्या ने इस मौके को हाथ से जाने नहीं दिया और एक शानदार जीत दर्ज करते हुए फाइनल में अपनी जगह पक्की कर ली। यह सिर्फ एक जीत नहीं थी, यह मानसिक दृढ़ता, अथक परिश्रम और कभी हार न मानने वाले जज्बे का प्रमाण था। तान झोंगी के लिए, यह विश्व कप सेमीफाइनल में लगातार तीसरी हार थी – एक ऐसा आंकड़ा जिसे वह शायद ही याद रखना चाहेंगी, मानो विश्व कप सेमीफाइनल उनके लिए एक अभिशाप बन चुका हो।
इतिहास रचने वाली युवा प्रतिभा
इस जीत के साथ, दिव्या विश्व कप फाइनल में पहुंचने वाली सबसे कम उम्र की खिलाड़ी बन गई हैं, जो उन्होंने 2023 में नर्ग्युल सलीमोवा के रिकॉर्ड को तोड़ते हुए हासिल किया है। वह सलीमोवा के साथ अंतर्राष्ट्रीय मास्टर (IM) के रूप में फाइनल में पहुंचने वाली एकमात्र खिलाड़ी भी हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस प्रदर्शन से उन्होंने अगले साल होने वाले कैंडिडेट्स टूर्नामेंट के लिए भी क्वालीफाई कर लिया है, जो उन्हें विश्व चैंपियनशिप के लिए लड़ने का मौका देगा। भारतीय शतरंज के लिए यह एक और गर्व का क्षण है, जब युवा खिलाड़ी वैश्विक मंच पर अपना परचम लहरा रहे हैं।
दिलचस्प बात यह है कि अपनी इस ऐतिहासिक जीत के बाद, दिव्या ने FIDE के आधिकारिक प्रसारण पर कहा कि वह और बेहतर खेल सकती थीं, और जीत का रास्ता कहीं अधिक सुगम हो सकता था। यह उस युवा प्रतिभा की पहचान है जो कभी भी अपनी उपलब्धियों से संतुष्ट नहीं होती, बल्कि हमेशा उत्कृष्टता की ओर देखती है। इतनी बड़ी जीत के बावजूद, उनकी विनम्रता और आत्म-सुधार की चाहत, निश्चित रूप से, उन्हें और भी महान बनाएगी।
आगे क्या? भारतीय शतरंज का सुनहरा भविष्य
बटुमी अब इस 19 वर्षीय `जायंट-किलर` को हमेशा याद रखेगा। अब दिव्या फाइनल में लेई टिंगजी या कोनेरू हम्पी में से किसी एक का इंतजार कर रही हैं, जिनके बीच गुरुवार को टाई-ब्रेकर खेला जाएगा। क्या आप कल्पना कर सकते हैं? एक महिला शतरंज विश्व कप फाइनल, और उसमें दोनों भारतीय खिलाड़ी! यह सपना अब हकीकत के बहुत करीब है। दिव्या देशमुख ने न केवल अपनी जगह बनाई है, बल्कि पूरे भारत को एक नई उम्मीद दी है। यह सिर्फ एक खेल नहीं, यह एक प्रेरणा है, जो दर्शाती है कि दृढ़ संकल्प और अदम्य साहस से कुछ भी असंभव नहीं है।