हरियाणा में रोजगार के ढांचे में ही उसकी चुनौती है। दरअसल इस राज्य में वेतनभोगी कर्मचारियों का बड़ा हिस्सा है। ऐसे में हरियाणा वेतनभोगी नौकरी मुहैया कराकर अपने राज्य के लोगों को तो बड़ा फायदा पहुंचाता ही है, साथ ही भारत के अन्य हिस्सों से भी लोगों को आकर्षित करता है। इससे हरियाणा में बेहतर प्रवासी आते हैं।
इस राज्य में कमतर गुणवत्ता वाला रोजगार दिहाड़ी मजदूरी जैसा कम है। किसी भी अन्य बड़े राज्य की अपेक्षा हरियाणा में वेतनभोगी जैसी बेहतर नौकरियों की हिस्सेदारी अधिक है।
अर्थव्यवस्था के लिए वेतनभोगी नौकरियां सृजित करना कहीं मुश्किल होता है। ऐसे में लोगों को दिहाड़ी मजदूरों की फौज में शामिल होना पड़ता है। यह मुश्किल केवल हरियाणा तक सीमित नहीं है बल्कि इससे उसको नुकसान हुआ है। हरियाणा अमीर राज्य है और यहां प्रति व्यक्ति आय तुलनात्मक रूप से अधिक है।
दरअसल यहां के लोग असंगठित क्षेत्र में अनौपचारिक रोजगार के लिए स्पष्ट रूप से कम इच्छुक रहते हैं। हरियाणा को यह फायदा है कि वह अच्छी गुणवत्ता वाली नौकरियां मुहैया कराता है लेकिन यही इसके लिए चुनौती बन गया है।
महामारी शुरू होने से पहले हरियाणा में वेतनभोगी नौकरियों का दबदबा था। सितंबर 2018 से अप्रैल 2020 के बीच हरियाणा में कुल रोजगार में वेतनभोगी नौकरियां 31 फीसदी थीं। राज्य में किसी अन्य तरह के रोजगार की इतनी बड़ी हिस्सेदारी भी नहीं थी। हरियाणा के रोजगार में किसानों की हिस्सेदारी दूसरे नंबर पर 30 फीसदी से कम थी। फिर कारोबारियों की हिस्सेदारी 24 फीसदी थी और बाकी 14 फीसदी हिस्सेदारी में छोटे व्यापारी और दिहाड़ी मजदूर थे। देश की तुलना में हरियाणा में रोजगार की संरचना कहीं बेहतर है।
अखिल भारतीय स्तर पर छोटे व्यापारी और दिहाड़ी मजदूर की हिस्सेदारी का दबदबा है। अखिल भारतीय स्तर पर समान अवधि सितंबर 2018 से अप्रैल 2020 के बीच छोटे व्यापारी और दिहाड़ी मजदूर 32 फीसदी थे। इससे कम वेतनभोगी रोजगार की हिस्सेदारी 22 फीसदी से भी कम थी।
किसानों की हिस्सेदारी 28 फीसदी और कारोबारियों की हिस्सेदारी करीब 19 फीसदी थी। हरियाणा में महामारी की सबसे ज्यादा चोट वेतनभोगी कर्मचारियों को झेलनी पड़ी। इस राज्य में वेतनभोगी नौकरियां जनवरी-अप्रैल, 2020 में 23 लाख थीं। यह मई-अगस्त, 2020 में घटकर 16 लाख रह गईं। फिर सितंबर-दिसंबर, 2020 में और गिरकर 14 लाख पर पहुंच गईं। इससे एक वर्ष से कम अवधि के दौरान लगभग 39 प्रतिशत की संचयी गिरावट दर्ज हुई।
अखिल भारतीय स्तर पर वेतनभोगी नौकरियों में 13 फीसदी की शुरुआती गिरावट आई थी और बाद में दुरुस्त हो गई थी। लिहाजा पूरे देश में वेतनभोगी रोजगार में इतनी अधिक गिरावट दर्ज नहीं हुई और हरियाणा में वेतनभोगी नौकरियों में असाधारण गिरावट हुई। हरियाणा को वेतनभोगी नौकरियों में हुई कटौती से उबरने में अधिक समय लगा है। हालांकि अब तक हरियाणा नौकरियों की कटौती को काफी हद तक पूरा कर चुका है।
संयोग की बात है कि हरियाणा में रोजगार के मामले में मई-अगस्त, 2022 के दौरान वेतनभोगी नौकरियां फिर शीर्ष पर आ गईं। इस अवधि के दौरान हरियाणा में 22 लाख वेतनभोगी लोग थे। इससे किसानों से अधिक वेतनभोगी लोगों की संख्या हो गई। राज्य में किसानों की संख्या तकरीबन 20 लाख से कुछ कम है।
राज्य में किसानों की संख्या 23 लाख से 24 लाख के बीच थी लेकिन उत्तर राज्यों में मॉनसून की अनिश्चितता के कारण किसानों की संख्या में गिरावट आई है। इसी दौरान वेतनभोगी नौकरियों में निरंतर बढ़ोतरी कायम रही। इससे राज्य में रोजगार का सबसे बड़ा जरिया वेतनभोगी नौकरी हो गई।
हरियाणा में कुल रोजगार में वेतनभोगी नौकरियां 31 फीसदी हैं। वेतनभोगी नौकरियों के मामले में छोटे राज्यों जैसे दिल्ली, गोवा, चंडीगढ़ और पुदुच्चेरी का प्रदर्शन बेहतर है। इन राज्यों में कुल रोजगार में वेतनभोगी कर्मचारियों की हिस्सेदारी 50-60 फीसदी है और खेती के लिए जमीन भी बहुत कम है।
हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर में वेतनभोगी कर्मचारियों की हिस्सेदारी 40-50 फीसदी है और इन राज्यों में खेती के लिए कम जमीन उपलब्ध है। इनके अलावा बाकी बचे राज्यों में हरियाणा वेतनभोगी कर्मचारियों के मामले में शीर्ष पर है।
हरियाणा में किसानों और वेतनभोगी कर्मचारियों का स्वस्थ मिश्रण है। यह प्रदर्शित करता है कि हरियाणा ने कृषि अर्थव्यवस्था के पारंपरिक आधार के साथ-साथ तेजी से बढ़ती आधुनिक अर्थव्यवस्था को भी अपनाया है। हाल के समय में सेवा क्षेत्र में भी तेजी से उछाल आई है। दिल्ली के करीब गुरुग्राम होने से भी फायदा हुआ है।
यह रोचक है कि पांरपरिक औद्योगिक शक्तियां जैसे महाराष्ट्र, गुजरात, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल के कुल रोजगार में वेतनभोगी रोजगार की हिस्सेदारी हरियाणा की तुलना में कम है। हरियाणा की सफलता यह है कि वह संगठनात्मक बदलाव करके खेती से दृढ़ रूप से आगे बढ़ रहा है लेकिन दिहाड़ी मजदूर के स्रोत का पता लगाना चुनौती बन गई है।
दिहाड़ी मजदूरों, खेत मजदूरों या छोटे व्यापारियों के रूप में अनौपचारिक रोजगार आसानी से श्रम में शामिल हो जाता है। ऐसे रोजगार व बेरोजगारी के बीच बारीक अंतर है और इससे अलग-अलग करना मुश्किल है। अच्छी बात यह है कि हरियाणा से मजदूर पलायन नहीं करते हैं या हम यह कह सकते हैं कि हरियाणा के लोग कम वेतन वाले विकल्प को स्वीकार नहीं करते हैं।
हरियाणा के लोग अन्य विकल्पों के अलावा वेतनभोगी नौकरियों को प्राथमिकता देते हैं। हरियाणा में रोजगार चाहने वाले लोगों को जब कामधंधा नहीं मिलता है तो राज्य में बेरोजगारी की दर बढ़ जाती है। ऐसा अन्य राज्यों विशेषकर कृषि प्रधान राज्यों में नहीं होता है। अन्य राज्यों में लोगों को खेती-किसानी और अंशकालिक नौकरियों में रोजगार मिल जाता है। इससे बेरोजगारी की दर कम रहती है।
हालांकि जब पूरी अर्थव्यवस्था की वृद्धि एक समान न हो और नए संयंत्रों ने मशीनों में निवेश या अन्य उत्पादक क्षमताएं सीमित हों तो नए वेतनभोगी रोजगार को सृजित करना टेढ़ी खीर हो जाता है। भारत में जब पूंजीगत व्यय का पहिया पूरी गति से घूमेगा तो हरियाणा को स्वाभाविक रूप से लाभ मिलेगा। देश की राजधानी के करीब हरियाणा है। हरियाणा के पास बड़ा व अच्छी गुणवत्ता वाला श्रम बल है जो अपनी इच्छा के अनुकूल नौकरी नहीं मिलने पर अर्थव्यवस्था की हालत बदलने तक बेरोजगार रहना पसंद करता है।