कोविड महामारी के कारण 2 वर्षों की आर्थिक बदहाली के बाद उम्मीद की जा रही थी कि भारत का उद्योग जगत तेजी और पूरे उत्साह से साथ वापसी करेगा। मगर ऐसा अब तक मुमकिन नहीं हो पाया है। अलबत्ता अदाणी, अंबानी और वेदांत जैसी कंपनियां नए निवेश प्रस्तावों के साथ वित्त वर्ष 2023 की पहली दो तिमाहियों में उत्साह जगाने में जरूर सफल रहीं। मगर ज्यादातर भारतीय कंपनियां मंदी की प्रबल आशंका, आपूर्ति में रुकावट, ब्याज दरों में इजाफे और कमजोर मांग के कारण आर्थिक बदहाली की चोट से पूरी तरह नहीं उबर सकीं।
कंपनियों की बदहाली का असर वित्त वर्ष 2023 की दूसरी तिमाही में उनकी आय पर भी दिखा। कोविड महामारी का संक्रमण कमजोर पड़ने के बाद खर्च में कमी और कर्मचारियों की छंटनी के बाद कंपनियों का बहीखाता सुधरा था मगर वित्त वर्ष 2023 की जुलाई-सितंबर तिमाही में उसमें गिरावट आई और यह गिरावट अप्रैल-जून, 2020 के बाद पहली बार देखी गई थी। 2020 की अप्रैल-जून तिमाही में पूरे देश में लॉकडाउन कर दिया गया था। वैश्विक हालात और घरेलू दबावों के कारण पर्याप्त निवेश नहीं आ पाया। देश में निवेश का हाल बताने वाला सकल नियत पूंजी सृजन वित्त वर्ष 2023 की दूसरी तिमाही में थोड़ा बढ़कर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 29.6 प्रतिशत हो गया, जो पहली तिमाही में 29.2 प्रतिशत रहा था।
देश में विभिन्न उत्पादों एवं सेवाओं की मांग पूरी तरह पटरी पर नहीं आई है। यही वजह है कि मजबूत बहीखाते के बावजूद बड़े कारोबारी प्रतिष्ठान और कंपनियां अधिक पूंजीगत निवेश का वादा करने से हिचक रहे हैं। उदाहरण के लिए यात्री कार उद्योग ने मांग में कमी और चिप की आपूर्ति से जुड़ी परेशानियों के बावजूद उम्मीद से कहीं अधिक बिक्री कर डाली और त्योहारों के बाद भी बिक्री जारी रही। नवंबर में 3.10 लाख से ज्यादा कार बिकीं 3 लाख से ऊपर बिक्री का वह लगातार छठा महीना था। पिछले साल नवंबर की तुलना में इस साल इसी महीने मारुति सुजूकी, टाटा मोटर्स, ह्युंडै और महिंद्रा ऐंड महिंद्रा की बिक्री में 21 से 55 प्रतिशत तक की तेजी दिखी।
इससे भी अहम बात यह है कि छोटी एवं किफायती कारों के बजाय मझोली एवं बड़ी कारों की बिक्री अधिक बढ़ी है। यह देश की अर्थव्यवस्था में तेज सुधार का भी संकेत देता है। छोटी कारों की मांग में नरमी दिखी है। इसकी वजह यह है कि इन कारों की मांग उन लोगों की बीच अधिक है, जो महामारी की मार से पूरी तरह नहीं उबर पाए हैं। दोपहिया वाहनों की मांग भी इसी कारण प्रभावित हुई है।
रोजमर्रा के सामान बनाने वाली कंपनियों के साथ भी यही बात लागू होती है। ग्रामीण क्षेत्र में मांग सुधरने की गति धीमी होने से पांचों तिमाहियों में बिक्री कमजोर रही है। एफएमसीजी कंपनियों ने उत्पादों की कीमतें बढ़ाईं तो ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों ने खरीदारी कम कर दी। कीमतें बढ़ाने से बड़ी एफएमसीजी कंपनियों का मुनाफा जरूर बढ़ा है मगर आय का आंकड़ा प्रभावित हुआ। नीलसनआईक्यू के एक अध्ययन के अनुसार बढ़ती लागत से निपटने के लिए और ग्राहकों की पसंद-नापसंद का ध्यान रखते हुए कंपनियां ज्यादातर उत्पाद छोटे पैक में उतार रही हैं।
रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण भी मांग में एक जैसा इजाफा नहीं हो पाया। पिछले कई महीनों से दोनों देशों के बीच चल रही लड़ाई की वजह से ही वित्त वर्ष 2023 की पहली छमाही में निवेश के शीर्ष 10 क्षेत्रों में से 6 में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की रफ्तार सुस्त रही है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार अप्रैल-सितंबर के दौरान प्रत्यक्ष विदेशी इक्विटी निवेश 14 प्रतिशत कम होकर 26.9 अरब डॉलर रह गया।
बहरहाल दूसरी छमाही में सुधार के संकेत जरूर दिख रहे हैं। उदाहरण के लिए 2020 और इस वर्ष सितंबर के बीच स्विट्जरलैंड की कंपनी नेस्ले ने भारत में 7,600 करोड़ रुपये निवेश करने का वादा किया है। यह कंपनी द्वारा पिछले 60 वर्षों में किए निवेश (8,000 करोड़ रुपये) के लगभग बराबर है। कंपनी ने कहा कि 7,600 करोड़ रुपये में से आधी रकम का इस्तेमाल पूंजीगत व्यय बढ़ाने और ब्रांड को चमकाने पर खर्च किया जाएगा। शहरों में खास तौर पर अपनी धाक जमाने वाली कंपनी आने वर्षों में व्यापक स्तर पर ग्रामीण क्षेत्रों में विस्तार करने की योजना पर काम कर रही है।
मोटे तौर पर ऐसा लग रहा है कि निजी क्षेत्र के निवेश के दम पर आने वाले समय में नई परियोजनाएं आगे बढ़ेंगी। सीएमआईई के पास उपलब्ध पूंजीगत व्यय से जुड़े आंकड़ों के अनुसार सितंबर में समाप्त हुई तिमाही में निजी क्षेत्र से 3.1 लाख करोड़ रुपये के निवेश प्रस्ताव आए हैं। यह रकम निजी क्षेत्र के 2.1 से 2.5 लाख करोड़ रुपये के औसत तिमाही निवेश प्रस्तावों से अधिक है। सीएमआईई ने एक महत्त्वपूर्ण बात यह कही है कि इस तिमाही में नए निवेश प्रस्तावों में अदाणी, अंबानी या वेदांत जैसे समूहों का दबदबा नहीं होगा। सीएमआईई के अनुसार बड़े कारोबारी घरानों से इतर विभिन्न स्रोतों से निवेश प्रस्ताव आने का मतलब है कि निवेश के लिए उत्साह हर तरफ बढ़ा है। भारतीय कारोबार जगत की वापसी में भले ही देरी हुई है, मगर 2024 में देश का उद्योग जगत सही मायनों में उत्साह से लबरेज रह सकता है।