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वैज्ञानिकों ने खोजा 2000 साल पुरानी करी का सबूत, भारत के बाहर मिला अब तक का सबसे प्राचीन प्रमाण

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कैनबरा: आज मसाले के बिना दुनिया की कल्पना करना कठिन है। तेज़ वैश्विक व्यापार ने सभी प्रकार की स्वादिष्ट सामग्रियों के आयात और निर्यात को बढ़ावा दिया है, जो भारतीय, चीनी, वियतनामी, मलेशियाई, श्रीलंकाई (और कई अन्य) व्यंजनों को हमारे खाने की मेज पर लाने में मदद करते हैं।अब, नए शोध से पता चला है कि पाक कला में उपयोग के लिए मसालों का व्यापार बहुत पुराना है – सटीक रूप से कहें तो लगभग 2,000 वर्ष पुराना। साइंस एडवांसेज में आज प्रकाशित एक पेपर में, हम और हमारे सहयोगियों ने दक्षिण पूर्व एशिया की सबसे पुरानी ज्ञात करी के प्रमाण के रूप में अपने निष्कर्षों का विवरण दिया है। यह भारत के बाहर अब तक पाया गया करी का सबसे पुराना साक्ष्य है।

हमने दक्षिणी वियतनाम में ओसी ईओ पुरातात्विक परिसर में दिलचस्प खोज की। हमें मूल रूप से विभिन्न स्रोतों से आठ अद्वितीय मसाले मिले, जिनका उपयोग संभवतः करी बनाने के लिए किया जाता था। इससे भी अधिक दिलचस्प बात यह है कि इनमें से कुछ को समुद्र के रास्ते कई हजार किलोमीटर तक ले जाया गया होगा।

सबूतों को परखना

हमारी टीम का शोध प्रारंभ में करी पर केंद्रित नहीं था। बल्कि, हम पिसाई करने वाले पत्थर के उपकरणों के एक सेट के कार्य के बारे में जानने के लिए उत्सुक थे, जिसका उपयोग प्राचीन फ़नान साम्राज्य के लोग संभवतः अपने मसालों को पीसने के लिए करते थे। हम प्राचीन मसाला व्यापार की गहरी समझ भी हासिल करना चाहते थे। स्टार्च अनाज विश्लेषण नामक तकनीक का उपयोग करते हुए, हमने ओसी ईओ साइट से खुदाई किए गए पीसने और कूटने वाले उपकरणों की एक श्रृंखला से प्राप्त सूक्ष्म अवशेषों का विश्लेषण किया। इनमें से अधिकांश उपकरणों की खुदाई हमारी टीम द्वारा 2017 से 2019 तक की गई थी, जबकि कुछ को पहले स्थानीय संग्रहालय द्वारा एकत्र किया गया था।

स्टार्च के दाने पौधों की कोशिकाओं के भीतर पाई जाने वाली छोटी संरचनाएँ हैं जिन्हें लंबे समय तक संरक्षित रखा जा सकता है। उनका अध्ययन करने से पौधों के उपयोग, आहार, खेती के तरीकों और यहां तक कि पर्यावरणीय स्थितियों में मूल्यवान अंतर्दृष्टि मिल सकती है। जिन 40 उपकरणों का हमने विश्लेषण किया, उनमें 12 में हल्दी, अदरक, फिंगररूट, रेत अदरक, गैलंगल, लौंग, जायफल और दालचीनी सहित कई प्रकार के मसालों के अवशेष मिले । इसका मतलब यह है कि साइट पर रहने वालों ने वास्तव में खाद्य प्रसंस्करण के लिए उपकरणों का उपयोग किया था, जिसमें स्वाद बढ़ाने के लिए मसाला पौधों के प्रकंदों, बीजों और तनों को पीसना भी शामिल था।

यह पता लगाने के लिए कि साइट और उपकरण कितने पुराने थे, हमारी टीम ने चारकोल और लकड़ी के नमूनों से 29 अलग-अलग तारीखें प्राप्त कीं। इसमें सबसे बड़े पीसने वाले स्लैब के ठीक नीचे से लिए गए चारकोल के नमूने से निर्मित 207-326 ई.पू. की तारीख शामिल है, जिसका माप 76 सेमी x 31 सेमी है।उसी साइट पर काम करने वाली एक अन्य टीम ने साइट की वास्तुकला में उपयोग की जाने वाली ईंटों पर थर्मोल्यूमिनसेंस डेटिंग नामक एक तकनीक लागू की। सामूहिक रूप से, परिणाम बताते हैं कि ओसी ईओ कॉम्प्लेक्स पर पहली और आठवीं शताब्दी ईस्वी के बीच लोग रहते थे।

एक मसालेदार इतिहास

हम जानते हैं कि वैश्विक मसाला व्यापार ने शास्त्रीय काल से एशिया, अफ्रीका और यूरोप की संस्कृतियों और अर्थव्यवस्थाओं को जोड़ा है। हालाँकि, इस अध्ययन से पहले हमारे पास पुरातात्विक स्थलों पर प्राचीन करी के सीमित साक्ष्य थे – और हमारे पास जो थोड़े साक्ष्य थे वे मुख्य रूप से भारत से आए थे। प्रारंभिक मसाला व्यापार के बारे में हमारा अधिकांश ज्ञान भारत, चीन और रोम के प्राचीन दस्तावेजों के सुरागों से आया है। हमारा शोध सबसे ठोस तरीके से पुष्टि करने वाला पहला शोध है, कि मसाले लगभग 2,000 साल पहले वैश्विक व्यापार नेटवर्क पर आदान-प्रदान की जाने वाली मूल्यवान वस्तुएँ थीं।

ओसी ईओ में पाए जाने वाले सभी मसाले इस क्षेत्र में प्राकृतिक रूप से उपलब्ध नहीं होंगे; किसी समय किसी ने उन्हें हिंद या प्रशांत महासागर के माध्यम से वहां पहुंचाया होगा। इससे साबित होता है कि करी का भारत से परे एक दिलचस्प इतिहास है, और करी मसालों को दूर-दूर तक पसंद किया जाता था। यदि आपने कभी शुरुआत से करी बनाई है, तो आपको पता होगा कि यह आसान नहीं है। इसमें काफी समय और प्रयास के साथ-साथ अद्वितीय मसालों की एक श्रृंखला और पीसने वाले उपकरणों का उपयोग शामिल है।

इसलिए यह ध्यान रखना दिलचस्प है कि लगभग 2,000 साल पहले, भारत के बाहर रहने वाले व्यक्तियों को करी का स्वाद लेने की तीव्र इच्छा थी – जैसा कि उनकी मेहनती तैयारियों से पता चलता है। एक और दिलचस्प खोज यह है कि आज वियतनाम में इस्तेमाल की जाने वाली करी रेसिपी प्राचीन ओसी ईओ काल से महत्वपूर्ण रूप से भिन्न नहीं है। हल्दी, लौंग, दालचीनी और नारियल का दूध जैसे प्रमुख घटक इसमें लगातार बने हुए हैं। इससे पता चलता है कि एक अच्छा नुस्खा समय की कसौटी पर खरा उतरेगा!

आगे क्या होगा?

इस अध्ययन में, हमने मुख्य रूप से सूक्ष्म पौधों के अवशेषों पर ध्यान केंद्रित किया। और हमें अभी भी इन निष्कर्षों की तुलना साइट से निकले अन्य बड़े पौधों के अवशेषों से करनी है। 2017 से 2020 तक की गई खुदाई के दौरान, हमारी टीम ने बड़ी संख्या में अच्छी तरह से संरक्षित बीज भी एकत्र किए। भविष्य में हम इनका भी विश्लेषण करने की आशा करते हैं। हम कई और मसालों की पहचान कर सकते हैं, या अद्वितीय पौधों की प्रजातियों की खोज भी कर सकते हैं – जो क्षेत्र के इतिहास के बारे में हमारी समझ को बढ़ाएगा। साइट पर अधिक डेटिंग पूरी करके, हम यह भी समझने में सक्षम हो सकते हैं कि विश्व स्तर पर प्रत्येक प्रकार के मसाले या पौधे का व्यापार कब और कैसे शुरू हुआ।

(वेईवेई वांग और ह्सियाओ-चुन हंग, ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी)कैनबरा



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अंजाम तक पहुंची नागोर्नो काराबाख की जंग, अजरबैजान ने 30 वर्ष बाद किया कब्जा

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नागोर्नो-काराबाख की जंग।

करीब 30 वर्षों की लंबी जद्दोजहद के बाद आखिरकार अजरबैजान ने फिर से नागोर्नो-काराबाख पर कब्जा पा लिया है। अभी तक यह शहर आर्मीनिया के अधीन था। यहां आर्मीनिया के सैनिकों का शासन था। मगर पिछले कई वर्षों से आर्मीनिया और अजरबैजान में नागोर्नो-काराबाख के लिए भीषण जंग हुई है। दोनों पक्षों की ओर से हजारों सैनिकों और लोगों की जानें गई। अब जाकर अजरबैजान ने नागोर्नो-काराबाख को अपने कब्जे में ले लिया है। लिहाजा अब यहां की अलगाववादी सरकार भी शीघ्र ही भंग हो जाएगी।

नागोर्नो-काराबाख की अलगाववादी सरकार ने बृहस्पतिवार को ऐलान किया कि एक जनवरी 2024 तक खुद को भंग कर देगी। हाल ही में अजरबैजान ने अपने से अलग हुए क्षेत्र पर पूर्ण नियंत्रण हासिल करने के लिए आक्रामक कार्रवाई की थी और नागोर्नो-काराबाख में आर्मीनियाई सैनिकों से अपने हथियार डालने तथा अलगाववादी सरकार से खुद को भंग करने के लिए कहा था। इसके बाद नागोर्नो-काराबाख की अलगाववादी सरकार की ओर से यह ऐलान किया गया है।

अलगाववादियों ने 30 वर्षों तक किया नागोर्नो-काराबाख पर शासन

नागोर्नो-काराबाख पर लगभग 30 वर्षों तक अलगाववादियों का शासन था। नागोर्नो-काराबाख पर दोबारा नियंत्रण हासिल करने के बाद अजरबैजान ने बुधवार को कहा कि क्षेत्र की अलगाववादी सरकार के पूर्व प्रमुख को आर्मेनिया में घुसने की कोशिश के दौरान गिरफ्तार कर लिया गया। अजरबैजान के सीमा सुरक्षा बल ने रुबेन वर्दनयान की गिरफ्तारी की घोषणा की। बल ने कहा कि वर्दनयान को देश की राजधानी बाकू ले जाकर ‘‘संबंधित प्राधिकारियों’’ को सौंप दिया गया, जो उनके बारे में फैसला करेंगे। (एपी)

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आतंकी संगठन बब्बर खालसा इंटरनेशनल यूरोप से लेकर US के सिखों से जुटाता है फंड

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प्रतीकात्मक फोटो

संयुक्त राष्ट्र महासभा से इतर पत्रकारों के एक सवाल के जवाब में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने यूं ही नहीं कहा कनाडा खालिस्तान का गढ़ बन चुका है, बल्कि इसके पीछे नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (NIA) के पास पूरा काला चिट्ठा मौजूद है। एनआइए के ये दस्तावेज इस बात की तस्दीक करते हैं कि कैसे कनाडा खालिस्तानी आतंकियों के लिए भारत विरोधी साजिशों का लॉचिंग पैड बन गया है। NIA की जांच में साफ हो चुका है कि प्रतिबंधित आतंकी संगठन बब्बर खालसा इंटरनेशनल मुख्य तौर पर यूरोप और नार्थ अमेरिका में रहने वाले सिख समुदाय से फंड इकट्ठा करता है।

बब्बर खालसा इंटरनेशनल ने कनाडा में अलग-अलग शहरों में सिख रैलियों और प्रदर्शन के जरिये भी फंड इकठ्ठा किया। इस फंड का इस्तेमाल भारत विरोधी गतिविधियों को अंजाम देने में किया गया। NIA ने अपनी तफ्तीश में सबसे बड़ा खुलासा ये किया कि बब्बर खालसा इंटरनेशनल का संबंध डॉन दाऊद इब्राहिम से भी है, जिसके पुख्ता सबूत भारतीय जांच एजेंसी के पास मौजूद हैं। NIA की जांच में ये भी पता चला कि बब्बर खालसा इंटरनेशनल ने दाऊद इब्राहिम के जरिये पाकिस्तानी आतंकी संगठनों लश्कर-ए-तय्यब और इंडियन मुजाहिद्दीन की मदद से भारत के खिलाफ साजिश को अंजाम दिया।

बब्बर खालसा नेटवर्क की दाऊद के बंगले पर हो चुकी है कई बैठकें

एनआइए के अनुसार बब्बर खालसा नेटवर्क की दाऊद के साथ कई बैठकें हो चुकी हैं। साल 2002 में भी बब्बर खालसा इंटरनेशनल के लखबीर सिंह के करीबी इक़बाल बंटी को अब्दुल करीम टुंडा करांची में दाऊद के बंगले पर भी लेकर गया था, जहां इनके बीच भारत के खिलाफ साजिशों को अंजाम देने को लेकर एक मीटिंग हुई थी। NIA की जांच में ये भी सामने आया है कि बब्बर खालसा इंटरनेशनल के तार पाकिस्तान के अलावा नार्थ अमेरिका, यूरोप स्कैंडेनेविया, कनाडा, यूके, बेल्जियम, फ्रांस, जर्मनी, नोवत और स्विट्जरलैंड तक फैला है।

पाकिस्तान की मदद से कर रहे भारत में साजिश

बब्बर खालसा पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी की मदद से भारत के खिलाफ अपने ऑपरेशन को अंजाम दे रहा है। जांच में ये भी सामने आया है कि पाकिस्तान में मौजूद बब्बर खालसा इंटरनेशनल का चीफ वाधवा सिंह और गैंगस्टर से आतंकी बने हरिंदर सिंह रिन्दा दोनों ISI के इशारे पर बब्बर खालसा की कमान संभाले हुए हैं और साल 2020 से हिंदुस्तान के खिलाफ पूरी तरह एक्टिव हैं। यह लंबे समय से भारत पर हमला करने के फिराक में हैं।

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ट्रूडो के आरोपों पर बड़ा खुलासा…भारत ने नहीं, पाक की ISI ने कराई निज्जर की हत्या

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कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो द्वारा खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारत पर लगाए गए आरोपों के बीच एक बड़ा खुलासा सामने आ रहा है। सूत्रों के अनुसार भारत को मिली जानकारी के मुताबिक पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई ने हरदीप सिंह निज्जर की हत्या कराई है। ऐसा माना जा रहा है कि पाकिस्तान ने यह काम भारत और कनाडा के रिश्ते को खराब करने के लिए किया है। इस बात का शक जताया जा रहा है कि ISI ने भाड़े के क्रिमिनल्स से निज्जर की हत्या करवाई है।

सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक निज्जर पर ISI इस बात का दबाव बना रही थी कि पिछले 2 सालों में कनाडा में जो गैंगस्टर आए हैं वह उनको पूरी तरीके से सहयोग करे। जबकि निज्जर ड्रग और हथियारों की तस्करी से आए धन को आईएसआई को नहीं देना चाहता था। यह भी कहा जा रहा है कि निज्जर का झुकाव पाकिस्तान के पुराने नेताओं के प्रति था। इसलिए आईएसआई के प्रति उसकी वफादारी कम हो गई थी। खुफिया एजेंसियों का मानना है कि जब निज्जर ने ISI की यह बात नहीं मानी तो पाकिस्तान की ओर से यह डबल क्रॉस साजिश रची गई।

आईएसआई खालिस्तानियों से मिलकर भारत में करा रहा ड्रग तस्करी

इतना ही नहीं, सूत्रों के मुताबिक आईएसआई की मदद से ही खालिस्तानी आतंकी गैंगस्टरों के साथ मिलकर पंजाब में ड्रग्स तस्करी का बड़ा नेटवर्क चला रहे हैं। जिसकी कमाई का बड़ा हिस्सा खालिस्तानी आतंकी और आईएसआई तक पहुंचता था, लेकिन पिछले कुछ समय से निज़्ज़र की वजह से आईएसआई की पकड़ इस नेटवर्क पर ढीली पड़ रही थी। इस हत्याकांड के बाद अब आईएसआई ने निज्जर के रिप्लेसमेंट की भी तलाश शुरू कर दी है और एक बार फिर वह भारत विरोधी खालिस्तानी आतंकी समर्थक एक बड़ा जलसा कनाडा में निकालने की तैयारी कर रहा है।

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