Fact Check: अगले साल लोकसभा चुनाव होने वाले हैं, जिसको लेकर तमाम दल अपनी-अपनी तैयारियों में जुट गए हैं। करोड़ों लोग आम चुनाव के दौरान वोटिंग करते हैं। चुनाव से ठीक पहले सोशल मीडिया पर एक अखबार की कटिंग वायरल हो रही है, जिसमें दावा किया जा रहा है कि अगर लोकसभा चुनाव में वोट नहीं डाला तो बैंक अकाउंट से 350 रुपये कट जाएंगे। इस पर केंद्र सरकार की फैक्ट चेकिंग यूनिट पीआईबी फैक्ट चेक ने बताया है कि यह खबर फर्जी है। दरअसल, यह पुरानी अखबार की कटिंग है, जोकि मजाकिया अंदाज में पब्लिश की गई थी। बाद में लोग इसे सच मानते हुए शेयर करने लगे, लेकिन यह खबर फर्जी है। ऐसा कोई भी फैसला नहीं लिया गया है।
आखिर क्या लिखा है अखबार की कटिंग में?
इस अखबार की कटिंग में बताया गया है कि इस बार लोकसभा चुनाव में वोट न डालना महंगा पड़ जाएगा। चुनाव आयोग ने मतदान से बचने वालों पर शिकंजा कसने का नया आदेश जारी किया है। वोट न डालने वालों की पहचान आधारकार्ड से होगी और उस कार्ड से लिंक उनके बैंक अकाउंट से 350 रुपये कट जाएंगे। वहीं, अगर अकाउंट नहीं है तो फिर मोबाइल रिचार्ज करवाने पर पैसे कट जाएंगे। दावा किया गया है कि आयोग ने पहले ही कोर्ट से भी मंजूरी ले ली है। ऐसे में अब इसके खिलाफ कोई भी याचिका कोर्ट में दायर नहीं की जा सकती है।
क्या है इस वायरल दावे की सच्चाई?
अब आते हैं कि क्या यह दावा सच है कि वोट नहीं डालने पर 350 रुपये कट जाएंगे? तो इसका जवाब है कि नहीं। यह गलत है। दरअसल, यह अखबार की कटिंग चार साल पहले की है। एक अखबार ने होली के मौके पर मजाकिया अंदाज में छपने वाली खबरों के हिसाब से ही इसे प्रकाशित किया था। बाद में इसकी सफाई भी दी गई थी कि खबर के आखिर में बुरा न मानो होली है और इस पेज की सभी खबरें काल्पनिक हैं। लेकिन इन दोनों लाइनों को काटकर सोशल मीडिया पर वायरल किया जाने लगा। अब जब अगले साल फिर से लोकसभा चुनाव आने वाले हैं, तो यह फिर से सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। पीआईबी फैक्ट चेक ने अखबार की कटिंग को ‘एक्स’ पर शेयर करते हुए लिखा है कि यह खबर फर्जी है। चुनाव आयोग ने ऐसा कोई भी फैसला नहीं लिया है।
खुदकुशी करने वाले शख्स की पहचान सुदर्शन देवराय के रूप में की है। देवराय ने नांदेड़ जिले की हिमायतनगर तहसील में रविवार आधी रात के बाद कथित तौर पर खुदकुशी कर ली।
कनाडा और भारत के बीच कूटनीतिक रिश्ते बुरे दौर में जाते हुए दिखाई दे रहे हैं। कनाडाई पीएम जस्टिन ट्रूडो द्वारा भारत पर अनर्गल आरोपों के बाद कनाडा ने भारतीय राजनयिक को बर्खास्त कर दिया था। अब इस कदम के जवाब में भारत सरकार ने भी कनाडा के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया है। भारत सरकार ने भी एक वरिष्ठ कनाडाई राजनयिक को बर्खास्त कर दिया है और उन्हें 5 दिनों में देश छोड़ने का आदेश दिया है।
उच्चायुक्त तलब
कनाडाई पीएम जस्टिन ट्रूडो के भारत विरोधी कदमों के बाद भारत सरकार के विदेश मंत्रालय ने विरोध जताने के लिए भारत में कनाडा के उच्चायुक्त कैमरून मैकेई को तलब किया था। ऐसा माना जा रहा था कि कनाडा को जवाब देने के लिए भारत सरकार भी कड़ा कदम उठा सकती है।
विदेश मंत्रालय का बयान
भारतीय विदेश मंत्रालय ने जारी किए गए बयान में कहा है कि भारत में कनाडा के उच्चायुक्त कैमरून मैकेई को आज तलब किया गया। उन्हें भारत में रह रहे एक वरिष्ठ कनाडाई राजनयिक को निष्कासित करने के भारत सरकार के फैसले के बारे में सूचित किया गया। संबंधित राजनयिक को अगले पांच दिनों के भीतर भारत छोड़ने के लिए कहा गया है। विदेश मंत्रालय ने कहा कि यह निर्णय हमारे आंतरिक मामलों में कनाडाई राजनयिकों के हस्तक्षेप और भारत विरोधी गतिविधियों में उनकी भागीदारी पर भारत सरकार की बढ़ती चिंता को दर्शाता है।
क्यों तल्ख हुए रिश्ते?
G-20 समिट में फटकार खाने के बाद कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो भारत विरोधी कदमों में जुट गए हैं। ट्रू़डो ने खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या का कनेक्शन भारत से जोड़ते हुए भारत के एक राजनयिक को निकाल दिया था। हालांकि, भारत सरकार ने कनाडाई पीएम के आरोपों को बेबुनियाद और आधारहीन करार दिया है। भारत ने साथ ही कनाडा से आतंकी तत्वों पर कार्रवाई करने की मांग की है। भारत ने कहा है कि इस तरह के बयान खालिस्तानियों से ध्यान हटाने के लिए दिए गए हैं।
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महिला आरक्षण बिल को लेकर स्थिति लगभग साफ होती नजर आ रही है। खबर है कि सरकार मंगलवार को ही संसद में बिल पेश कर सकती है। हालांकि, इसे लेकर आधिकारिक तौर पर कुछ नहीं कहा गया है। सोमवार को कैबिनेट बैठक में विधेयक पर मुहर लगा दी गई थी। इधर, महिला आरक्षण का श्रेय लेने के लिए कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी में होड़ लगती नजर आ रही है।
खास बात है कि मंगलवार से ही विशेष सत्र नए संसद भवन में पहुंच रहा है। ऐसे में अगर सरकार महिला आरक्षण बिल आज पेश कर देती है, तो नई संसद में पेश होने वाला यह पहला बिल होगा। हालांकि, यह बिल करीब 27 सालों से लंबित है और कांग्रेस की अगुवाई वाली UPA सरकार ने साल 2010 में इसे राज्यसभा में पास करा लिया था।