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यह तो ट्रेलर है, पिक्चर अभी… विपक्ष को ले न डूबे सनातन विवाद, पीएम मोदी ने सेट कर दिया लोकसभा चुनाव का एजेंडा!

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पिछले दिनों जब तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के बेटे उदयनिधि ने सनातन धर्म के मुद्दे पर विवादित टिप्पणी की थी, तभी अंदाजा हो गया था कि यह मुद्दा अब जल्दी थमने वाला नहीं है। पहले बीजेपी के नेताओं, मंत्रियों ने विपक्ष पर जमकर हमला बोला, अब खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुद्दे को को उठाते हुए विपक्ष को घेरना शुरू कर दिया है। एमपी चुनाव से पहले राज्य को 50,800 करोड़ की सौगात देने के बाद एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने इंडिया गठबंधन को घमंडिया करार दिया और कहा कि वे सनातन संस्कारों और परंपरा को समाप्त करने का संकल्प लेकर आए हैं। पीएम मोदी के इस भाषण के बाद साफ हो गया कि भले ही सनातन पर टिप्पणी डीएमके नेता ने की हो, लेकिन कांग्रेस समेत इंडिया गठबंधन में शामिल अन्य दल भी इससे अछूते नहीं रहने वाले। एमपी में सनातन विवाद को उठाकर पीएम ने साफ कर दिया है कि अभी यह एक तरह का ट्रेलर है और पूरी पिक्चर बाकी है। यानी कि बीजेपी आने वाले राज्यों के विधानसभा चुनाव से लेकर अगले साल लोकसभा चुनाव तक, इस मुद्दे को गर्म ही रखने वाली है।

पीएम मोदी ने सेट कर दिया 24 का एजेंडा

‘इंडिया’ गठबंधन को घमंडिया करार देते हुए सनातन मुद्दे पर विपक्ष को घेरकर पीएम मोदी ने 2024 के लोकसभा चुनाव का एजेंडा सेट कर दिया है। बीजेपी आने वाले दिनों में इस पर और करारे वार करने वाली है। पिछले दिनों राजस्थान चुनाव के लिए राज्य में गए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी इंडिया गठबंधन को सनातन मुद्दे पर घेरा था। शाह ने डूंगरपुर की रैली में कहा था कि दो दिन से आप देश की संस्कृति और सनातन धर्म का अपमान कर रहे हैं। उन्होंने कहा, ”वे कहते हैं कि यदि मोदी जीतेंगे तो सनातन राज आएगा। सनातन लोगों के दिल पर राज कर रहा है। पीएम मोदी ने कहा है कि भारत संविधान से चलेगा।” बीजेपी नेता चुनावी रैलियों और कार्यक्रमों में सनातन मुद्दे को लगातार उठा रहे हैं। इसके जरिए बीजेपी हिंदुत्व के मुद्दे पर आगे बढ़ते हुए दिख रही है। जहां एक ओर पीएम मोदी समेत पूरी बीजेपी सनातन पर कांग्रेस और उसके सहयोगियों को घेर रही है तो अयोध्या में बन रहे राम मंदिर का मुद्दा भी उसे लोकसभा चुनाव में फायदा पहुंचा सकता है। 90 के दशक से ही बीजेपी राम मंदिर और हिंदुत्व मुद्दे को आगे लेकर चली, जिसका सबसे बड़ा फायदा साल 2014 में मिला और सरकार बनाई। अब राम मंदिर के साथ-साथ बीजेपी के पास सनातन धर्म का मुद्दा आ गया है, तो उसे वह हर हाल में भुनाना चाहेगी।

उदयनिधि के सेल्फ गोल से ‘इंडिया’ को कितना नुकसान? 

तमिलनाडु के एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उदयनिधि स्टालिन ने सनातन धर्म की तुलना डेंगू, मलेरिया, कोरोना आदि से कर दी थी और कहा था कि जैसे इसका विरोध नहीं करते और खत्म किया जाता है, उसी तरह सनातन को भी खत्म करना है। उदय के इस बयान से तमिलनाडु में भले ही डीएमके को ज्यादा नुकसान न हो, लेकिन इंडिया में उसके सहयोगी और खासकर कांग्रेस व हिंदी पट्टी वाले दलों को बड़ा नुकसान झेलना पड़ सकता है। यूपी-बिहार, राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड आदि तमाम राज्यों में कांग्रेस और वहां के विपक्षी स्थानीय दलों को उदय की यह टिप्पणी बैकफुट पर डाल सकती है। यही वजह है कि आम आदमी पार्टी, कांग्रेस समेत कई दलों ने सनातन वाले बयान से किनारा भी कर लिया, लेकिन चूंकि डीएमके इंडिया गठबंधन में है और तमिलनाडु में कांग्रेस और डीएमके की सरकार चल रही है तो बीजेपी इस मुद्दे के जरिए इंडिया अलायंस पर हमला बोलती रहेगी। इससे यूपी में समाजवादी पार्टी, कांग्रेस, उत्तराखंड में कांग्रेस, बिहार में आरजेडी, जेडीयू, मध्य प्रदेश में कांग्रेस, दिल्ली में आम आदमी पार्टी आदि को लोकसभा चुनाव में सीटों के लिहाज से बड़ा नुकसान झेलना पड़ सकता है।

डीएमके नेताओं को सावधान करने के पीछे स्टालिन का क्या डर?

सनातन मुद्दे पर पूरे गठबंधन की किरकिरी करवाने की वजह से तमाम विपक्षी दलों का दबाव झेल रहे तमिलनाडु सीएम एमके स्टालिन ने अब सक्रियता दिखाई है। आने वाले समय में और नुकसान नहीं हो, इसके लिए उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं और नेताओं को सनातन विवाद से दूर रहने के लिए कहा है। एमके स्टालिन ने कहा, ”आम आदमी के मुद्दों पर पीएम मोदी चुप रहते हैं। पूरी कैबिनेट झूठ फैलाकर सनातन विवाद को तूल दे रही है। मैं डीएमके के नेताओं और कार्यकर्ताओं से कहना चाहूंगा कि वे इन हथकंडों से बचकर रहें।” स्टालिन के इस बयान से साफ है कि उन्हें भी अपने बेटे और राज्य सरकार के मंत्री उदय के बयान से हुए सेल्फ गोल का पता चल गया है। इसी वजह से उन्होंने आगे किसी भी तरह की टिप्पणी नहीं करने की सलाह दे दी, ताकि और किसी भी संभावित नुकसान से बचा जा सके।  



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MP में भाजपा ने क्यों उतारे बड़े-बड़े दिग्गज? कैलाश विजयवर्गीय ने खुद बताया ‘अपराजेय’ वाला फॉर्मूला

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MP chunav news: मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने सोमवार को उम्मीदवारों की दूसरी लिस्ट जारी की। 39 सीटों पर कई दिग्गजों को चुनावी मैदान में उतारा गया है। इनमें तीन केंद्रीय मंत्री, चार सांसद और राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय शामिल हैं। भाजपा सूत्रों के मुताबिक, दूसरी लिस्ट देखकर राज्य के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी आश्चर्यचकित हो गए थे। एक सूत्र ने बताया कि अब अगला सीएम कौन बनेगा यह बताया नहीं जा सकता। पहली लिस्ट में 39 और दूसरी में भी 39 सीटें पर नाम के ऐलान के बाद पार्टी के अंदर और बाहर खुसुर-फुसुर तेज हो गई है। ऐसे में भाजपा के दिग्गज नेता कैलाश विजयवर्गीय ने खुद बताया कि पार्टी ने यह फैसला क्यों लिया है।

भाजपा का अपराजेय’ वाला फॉर्मूला

कैलाश विजयवर्गीय ने ‘इंडियन एक्सप्रेस’ को दिए इंटरव्यू में बताया कि यह फैसला पार्टी नेतृत्व का है। दूसरी लिस्ट में जिन 8 सीनियर नेताओं (तीन केंद्रीय मंत्री, चार सांसद और कैलाश विजयवर्गीय) के नाम का ऐलान किया गया है वो कभी भी चुनाव नहीं हारे हैं। पार्टी ने हम लोगों को इसलिए चुनावी मैदान में उतारा है कि हम भाजपा की जीत को सुनिश्चित कर सकें।

बताया 2024 का भी प्लान

कैलाश विजयवर्गीय ने आगे कहा कि इससे यह पता चल रहा है कि भाजपा इस चुनाव को बेहद गंभीरता से ले रही है। चुनाव में हम सब एक टीम की तरह मैदान में उतरेंगे और सरकार बनने के बाद भी एक टीम की तरह ही काम करेंगे। फिर हम लोग अगले साल होने जा रहे लोकसभा चुनाव में भाजपा की जीत सुनिश्चित करेंगे और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक बार फिर पीएम बनाएंगे।

गौरतलब है कि मध्य प्रदेश में भाजपा ने दो लिस्ट में कुल 78 उम्मीदवारों के नाम का ऐलान किया है। दूसरी लिस्ट जारी होने के बाद नरेंद्र सिंह तोमर, प्रहलाद पटेल, कैलाश विजयवर्गीय और सीएम शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री पद के लिए प्रबल दावेदार माने जा रहे हैं। भाजपा ने यही प्लान त्रिपुरा चुनाव में भी अपनाया था जहां माणिक साहा और प्रतिमा भौमिक दोनों को चुनावी समर में उतारा गया था।



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लालू के ‘परबल’ का ‘र’ किसके साथ, क्या है बिहार में ठाकुरों के समीकरण पर RJD-BJP की रार और रणनीति?

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Bihar Politics Over Rajput Community: संसद के विशेष सत्र में महिला आरक्षण बिल पर राज्यसभा में राजद की ओर से मनोज झा ने चर्चा की थी। इस दौरान कोटे के अंदर कोटा की मांग करते हुए उन्होंने सभी लोगों से अपने अंदर के ठाकुर को मारने का आह्वान किया था। झा ने वंचितों के लिए भागीदारी सुनिश्चित कराने की सभी लोगों से अपील की थी। उन्होंने अपनी बात के समर्थन में सदन में ओमप्रकाश वाल्मीकि की कविता ‘ठाकुर का कुआं’ की कुछ लाइनें भी पढ़ीं थीं। अब उनके इस कविता पाठ पर बिहार से लेकर उत्तर प्रदेश तक सियासी रार छिड़ा है।

लालू यादव की पार्टी राजद के अंदर ही मनोज झा के ठाकुरों पर दिए बयान का विरोध हो रहा है। पहले पूर्व सांसद आनंद मोहन के MLA बेटे चेतन आनंद ने बयान दिया। बाद में खुद आनंद मोहन तीखी जुबान के साथ कूद पड़े और कह डाला कि अगर वह सदन में होते तो झा की जुबान खींच लेते। उधर, बीजेपी भी राजद सांसद के बयान पर बिहार में खूब हंगामा कर रही है। बीजेपी नेताओं ने पटना में इनकम टैक्स गोलंबर पर धरना प्रदर्शन दिया और झा के माफी नहीं मांगने पर सड़क से लेकर गली-गली तक विरोध की बात कही।

क्या है लालू का ‘परबल’ और उसका ‘र’

दरअसल, ये सारी कवायदें अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव के मद्देनजर हो रही हैं। राजपूत समाज अगड़ी जाति के तहत आता है। झा यानी ब्राह्मण भी उसी अगड़ी जाति के समुदाय का हिस्सा है। इनके अलावा राजपूत और कायस्थ जातियां भी अगड़ी जातियों में गिनी जाती हैं, जिसे लालू प्रसाद ने 1990 के दौर में कभी ‘परबल’ कहा था और उसकी भुजिया बनाने को कहा था। लालू ने इसी तरह के नारों से समाज के पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक वर्ग को इनके खिलाफ लामबंद कर 15 वर्षों तक राज किया था। परबल का मतलब- प से पंडित, र से राजपूत, ब से बाभन (भूमिहार) और ल से लाला यानी कायस्थ है। 

इसे कथित तौर पर ‘भूरा बाल’ भी कहा गया था। हालांकि, बाद के कई साक्षात्कारों में लालू यादव ने इस बात का खंडन किया कि उन्होंने कभी नहीं कहा कि ‘भूरा बाल’ साफ करो। यहां भी भूरा बाल से मतलब- भूमिहार, राजपूत, ब्राह्मण और लाला से है। लालू-राबड़ी के 15 वर्षों के शासनकाल और बाद के वर्षों में भी अगड़े समाज की तीन जातियों (ब्राह्मण, भूमिहार और कायस्थों) का बहुत ही कम वोट लालू यादव की पार्टी को मिलता रहा है लेकिन राजपूत वोट बैंक में लालू यादव ने शुरुआत से ही सेंधमारी कर रखी है।

बिहार में राजपूत कितना अहम?

बिहार में राजपूतों की आबादी करीब 6 से 8 फीसदी है। 30 से 35 विधानसभा सीटों में इस जाति की मजबूत पकड़ है। 2020 के विधानसभा चुनाव में राज्य की 243 सीटों में से 64 सीटों पर अगड़ी जाति के उम्मीदवारों की जीत हुई है। इनमें से 28 अकेले राजपूत हैं। 2015 के विधानसभा चुनाव में 20 राजपूत उम्मीदवार विधायक बने थे। बीजेपी ने असेंबली चुनावों से पहले अभिनेता सुशांत सिंह का मुद्दा खूब उठाया था। इसका फायदा भी उसे मिला। बीजेपी के 21 राजपूत उम्मीदवारों में से 15 जीतने में कामयाब रहे, जबकि उसकी सहयोगी रही जेडीयू के सात में से दो राजपूत कैंडिडेट ही जीत सके थे। एनडीए गठबंधन में वीआईपी के टिकट पर भी दो राजपूतों ने जीत दर्ज की थी।

राजद का स्ट्राइक रेट सबसे ज्यादा

तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाले गठबंधन ने कुल 18 राजपूतों को टिकट दिया था, जिसमें 8 ही जीतकर विधानसभा पहुंच सके। हालांकि, राजद के आठ राजपूत कैंडिडेट में से सात जीतने में कामयाब रहे और सबसे अधिर स्ट्राइक रेट दर्ज की। कांग्रेस ने 10 को टिकट दिया लेकिन जीते सिर्फ एक। इससे पहले यानी 2015 के चुनावों में बीजेपी के 9, आरजेडी के 2, जेडीयू के 6 और कांग्रेस से तीन राजपूत विधायक जीते थे। 

लोकसभा में भी राजपूतों का चला सिक्का

2019 के लोकसभा चुनावों में भी बिहार में राजपूत उम्मीदवारों का सिक्का चला। सबसे ज्यादा सात सीटों पर इसी बिरादरी के लोगों ने जीत दर्ज की। बिहार में लोकसभा की 40 सीटें हैं। इनमें से 39 सीटों पर बीजेपी-जेडीयू के गठबंधन वाली एनडीए ने जीत दर्ज की थी। 39 में सबसे ज्यादा सात पर राजपूत, 5 पर यादव, 3-3 पर भूमिहार- कुशवाहा, वैश्य, दो पर ब्राह्मण, एक-एक पर कायस्थ और कुर्मी, एससी के 6 और अति पिछड़ा वर्ग के 7 उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की। एक मात्र मुस्लिम चेहरे ने कांग्रेस के टिकट पर जीत दर्ज की थी।

राजपूतों का झुकाव किस ओर? 

चुनावी समीकरणों और हार-जीत के आंकड़ों पर गौर करें तो पता चलता है कि भूमिहार, ब्राह्मण और कायस्थ भाजपा के साथ है, जबकि राजपूत वोट अभी भी एकमुश्त भाजपा की तरफ नहीं है। हालांकि 2019 और 2020 में उनकी लामबंदी का फायदा भाजपा को मिला है लेकिन राजपूत समाज लालू का भी कोर वोट बैंक रहा है। लालू रघुवंश प्रसाद सिंह, जगदानंद सिंह, प्रभुनाथ सिंह और उमाशंकर सिंह जैसे राजपूत नेताओं के सहारे इस वोट बैंक में सेंध लगाते रहे हैं। 2009 के संसदीय चुनाव में राजद के तीन राजपूत उम्मीदवार सांसद बने थे। इनमें वैशाली से रघुवंश सिंह, बक्सर से जगदानंद सिंह और महाराजगंज से उमा शंकर सिंह शामिल थे।

आगे की रणनीति क्या?

राजद इस समुदाय का वोट पाने के लिए इनके नेताओं को तरजीह देती रही है। इसी कड़ी में प्रदेश राजद के अध्यक्ष के रूप में जगदानंद सिंह की नियुक्ति है। इसके अलावा चुनावों से ऐन पहले आनंद मोहन की पत्नी लवली आनंद को राजद में शामिल कराना और उनके बेटे को टिकट देना भी शामिल रहा है। हालांकि, हाल के दिनों में रघुवंश सिंह के विवाद के बाद राजद की स्थिति अपेक्षाकृत कमजोर हुई है, जबकि बीजेपी की स्थिति पहले से और मजबूत हुई है।

बीजेपी ने जिस तरह से सुशांत सिंह के मुद्दे को राजपूत अस्मिता और युवा अभिमान से जोड़कर राजपूत वोट बैंक को लामबंद किया है, उसी तरह से नए विवाद के जरिए भी 2024 के लोकसभा चुनाव में भी राजपूतों पर डोरे डाल रही है और सीधे तौर पर राजद को ही खलनायक बता रही है, जिसके पास बीजेपी के बाद सबसे ज्यादा रोजपूत वोट बैंक का शेयर है।



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भारत का विदेशी कर्ज बढ़कर 629 अरब डॉलर के पार, आरबीआई ने जारी किए जून के आंकड़े

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Photo:PIXABAY डॉलर

देश के ऊपर विदेशी कर्ज (India’s foreign debt) का आकार काफी बड़ा है। भारत का विदेशी कर्ज जून 2023 के आखिर में मामूली रूप से बढ़कर 629.1 अरब अमेरिकी डॉलर हो गया, हालांकि कर्ज-जीडीपी अनुपात में गिरावट आई है। भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की ओर से गुरुवार को जारी आंकड़ों में यह बात सामने आई। आंकड़ों में निकलकर सामने आया है कि, कर्ज में 4.7 अरब अमेरिकी डॉलर का इजाफा हुआ है। मार्च के आखिर में यह 624.3 अरब अमेरिकी डॉलर था। 

सरकार का सामान्य बकाया कर्ज घटा


खबर के मुताबिक, आरबीआई (RBI) ने कहा कि जून 2023 के आखिर में विदेशी ऋण (India’s foreign debt) और सकल घरेलू उत्पाद का अनुपात घटकर 18.6 प्रतिशत हो गया, जो मार्च 2023 के आखिर में 18.8 प्रतिशत था। आरबीआई (RBI) ने कहा कि सरकार का सामान्य बकाया कर्ज कम हुआ, जबकि गैर-सरकारी कर्ज जून 2023 के आखिर में बढ़ गया। इसके अलावा, विदेशी कर्ज में 32.9 प्रतिशत की सबसे ज्यादा हिस्सेदारी कर्ज की रही। इसके बाद इसमें मुद्रा और जमा, व्यापार ऋण और एडवांस और ऋण प्रतिभूतियों का योगदान रहा। 

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