थोड़ी सी रचनात्मकता और प्रयोगधर्मिता के दम पर गति शक्ति और राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति पड़ोसी प्रथम की हमारी नीति का आधार स्तंभ बन सकती हैं। बता रहे हैं श्याम सरन
भारत सरकार ने सुधार के मोर्चे पर दो उल्लेखनीय पहल की हैं। इनका आगाज तो बहुत सफलतापूर्वक हुआ है और यदि इन्हें अपेक्षित रूप से अंजाम देने में भी सफलता मिल जाए तो इनमें भारत को उत्पादक, सक्षम और वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी अर्थव्यवस्था बनाने की भरपूर संभावनाएं हैं।
सुधारों से जुड़ी इनमें से एक पहल है गति शक्ति, जिसे नैशनल इन्फ्रास्ट्रक्चर मास्टर प्लान नाम भी दिया गया है। इसे 13 अक्तूबर, 2021 को पेश किया गया था। वहीं दूसरी पहल नैशनल लॉजिस्टिक्स पॉलिसी है, जिसकी घोषणा 17 सितंबर को हुई। वास्तव में, ये एक दूसरे से जुड़े हुए दो ऐसे स्तंभ हैं, जिनके आधार पर 21वीं सदी की अर्थव्यवस्था के निर्माण की योजना है।
इन दोनों पहल के मुख्य पहलू क्या हैं? पहले गति शक्ति की बात करते हैं। यह सौ लाख करोड़ रुपये की महत्त्वाकांक्षी परियोजना है, जिसका लक्ष्य समग्रता की दृष्टि से बुनियादी ढांचे का विकास करना है, जिसमें 16 केंद्रीय मंत्रालयों और विभागों की अवसंरचना विकास से जुड़ी गतिविधियों को एक केंद्रीकृत डिजिटल पोर्टल के तहत लाना है। इनमें से ‘सात इंजन’ चिह्नित कर लिए गए हैं, जिनमें रेलवे, सड़क, बंदरगाह, जलमार्ग, हवाई अड्डे, सार्वजनिक परिवहन और लॉजिस्टिक्स इन्फ्रास्ट्रक्चर शामिल हैं। गति शक्ति में भारतमाला (राजमार्ग), सागरमाला (तटीय नौवहन), उड़ान (वायु सेवाओं), भारत नेट (दूरसंचार सेवाओं), रेलवे विस्तार और अंतर्देशीय जलमार्ग विस्तार जैसी महत्त्वपूर्ण योजनाओं का समावेश होगा।
वहीं नैशनल लॉजिस्टिक्स पॉलिसी या एनएलपी का उद्देश्य एक निर्बाध मल्टी-मोडल कनेक्टिविटी नेटवर्क की स्थापना है, जो देश भर में वस्तुओं, सेवाओं और लोगों की सुगम आवाजाही सुनिश्चित कर सके। इस प्रकार यह गति शक्ति के साथ अभिन्न रूप से जुड़ी हुई है और इसीलिए उसके साथ समन्वय कर ही इसे सिरे चढ़ाया जाना चाहिए। एनएलपी मुख्य रूप से डिजिटल तकनीक के उपयोग पर निर्भर रहेगी, जिसमें यूनिफाइड लॉजिस्टिक्स इंटरफेस प्लेटफॉर्म (यूलिप) की सहायता से देश भर में कार्गो की आवाजाही से जुड़ी सूचनाओं का स्रोत होगा और उसी के आधार पर ऐसी आवाजाही की राह में अवरोध दूर कर उसे सुगम बनाया जाएगा।
भारत में लॉजिस्टिक्स और आपूर्ति श्रृंखला लागत जीडीपी की करीब 12 प्रतिशत है और इस पहल के माध्यम से उसे घटाकर आठ प्रतिशत कर वैश्विक औसत के दायरे में लाने का लक्ष्य है। विश्व बैंक एक लॉजिस्टिक्स सूचकांक भी तैयार करता है, जिसे वैश्विक मानदंड माना जाता है। भारत इस सूचकांक में 35वें स्थान पर है। इन सूचकांकों में उल्लेखनीय सुधार लाए बिना भारत वैश्विक प्रतिस्पर्धी अर्थव्यवस्था के रूप में नहीं उभर सकता।
एनएलपी में इसे स्वीकार भी किया गया है, जिसका एक उद्देश्य ही ‘स्थानीय आपूर्ति श्रृंखलाओं का अंतरराष्ट्रीय आपूर्ति श्रृंखलाओं के साथ एकीकरण’ के रूप में उल्लिखित है। हालांकि तमाम अपेक्षित परिणामों में से एक के रूप में इस बिंदु को शामिल करने के बजाय यह कहीं अधिक प्रासंगिक होता यदि उसके ढांचे के केंद्रीय भाव में ही इसे जोड़ा जाता। असल में गति शक्ति और एनएलपी दोनों को साथ लाने के लिए उन्हें पुनर्गठित किया जाना चाहिए।
पहले चरण में तो भारतीय उपमहाद्वीप में क्षेत्रीय आर्थिक एकीकरण के स्तर पर, फिर उसे व्यापक एशियाई और वैश्विक अर्थव्यवस्था तक विस्तारित किया जाए। आर्थिक एवं तकनीकी दृष्टि से भी भारत दक्षिण एशिया का सबसे बड़ा और शक्तिशाली देश है और केवल उसके नेतृत्व में ही क्षेत्रीय एकीकरण की कोई ऐसी कवायद पूरी हो सकती है। गति शक्ति और एनएलपी के प्रत्येक घटक को भारत के पड़ोस तक विस्तार देकर उन्हें उनके आर्थिक एवं सामाजिक विकास का शक्तिशाली उपकरण बनाया जा सकता है।
इस आरंभिक चरण में अनुभव प्राप्त करके उन्हें बिम्सटेक (बंगाल की खाड़ी बहु-क्षेत्रीय तकनीकी एवं आर्थिक सहयोग पहल) मंच तक ले जाया जा सकता है, जिसका उद्देश्य दक्षिण एशिया और दक्षिणपूर्व एशिया के बीच जुड़ाव की कड़ी जोड़ना है। परिवहन कनेक्टिविटी के साथ इसकी सबसे स्वाभाविक शुरुआत होगी।
वैसे तो दक्षेस सदस्य देशों ने 2010-20 के दशक में मल्टी-मोडल ट्रांसपोर्ट कनेक्टिविटी को लेकर प्रतिबद्धता दिखाई, लेकिन कई परियोजनाएं द्विपक्षीय स्तर पर आगे बढ़ीं तो क्षेत्रीय फोकस पृष्ठभूमि में चला गया। मैं पहले भी यह दलील देता रहा हूं कि अपने परिवहन और लॉजिस्टिक्स नेटवर्क तक पहुंच के मामले में अपने पड़ोसियों के साथ भारत को ‘राष्ट्रीय आचरण’ के अनुरूप ही व्यवहार का विस्तार करना चाहिए।
भारत को भारतीय उपमहाद्वीप के सभी देशों का सबसे तरजीही विकास साझेदार और पसंद का पारगमन देश बनना चाहिए। गति शक्ति और एनएलपी इस दिशा में उत्साहजनक संभावनाएं बनाती हैं। उदाहरण के रूप में बांग्लादेश, भूटान, भारत और नेपाल (बीबीआईएन) उप-क्षेत्रीय सहयोग मंच के माध्यम से तमाम पार-देशीय नदियों को जोड़कर एकीकृत स्वरूप में जलमार्गों का विकास किया जा सकता है। नदी परिवहन नेटवर्क को मौजूदा और नए विकसित किए जा रहे बंदरगाहों के साथ ही आगे बढ़ाया जा सकता है और इसमें तटीय शिपिंग (सागरमाला के जरिये) और सामुद्रिक व्यापार दोनों को प्रोत्साहन की गुंजाइश है।
जहां तक एनएलपी की बात है तो उसके अंतर्गत देश भर के नोडल पॉइंट्स पर आधुनिक गोदाम और लॉजिस्टिक्स सुविधाएं विकसित होनी हैं। इनमें से कुछ को साझा उपयोग के लिए पड़ोसी देशों में क्यों नहीं स्थापित किया जाता? गति शक्ति और एनएलपी में डिजिटल तकनीकों का उपयोग दोनों का अभिन्न पहलू है तो क्या इन पोर्टलों को हमारे पड़ोसियों की भागीदारी के लिए नहीं खोला जा सकता है? उदाहरण के लिए, उन्हें यूलिप में शामिल किया जा सकता है।
इन दोनों पहल के कुछ ऐसे कुछ और पहलू भी हैं, जो क्षेत्र में अन्य देशों के लिए प्रासंगिक होंगे। जैसे कि रेल सेवाओं का विस्तार और जल परिवहन का व्यापक उपयोग एवं सड़क परिवहन की बड़ी हिस्सेदारी को घटाना ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ाने और जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध संघर्ष में महत्त्वपूर्ण हैं।
ये सभी सामूहिक लक्ष्य हैं और इन पहल को क्षेत्रीय आयाम देकर साझा प्रतिक्रिया के लिए प्रेरित किया जा सकता है। अब इस दिशा में विचार किया जाए कि भारत द्वारा गति शक्ति और एनएलपी को कैसे क्षेत्रीय आयाम देना चाहिए? पहला यही कि इन पहल से जुड़ा खाका नए सिरे से खींचा जाए, ताकि यह स्पष्ट रूप से हमारे पड़ोसी देशों तक विस्तारित हो सकें।
शुरुआती स्तर पर बीबीआईएन देशों और श्रीलंका और मालदीव जैसे द्वीपीय देशों के साथ यह राजनीतिक रूप से भी व्यवहार्य हो सकता है। जब पाकिस्तान में ऐसे सहयोग के लिए अनुकूल राजनीतिक माहौल बन जाए तो उसे भी इसमें शामिल करने की संभावनाएं बन सकती हैं।
दूसरा यही कि आरंभ में बीबीआईएन और द्वीपीय पड़ोसियों के बीच नदी परिवहन और तटीय नौवहन पर ध्यान केंद्रित करें। सुरक्षित नदी नेविगेशन की एकीकृत योजना तैयार की जाए। नदी पर बंदरगाह और गोदाम-भंडारण सुविधाओं के विकास के साथ उन्हें मौजूदा एवं प्रस्तावित तटीय बंदरगाहों से जोड़ें, जिससे तटीय नौवहन को प्रोत्साहन मिले।
तीसरा यही कि भारत के यूलिप में दिलचस्पी रखने वाले पड़ोसी देशों को भागीदारी की पेशकश करें, जिससे उन्हें कम लेनदेन और आपूर्ति श्रृंखला लागत के मोर्चे पर लाभ मिलेगा।
हमारे पड़ोसियों को इन पहल से परिचित कराने और उन्हें इनमें भागीदारी एवं सहयोग के अवसर प्रदान करने के लिए लक्ष्य-केंद्रित कूटनीतिक प्रयासों की दरकार होगी। वस्तुतः, थोड़ी सी रचनात्मकता और प्रयोगधर्मिता के दम पर गति शक्ति और एनएलपी में हमारी पड़ोसी प्रथम नीति का अहम स्तंभ बनने की भरपूर संभावनाएं हैं।
(लेखक पूर्व विदेश सचिव और सीपीआर में सीनियर फेलो हैं)