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सुप्रीम कोर्ट ने यूपी, दिल्ली और हरियाणा की सरकारों को नोटिस दिया है।
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा के नूंह में हुई हिंसा के बाद विश्व हिंदू परिषद द्वारा निकाली जा रही रैलियों पर रोक लगाने से बुधवार को इनकार कर दिया। हालांकि कोर्ट ने साथ ही केंद्र समेत उत्तर प्रदेश, हरियाणा और दिल्ली की राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि नूंह में सांप्रदायिक हिंसा के विरोध में विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल द्वारा निकाले जा रहे मार्च के दौरान दिल्ली-NCR में कोई ‘हेट स्पीच’ न दी जाए और न ही किसी तरह की हिंसा हो। बता दें कि बजरंग दल और विश्व हिंदू परिषद के सदस्यों ने नूंह में हुई हिंसा के खिलाफ दिल्ली के कई हिस्सों में विरोध प्रदर्शन किया।
4 अगस्त को मामले पर फिर होगी सुनवाई
न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति एस. वी. भट्टी की बेंच ने केंद्र एवं संबंधित राज्य सरकारों को यह भी आदेश दिया कि अतिरिक्त पुलिस या अर्धसैनिक बल तैनात किए जाएं और संवेदनशील इलाकों में CCTV कैमरे लगाए जाएं। पत्रकार शाहीन अब्दुल्ला की ओर से पेश वरिष्ठ वकील सी. यू. सिंह ने अदालत से कहा कि दक्षिणपंथी संगठनों विहिप और बजरंग दल द्वारा राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) के विभिन्न हिस्सों में 23 प्रदर्शनों की घोषणा की गई है, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश पारित किया। कोर्ट अब 4 अगस्त को इस मामले पर फिर सुनवाई करेगा।
नूंह में भड़की हिंसा के बाद 6 लोगों की मौत बता दें कि 31 जुलाई को भीड़ द्वारा VHP के जुलूस को रोकने की कोशिश के बाद नूंह में भड़की सांप्रदायिक हिंसा में 2 होम गार्ड सहित 6 लोग मारे गए हैं। राज्य सरकार के अनुसार, अब तक हिंसा के संबंध में 116 लोगों को गिरफ्तार किया गया है। नूंह, मेवात, गुरुग्राम एवं आसपास के इलाकों में अभी भी तनाव बना हुआ है। VHP ने हिंसा में मारे गए लोगों के परिजनों को एक-एक करोड़ रुपये का मुआवजा और घायलों को 20-20 लाख रुपये की आर्थिक मदद देने की मांग की है। VHP ने साथ ही मांग की है कि जिन लोगों की गाड़ियां बर्बाद हो गई हैं, उन्हें भी पूरी क्षतिपूर्ति दी जाए।
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खुदकुशी करने वाले शख्स की पहचान सुदर्शन देवराय के रूप में की है। देवराय ने नांदेड़ जिले की हिमायतनगर तहसील में रविवार आधी रात के बाद कथित तौर पर खुदकुशी कर ली।
कनाडा और भारत के बीच कूटनीतिक रिश्ते बुरे दौर में जाते हुए दिखाई दे रहे हैं। कनाडाई पीएम जस्टिन ट्रूडो द्वारा भारत पर अनर्गल आरोपों के बाद कनाडा ने भारतीय राजनयिक को बर्खास्त कर दिया था। अब इस कदम के जवाब में भारत सरकार ने भी कनाडा के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया है। भारत सरकार ने भी एक वरिष्ठ कनाडाई राजनयिक को बर्खास्त कर दिया है और उन्हें 5 दिनों में देश छोड़ने का आदेश दिया है।
उच्चायुक्त तलब
कनाडाई पीएम जस्टिन ट्रूडो के भारत विरोधी कदमों के बाद भारत सरकार के विदेश मंत्रालय ने विरोध जताने के लिए भारत में कनाडा के उच्चायुक्त कैमरून मैकेई को तलब किया था। ऐसा माना जा रहा था कि कनाडा को जवाब देने के लिए भारत सरकार भी कड़ा कदम उठा सकती है।
विदेश मंत्रालय का बयान
भारतीय विदेश मंत्रालय ने जारी किए गए बयान में कहा है कि भारत में कनाडा के उच्चायुक्त कैमरून मैकेई को आज तलब किया गया। उन्हें भारत में रह रहे एक वरिष्ठ कनाडाई राजनयिक को निष्कासित करने के भारत सरकार के फैसले के बारे में सूचित किया गया। संबंधित राजनयिक को अगले पांच दिनों के भीतर भारत छोड़ने के लिए कहा गया है। विदेश मंत्रालय ने कहा कि यह निर्णय हमारे आंतरिक मामलों में कनाडाई राजनयिकों के हस्तक्षेप और भारत विरोधी गतिविधियों में उनकी भागीदारी पर भारत सरकार की बढ़ती चिंता को दर्शाता है।
क्यों तल्ख हुए रिश्ते?
G-20 समिट में फटकार खाने के बाद कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो भारत विरोधी कदमों में जुट गए हैं। ट्रू़डो ने खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या का कनेक्शन भारत से जोड़ते हुए भारत के एक राजनयिक को निकाल दिया था। हालांकि, भारत सरकार ने कनाडाई पीएम के आरोपों को बेबुनियाद और आधारहीन करार दिया है। भारत ने साथ ही कनाडा से आतंकी तत्वों पर कार्रवाई करने की मांग की है। भारत ने कहा है कि इस तरह के बयान खालिस्तानियों से ध्यान हटाने के लिए दिए गए हैं।
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महिला आरक्षण बिल को लेकर स्थिति लगभग साफ होती नजर आ रही है। खबर है कि सरकार मंगलवार को ही संसद में बिल पेश कर सकती है। हालांकि, इसे लेकर आधिकारिक तौर पर कुछ नहीं कहा गया है। सोमवार को कैबिनेट बैठक में विधेयक पर मुहर लगा दी गई थी। इधर, महिला आरक्षण का श्रेय लेने के लिए कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी में होड़ लगती नजर आ रही है।
खास बात है कि मंगलवार से ही विशेष सत्र नए संसद भवन में पहुंच रहा है। ऐसे में अगर सरकार महिला आरक्षण बिल आज पेश कर देती है, तो नई संसद में पेश होने वाला यह पहला बिल होगा। हालांकि, यह बिल करीब 27 सालों से लंबित है और कांग्रेस की अगुवाई वाली UPA सरकार ने साल 2010 में इसे राज्यसभा में पास करा लिया था।