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निपाह से निपटने के लिए सरकार की क्या है तैयारी? क्यों खतरनाक होता जा रहा है यह वायरस?

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केरल में निपाह वायरस का प्रकोप चौथी बार आया है।

नई दिल्ली: केरल के कोझिकोड जिले में एक और शख्स के निपाह वायरस का संक्रमण बढ़ता जा रहा है। वायरस की चपेट में एक और ऐसे शख्स के आने की पुष्टि हुई है जो 30 अगस्त को जान गंवाने वाले संक्रमित मरीज के सीधे संपर्क में आया था। उपचाराधीन मरीजों की संख्या बढ़ने के कारण राज्य सरकार ने उन सभी लोगों की जांच का फैसला किया है जो संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आए हैं और जिनके संक्रमित होने का खतरा ज्यादा है। निपाह वायरस से जुड़ी खबरों ने अब आम आदमी का ध्यान भी खींचना शुरू कर दिया है। आज हम आपको बताएंगे कि निपाह से निपटने के लिए सरकार की क्या तैयारी है और यह वायरस क्यों खतरनाक होता जा रहा है।

सरकार ने शुरू की वायरस से निपटने की तैयारी


सरकार ने इस खतरनाक वायरस से निपटने की तैयारी शुरू कर दी है। यही वजह है कि भारत निपाह वायरस संक्रमण के इलाज के लिए ऑस्ट्रेलिया से मोनोक्लोनल एंटीबॉडी की 20 और खुराक खरीदने जा रहा है। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद या ICMR के महानिदेशक राजीव बहल ने शुक्रवार को इस बारे में जानकारी देते हुए यह भी कहा कि इस बीमारी से निपटने के लिए एक वैक्सीन विकसित करने के प्लान पर भी काम चल रहा है। बता दें कि केरल में निपाह वायरस संक्रमण के मामले बार-बार सामने आ रहे हैं, और ऐसे में वैक्सीन का विकसित होना राहत की बात होगी।

‘मोनोक्लोनल एंटीबॉडी से बची है 14 मरीजों की जान’

निपाह वायरस में मृत्यु दर कोविड-19 के मुकाबले काफी ज्यादा है। ICMR के महानिदेशक बहल ने कहा कि निपाह में संक्रमित लोगों की मृत्यु दर 40 से 70 प्रतिशत के बीच है, जबकि कोविड में मृत्यु दर 2-3 प्रतिशत थी। उन्होंने कहा, ‘हमें 2018 में ऑस्ट्रेलिया से मोनोक्लोनल एंटीबॉडी की कुछ डोज मिलीं। वर्तमान में डोज केवल 10 मरीजों के लिए उपलब्ध हैं।’ उन्होंने कहा कि भारत के बाहर निपाह वायरस से संक्रमित 14 मरीजों को मोनोक्लोनल एंटीबॉडी दी गई और वे सभी बच गए हैं। उन्होंने कहा कि दवा के सुरक्षित होने को तय करने के लिए केवल फेज-1 का परीक्षण बाहर किया गया है और इसकी प्रभावक्षमता का परीक्षण नहीं किया गया है।

‘इंडेक्स मरीज से संपर्क में आने से संक्रमित हुए लोग’

बहल ने कहा कि कहा कि मोनोक्लोनल एंटीबॉडी का डोज केवल उन्हीं मरीजों को दिया जा सकता है, जिनके इलाज के लिये कोई अधिकृत संतोषजनक उपचार विधि नहीं है। उनके मुताबिक, भारत में अब तक किसी को भी यह दवा नहीं दी गई है। बहल ने कहा, ‘20 और डोज खरीदी जा रही हैं, लेकिन संक्रमण के शुरुआती फेज में ही दवा देने की जरूरत है।’ उन्होंने जोर देकर कहा कि केरल में वायरस के प्रसार को रोकने के लिए सभी प्रयास जारी हैं। बहल ने कहा कि अभी तक मिले सभी मरीज ‘इंडेक्स मरीज’ (संक्रमण की पुष्टि वाले पहले मरीज) के संपर्क में आने से संक्रमित हुए हैं।

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निपाह वायरस की वैक्सीन के लिए ICMR प्लानिंग कर रहा है।

वैक्सीन बनाने के लिए प्लानिंग कर रहा ICMR

बता दें कि यह चौथी बार है जब राज्य में निपाह वायरस के संक्रमण की पुष्टि हुई है। ऐसे में निपाह के लिए वैक्सीन विकसित करने पर काम शुरू करने की ICMR की प्लानिंग पर बहल ने कहा कि इस प्रक्रिया के तहत उन साझेदारों की तलाश की जा रही है जो इसे बना सकते हैं। उन्होंने कहा, ‘इस समय हमारी सबसे बड़ी कामयाबी यह है कि हमने कोविड के दौरान कई अलग-अलग तरीकों से वैक्सीन विकसित किए हैं जैसे कि DNA वैक्सीन, mRNA वैक्सीन, एडेनोवायरल वेक्टर टीके हैं, और हम निपाह संक्रमण जैसी बीमारी के खिलाफ नई वैक्सीन विकसित करने के लिए इन विविध तरीकों का इस्तेमाल कर सकते हैं।’

निपाह के मामले में सामने आया ‘चमगादड़ कनेक्शन’

केरल में निपाह से संक्रमण के मामले बार-बार क्यों सामने आ रहे हैं, इस पर बहल ने कहा, ‘हम नहीं जानते। 2018 में हमने पाया कि केरल में यह प्रकोप चमगादड़ों से जुड़ा था। हमें पता नहीं है कि संक्रमण चमगादड़ों से मनुष्यों में कैसे पहुंचा। इसकी कड़ी जुड़ नहीं सकी। इस बार फिर हम पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं। बरसात के मौसम में ऐसा हमेशा होता है।’ निपाह संक्रमण में उच्च मृत्यु दर को देखते हुए बहल ने कहा कि एहतियात बरतना ही सबसे अच्छा विकल्प है। उन्होंने लोगों को सोशल डिस्टैंसिंग रखने, मास्क पहनने और ऐसे कच्चे खाद्य पदार्थ न खाने की सलाह दी है जो चमगादड़ के संपर्क में आए हों।

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निपाह वायरस संक्रमण में चमगादड़ों की भूमिका भी सामने आई है।

जंगल के आसपास रहने वालों को ज्यादा खतरा

केरल में इससे पहले 2018 और 2021 में कोझिकोड में और 2019 में एर्नाकुलम में निपाह वायरस के मामले सामने आ चुके हैं जिससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह कितना खतरनाक होता जा रहा है। जिला प्रशासन ने पहले ही कोझिकोड के स्कूलों में एक हफ्ते की छुट्टी घोषित कर दी है। WHO और ICMR की स्टडी से पता चला है कि सिर्फ कोझिकोड ही नहीं बल्कि पूरा राज्य इस तरह के संक्रमण की चपेट में है। वन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को सबसे अधिक सावधानी बरतनी होगी। स्टडी में कहा गया है कि नया वायरस जंगली क्षेत्र के 5 किलोमीटर के दायरे के भीतर उत्पन्न हुआ है।

केंद्र ने जायजा लेने के लिए केरल भेजी कई टीमें

इस बीच केंद्र ने स्थिति का जायजा लेने और निपाह संक्रमण से निपटने में राज्य सरकार की मदद करने के लिए राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र, राम मनोहर लोहिया (RML) अस्पताल और राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य और स्नायु विज्ञान संस्थान (NIMHANS) के एक्सपर्ट्स की 5 लोगों की केंद्रीय टीम को केरल भेजा है। माना जा रहा है कि निपाह वायरस की मौजूदगी की जांच के लिए चमगादड़ों से नमूने एकत्र किए जाएंगे। केरल की स्वास्थ्य मंत्री वीना जॉर्ज ने कहा कि ICMR की MBSL-3 लैब जैविक संक्रमण से तृतीय स्तर की सुरक्षा वाली दक्षिण एशिया की पहली लैब है और इसे कोझिकोड में तैनात किया गया है। इसके अलावा राजीव गांधी जैवविज्ञान केंद्र की भी एक लैब जिले में भेजी गई है।





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लालू के ‘परबल’ का ‘र’ किसके साथ, क्या है बिहार में ठाकुरों के समीकरण पर RJD-BJP की रार और रणनीति?

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Bihar Politics Over Rajput Community: संसद के विशेष सत्र में महिला आरक्षण बिल पर राज्यसभा में राजद की ओर से मनोज झा ने चर्चा की थी। इस दौरान कोटे के अंदर कोटा की मांग करते हुए उन्होंने सभी लोगों से अपने अंदर के ठाकुर को मारने का आह्वान किया था। झा ने वंचितों के लिए भागीदारी सुनिश्चित कराने की सभी लोगों से अपील की थी। उन्होंने अपनी बात के समर्थन में सदन में ओमप्रकाश वाल्मीकि की कविता ‘ठाकुर का कुआं’ की कुछ लाइनें भी पढ़ीं थीं। अब उनके इस कविता पाठ पर बिहार से लेकर उत्तर प्रदेश तक सियासी रार छिड़ा है।

लालू यादव की पार्टी राजद के अंदर ही मनोज झा के ठाकुरों पर दिए बयान का विरोध हो रहा है। पहले पूर्व सांसद आनंद मोहन के MLA बेटे चेतन आनंद ने बयान दिया। बाद में खुद आनंद मोहन तीखी जुबान के साथ कूद पड़े और कह डाला कि अगर वह सदन में होते तो झा की जुबान खींच लेते। उधर, बीजेपी भी राजद सांसद के बयान पर बिहार में खूब हंगामा कर रही है। बीजेपी नेताओं ने पटना में इनकम टैक्स गोलंबर पर धरना प्रदर्शन दिया और झा के माफी नहीं मांगने पर सड़क से लेकर गली-गली तक विरोध की बात कही।

क्या है लालू का ‘परबल’ और उसका ‘र’

दरअसल, ये सारी कवायदें अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव के मद्देनजर हो रही हैं। राजपूत समाज अगड़ी जाति के तहत आता है। झा यानी ब्राह्मण भी उसी अगड़ी जाति के समुदाय का हिस्सा है। इनके अलावा राजपूत और कायस्थ जातियां भी अगड़ी जातियों में गिनी जाती हैं, जिसे लालू प्रसाद ने 1990 के दौर में कभी ‘परबल’ कहा था और उसकी भुजिया बनाने को कहा था। लालू ने इसी तरह के नारों से समाज के पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक वर्ग को इनके खिलाफ लामबंद कर 15 वर्षों तक राज किया था। परबल का मतलब- प से पंडित, र से राजपूत, ब से बाभन (भूमिहार) और ल से लाला यानी कायस्थ है। 

इसे कथित तौर पर ‘भूरा बाल’ भी कहा गया था। हालांकि, बाद के कई साक्षात्कारों में लालू यादव ने इस बात का खंडन किया कि उन्होंने कभी नहीं कहा कि ‘भूरा बाल’ साफ करो। यहां भी भूरा बाल से मतलब- भूमिहार, राजपूत, ब्राह्मण और लाला से है। लालू-राबड़ी के 15 वर्षों के शासनकाल और बाद के वर्षों में भी अगड़े समाज की तीन जातियों (ब्राह्मण, भूमिहार और कायस्थों) का बहुत ही कम वोट लालू यादव की पार्टी को मिलता रहा है लेकिन राजपूत वोट बैंक में लालू यादव ने शुरुआत से ही सेंधमारी कर रखी है।

बिहार में राजपूत कितना अहम?

बिहार में राजपूतों की आबादी करीब 6 से 8 फीसदी है। 30 से 35 विधानसभा सीटों में इस जाति की मजबूत पकड़ है। 2020 के विधानसभा चुनाव में राज्य की 243 सीटों में से 64 सीटों पर अगड़ी जाति के उम्मीदवारों की जीत हुई है। इनमें से 28 अकेले राजपूत हैं। 2015 के विधानसभा चुनाव में 20 राजपूत उम्मीदवार विधायक बने थे। बीजेपी ने असेंबली चुनावों से पहले अभिनेता सुशांत सिंह का मुद्दा खूब उठाया था। इसका फायदा भी उसे मिला। बीजेपी के 21 राजपूत उम्मीदवारों में से 15 जीतने में कामयाब रहे, जबकि उसकी सहयोगी रही जेडीयू के सात में से दो राजपूत कैंडिडेट ही जीत सके थे। एनडीए गठबंधन में वीआईपी के टिकट पर भी दो राजपूतों ने जीत दर्ज की थी।

राजद का स्ट्राइक रेट सबसे ज्यादा

तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाले गठबंधन ने कुल 18 राजपूतों को टिकट दिया था, जिसमें 8 ही जीतकर विधानसभा पहुंच सके। हालांकि, राजद के आठ राजपूत कैंडिडेट में से सात जीतने में कामयाब रहे और सबसे अधिर स्ट्राइक रेट दर्ज की। कांग्रेस ने 10 को टिकट दिया लेकिन जीते सिर्फ एक। इससे पहले यानी 2015 के चुनावों में बीजेपी के 9, आरजेडी के 2, जेडीयू के 6 और कांग्रेस से तीन राजपूत विधायक जीते थे। 

लोकसभा में भी राजपूतों का चला सिक्का

2019 के लोकसभा चुनावों में भी बिहार में राजपूत उम्मीदवारों का सिक्का चला। सबसे ज्यादा सात सीटों पर इसी बिरादरी के लोगों ने जीत दर्ज की। बिहार में लोकसभा की 40 सीटें हैं। इनमें से 39 सीटों पर बीजेपी-जेडीयू के गठबंधन वाली एनडीए ने जीत दर्ज की थी। 39 में सबसे ज्यादा सात पर राजपूत, 5 पर यादव, 3-3 पर भूमिहार- कुशवाहा, वैश्य, दो पर ब्राह्मण, एक-एक पर कायस्थ और कुर्मी, एससी के 6 और अति पिछड़ा वर्ग के 7 उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की। एक मात्र मुस्लिम चेहरे ने कांग्रेस के टिकट पर जीत दर्ज की थी।

राजपूतों का झुकाव किस ओर? 

चुनावी समीकरणों और हार-जीत के आंकड़ों पर गौर करें तो पता चलता है कि भूमिहार, ब्राह्मण और कायस्थ भाजपा के साथ है, जबकि राजपूत वोट अभी भी एकमुश्त भाजपा की तरफ नहीं है। हालांकि 2019 और 2020 में उनकी लामबंदी का फायदा भाजपा को मिला है लेकिन राजपूत समाज लालू का भी कोर वोट बैंक रहा है। लालू रघुवंश प्रसाद सिंह, जगदानंद सिंह, प्रभुनाथ सिंह और उमाशंकर सिंह जैसे राजपूत नेताओं के सहारे इस वोट बैंक में सेंध लगाते रहे हैं। 2009 के संसदीय चुनाव में राजद के तीन राजपूत उम्मीदवार सांसद बने थे। इनमें वैशाली से रघुवंश सिंह, बक्सर से जगदानंद सिंह और महाराजगंज से उमा शंकर सिंह शामिल थे।

आगे की रणनीति क्या?

राजद इस समुदाय का वोट पाने के लिए इनके नेताओं को तरजीह देती रही है। इसी कड़ी में प्रदेश राजद के अध्यक्ष के रूप में जगदानंद सिंह की नियुक्ति है। इसके अलावा चुनावों से ऐन पहले आनंद मोहन की पत्नी लवली आनंद को राजद में शामिल कराना और उनके बेटे को टिकट देना भी शामिल रहा है। हालांकि, हाल के दिनों में रघुवंश सिंह के विवाद के बाद राजद की स्थिति अपेक्षाकृत कमजोर हुई है, जबकि बीजेपी की स्थिति पहले से और मजबूत हुई है।

बीजेपी ने जिस तरह से सुशांत सिंह के मुद्दे को राजपूत अस्मिता और युवा अभिमान से जोड़कर राजपूत वोट बैंक को लामबंद किया है, उसी तरह से नए विवाद के जरिए भी 2024 के लोकसभा चुनाव में भी राजपूतों पर डोरे डाल रही है और सीधे तौर पर राजद को ही खलनायक बता रही है, जिसके पास बीजेपी के बाद सबसे ज्यादा रोजपूत वोट बैंक का शेयर है।



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भारत का विदेशी कर्ज बढ़कर 629 अरब डॉलर के पार, आरबीआई ने जारी किए जून के आंकड़े

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Photo:PIXABAY डॉलर

देश के ऊपर विदेशी कर्ज (India’s foreign debt) का आकार काफी बड़ा है। भारत का विदेशी कर्ज जून 2023 के आखिर में मामूली रूप से बढ़कर 629.1 अरब अमेरिकी डॉलर हो गया, हालांकि कर्ज-जीडीपी अनुपात में गिरावट आई है। भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की ओर से गुरुवार को जारी आंकड़ों में यह बात सामने आई। आंकड़ों में निकलकर सामने आया है कि, कर्ज में 4.7 अरब अमेरिकी डॉलर का इजाफा हुआ है। मार्च के आखिर में यह 624.3 अरब अमेरिकी डॉलर था। 

सरकार का सामान्य बकाया कर्ज घटा


खबर के मुताबिक, आरबीआई (RBI) ने कहा कि जून 2023 के आखिर में विदेशी ऋण (India’s foreign debt) और सकल घरेलू उत्पाद का अनुपात घटकर 18.6 प्रतिशत हो गया, जो मार्च 2023 के आखिर में 18.8 प्रतिशत था। आरबीआई (RBI) ने कहा कि सरकार का सामान्य बकाया कर्ज कम हुआ, जबकि गैर-सरकारी कर्ज जून 2023 के आखिर में बढ़ गया। इसके अलावा, विदेशी कर्ज में 32.9 प्रतिशत की सबसे ज्यादा हिस्सेदारी कर्ज की रही। इसके बाद इसमें मुद्रा और जमा, व्यापार ऋण और एडवांस और ऋण प्रतिभूतियों का योगदान रहा। 

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महाभारत और सिया के राम के बाद आएगा चिरंजीवी हनुमान, पढ़ें खबर 

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चिरंजीवी हनुमान का स्टार प्लस में होगा आगाज

नई दिल्ली:

एपिक सागा ने दर्शकों को बांधे रखने का काम किया है. चाहे वह सीरियल सिया के राम हो या महाभारत की गाथा. फैंस को एक अलग एहसास के साथ आइकोनिक गाथा को ऑडियंस के सामने पेश किया गया है. वहीं अब इसी में एक और नाम जुड़ने वाला है, जो है चिरंजीवी हनुमान: राम भक्ति रुद्र शक्ति का. स्टार प्लस अपने दर्शकों को दिलचस्प और मजेदार कंटेंट देने के लिए जाना जाता है. इसमें अपने अत्यधिक आकर्षक शो के जरिए प्यार, ड्रामा, बदला और कई अन्य भावनाओं से लेकर सभी शामिल हैं. अनुपमा जैसी शानदार सीरीज, जो महिला सशक्तिकरण को दर्शाती है. वहीं ये रिश्ता क्या कहलाता है, तेरी मेरी डोरियां, इमली, ये है चाहतें, तितली, बातें कुछ अनकही सी, और कह दूं तुम्हें की कहानी, फैमिली ड्रामा और रोमांस पर फोकस करता है, जिसे दर्शकों ने खूब सराहा है.

इसी सफर को जारी रखते हुए स्टार प्लस ने एक बार फिर इतिहास में एंट्री की है और अपने दर्शकों के लिए सबसे आइकोनिक गाथा, चिरंजीवी हनुमान: राम भक्ति रुद्र शक्ति लेकर आया है. इस ऐतिहासिक शो की असाधारणता और भव्यता का अनुभव जल्द ही दर्शकों को होगा.

इस एपिक कहानी में शक्तिशाली हनुमान की मदद से सीता को रावण के चंगुल से बचाने की राम की खोज को दर्शाया गया है, और यह शो भगवान हनुमान की यात्रा पर प्रकाश डालेगा. यह एक टाइमलेस ड्रामा है, जो दर्शकों को किरदारों की भव्यता और शो को एक एपिक और ताज़ा नजरिए से याद दिलाने में मदद करेगा. शो चिरंजीवी हनुमान: राम भक्ति रुद्र शक्ति निश्चित रूप से दर्शकों के दिलों में किरदारों की छाप छोड़ेगा, और हम इससे अधिक सहमत नहीं हो सकते हैं.

चिरंजीवी हनुमान: राम भक्ति रुद्र शक्ति स्टार प्लस पर प्रसारित होने के लिए पूरी तरह तैयार है, जिसकी झलक नए वीडियो में देखने को मिली है. 



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