पात्र संस्थागत नियोजन (QIP) और राइट्स इश्यू से जुटाए गए इक्विटी फंड साल 2016 के बाद के निचले स्तर पर आ गए, जिसकी वजह बाजार का मुश्किल भरा माहौल और बढ़त वाली पूंजी की दरकार का अभाव थी। साल 2022 में क्यूआईपी व राइट्स इश्यू के जरिये क्रमश: 11,743 करोड़ रुपये व 4,052 करोड़ रुपये जुटाए गए।
सूचीबद्ध कंपनियां नई पूंजी जुटाने के लिए क्यूआईपी को तरजीह देती हैं। अपनी फंडिंग की जरूरत के कारण वित्तीय फर्में क्यूआईपी जारी करने के मामले में सबसे बड़ी हैं। सेंट्रम कैपिटल के पार्टनर (निवेश बैंकिंग) प्रांजल श्रीवास्तव ने कहा, क्यूआईपी का जुड़ाव सीधे तौर पर बाजारों से होता है। बाजारों में उतारचढ़ाव लेनदेन की अंतिम कीमत तय करना मुश्किल बना देता है।
इस साल अब तक बेंचमार्क सेंसेक्स में 4.9 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज हुई लेकिन बाजारों में काफी समय तक झंझावात देखा गया। व्यापक बाजारों का रिटर्न सुस्त रहा और बीएसई मिडकैप इंडेक्स 1 फीसदी चढ़ा जबकि बीएसई स्मॉलकैप में 2.5 फीसदी की गिरावट आई। कई कारकों मसलन वैश्विक केंद्रीय बैंकों की तरफ से ब्याज दर बढ़ोतरी, रुपये में कमजोरी, वैश्विक मंदी का डर और जिंसों की कीमतों में उछाल से इक्विटी में अस्थिरता रही।
सूचीबद्ध फर्मों को मौजूदा शेयरधारकों को नए शेयरों की पेशकश के जरिए रकम जुटाने की व्यवस्था राइट्स इश्यू कहलाती है और इसके तहत मोटे तौर पर छूट पर शेयरों की पेशकश की जाती है। अगर मौजूदा शेयरधारक राइट्स इश्यू में भागीदार नहीं बनने का इरादा जताते हैं तो ये शेयर किसी अन्य के दिए जाने का प्रावधान है।
राइट्स इश्यू का इस्तेमाल अक्सर फर्में तब करती हैं जब प्रवर्तक समूह का इरादा अपनी शेयरधारिता बनाए रखने का होता है। श्रीवास्तव ने कहा, राइट्स इश्यू के जरिए रकम जुटाना कंपनी विशेष की जरूरत से ज्यादा जुड़ाव रखता है। साथ ही क्या प्रवर्तक इस इश्यू को फंड देंगे या नहीं।
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निवेश बैंकरों ने कहा कि साल 2021 में माहौल ज्यादा तेजी का था और इसने फर्मों को अपनी-अपनी रकम जुटाने की योजनाओं को आगे बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया। पूंजी की किल्लत और बाजार के उतारचढ़ाव के कारण फर्मों के ज्यादा सतर्क होने से चीजें बदली हैं। इस साल आईपीओ के जरिए काफी छोटी रकम जुटाए गए (अगर हम एलआईसी के इश्यू को छोड़ दें तो)। निवेश बैंकरों ने यह जानकारी दी।
संस्थागत निवेशक आगे बढ़ने का रुख दिख रहे बाजारों में निवेश करना पसंद करते हैं। शेयर कीमतों में उतारचढ़ाव और मंदी के परिदृश्य ने निवेशकों को हतोत्साहित किया। क्यूआईपी की कीमत मोटे तौर पर बाजार कीमत के आसपास होती है। कमजोर बाजार में निवेशकों को मार्क टु मार्केट नुकसान का झटका मिल सकता है।
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