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दिल्ली के वायुदूत रखेंगे राजधानी के वायु प्रदूषण निगरानी तंत्र पर नज़र

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दिल्ली के वायुदूत रखेंगे राजधानी के वायु प्रदूषण निगरानी तंत्र पर नज़र

दिल्ली में बढ़ते वायु प्रदूषण के स्तर को देखते हुए इस बार दिवाली से पहले फिर से ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (GRAP) लागू हो गया है।
इस बीच प्रदूषण को कम करने में सरकारी कार्य योजना के कार्यान्वयन में स्वच्छ वायु मानदंडों और नियमों के उल्लंघन पर नागरिक रिपोर्टिंग को प्रोत्साहित करने के साथ-साथ इलेक्ट्रिक वाहनों, सार्वजनिक परिवहन और अपशिष्ट प्रबंधन जैसे समाधानों को अपनाने को बढ़ावा देने के लिए, URJA (यूनाइटेड रेसिडेंट्स जाइंट एक्शन ऑफ डेल्ही) ने आज दिल्ली के नागरिकों के साथ हुई एक बैठक में “दिल्ली के वायुदूत” नाम से एक जन भागीदारी अभियान शुरू किया। अभियान वायु प्रदूषण पर नागरिक कार्रवाई को मान्यता देगा और जागरूकता और पहल के लिए नागरिक-से-नागरिक समर्थन को सक्षम करेगा। अभियान की शुरुआत दिल्ली के 13 वायु प्रदूषण हॉटस्पॉट क्षेत्रों से होगी।
दिल्ली के मुख्यमंत्री ने व्यक्तिगत गारंटी दी थी की वो साल 2025 तक दिल्ली में वायु प्रदूषण को 2/3 तक कम कर देंगे। उस मियाद में फिलहाल 2 साल से थोड़ा अधिक समय बचा है। मगर यह लक्ष्य राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) लक्ष्य से भी बड़ा लक्ष्य है। दिल्ली के नागरिकों को अभी यह तक नहीं पता है कि उनके मुख्यमंत्री द्वारा बनाया लक्ष्य किस रोडमैप पर चल रहा है और अब तक के प्रयास किस प्रकार प्रदूषण को कम कर रहे हैं।
साल 2017-18 की तुलना में दिल्ली में 2021-22 में PM10 के स्तरों में 18.6% की कमी देखी गयी हालिया एनसीएपी रिपोर्ट के मुताबिक। मगर यह पूरी तस्वीर पेश नहीं करती है। PM10 अकेला प्रदूषक नहीं जो हमें प्रभावित करता है। दिल्ली की हवा में कई अन्य प्रदूषकों पर भी नजर रखने की जरूरत है। और वायु प्रदूषण में आई कमी के लिए नीतियों से ज़्यादा लॉकडाउन और महामारी के चलते लगे तमाम प्रतिबंध जिम्मेदार थे।
जहां एक ओर एनसीएपी का लक्ष्य 2024 तक 20-30% की कमी करना है वहीं दिल्ली के मुख्यमंत्री की गारंटी है कि अपने कार्यकाल के अंत तक वो 67% प्रदूषण कम कर देंगे। उनके अनुमान के अनुसार, 31% वायु प्रदूषण दिल्ली के क्षेत्र के भीतर के स्रोतों से उत्पन्न होता है जबकि शेष बाहरी स्रोतों के लिए आता है। इसका मतलब है कि सरकार को आंतरिक और बाहरी दोनों स्रोतों पर निर्णायक कार्रवाई सुनिश्चित करनी होगी।
दिल्ली के मुख्यमंत्री द्वारा सर्दियों के प्रदूषण के मौसम के लिए हाल ही में जारी की गई 15-सूत्रीय कार्य योजना में पड़ोसी राज्यों में फसल के पराली जलाने वाले किसानों को मुफ्त बायो-डीकंपोजर का उल्लेख है। ध्यान रहे कि आम आदमी पार्टी द्वारा शासित पंजाब में पराली का जलना अभी से तेजी से बढ़ने लगा है।
हाल ही में जारी सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, पराली जलाने से दिल्ली में वायु प्रदूषण केवल 3% होता है, जबकि सरकार का मानना है कि यह प्रदूषण का प्रमुख योगदानकर्ता है। इतना ही नहीं, दिल्ली का एक्यूआई दिवाली से पहले 17 अक्टूबर को 242 की पर खराब श्रेणी में पहुंच गया था।
सरकार द्वारा चिन्हित 15 बिंदुओं में से कोई भी बिंदु प्रदूषण के साल भर के स्थानीय स्रोतों को खत्म करने की बात नहीं करता है।
धूल, वाहन, कचरा और उद्योग के उद्देश्य से 4 बिंदु निगरानी टीमों की तैनाती पर ध्यान केंद्रित करते हैं मगर इससे यह सुनिश्चित नहीं होगा कि प्रदूषण में आयी कमी भविष्य में फिर कभी न पलटे। इसके अलावा, निगरानी टीमों के साथ अब तक के नागरिक अनुभव बताते हैं कि इसमें तमाम कमियां होती हैं क्योंकि इन्हें बनाने से पहले या इन्हें बनाने के दौरान नागरिक परामर्श, भागीदारी और कार्यान्वयन पारदर्शिता को प्राथमिकता नहीं दी जाती है।
सरकार द्वारा सिर्फ निगरानी, प्रतिबंधों और GRAP की मदद से प्रदूषण कम करने की रणनीति सरकार में दूरगामी सोच की कमी को दर्शाती है। जहां एक ओर गर्मी के महीनों में सर्दियों के लिए रणनीति का परीक्षण होना चाहिए, वहाँ इस साल अप्रैल में जारी ग्रीष्मकालीन कार्य योजना में ऐसा तंत्र स्थापित करने का कोई प्रयास नहीं किया गया जो प्रदूषण के स्रोतों को खत्म कर सके। ग्रीष्मकालीन योजना निगरानी टीमों और अन्य उपायों पर ध्यान केंद्रित करती है जिनका निकट भविष्य में वायु प्रदूषण पर सीधा प्रभाव नहीं पड़ता है।
सरकार की ओर से गलत फोकस का एक उदाहरण ग्रीन कवर बढ़ाने के उद्देश्य से कई एक्शन पॉइंट हैं, जबकि दिल्ली में प्रदूषण हॉटस्पॉट में से एक, आरके पुरम में बिना किसी औद्योगिक गतिविधि के काफी ज़्यादा ग्रीन कवर है।
आरडब्ल्यूए और नागरिक स्वयंसेवकों की हाल ही हुई एक बैठक में, URJA ने विचार-विमर्श किया और सरकार से 2025 तक वायु प्रदूषण में 2/3 कमी को प्राप्त करने के लिए एक ब्लूप्रिंट की मांग की। ब्लूप्रिंट के साथ-साथ दिल्ली के नागरिक ग्रीन सेस फंड और अन्य बजट प्रावधानों के उपयोग में भी पारदर्शिता चाहते हैं।
क्योंकि कई सरकारी नीतियां और सार्वजनिक कार्यक्रम नियोजन के समय नागरिकों को शामिल नहीं किया जाता है, इसलिए इस चर्चा का एक मुद्दा यह भी रहा। इसी तरह, नागरिक चर्चा में जोर नीति की प्रगति, बजट उपयोग, वार्षिक लक्ष्य, और एक डिजिटल, उपयोगकर्ता के अनुकूल लोक शिकायत समाधान पर नियमित रूप से सार्वजनिक रिपोर्टिंग तंत्र, प्रणाली में पारदर्शिता और जवाबदेही आदि पर भी रहा।
सरकारी कार्य योजना के कार्यान्वयन में स्वच्छ वायु मानदंडों और नियमों के उल्लंघन पर नागरिक रिपोर्टिंग को प्रोत्साहित करने के साथ-साथ इलेक्ट्रिक वाहनों, सार्वजनिक परिवहन और अपशिष्ट प्रबंधन जैसे समाधानों को अपनाने को बढ़ावा देने के लिए, URJA ने आज की बैठक में “दिल्ली के वायुदूत” नाम से एक जन भागीदारी वाला अभियान शुरू किया। अभियान वायु प्रदूषण पर नागरिक कार्रवाई को मान्यता देगा और जागरूकता और पहल के लिए नागरिक-से-नागरिक समर्थन को सक्षम करेगा। अभियान की शुरुआत दिल्ली के 13 वायु प्रदूषण हॉटस्पॉट क्षेत्रों से होगी।
अपनी प्रतिक्रिया देते हुए URJA के अध्यक्ष, अतुल गोयल ने कहा, “URJA दिल्ली को रहने योग्य, सांस लेने योग्य और आवागमन योग्य बनाने की अपनी मांग पर कायम है। प्रदूषण के स्थानीय स्रोतों को खत्म करने के लिए व्यवस्थित दृष्टिकोण के बिना कच्ची कार्य योजनाएं दिल्ली के नागरिकों के किसी काम की नहीं हैं। सरकार द्वारा प्रदूषण में दो तिहाई कटौती का खाका दिल्ली में लाखों लोगों के लिए एक दूसरे के साथ सहयोग करने और स्वामित्व लेने की नींव रखेगा क्योंकि इससे उन्हें सरकार के दृष्टिकोण और धन के उपयोग पर भरोसा बढ़ेगा। इस दिशा में दिल्ली के वायुदूत अभियान सरकार के प्रयासों का पूरक होगा।”

इसी क्रम में वसंत कुंज आरडब्ल्यूए के वायुदूत अमित अग्रवाल ने कहा, “किसी वार्ड की सभी स्थानीय समस्याओं का प्रभावी ढंग से समाधान उस क्षेत्र के नागरिकों की भागीदारी के माध्यम से ही किया जा सकता है। इस अभियान के माध्यम से शहर के प्रत्येक नागरिक को स्थानीय क्षेत्र कार्यान्वयन एजेंसियों को जवाबदेह ठहराते हुए स्वच्छ हवा में योगदान देने के साथ-साथ अन्य नागरिकों के साथ प्रभावी रूप से समाधान अपनाने में सहयोग का निर्माण करना होगा।”

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वर्ल्‍ड एनर्जी आउटलुक 2022: वैश्विक ऊर्जा संकट खोल सकता है स्‍वच्‍छ ऊर्जा उत्पादन और खपत के रास्ते

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वर्ल्‍ड एनर्जी आउटलुक 2022: वैश्विक ऊर्जा संकट  खोल सकता है स्‍वच्‍छ ऊर्जा उत्पादन और खपत के रास्ते  

आईईए के वर्ल्‍ड एनर्जी आउटलुक (World Energy Outlook) के ताजा संस्‍करण के मुताबिक युक्रेन पर रूस की सैन्‍य कार्रवाई के कारण उत्‍पन्‍न हुआ वैश्विक ऊर्जा संकट गहरे और लम्‍बे वक्‍त तक बरकरार रहने वाले बदलावों की वजह बन रहा है। इन परिवर्तनों में ऊर्जा प्रणाली में अधिक टिकाऊ और सुरक्षित रूपांतरण को तेज करने की क्षमता रखते हैं।   

आज का ऊर्जा संकट अभूतपूर्व व्‍यापकता और जटिलता भरा झटका दे रहा है। गैस, तेल और बिजली के बाजारों में इसके सबसे बड़े झटके महसूस किये जा रहे हैं। तेल के बाजार में खासी खलबली के बाद आईईए के सदस्‍य देशों द्वारा गैर-समानांतर स्‍तर पर दो तेल स्‍टॉक जारी करने पड़े ताकि और अधिक गम्‍भीर दिक्‍कतों को टाला जा सके। वर्ल्‍ड एनर्जी आउटलुक (डब्‍ल्‍यूईओ) 2022 में आगाह किया गया है कि अविश्वसनीय भू-राजनीतिक और आर्थिक चिंताओं के साथ ऊर्जा बाजार बेहद कमजोर बने हुए हैं और यह संकट वर्तमान वैश्विक ऊर्जा प्रणाली की नजाकत और अस्थिरता का एहसास कराता है। 

डब्‍ल्‍यूईओ के विश्‍लेषण से कुछ वर्गों द्वारा किये जा रहे उन दावों के समर्थन में बहुत कम सुबूत मिलते हैं कि जलवायु सम्‍बन्‍धी नीतियों और नेट जीरो से जुड़े संकल्‍पों के कारण ऊर्जा के दामों में वृद्धि हुई है। सबसे ज्‍यादा प्रभावित क्षेत्रों में अक्षय ऊर्जा की ज्‍यादा हिस्‍सेदारी का सम्‍बन्‍ध बिजली की कम कीमतों से है और अधिक दक्षतापूर्ण घरों और विद्युतीकृत ऊष्‍मा ने कुछ उपभोक्‍ताओं के लिये महत्‍वपूर्ण राहत दी, अलबत्‍ता ये नाकाफी है। सबसे ज्‍यादा बोझ गरीब परिवारों पर पड़ रहा है जो अपनी आमदनी का बड़ा हिस्‍सा बिजली पर खर्च करते हैं।  

उपभोक्‍ताओं को संकट से बचाने की कोशिश के तहत उठाये जाने वाले अल्‍पकालिक कदमों के साथ-साथ अनेक सरकारें अब दीर्घकालिक कदम भी उठा रही हैं। कुछ सरकारें तेल और गैस आपूर्ति को बढ़ाने और उनका विविधीकरण करने की कोशिश कर रही हैं जबकि अनेक अन्‍य अपने यहां ढांचागत बदलावों के तेज करने के प्रयास में लगी हैं। सबसे उल्‍लेखनीय कदमों में अमेरिका का इंफ्लेशन रिडक्‍शन एक्‍ट, यूरोपीय संघ को फिट टू 55 पैकेज और आरई पावर ईयू, जापान का ग्रीन ट्रांसफॉर्मेशन (जीएक्‍स) कार्यक्रम और कोरिया का अपने ऊर्जा मिश्रण में परमाणु और अक्षय ऊर्जा की हिस्‍सेदारी को बढाने का लक्ष्‍य तथा चीन और भारत के अक्षय ऊर्जा सम्‍बन्‍धी महत्‍वाकांक्षी लक्ष्‍य शामिल हैं।  

पूरी दुनिया में ताजा नीतियों से निर्मित माहौल पर आधारित डब्‍ल्‍यूईओ के स्‍टेटेड पॉलिसीज सिनैरिया में इन नये कदमों से वर्ष 2030 तक वैश्विक स्‍तर पर स्‍वच्‍छ ऊर्जा निवेश को बढ़ाकर दो ट्रिलियन डॉलर से ज्‍यादा करने में मदद मिलेगी, जो आज के मुकाबले 50 प्रतिशत ज्‍यादा होगी। बाजार पुनर्संतुलित हो रहे हैं, ऐसे में आज के संकट से कोयले को मिल रही बढ़त दरअसल अस्‍थायी है क्‍योंकि परमाणु ऊर्जा द्वारा समर्थित अक्षय ऊर्जा में स्‍थायी रूप से वृद्धि हो रही है। परिणामस्‍वरूप, वर्ष 2025 में वैश्विक स्‍तर पर उत्‍सर्जन अपने उच्‍च स्‍तर पर पहुंच जाएगा। ठीक उसी वक्‍त दुनिया के विभिन्‍न देश रूस-यूरोप के प्रवाह के टूटने के कारण अंतर्राष्‍ट्रीय ऊर्जा बाजार 2020 के दशक में एक गहन पुनर्रचना से गुजरेंगे।   

आईईए के अधिशासी निदेशक फातिह बिरोल ने कहा “युक्रेन में रूस की सैन्‍य कार्रवाई के परिणामस्‍वरूप ऊर्जा बाजार और नीतियां बदल गयी हैं। न सिर्फ अभी के लिये बल्कि आने वाले दशकों तक इसका असर बाकी रहेगा। यहां तक कि आज की नीतियों के तहत भी ऊर्जा की दुनिया हमारी आंखों के सामने नाटकीय रूप से बदल रही है। दुनिया भर की सरकारों द्वारा इस पर दी जा रही प्रतिक्रियाएं इसे एक अधिक स्‍वच्‍छ, ज्‍यादा किफायती और अधिक सुरक्षित ऊर्जा प्रणाली बनाने के लिहाज से ऐतिहासिक और निश्‍चयात्‍मक टर्निंग प्‍वाइंट साबित करेंगी।” 

पहली बार, आज की प्रचलित नीति व्‍यवस्‍था के आधार पर एक डब्‍ल्‍यूईओ परिदृश्य (इस मामले में, घोषित नीतियां परिदृश्य) में शिखर या उससे कुछ कम (plateau) प्रदर्शित करने वाले हर जीवाश्म ईंधन की वैश्विक मांग है। इस परिदृश्‍य में अगले कुछ सालों में कोयले का इस्‍तेमाल कम हो जाएगा, इस दशक के अंत तक प्राकृतिक गैस की मांग स्थिर हो जाएगी और इलेक्ट्रिक वाहनों की बढ़ती बिक्री का मतलब है कि इस सदी के मध्‍य तक कुछ कम होने से पहले 2030 के दशक के मध्‍य में तेल की मांग खत्‍म हो जाएगी। इसका मतलब यह है कि जीवाश्म ईंधन की कुल मांग 2020 के मध्य से 2050 तक एक बड़े तेल क्षेत्र के जीवनकाल के उत्पादन के बराबर वार्षिक औसत से लगातार घट रही है। डब्‍ल्‍यूईओ के अधिक जलवायु-केंद्रित परिदृश्यों में गिरावट बहुत तेज तथा अधिक स्पष्ट है। 

18वीं सदी में औद्योगिक क्रांति की शुरुआत से ही जीडीपी के साथ-साथ वैश्विक स्‍तर पर जीवाश्‍म ईंधन का इस्‍तेमाल भी बढ़ा है :  

इस वृद्धि को पलट देना ऊर्जा इतिहास में एक महत्वपूर्ण क्षण होगा। घोषित नीतियों के परिदृश्य में वैश्विक ऊर्जा मिश्रण में जीवाश्म ईंधनकी हिस्सेदारी 2050 तक लगभग 80% से गिरकर 60% से अधिक हो जाएगी। वैश्विक स्‍तर पर कार्बन डाई ऑक्‍साइड का उत्सर्जन प्रति वर्ष 37 बिलियन टन के उच्च बिंदु से 2050 तक 32 बिलियन टन तक धीरे-धीरे वापस आ जाता है। यह वर्ष 2100 तक वैश्विक औसत तापमान में लगभग 2.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ जुड़ा होगा, जो गंभीर जलवायु परिवर्तन प्रभावों से बचने के लिए पर्याप्त नहीं है। सभी जलवायु प्रतिज्ञाओं पर पूरी तरह से अमल दुनिया को सुरक्षित भविष्‍य की ओर ले जाएगी, लेकिन आज की प्रतिज्ञाओं और वैश्विक तापमान में लगभग 1.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के स्थिरीकरण के बीच अब भी एक बड़ा अंतर है। 

आज सोलर पैनल, वायु, इलेक्ट्रिक वाहन और बैट्री के इस्‍तेमाल की बढ़ती दर अगर बरकरार रही तो इससे स्‍टेटेड पॉलिसीज सिनैरियो में अनुमानित गति से ज्‍यादा रफ्तार से रूपांतरण होगा। हालांकि इसके लिये सहयोगात्‍मक नीतियों की जरूरत होगी। न सिर्फ शुरुआती बढ़त बनाये बाजारों में बल्कि पूरी दुनिया में भी। बैट्री, सोलर पीवी और इलेक्‍ट्रोलाइजर समेत कुछ प्रमुख प्रौद्योगिकियों की आपूर्ति श्रंखलाओं में उन दरों से वृद्धि हो रही है जो व्‍यापक वैश्विक महत्‍वाकांक्षा का समर्थन करती हैं। अगर सोलर पीवी के लिये घोषित सभी निर्माण विस्‍तार योजनाएं परवान चढ़ीं तो निर्माण क्षमता वर्ष 2030 में घोषित प्रतिज्ञा परिदृश्य में तैनाती के स्तर से लगभग 75% अधिक होगी। हाइड्रोजन उत्‍पादन के लिये इलेक्‍ट्रोलाइजर के मामले में सभी घोषित परियोजनाओं की क्षमता में सम्‍भावित वृद्धि करीब 50 प्रतिशत होगी।  

इस साल के डब्‍ल्‍यूईओ के मुताबिक ऊर्जा निवेश में भारी वृद्धि करने के लिये अधिक मजबूत नीतियों की आवश्‍यकता होगी। यह निवेश भविष्‍य में कीमतों में होने वाली वृद्धि और भंगुरता के जोखिमों को कम करने लिये जरूरी होगा। वर्ष 2015-2020 की अवधि में कम कीमतों की वजह से ऊर्जा क्षेत्र में हुआ कम निवेश ऐसे खराब हालात के लिये जिम्‍मेदार रहा जिन्‍हें वर्ष 2022 में देखा जा रहा है। अगर स्‍टेट्स पॉलिसीज सिनेरियो में वर्ष 2030 तक अक्षय ऊर्जा में निवेश बढ़कर दो ट्रिलियन डॉलर तक हो जाता है तो वर्ष 2050 के नेट जीरो एमिशंस के लिये उसी तारीख तक चार ट्रिलियन डॉलर से ज्‍यादा के निवेश की जरूरत होगी। इससे ऊर्जा क्षेत्र में नये निवेशकों को आकर्षित करने की जरूरत भी रेखांकित होती है। विकसित अर्थव्‍यवस्‍थाओं और उभरती हुई विकासशील अर्थव्‍यवस्‍था के बीच साफ ऊर्जा पर निवेश के स्‍तरों में व्‍याप्‍त चिंताजनक विभाजन को कम करने के लिये प्रमुख अंतर्राष्‍ट्रीय प्रयासों की अब भी फौरी जरूरत है।  

डॉक्‍टर बिरोल ने कहा “स्वच्छ ऊर्जा के लिए पर्यावरणीय मामले को सुदृढ़ करने की आवश्यकता नहीं है, लेकिन लागत-प्रतिस्पर्धी और सस्ती स्वच्छ प्रौद्योगिकियों के पक्ष में आर्थिक तर्क अब मजबूत हैं – और ऐसा ही ऊर्जा सुरक्षा का मामला भी है। आज की आर्थिक, जलवायु और सुरक्षा प्राथमिकताओं के संरेखण ने केन्‍द्र को दुनिया के लोगों और धरती के लिए बेहतर परिणाम की ओर ले जाना शुरू कर दिया है।” 

“सभी को एक मंच पर लाना जरूरी है। खासतौर पर ऐसे वक्‍त जब ऊर्जा और जलवायु पर भू-राजनीतिक टूटन और ज्‍यादा साफ नजर आने लगी है। इसका मतलब है कि नयी ऊर्जा अर्थव्‍यवस्‍था में देशों का एक व्‍यापक गठजोड़ सुनिश्चित करने के प्रयासों को दोगुना करना होगा। हो सकता है कि अधिक सुरक्षित और सतत ऊर्जा प्रणाली सुनिश्चित करना आसान नहीं हो। मगर आज के संकट ने यह बिल्‍कुल साफ कर दिया है हमें इस दिशा में आगे बढ़ने की जरूरत क्‍यों है।” 

क्‍लाइमेट ट्रेंड्स की निदेशक आरती खोसला ने कहा ”दुनिया भर में ऊर्जा की कमजोरियों को उजागर करने वाली वैश्विक फॉल्टलाइन्स अक्षय ऊर्जा के तेजी से उत्थान की उन आवश्यकता को रेखांकित करती हैं जो कि डीकार्बनाइजेशन के केंद्र में होगी। साथ ही यह भी सुनिश्चित करेंगी कि अर्थव्यवस्थाएं और भी अनिश्चित समय में बढ़ती रहें। भारत एक अनोखी स्थिति में खड़ा है। वह इस बात को सुनिश्चित कर सकता है कि सभी नए विकास कार्य अक्षय ऊर्जा से किये जाएं। युद्ध की शुरुआत के बाद से भारत सहित पूरी दुनिया में कोयले की कुल खपत बढ़ रही है। यह ध्‍यान करना उत्साहजनक है कि भारत अपनी अक्षय ऊर्जा उत्‍पादन की गति को निरंतर जारी रखे हुए है और यहां पीवी प्रौद्योगिकी फल-फूल रही है। हालांकि इसे अपने लक्ष्यों को पूरा करने और उत्सर्जन में काफी कमी लाने के लिए गैर-जीवाश्म ऊर्जा को दोगुना करने की जरूरत होगी, जो वर्तमान में आठ गीगाटन होने का अनुमान है। वर्ष 2050 के लिये सीओ2 पिछले वर्ष के आउटलुक से कम है। मुख्य रूप से भारत और दक्षिण पूर्व एशिया में की गयी नेट जीरो उत्सर्जन सम्‍बन्‍धी प्रतिज्ञाओं के कारण।” 

रूस अब तक जीवाश्म ईंधन का दुनिया का सबसे बड़ा निर्यातक रहा है, लेकिन यूक्रेन पर इसका आक्रमण वैश्विक ऊर्जा व्यापार की आमूल-चूल पुनर्रचना को प्रेरित कर रहा है, जिससे वह बहुत कमतर स्थिति में आ गया है। रूस के यूरोप से जुड़े जीवाश्म ईंधन पर आधारित सभी व्यापार संबंधों को अंततः यूरोप की नेट जीरो के सिलसिले में व्‍यक्‍त की गयी महत्वाकांक्षाओं के कारण पिछले डब्‍ल्‍यूईओ परिदृश्यों में कम कर दिया गया था, लेकिन अपेक्षाकृत कम लागत पर रूस की क्षमता का मतलब था कि इसने केवल धीरे-धीरे अपनी जमीन खोयी है। मगर अब यह दरार इतनी तेजी से आयी है जिसकी कुछ ही लोगों ने कल्‍पना की होगी। इस साल डब्‍ल्‍यूईओ के किसी भी परिदृश्‍य में रूस के जीवाश्‍म ईंधन का निर्यात वर्ष 2021 के स्‍तरों के बराबर कभी नहीं हो पायेगा। प्राकृतिक गैस के मामले में रूस का खासतौर पर एशियाई बाजारों में पुनर्रेखण चुनौतीपूर्ण होगा। अंतर्राष्‍ट्रीय स्‍तर पर व्‍यापार के दौर से गुजरने वाली ऊर्जा में रूस की हिस्‍सेदारी वर्ष 2021 में 20 प्रतिशत थी, जो वर्ष 2030 में स्‍टेट पॉलिसीज सिनैरियो में घटकर 13 प्रतिशत पर आ गिरी है। वहीं, अमेरिका और मध्‍य एशिया की हिस्‍सेदारी बढ़ी है।  

गैस उपभोक्ताओं के लिए आगामी उत्तरी गोलार्ध की सर्दी एक खतरनाक क्षण और यूरोपीय संघ की एकजुटता के लिए एक इम्‍तेहान साबित होगी। वर्ष 2023-24 की सर्दी और भी कठिन हो सकती है। मगर दीर्घकालिक नजरिये से देखें तो रूस की हाल की कार्रवाइयों का एक प्रभाव यह भी है कि गैस की तेजी से बढ़ती मांग अब खात्‍मे की कगार पर है। स्‍टेटेड पॉलिसीज सिनैरियो में ऐसे परिदृश्‍य में जब गैस का सबसे ज्‍यादा इस्‍तेमाल हुआ, वर्ष 2021 से 2030 के बीच गैस की मांग में पांच प्रतिशत से भी कम वृद्धि होगी और फिर वर्ष 2050 तक यह एक समान बनी रहेगी। विकासशील अर्थव्‍यवस्‍थाओं वाले देशों में गैस के इस्‍तेमाल का सिलसिला धीमा पड़ा है। खासतौर पर दक्षिणी और दक्षिणपूर्वी एशिया में। इससे एक रूपांतरणकारी ईंधन के तौर पर गैस की साख को धक्‍का लगा है। 

डॉक्‍टर बिरोल ने कहा “हो रहे बड़े बदलावों के बीच, उत्सर्जन को कम करते हुए विश्वसनीयता और सामर्थ्य सुनिश्चित करने के लिए एक नए ऊर्जा सुरक्षा प्रतिमान की जरूरत है। यही वजह है कि इस साल का डब्‍ल्‍यूईओ 10 सिद्धांत उपलब्‍ध कराता है जिससे नीतिनिर्धारकों को ऐसी अवधि के माध्‍यम से रास्‍ता दिखाने में मदद मिल सकती है, जब जीवाश्‍म ईंधन में गिरावट और विस्‍तार लेती स्‍वच्‍छ ऊर्जा प्रणालियां सह-अस्तित्‍व में हैं। क्‍योंकि चूंकि उपभोक्ताओं के वास्‍ते आवश्यक ऊर्जा सेवाओं को वितरित करने के लिए दोनों प्रणालियों को ऊर्जा संक्रमण के दौरान अच्छी तरह से काम करने की जरूरत होती है। जैसे-जैसे दुनिया आज के ऊर्जा संकट से आगे बढ़ रही है, उसे उच्च और अस्थिर महत्वपूर्ण खनिज कीमतों या अत्यधिक केंद्रित स्वच्छ ऊर्जा आपूर्ति श्रृंखला से उत्पन्न होने वाली नई कमजोरियों से बचने की जरूरत है।

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दिल्ली में बढ़ते वायु प्रदूषण के स्तर को देखते हुए इस बार दिवाली से पहले फिर से ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (GRAP) लागू हो गया है।
इस बीच प्रदूषण को कम करने में सरकारी कार्य योजना के कार्यान्वयन में स्वच्छ वायु मानदंडों और नियमों के उल्लंघन पर नागरिक रिपोर्टिंग को प्रोत्साहित करने के साथ-साथ इलेक्ट्रिक वाहनों, सार्वजनिक परिवहन और अपशिष्ट प्रबंधन जैसे समाधानों को अपनाने को बढ़ावा देने के लिए, URJA (यूनाइटेड रेसिडेंट्स जाइंट एक्शन ऑफ डेल्ही) ने आज दिल्ली के नागरिकों के साथ हुई एक बैठक में “दिल्ली के वायुदूत” नाम से एक जन भागीदारी अभियान शुरू किया। अभियान वायु प्रदूषण पर नागरिक कार्रवाई को मान्यता देगा और जागरूकता और पहल के लिए नागरिक-से-नागरिक समर्थन को सक्षम करेगा। अभियान की शुरुआत दिल्ली के 13 वायु प्रदूषण हॉटस्पॉट क्षेत्रों से होगी।
दिल्ली के मुख्यमंत्री ने व्यक्तिगत गारंटी दी थी की वो साल 2025 तक दिल्ली में वायु प्रदूषण को 2/3 तक कम कर देंगे। उस मियाद में फिलहाल 2 साल से थोड़ा अधिक समय बचा है। मगर यह लक्ष्य राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) लक्ष्य से भी बड़ा लक्ष्य है। दिल्ली के नागरिकों को अभी यह तक नहीं पता है कि उनके मुख्यमंत्री द्वारा बनाया लक्ष्य किस रोडमैप पर चल रहा है और अब तक के प्रयास किस प्रकार प्रदूषण को कम कर रहे हैं।
साल 2017-18 की तुलना में दिल्ली में 2021-22 में PM10 के स्तरों में 18.6% की कमी देखी गयी हालिया एनसीएपी रिपोर्ट के मुताबिक। मगर यह पूरी तस्वीर पेश नहीं करती है। PM10 अकेला प्रदूषक नहीं जो हमें प्रभावित करता है। दिल्ली की हवा में कई अन्य प्रदूषकों पर भी नजर रखने की जरूरत है। और वायु प्रदूषण में आई कमी के लिए नीतियों से ज़्यादा लॉकडाउन और महामारी के चलते लगे तमाम प्रतिबंध जिम्मेदार थे।
जहां एक ओर एनसीएपी का लक्ष्य 2024 तक 20-30% की कमी करना है वहीं दिल्ली के मुख्यमंत्री की गारंटी है कि अपने कार्यकाल के अंत तक वो 67% प्रदूषण कम कर देंगे। उनके अनुमान के अनुसार, 31% वायु प्रदूषण दिल्ली के क्षेत्र के भीतर के स्रोतों से उत्पन्न होता है जबकि शेष बाहरी स्रोतों के लिए आता है। इसका मतलब है कि सरकार को आंतरिक और बाहरी दोनों स्रोतों पर निर्णायक कार्रवाई सुनिश्चित करनी होगी।
दिल्ली के मुख्यमंत्री द्वारा सर्दियों के प्रदूषण के मौसम के लिए हाल ही में जारी की गई 15-सूत्रीय कार्य योजना में पड़ोसी राज्यों में फसल के पराली जलाने वाले किसानों को मुफ्त बायो-डीकंपोजर का उल्लेख है। ध्यान रहे कि आम आदमी पार्टी द्वारा शासित पंजाब में पराली का जलना अभी से तेजी से बढ़ने लगा है।
हाल ही में जारी सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, पराली जलाने से दिल्ली में वायु प्रदूषण केवल 3% होता है, जबकि सरकार का मानना है कि यह प्रदूषण का प्रमुख योगदानकर्ता है। इतना ही नहीं, दिल्ली का एक्यूआई दिवाली से पहले 17 अक्टूबर को 242 की पर खराब श्रेणी में पहुंच गया था।
सरकार द्वारा चिन्हित 15 बिंदुओं में से कोई भी बिंदु प्रदूषण के साल भर के स्थानीय स्रोतों को खत्म करने की बात नहीं करता है।
धूल, वाहन, कचरा और उद्योग के उद्देश्य से 4 बिंदु निगरानी टीमों की तैनाती पर ध्यान केंद्रित करते हैं मगर इससे यह सुनिश्चित नहीं होगा कि प्रदूषण में आयी कमी भविष्य में फिर कभी न पलटे। इसके अलावा, निगरानी टीमों के साथ अब तक के नागरिक अनुभव बताते हैं कि इसमें तमाम कमियां होती हैं क्योंकि इन्हें बनाने से पहले या इन्हें बनाने के दौरान नागरिक परामर्श, भागीदारी और कार्यान्वयन पारदर्शिता को प्राथमिकता नहीं दी जाती है।
सरकार द्वारा सिर्फ निगरानी, प्रतिबंधों और GRAP की मदद से प्रदूषण कम करने की रणनीति सरकार में दूरगामी सोच की कमी को दर्शाती है। जहां एक ओर गर्मी के महीनों में सर्दियों के लिए रणनीति का परीक्षण होना चाहिए, वहाँ इस साल अप्रैल में जारी ग्रीष्मकालीन कार्य योजना में ऐसा तंत्र स्थापित करने का कोई प्रयास नहीं किया गया जो प्रदूषण के स्रोतों को खत्म कर सके। ग्रीष्मकालीन योजना निगरानी टीमों और अन्य उपायों पर ध्यान केंद्रित करती है जिनका निकट भविष्य में वायु प्रदूषण पर सीधा प्रभाव नहीं पड़ता है।
सरकार की ओर से गलत फोकस का एक उदाहरण ग्रीन कवर बढ़ाने के उद्देश्य से कई एक्शन पॉइंट हैं, जबकि दिल्ली में प्रदूषण हॉटस्पॉट में से एक, आरके पुरम में बिना किसी औद्योगिक गतिविधि के काफी ज़्यादा ग्रीन कवर है।
आरडब्ल्यूए और नागरिक स्वयंसेवकों की हाल ही हुई एक बैठक में, URJA ने विचार-विमर्श किया और सरकार से 2025 तक वायु प्रदूषण में 2/3 कमी को प्राप्त करने के लिए एक ब्लूप्रिंट की मांग की। ब्लूप्रिंट के साथ-साथ दिल्ली के नागरिक ग्रीन सेस फंड और अन्य बजट प्रावधानों के उपयोग में भी पारदर्शिता चाहते हैं।
क्योंकि कई सरकारी नीतियां और सार्वजनिक कार्यक्रम नियोजन के समय नागरिकों को शामिल नहीं किया जाता है, इसलिए इस चर्चा का एक मुद्दा यह भी रहा। इसी तरह, नागरिक चर्चा में जोर नीति की प्रगति, बजट उपयोग, वार्षिक लक्ष्य, और एक डिजिटल, उपयोगकर्ता के अनुकूल लोक शिकायत समाधान पर नियमित रूप से सार्वजनिक रिपोर्टिंग तंत्र, प्रणाली में पारदर्शिता और जवाबदेही आदि पर भी रहा।
सरकारी कार्य योजना के कार्यान्वयन में स्वच्छ वायु मानदंडों और नियमों के उल्लंघन पर नागरिक रिपोर्टिंग को प्रोत्साहित करने के साथ-साथ इलेक्ट्रिक वाहनों, सार्वजनिक परिवहन और अपशिष्ट प्रबंधन जैसे समाधानों को अपनाने को बढ़ावा देने के लिए, URJA ने आज की बैठक में “दिल्ली के वायुदूत” नाम से एक जन भागीदारी वाला अभियान शुरू किया। अभियान वायु प्रदूषण पर नागरिक कार्रवाई को मान्यता देगा और जागरूकता और पहल के लिए नागरिक-से-नागरिक समर्थन को सक्षम करेगा। अभियान की शुरुआत दिल्ली के 13 वायु प्रदूषण हॉटस्पॉट क्षेत्रों से होगी।
अपनी प्रतिक्रिया देते हुए URJA के अध्यक्ष, अतुल गोयल ने कहा, “URJA दिल्ली को रहने योग्य, सांस लेने योग्य और आवागमन योग्य बनाने की अपनी मांग पर कायम है। प्रदूषण के स्थानीय स्रोतों को खत्म करने के लिए व्यवस्थित दृष्टिकोण के बिना कच्ची कार्य योजनाएं दिल्ली के नागरिकों के किसी काम की नहीं हैं। सरकार द्वारा प्रदूषण में दो तिहाई कटौती का खाका दिल्ली में लाखों लोगों के लिए एक दूसरे के साथ सहयोग करने और स्वामित्व लेने की नींव रखेगा क्योंकि इससे उन्हें सरकार के दृष्टिकोण और धन के उपयोग पर भरोसा बढ़ेगा। इस दिशा में दिल्ली के वायुदूत अभियान सरकार के प्रयासों का पूरक होगा।”
इसी क्रम में वसंत कुंज आरडब्ल्यूए के वायुदूत अमित अग्रवाल ने कहा, “किसी वार्ड की सभी स्थानीय समस्याओं का प्रभावी ढंग से समाधान उस क्षेत्र के नागरिकों की भागीदारी के माध्यम से ही किया जा सकता है। इस अभियान के माध्यम से शहर के प्रत्येक नागरिक को स्थानीय क्षेत्र कार्यान्वयन एजेंसियों को जवाबदेह ठहराते हुए स्वच्छ हवा में योगदान देने के साथ-साथ अन्य नागरिकों के साथ प्रभावी रूप से समाधान अपनाने में सहयोग का निर्माण करना होगा।”

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Climate कहानी

‘पराली जलाने की समस्या के समाधान में लगेंगे 4-5 साल’

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पराली जलाने की समस्या के समाधान में लगेंगे 4-5 साल’
साल का वो समय आ चुका है जब धान की कटाई और पराली जलाने का मौसम शुरू हो रहा है। और ऐसा होने के साथ ही दिल्ली, पंजाब और हरियाणा में वायु प्रदूषण पर बहस फिर से जोर पकड़ रही है। मगर इस बार जो बात हमेशा से अलग है और जिसके चलते इन क्षेत्रों के प्रभावित नागरिकों को उम्मीद की किरण दिख रही है वो यह है कि इस बार राज्य सरकारों में दोषी कौन पर बहस के बजाय कुछ असल कार्यवाई होने की ऊमीद है।
वजह है दोनों ही राज्यों में आम आदमी पार्टी की सरकार का होना, जिसके चलते दोनों राज्यों की सरकारों की जुगलबंदी इस समस्या से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए बेहतर समाधान और नतीजे पेश कर सकती है।
इस विषय पर आयोजित एक चर्चा में संबंधित प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों के प्रतिनिधि, विशेषज्ञ, व्यवसायी और किसान जमीनी समाधानों पर विमर्ष करने के लिए एक साथ आए।
अपनी बात रखते हुए पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य सचिव कुनेश गर्ग ने कहा, “फसल विविधीकरण दीर्घकालिक समाधान नहीं है, क्योंकि इसका मतलब यह नहीं है कि अन्य फसलों द्वारा बायोमास का उत्पादन नहीं किया जाएगा। यह सिर्फ एक अन्य प्रकार का बायोमास कचरा होगा, जैसे राजस्थान से पंजाब में आने वाली कपास की छड़ें और सरसों के भूसे का कचरा। और इस ईंधन को जलाने का मामला हमेशा बना खबरों में रहेगा। इसलिए हमें समाधानों में  विविधिकरण खोजने की जरूरत है क्योंकि तब ही इस कचरे का संयोजन ही प्रभावी हो सकता है।”  उन्होने आगे कहा, “ऐसा नहीं है कि समस्या का समाधान नहीं किया जा रहा है, हम इसे ब्लॉक और ग्राम स्तर पर मैप कर रहे हैं, लेकिन समस्या के उचित समाधान के लिए 4-5 साल लगेंगे ।”
उन्होने आगे कहा कि कि खेतों में आग लगने की घटनाओं की गिनती कर उसे पराली जलाने कि घटनाओं से जोड़ कर देखना गलत होगा। उनके अनुसार, सही तरीका होगा उस ज़मीन कि पैमाइश करना जिस पर आग लगाई जा रही है। इस साला खरीफ सीजन में लगभग 31.13 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में धान उगाया गया है, जो 2021 के 29.61 लाख हेक्टेयर से अधिक है। इसके परिणामस्वरूप इस वर्ष 19.76 मिलियन टन धान की पुआल का उत्पादन हुआ, जबकि पिछले साल 18.74 था।
आगे, पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष डॉ आदर्श पाल विग ने कहा, “एक समय था जब बायोमास कचरे को जलाने की सिफारिश की जाती थी। पिछले कुछ दशकों में जैसे-जैसे हमने अधिक यंत्रीकृत किया है, समस्या बढ़ती गई है। समाधान अंततः किसानों को अपनाना होगा क्योंकि यह एक सामाजिक और मनोवैज्ञानिक समस्या है जहाँ किसानों के व्यवहार और दृष्टिकोण को भी संबोधित करने की आवश्यकता है। हमें उन किसानों की कहानियों को उजागर करना चाहिए जो पराली नहीं जलाने में सफल रहे हैं और सुनिश्चित करें कि वे अन्य किसानों को अपने अनुभव बता कर प्रोत्साहित और प्रेरित करें।
वो आगे कहते हैं, “परिवेशीय वायु प्रदूषण को आमतौर पर केवल शहरों में ही एक समस्या माना जाता है। मगर हम यह भूल जाते हैं कि खेती का कचरा गांवों में जलाया जा रहा हो। राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम और वायु गुणवत्ता सूचकांक सभी शहरों पर केंद्रित हैं। शहरीकरण और शहरों में जनसंख्या का विस्फोटक घनत्व हमारी क्षमता से परे है और हम एक विस्फोटक समस्या पैदा कर उसके मुहाने पर हैं। मतलब तमाम ऐसे कारक हैं जो समस्या को ऐसा स्वरूप दे रहे हैं , मगर पारली जलने कि घटना बस बारूद को चिंगारी देने का काम करती है।”
इस साल, मानसून की कमजोर शुरुआत और उत्तर पश्चिमी भारत में देरी से प्रगति और कम प्री-मानसून बारिश ने मिट्टी की नमी को कम कर दिया और खरीफ फसल की बुवाई में देरी की। इसका मतलब पहले से ही देरी से होने वाली फसल थी जिसे सितंबर के अंत में उत्तर पश्चिमी भारत के कई हिस्सों में व्यापक और लंबे समय तक बारिश के कारण स्थगित कर दिया गया था । इस देरी से मानसून की वापसी के परिणामस्वरूप कृषि क्षेत्र गीले हो गए हैं और जगह-जगह जलभराव हो गया है, जिससे किसानों को फसल काटने और अगली फसल की बुवाई के बीच और भी कम समय मिल गया है ।

आगे, आईसीएआर-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक, डॉ नटराज सुभाष, ने कहा, ” हमें एकीकृत खेती पर ध्यान देना चाहिए जिसमें लगभग 3 से 4 फसलें और पशुधन शामिल हैं। हमारे पास 64 प्रोटोटाइप मॉडल हैं जिन्हें वर्तमान में कुछ किसानों के साथ आजमाया जा रहा है और सफल मॉडल सरकार को भेजे गए हैं। हम पूरे देश में इसकी वकालत कर रहे हैं। हम 10 साल की अवधि में खेती के पैटर्न पर शोध कर रहे हैं और इससे हमें देश के लिए सर्वोत्तम फसल प्रणाली तय करने में मदद मिलेगी। “
जहां एक ओर राज्य के अधिकारियों द्वारा समस्या स्थल पर ही कुछ समाधान विकसित किए जा रहे हैं – जैसे बिजली संयंत्रों के लिए ब्रिकेट , पराली को बायो-गैस में परिवर्तित करना, ईंट भट्टों को बिजली देना आदि – मगर इससे इतर समस्या के प्रबंधन के लिए बुनियादी ढांचा स्थापित किया जाना बाकी है। सत्र में मौजूद उद्योग जगत की आवाजों ने बताया कि कैसे संबंधित उद्योग को प्रदान करने के लिए खेतों से ठूंठ के कचरे की खरीद के लिए कोई आपूर्ति श्रृंखला बनी नहीं है। उद्यमियों के लिए लॉजिस्टिक्स स्थापित करके स्टार्टअप अर्थव्यवस्था बनाने की गुंजाइश है।
कचरा प्रबंधन में सक्रिय उद्योग चलाने की चुनौतियों पर बोलते हुए, जर्मन कंपनी, वर्बियो इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के आशीष कुमार ने कहा, ” हम  भारत में  इस कचरे का कलेक्शन स्वयं ही करते हियन क्योंकि उस तरह की आपूर्ति श्रृंखला भारत में मौजूद नहीं। प्रत्येक स्टबल वेस्ट बेल्स का वजन 400-450 किलोग्राम होता है जिसे केवल मैकेनाइज्ड सिस्टम द्वारा ही हैंडल किया जा सकता है। राजस्व सृजन के लिए गैस की खरीद, उत्पादन और अंतिम आपूर्ति की यह पूरी मूल्य श्रृंखला हमारे द्वारा स्वामित्व और संचालित है, इसलिए एक व्यवसाय के मालिक के लिए इसकी जटिलता की कल्पना करें। बायोमास कचरे को ईंधन में परिवर्तित करने का हमारा व्यवसाय मॉडल जिसका उपयोग ऑटोमोटिव या वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है, 3 राजस्व धाराओं – खाद , गैस और कार्बन क्रेडिट पर जीवित रह सकता है। अभी हम केवल गैस के लिए राजस्व उत्पन्न कर सकते हैं, लेकिन अन्य दो भारत में स्थापित नहीं हैं और तब तक ये व्यवसाय बहुत व्यवहार्य नहीं होंगे।”
अंत में,  पीजीआईएमईआर के प्रोफेसर रवींद्र खैवाल ने कहा , ‘वायु प्रदूषण मानव स्वास्थ्य के लिए एक बड़ा खतरा है। हम स्थानीय साक्ष्य की प्रतीक्षा करते हुए कार्रवाई में देरी नहीं कर सकते। इसलिए, प्रदूषण नियंत्रण उपायों पर प्रभावी ढंग से कार्य करने के लिए अंतर-क्षेत्रीय समन्वय को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।”

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