चीन को मिला रूसी बंदरगाह
रूस ने यानी एक जून से व्लादिवोस्तोक बंदरगाह को आधिकारिक तौर पर चीन को सौंप दिया है। अब यह बंदरगाह आधिकारित तौर पर चीनी जहाजों का ट्रांजिट प्वाइंट बन गया है। रूस के प्रधानमंत्री मिखाइल मिशुस्टिन ने भी चीन को गैस पाइपलाइन मार्ग के जरिए प्राकृतिक गैस की आपूर्ति करने की आधिकारिक स्वीकृति दी। यह गैस पाइपलाइन व्लादिवोस्तोक में खत्म होती है। लेकिन सूत्रों की मानें तो रूस चेन्नई-व्लादिवोस्तोक मैरीटाइम कॉरिडोर में भी तेजी लाने का इच्छुक है।
यह कॉरिडोर दोनों देशों के बीच समुद्री संबंधों को और मजबूत बना सकता है। हाल ही में भारत के शिपिंग मिनिस्टर मंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने चेन्नई और कामराज बंदरगाहों की अहमियत और इसके अच्छे प्रदर्शन के बारे में बताया। उनका कहना था कि अगर चेन्नई को रूस के व्लादिवोस्तोक बंदरगाह से जोड़ दिया जाए तो फिर इससे भारत के समुद्री व्यापार को बढ़ावा मिलेगा। उन्होंने यह बात उस समय कही जब वह कई करोड़ रुपयों वाले प्रोजेक्ट्स का उद्घाटन कर रहे थे।
चेन्नई-व्लादिवोस्तोक की अहमियत
चेन्नई-व्लादिवोस्तोक मैरीटाइम कॉरिडोर का प्रयोग चेन्नई-व्लादिवोस्तोक समुद्री मार्ग पर रूस से भारत में धातु के कोयले, कच्चे तेल और तरल प्राकृतिक गैस के परिवहन के लिए किया जा सकता है। अगर परियोजना वाकई शुरू हो जाती है तो करीब 10,300 किमी या 5,600 समुद्री मील को 10 दिनों के अंदर कवर किया जा सकेगा। इससे दुनिया के इस हिस्से में बड़े कार्गो के आने-जाने की संभावनाएं बढ़ जाएंगी। व्लादिवोस्तोक-चेन्नई का समुद्री रास्ता सोवियत संघ के टूटने के साथ ही खत्म हो गया था। इसे सिर्फ रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के समर्थन से मोदी सरकार की तरफ से फिर से जिंदा किया जा सकता है।
क्या है भारत का प्लान
भारत ने व्लादिवोस्तोक के पास एक सैटेलाइट सिटी बनाने में रुचि दिखाई है। दोनों देश उत्तरी समुद्री मार्ग के साथ एक ट्रांस-आर्कटिक कंटेनर शिपिंग लाइन और प्रोसेसिंग फैसिलिटीज को शुरू करने की संभावना पर भी चर्चा कर रहे हैं। भारत के पास संसाधन से लैस व्लादिवोस्तोक बंदरगाह के लिए कई महत्वाकांक्षी योजनाएं हैं। पीएम नरेंद्र मोदी ने साल 2019 में व्लादिवोस्तोक से भारत की एक्ट फार ईस्ट नीति की घोषणा की थी। उस समय उन्होंने इस क्षेत्र में कई परियोजनाओं के लिए एक अरब डॉलर के लाइन ऑफ क्रेडिट का ऐलान भी किया था। रूस के पास दुनिया का प्राकृतिक गैस का भंडार है। इसमें से अधिकांश भंडार इसके पूर्व में मौजूद हैं। रूस के पूर्व में स्थित सखाक्लिन-1 गैस तेल सेक्टर में भारत का भारी निवेश भी है।