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झारखंड : ट्रांसजेंडरों को दिए गए आरक्षण के तरीके को लेकर उठने लगे सवाल, जानिए क्या है पूरा मामला

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दिलीप मंडल ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (पहले ट्विटर) पर पोस्ट किया- “झारखंड का नया आरक्षण कानून.

– एससी ट्रांसजेंडर का आरक्षण एससी में

– एसटी ट्रांसजेंडर का आरक्षण एसटी में

– ओबीसी ट्रांसजेंडर का आरक्षण ओबीसी में

– तो क्या सवर्ण ट्रांसजेंडर का आरक्षण EWS में है? 

नहीं, झारखंड सरकार ने सवर्ण ट्रांसजेंडर को ओबीसी में डाल दिया है.

ये @HemantSorenJMM के अफसरों का ओबीसी विरोधी काम है.” 

NCBC दे रहा है ये तर्क

दिलीप मंडल की तरह कई राजनीतिक दलों के नेताओं ने भी झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार के फैसले पर सवाल खड़े किए हैं. ‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक ट्रांसजेडर समुदाय के लिए ओबीसी आरक्षण (OBC Reservation) के प्रस्ताव का विरोध किसी और ने नहीं, बल्कि राष्ट्रीय अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग (National Commission for Other Backward Classes) ने किया है. NCBC के ज्यादातर सदस्यों का तर्क है कि मंडल आयोग (Mandal commission) ने अन्य पिछड़ा वर्गों (OBC) के निर्धारण के लिए जो पैमाना तय किया था, सरकार का यह प्रस्ताव उनका उल्लंघन करता है. उनका यह भी तर्क है कि ट्रांसजेंडर्स को ओबीसी (OBC) के तहत अलग समूह नहीं माना जा सकता.

NCBC के सदस्यों के मुताबिक, ट्रांसजेंडर्स को उन जाति-समूहों में शामिल मानना चाहिए, जिनमें वे पैदा हुए हैं. जैसे कि अगर किसी ट्रांसजेंडर का जन्म अनुसूचित जाति (SC) वाले परिवार में हुआ है, तो उसे एससी (SC) माना जाए. उसके तहत आरक्षण लाभ दिया जाए. इसी तरह अगर कोई ट्रांसजेंडर अनुसूचित जनजाति (ST) में है, तो उसके तहत ही उसे आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए. ठीक इसी तरह अगर किसी ट्रांसजेंडर का जन्म ओबीसी (OBC) परिवार में हुआ है, तो उसे इस कैटेगरी के तहत आरक्षण का लाभ दिया जा सकता है.

ट्रांसजेंडर्स कोई जाति नहीं, बल्कि लिंग है

NCBC का यह भी तर्क है कि ट्रांसजेंडर्स वास्तव में कोई जाति नहीं हैं, बल्कि लिंग हैं. जाति वह है, जिसमें उनका जन्म हुआ. जाति का निर्धारण जन्म से हो जाता है. इसलिए जो जिस जाति में पैदा हुआ है, उसी के तहत उसे आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए. 

एनसीबीसी (NCBC) के ज्यादातर सदस्यों का यह भी मानना है कि अगर ट्रांसजेंडर्स को ओबीसी (OBC) के तहत अलग समुदाय मान लिया गया और आरक्षण दे दिया गया, तो इससे अन्य वर्गों के हितों को नुकसान होगा. खासकर सामान्य वर्ग के हितों को.

फैसले के पहलुओं को समझने की जरूरत- सीपी सिंह

झारखंड से विधायक और बीजेपी के वरिष्ठ नेता सीपी सिंह NDTV से बातचीत में कहा, “जहां तक मेरी जानकारी है… झारखंड सरकार ने किन्नरों को जो आरक्षण दिया है, वो उसी कैटेगरी में दिया है, जिसमें वो आते हैं. उदाहरण के लिए, अगर कोई किन्नर ओबीसी वर्ग से आता है, तो उसे ओबीसी में ही आरक्षण मिलेगा. अगर कोई ट्रांसजेंडर एससी में आता है, तो उसे इसी कैटेगरी में आरक्षण मिलेगा. अगर कोई सवर्ण ट्रांसजेंडर है, तो उसे इसी कैटेगरी में आरक्षण मिलेगा. क्योंकि सवर्ण का कोई आरक्षण नहीं है, बल्कि 50 फीसदी जो आरक्षण है, वो जनरल यानी सवर्ण है. ट्रांसजेंडर के बारे में मैं पूरी जानकारी नहीं रखता हूं. लेकिन जहां तक मेरी राय है तो अगर कोई सवर्ण ट्रांसजेंडर होगा, तो उसे इसी कैटेगरी में आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए. झारखंड के मामले में विवाद कहा है? इसे समझने के लिए हमें हर पहलू को समझने की जरूरत है.” 

सरकार अपने निर्णय दोबारा सोचे

वहीं, राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के पूर्व सदस्य ‘सह मूलवासी सदान मोर्चा’ के केंद्रीय अध्यक्ष राजेंद्र प्रसाद ने हाल ही में मीडिया से बातचीत में हेमंत सोरेन सरकार के फैसले पर सवाल उठाए हैं. उन्होंने कहा कि ट्रांसजेंडर का मामला राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग में लंबित है. आयोग की राय के बिना ट्रांसजेंडरों को ओबीसी में शामिल करना असंवैधानिक है. इसके साथ ही ये ओबीसी के अधिकारों से खिलवाड़ भी है. सरकार अपने निर्णय पर दोबारा विचार करना चाहिए. 

किन्नरों को हर महीने मिलेगा एक हजार रुपये का पेंशन 

बता दें कि 6 सितंबर को झारखंड कैबिनेट की बैठक में ट्रांसजेंडर समुदाय को ओबीसी सूची में रिक्त स्थान 46वें स्थान पर में शामिल करने के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई. इस फैसले के बाद किन्नरों को राज्य में पिछड़ा वर्ग के आरक्षण का लाभ मिलने का रास्ता साफ हो गया. अब उन्हें राज्य में सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में नामांकन में आरक्षण का लाभ मिल सकेगा. राज्य में ओबीसी को 14 प्रतिशत आरक्षण दिया जा रहा है. उन्हें प्रति महीने एक हजार रुपये का लाभ पेंशन भी मिलेगा. इसके लिए किन्नर होने का मेडिकल प्रमाण पत्र भी देना होगा.

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मराठा कोटा के लिए भूख हड़ताल करने वाले ने लगाई फांसी, 13 महीने का है बच्चा

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खुदकुशी करने वाले शख्स की पहचान सुदर्शन देवराय के रूप में की है। देवराय ने नांदेड़ जिले की हिमायतनगर तहसील में रविवार आधी रात के बाद कथित तौर पर खुदकुशी कर ली।



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भारत ने कनाडा के राजनयिक को निकाला, 5 दिन में देश छोड़ने का आदेश

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Image Source : PTI/AP
भारत-कनाडा।

कनाडा और भारत के बीच कूटनीतिक रिश्ते बुरे दौर में जाते हुए दिखाई दे रहे हैं। कनाडाई पीएम जस्टिन ट्रूडो द्वारा भारत पर अनर्गल आरोपों के बाद कनाडा ने भारतीय राजनयिक को बर्खास्त कर दिया था। अब इस कदम के जवाब में भारत सरकार ने भी कनाडा के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया है। भारत सरकार ने भी एक वरिष्ठ कनाडाई राजनयिक को बर्खास्त कर दिया है और उन्हें 5 दिनों में देश छोड़ने का आदेश दिया है। 

उच्चायुक्त तलब


कनाडाई पीएम जस्टिन ट्रूडो के भारत विरोधी कदमों के बाद भारत सरकार के विदेश मंत्रालय ने विरोध जताने के लिए भारत में कनाडा के उच्चायुक्त कैमरून मैकेई को तलब किया था। ऐसा माना जा रहा था कि कनाडा को जवाब देने के लिए भारत सरकार भी कड़ा कदम उठा सकती है। 

विदेश मंत्रालय का बयान

भारतीय विदेश मंत्रालय ने जारी किए गए बयान में कहा है कि भारत में कनाडा के उच्चायुक्त कैमरून मैकेई को आज तलब किया गया। उन्हें भारत में रह रहे एक वरिष्ठ कनाडाई राजनयिक को निष्कासित करने के भारत सरकार के फैसले के बारे में सूचित किया गया। संबंधित राजनयिक को अगले पांच दिनों के भीतर भारत छोड़ने के लिए कहा गया है। विदेश मंत्रालय ने कहा कि यह निर्णय हमारे आंतरिक मामलों में कनाडाई राजनयिकों के हस्तक्षेप और भारत विरोधी गतिविधियों में उनकी भागीदारी पर भारत सरकार की बढ़ती चिंता को दर्शाता है।

क्यों तल्ख हुए रिश्ते?

G-20 समिट में फटकार खाने के बाद कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो भारत विरोधी कदमों में जुट गए हैं। ट्रू़डो ने खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या का कनेक्शन भारत से जोड़ते हुए भारत के एक राजनयिक को निकाल दिया था। हालांकि, भारत सरकार ने कनाडाई पीएम के आरोपों को बेबुनियाद और आधारहीन करार दिया है। भारत ने साथ ही कनाडा से आतंकी तत्वों पर कार्रवाई करने की मांग की है। भारत ने कहा है कि इस तरह के बयान खालिस्तानियों से ध्यान हटाने के लिए दिए गए हैं।

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Parliament Session New Bill: महिला आरक्षण से ही होगा नई संसद का ‘श्रीगणेश’, आज ही पेश करने की तैयारी

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महिला आरक्षण बिल को लेकर स्थिति लगभग साफ होती नजर आ रही है। खबर है कि सरकार मंगलवार को ही संसद में बिल पेश कर सकती है। हालांकि, इसे लेकर आधिकारिक तौर पर कुछ नहीं कहा गया है। सोमवार को कैबिनेट बैठक में विधेयक पर मुहर लगा दी गई थी। इधर, महिला आरक्षण का श्रेय लेने के लिए कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी में होड़ लगती नजर आ रही है।

खास बात है कि मंगलवार से ही विशेष सत्र नए संसद भवन में पहुंच रहा है। ऐसे में अगर सरकार महिला आरक्षण बिल आज पेश कर देती है, तो नई संसद में पेश होने वाला यह पहला बिल होगा। हालांकि, यह बिल करीब 27 सालों से लंबित है और कांग्रेस की अगुवाई वाली UPA सरकार ने साल 2010 में इसे राज्यसभा में पास करा लिया था।



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