प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता देश के साथ ही साथ विदेश में भी तेजी से बढ़ती जा रही है। हाल ही में जापान के शिखर सम्मेलन में आस्ट्रेलिया के पीएम एंथनी अल्बनीज और अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने पीएम मोदी की लोकप्रियता की जमकर तारीफ की थी। जो बाइडन ने तो यह तक कह दिया था कि ..मुझे तो आपका ऑटोग्राफ लेना चाहिए। अब इस दौरान प्रधानमंत्री मोदी ऑस्ट्रेलिया दौरे पर हैं, जहां उनकी लोकप्रियता का मेगा शो चल रहा है। इस बीच अमेरिकी सांसद भी पीएम मोदी के कायल हो गए हैं। बता दें कि जून में पीएम मोदी अमेरिका दौरे पर जाने वाले हैं। अमेरिकी सांसदों ने अनुरोध किया है कि इस दौरान पीएम मोदी अमेरिकी कांग्रेस के संयुक्त सत्र को संबोधित करें। इससे उनकी लोकप्रियता का अंदाजा लगाया जा सकता है।
कांग्रेशनल इंडिया कॉकस’ के सह अध्यक्षों ने प्रतिनिधिसभा के अध्यक्ष केविन मैक्कार्थी से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को उनकी आगामी राजकीय यात्रा के दौरान अमेरिकी कांग्रेस के संयुक्त सत्र को संबोधित करने के लिए आमंत्रित करने का मंगलवार को आग्रह किया। डेमोक्रेटिक पार्टी से भारतीय-अमेरिकी सांसद रो खन्ना और रिपब्लिकन पार्टी के सांसद माइकल वाल्ट्ज ने मैक्कार्थी को लिखे पत्र में कहा, ‘‘ अमेरिका-भारत रणनीतिक साझेदारी व साझा मूल्यों के महत्व को रेखांकित करते हुए हम आपसे सम्मानपूर्वक अनुरोध करते हैं कि आप कांग्रेस में एक संयुक्त सत्र के लिए प्रधानमंत्री मोदी को आमंत्रित करने पर विचार करें।
22 जून को अमेरिका के दौरे पर होंगे पीएम मोदी
बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जून में अमेरिका के दौरे पर होंगे। इस दौरान‘‘ 22 जून को (अमेरिका के) राष्ट्रपति जो बाइडन, प्रधानमंत्री मोदी की आधिकारिक राजकीय यात्रा और राजकीय रात्रिभोज की मेजबानी करेंगे।’’ दोनों सांसदों ने अमेरिका और भारत के बीच द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने और कांग्रेस के संयुक्त सत्र के जरिए साझेदारी बढ़ाने के महत्व को भी रेखांकित किया। अगर मैक्कार्थी, प्रधानमंत्री मोदी को आमंत्रित करते हैं तो यह कांग्रेस के संयुक्त सत्र में उनका दूसरा संबोधन होगा। इसके बाद वह विश्व के उन कुछ नेताओं में शामिल हो जाएंगे जिन्हें अमेरिकी सांसदों को दो बार संबोधित करने का अवसर मिला है।
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Canada India News: कनाडा की राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) ने एक बड़ा ही अजीबो-गरीब बयान दिय। उन्होंने भारत पर तो आतंरिक मामलों में हस्तक्षेप का आरोप लगा दिया है मगर अपने देश के हालातों पर खामोश है। कनाडा में खालिस्तान समर्थकों ने भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या का जश्न मनाया है।
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उत्तर कोरिया के स्पाई सैटेलाइट से डरा अमेरिका, अब खुद का खुफिया उपग्रह करेगा लॉन्च, इन पर रहेगी नजर
North Korea-America: उत्तर कोरिया का तानाशाह किम जोंग लगातार बैलेस्टिक मिसाइलों के परीक्षण से जापान और दक्षिण कोरिया पर दहशत बनाए हुए है। उत्तर कोरिया ने जासूसी उपग्रह लॉन्च किया था, तो अमेरिका ने कड़ी आपत्ति जताई थी। उत्तर कोरिया के जासूसी उपग्रह से चिंतित अमेरिका अब अपना खुद का जासूसी सैटेलाइट लॉन्च करेगा। इससे वह रूस और चीन की हरकतों पर नजर रख सकेगा।
जानकारी के अनुसार अमेरिका ने रूस और चीन की अंतरिक्ष में बढ़ती ताकत को मात देने की योजना बना ली है। यही कारण है कि अमेरिकी स्पेस फोर्स अगले कुछ महीनों में जासूसी सैटेलाइट्स को लॉन्च करेगी। उत्तरी कोरिया के सैटेलाइट लॉन्च के समय अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के प्रवक्ता एडम हॉग ने कहा था कि वॉशिंगटन उत्तर कोरिया की ओर से जासूसी उपग्रह प्रक्षेपण की कड़ी निंदा करता है, क्योंकि उसने प्रतिबंधित बैलिस्टिक मिसाइल तकनीक का प्रयोग किया, तनाव बढ़ाया।
हालांकि, उत्तर कोरिया के शासक किम जोंग-उन की बहन ने अमेरिका की इस टिप्पणी पर पलटवार किया था और उस पर ‘गैंगस्टर जैसा’ पाखंड करने का आरोप लगाया था। वहीं, कुछ दिन पहले ही ऐसी रिपोर्ट आई थी कि चीन की एक सैटेलाइट ने अंतरिक्ष के अंदर अमेरिकी सैटेलाइट की जासूसी की थी। इससे अमेरिकी रक्षा विभाग में हड़कंप मच गया था।
सैटेलाइट्स में होंगी ये खूबियां
साइलेंट बार्कर नाम से बुलाया जाने वाला सैटेलाइट्स का यह नेटवर्क जमीन आधारित सेंसर्स और पृथ्वी की निचली कक्षा में स्थापित उपग्रहों की क्षमता बढ़ाने में अपनी तरह का पहला तंत्र होगा। इन सैटेलाइट्स को पृथ्वी से लगभग 35,400 किमी ऊपर रखा जाएगा और यह उसी गति से घूमता है, जिसे जियोसिंक्रोनस ऑर्बिट के रूप में जाना जाता है। एनआरओ ने जानकारी देते हुए बताया कि साइलेंट बार्कर नाम से बुलाए जाने वाले सैटेलाइट्स को जुलाई के बाद लॉन्च किया जा सकता है। इसके लॉन्च करने की तारीख एक महीने पहले बताई जाएगी।
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7 साल बाद हर गर्मियों में आर्कटिक महासागर से लुप्त हो जाएगी बर्फ, वैज्ञानिकों ने बताई ये वजह
Global Warming: ग्लोबल वार्मिंग के कारण पूरी दुनिया के मौसम पर विपरीत प्रभाव पड़ा है। जहां बारिश होती थी, वहां तेज गर्मी पड़ रही है और जहां बारिश नहीं होती थी, वहां बाढ़ आ रही है। यूरोपीय देशों में तो हीटवेव ने हाहाकार मचा रखा है। ऐसे में कई जलवायु सम्मेलनों में भी ग्लोबल वार्मिंग की चिंता जताई गई है। लेकिन कोई असर नहीं पड़ा है। इसी बीच एक नई जांच रिपोर्ट के अनुसार ग्लोबल वार्मिंग का असर यह है कि उत्तरी गोलार्ध में स्थित आर्कटिक महासागर में 2030 से हर गर्मियों में जो बर्फ अभी ग्लेशियर के रूप में तैरती दिखाई देती है, वह भी गायब हो जाएगी।
तापमान 1.5 डिग्री तक भी रोका जाए, तो भी तैरती बर्फ पिघलने से नहीं रोक सकते
नेचर कम्युनिकेशंस जर्नल की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पेरिस में हुई जलवायु संधि के तहत अगर ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस पर भी रोका जाए तब भी आर्कटिक महासागर पर तैरती बर्फ को पिघलने से नहीं रोक सकते। दक्षिण कोरिया के एक शोधकर्ता और लेखक सेउंग की मिन ने बताया कि पर्माफ्रॉस्ट को पिघलाकर यह ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ा देगा। बर्फ के टुकड़े के पिघलने के कारण इससे ग्रीनहाउस गैस और समुद्री स्तर में बढ़ावा होगा।
आर्कटिक को कब कहते हैं बर्फमुक्त
दरअसल, यदि आर्कटिक महासागर एक मिलियन वर्ग किलोमीटर से कम बर्फ से घिरा है या पूरे महासागर में बर्फ सात प्रतिशत से कम है तो वैज्ञानिक इसे बर्फ मुक्त कहते हैं। फरवरी में अंटार्कटिका में समुद्री बर्फ 1.92 मिलियन वर्ग किलोमीटर तक गिर गई, जो अब तक के अपने सबसे निचले स्तर पर है। 1991-2020 के औसत से यह स्थिति लगभग एक मिलियन वर्ग किलोमीटर नीचे है।
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