Image Source : PTI
नेपाल के पीएम प्रचंड बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के साथ (फाइल)
Nepal New PM Prachand: माओवादी नेता पुष्प कमल दहल के नेपाल का प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही भारत वहां के हर घटनाक्रमों पर पैनी नजर रख रहा है। तीसरी बार पीएम बने प्रचंड और पूर्व पीएम केपी शर्मा ओली का पूर्व इतिहास भारत के साथ संबंधों के लिहाज से अच्छा नहीं रहा है। दोनों नेता चीन के समर्थक हैं। जबकि पूर्व पीएम शेर बहादुर देउबा ने भारत के साथ अच्छे संबंधों को बहाल करने का प्रयास किया था। 275 सदस्यीय प्रतिनिध सभा में 89 सीटें जीतने वाले शेर बहादुर देउबा को ही प्रचंड पहले समर्थन दे चुके थे। मगर आखिरी वक्त में उन्होंने भारत विरोधी नेता केपी शर्मा ओली से हाथ मिला लिया। ऐसा माना जा रहा है कि प्रचंड ने चीन के कहने पर ऐसा किया है। क्योंकि प्रचंड भी चीन के समर्थक हैं। ऐसे में भारत के खिलाफ चीन की यह साजिश कामयाब होती दिख रही है।
हर तरफ से भारत को घेरने में जुटा चीन
चीन ने पाकिस्तान के बाद अब नेपाल के रास्ते भी भारत में अशांति फैलाने की साजिश रच दी है। ऐसा माना जा रहा है कि प्रचंड के पीएम बनने से भारत और नेपाल के संबंध अधिक तनावपूर्ण हो सकते हैं। सीमा पर नेपाल चीनी साजिश के दबाव में तनाव पैदा करने वाली हरकतें कर सकता है। प्रचंड और गठबंधन के दूसरे नेता केपी शर्मा ओली दोनों का झुकाव चीन की ओर ही रहा है। विदेश नीति के विशेषज्ञों ने सोमवार को कहा कि भारत को नेपाल के घटनाक्रम पर सावधानी से नजर रखनी होगी और समग्र संबंधों को आगे बढ़ाने पर ध्यान देना होगा। उनकी यह टिप्पणी पूर्व माओवादी नेता पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ के नेतृत्व वाली नयी नेपाल सरकार के तहत चीन के लाभ की स्थिति में होने की आशंकाओं के बीच आई है।
नेपाल के पूर्व विदेश मंत्री ने भी जताई चिंता
प्रचंड पूर्व प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली के नेतृत्व वाली सीपीएन-यूएमएल और पांच अन्य छोटे दलों के साथ हाथ मिलाकर तीसरी बार देश के प्रधानमंत्री बने हैं। नेपाल के पूर्व विदेश मंत्री रमेश नाथ पांडे ने कहा कि वर्तमान स्थिति भारत-नेपाल संबंधों के लिए उत्साहजनक नहीं है, क्योंकि “वर्तमान नेताओं” ने अतीत में संबंधों में खटास पैदा की थी। उन्होंने कहा, ‘‘मौजूदा नेताओं के पिछले रिकॉर्ड उत्साहजनक नहीं हैं। उन्होंने रिश्तों में नयी अड़चनें पैदा कीं तथा अवांछित चीजों से दूर होने के बजाय, उन्होंने और अधिक परेशानियां पैदा कीं।’’ सीपीएन-यूएमएल नेता ओली को व्यापक रूप से चीन समर्थक नेता के रूप में देखा जाता है और फरवरी 2018 तथा जुलाई 2021 के बीच जब वह प्रधानमंत्री थे, तब भारत और नेपाल के बीच संबंधों में कुछ तल्खी देखने को मिली थी।
भारत को रखनी होगी पैनी नजर
नेपाल में भारत के पूर्व राजदूत और ‘काठमांडू डाइलेमा, रीसेटिंग इंडिया नेपाल टाइज’ के लेखक रंजीत राय ने कहा, “यह निश्चित रूप से एक अप्रत्याशित घटनाक्रम है, क्योंकि नेपाली कांग्रेस के नेतृत्व वाले पांच दलों का गठबंधन इस बात पर आम सहमति नहीं बना सका कि पहले प्रधानमंत्री कौन होगा।” उन्होंने कहा, ”भारत को घटनाक्रम पर सावधानीपूर्वक नजर रखनी होगी, क्योंकि चीन क्षेत्र में कम्युनिस्ट दलों के विभिन्न गुटों को एकजुट करने की कोशिश कर रहा है। हमें इस पर नजर रखनी होगी।” सितंबर 2013 से फरवरी 2017 तक काठमांडू में भारतीय राजदूत रहे राय ने कहा कि प्रचंड भारत और नेपाल के बीच संबंधों के महत्व से अवगत हैं। उन्होंने कहा, ”साथ ही, मैं यह कहना चाहूंगा कि हमने प्रधानमंत्री के रूप में प्रचंड के साथ उनके पिछले दो कार्यकालों के दौरान काम किया है। उन्होंने हाल ही में भाजपा अध्यक्ष जे पी नड्डा के निमंत्रण पर भारत का दौरा किया था। वह भारत और नेपाल के बीच संबंधों के महत्व से अवगत हैं।’
इस्लामबाद: पाकिस्तान के तानाशाह रहे और पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ का लंबी बीमारी के बाद दुबई में निधन हो गया। मुशर्रफ 79 साल के थे और पिछले काफी सालों से पाकिस्तान से बाहर रह रहे थे। मुशर्रफ वह शख्स थे जिनकी वजह से साल 1999 में भारत और पाकिस्तान कारगिल की जंग में आमने सामने थे। मुशर्रफ उस समय पाकिस्तान आर्मी के चीफ थे और करीब एक साल से जंग की तैयारी में लगे हुए थे। कारगिल वह युद्ध था जिसकी वजह से पाकिस्तान पर परमाणु हमले का खतरा बढ़ गया था। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के करीबी और सीआईए के पूर्व अधिकारी ब्रूस रीडिल ने दावा किया था कि अगर अमेरिका बीच में नहीं आता और पाकिस्तान को ना समझाता तो भारत परमाणु हमला कर देता।
मुशर्रफ का एक आदेश और आतंकियों दाखिल मुशर्रफ कारगिल की जंग के मास्टरमाइंड थे। मार्च 1999 से मई 1999 तक उन्होंने आतंकियों को कारगिल में घुसपैठ का आदेश दिया। पाकिस्तान की नॉर्दन लाइट इनफेंट्री ने कारगिल की कई चौंकियों पर कब्जा कर लिया था। ढाई महीने तक दोनों देशों की सेनाएं जंग कर रही थी। पाकिस्तानी सैनिकों और आतंकियों ने जबरन भारतीय चौकियों पर कब्जा कर लिया था। ऊंचाई पर लड़ी जा रहा युद्ध रोज नई चुनौतियां लेकर आता। इस युद्ध ने अमेरिका का रुख भारत के लिए बदलकर रख दिया और पाकिस्तान को जमकर घुड़की दी। पांच जुलाई 1999 का दिन अमेरिका को भी कभी नहीं भुलता है।
पाकिस्तान से भारत था नाराज जंग के समय बिल क्लिंटन अमेरिका के राष्ट्रपति थे। ब्रुस रीडिल ने इस वाकये का एक जिक्र वॉशिंगटन पोस्ट के आर्टिकल में किया था। रीडिल ने लिखा था कि भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी काफी नाराज थे। वाजपेयी लगातार मांग कर रहे थे कि पाकिस्तान को अपनी सेनाओं को पीछे करना पड़ेगा। वाजपेयी की जिद के आगे तत्कालीन नाक पीएम नवाज ने हार मानी। रीडिल के मुताबिक भारत पूरी तरह से तैयार था कि वह पाकिस्तान पर परमाणु हमला कर देगा।
क्लिंटन ने दी वॉर्निंग 4 जुलाई 1999 को नवाज ने क्लिंटन से मुलाकात की। इसी मीटिंग में क्लिंटन ने नवाज को बताया कि वाजपेयी काफी नाराज हैं। क्लिंटन ने बताया कि वाजपेयी ने उनसे कहा है कि उन्हें मालूम है कि परमाणु हमले में भारत का भी 50 फीसदी हिस्सा खत्म हो जाएगा लेकिन पाकिस्तान का भी नामोनिशान मिट जाएगा। नवाज इस बात से काफी नाराज हुए। तीन जुलाई को शरीफ ने क्लिंटन से कहा कि वह मदद के लिए तुरंत वॉशिंगटन पहुंच रहे हैं। क्लिंटन ने भी उन्हें चेतावनी देते हुए कहा था कि वह तभी अमेरिका आएं तब सेनाओं की वापसी का फैसला लेने को तैयार हों।
एक-दूसरे पर दोष क्लिंटन ने 4 जुलाई को शरीफ से बातचीत शुरू की और उन्हें शिकागो ट्रिब्यून का एक कार्टून पकड़ाया। इस कार्टून में पाकिस्तान और भारत को आपस में परमाणु बम से लड़ते हुए दिखाया गया था। अमेरिका और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के दबाव में पाकिस्तान को झुकना पड़ा। नवाज शरीफ को मजबूर होना पड़ा कि वह अपनी सेनाओं को वापस बुलाएं। 1999 में मुशर्रफ का प्लेन पाकिस्तान में लैंड करने ही वाला था कि नवाज ने उन्हें आर्मी चीफ के पद से हटा दिया। मुशर्रफ इस जंग के लिए नवाज को दोष देते रहे और नवाज इसे मुशर्रफ के दिमाग की खुराफात बताते रहे।
Image Source : PTI
कारिगल जंग के जिम्मेदार थे मुशर्रफ
पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ का दुबई के अस्पताल निधन हो गया है। वे लंबे समय से बीमार थे। उन पर काफी लंबे समय से मुकदमा चल रहा था। राजद्रोह के मामले में उन्हें एक विशेष अदालत ने मौत की सजा सुनाई थी। वे लंबे समय से पाकिस्तान से बाहर ही रह रहे थे। लेकिन पिछले कुछ अरसे से उनकी तबीयत खराब चल रही थी। ये विडंबना है कि वे पाकिस्तान के पहले ऐसे सैन्य शासक रहे, जिन्हें अब तक के इतिहास में मौत की सजा सुनाई गई थी।
भारत के खिलाफ कारगिल की जंग के लिए उन्हें कसूरवार माना जाता है। 1999 में जब कारगिल युद्ध हुआ, तब वे पाकिस्तान के सेना प्रमुख थे। ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने करगिल युद्ध के बारे में तत्कालीन प्रधानमंत्री मियां नवाज शरीफ को भी अंधेरे में रखा था।
कारगिल जंग पर नवाज शरीफ को अंधेरे में रखा
नवाब शरीफ और तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री के बीच रिश्तों की बर्फ पिघल रही थी, अटलजी शांति की बस में सवार होकर लाहौर गए थे। लेकिन 1999 में जनरल परवेज मुशर्रफ ने सैन्य तख्तापलट करके नवाज शरीफ को सत्ता से बेदखल कर दिया। उस समय नवाज शरीफ को पता ही नहीं चला, क्योंकि वे श्रीलंका में थे। इसके बाद मुशर्रफ ने कारगिल युद्ध शुरू कर दिया। हालांकि भारत ने मुशर्रफ के इरादों को नेस्तनाबूत कर दिया और कारगिल पर जीत हासिल कर ली थी।
नवाज शरीफ को हटाकर परवेज मुशर्रफ ने संभाली थी कमान
जनरल परवेज मुशर्रफ श्रीलंका में थे तो नवाज शरीफ ने शक के आधार पर सेनाध्यक्ष के पद से हटा दिया। शरीफ ने मुशर्रफ के स्थान पर जनरल अजीज को चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ बनाया। नवाज यहीं गलती कर बैठे और यह नहीं समझ पाए कि जनरल अजीज भी परवेज मुशर्रफ के ही वफादार हैं। आखिरकार शरीफ जिस सैन्य तख्तापलट की आशंका से घिरे थे वह हो ही गया।
India TV पर हिंदी में ब्रेकिंग न्यूज़ Hindi News देश-विदेश की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट और स्पेशल स्टोरी पढ़ें और अपने आप को रखें अप-टू-डेट। Asia News in Hindi के लिए क्लिक करें विदेश सेक्शन
Pervez Musharraf Death: पाकिस्तान के सैन्य तानाशाह परवेज मुशर्रफ का दुबई में निधन हो गया है। मुशर्रफ करगिल युद्ध के वक्त पाकिस्तान के सैन्य प्रमुख थे। उन्होंने ही सरकार को बिना बताए इस युद्ध की प्लानिंग की थी। बाद में मुशरर्फ को देश निकाला दिया गया और वह दुबई में जाकर बस गए थे।