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समी मोडक / मुंबई June 29, 2022 |
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भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने बुधवार को होने वाली अपनी बोर्ड बैठक में एक्सचेंज ट्रेडेड जिंस डेरिवेटिव सेगमेंट में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) के लिए राह स्पष्ट किए जाने का संकेत दिया है। लंबे समय से प्रतीक्षित इस कदम का मकसद घरेलू जिंस बाजारों में तरलता और दक्षता बढ़ाना है, भले ही बाजारों में उतार-चढ़ाव बना हुआ है।
इस घटनाक्रम से अवगत लोगों के अनुसार, सेबी बोर्ड द्वारा अपने सालाना खातों को स्पष्ट किए जाने की भी संभावना है, जिसे अगले महीने संसद के समक्ष सालाना रिपोर्ट सौंपे जाने से पहले के कदम के तौर पर देखा जा रहा है। मौजूदा अध्यक्ष माधबी पुरी बुच के अधीन यह दूसरी बोर्ड बैठक होगी जिन्होंने मार्च में सेबी की कमान संभाली।
मौजूदा समय में, म्युचुअल फंड और वैकल्पिक निवेश फंड जैसे संस्थागत निवेशक डेरिवेटिव बाजार में भागीदार हैं। हालांकि कारोबार में उनका योगदान प्रॉपराइटरी ट्रेटिंग द्वारा होने वाले कारोबार के मुकाबले 15 प्रतिशत से भी कम है।
शुरू में सेबी ने कथित ‘पात्र विदेशी इकाइयों’ (ईईई) को सिर्फ अपना निवेश सुरक्षित बनाने के लिए भारतीय जिंस डेरिवेटिव बाजार में भागीदारी की अनुमति दी थी।
ईईई को फॉरेन एक्सचेंज मैनेजमेंट ऐक्ट (फेमा) में ‘पर्संस रेजीडेंट आउटसाइड इंडिया’ यानी भारत से बाहर के निवासी लोगों के तौर पर परिभाषित किया गया था, जो न्यूनतम निवेश 500,000 डॉलर के साथ भारतीय जिंस बाजार में जुड़े हुए थे। जहां जिंस एक्सचेंजों ने अब तक बड़ी संख्या में ईईई को शामिल किया था, वहीं इन इकाइयों द्वारा भागीदारी सख्त नियामकीय ढांचे की वजह से शून्य हो गई है।
अधिकारियों का कहना है कि एफपीआई के लिए रूपरेखा ज्यादा उदार होगी। इसकी एक मुख्य वजह यह भी है कि उन्हें पारंपरिक जिंसों के लिए वास्तविक निवेश की शर्त के बगैर निवेश की अनुमति होगी। इसके अलावा, एफपीआई के लिए पोजीशन लिमिट एमएफ के समान होगी। साथ ही, बैक-ऐंड फ्रेमवर्क भी इक्विटी डेरिवेटिव में एफपीआई भागीदारी के अनुरूप होगा और कस्टोडियन अपने निवेश पर नजर रखेंगे।
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